Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 52
________________ वोर-स्तुति अनिर्वारोदरेकस् त्रिभुवनजयी कामसुभटः, कुमारावस्थायामपि निजबलायेन विजितः। स्फुरन्नित्यानन्द-प्रशमपदराज्याय स जिनः, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः॥ त्रिलोकी का जेता मदन भट जो दुर्जय महा, युवावस्था में भी विदलित किया ध्यान-बल से । महा-नित्यानन्द-प्रशम पद पाया जिन-पति, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी सतत हों। संसार में कामरूपी योद्धा कितना अधिक विकट है ? वह त्रिभुवन को जीतने वाला है, उसके वेग को महान् से महान् शूरवीर भी नहीं रोक सकते । परन्तु जिन्होंने अपने आध्यात्मिक बल के द्वारा, उस दुन्ति कामदेव को भी नित्यानन्द - स्वरूप प्रशम पद के राज्य की प्राप्ति के लिए, भरपूर यौवन अवस्था में पराजित किया, वे भगवान महावीर स्वामी हमारे नयनः पथ पर सदा विराजमान रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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