Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 36
________________ वोर-स्तुति ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेठा। निवाण-सेटठा जह सव्व-धम्मा, न नायपुत्ता परमत्थि नाणी ||२४|| दीर्घायु वाले देवगण में श्रेष्ठ पंचानुत्तरी । सारी सभाओं में सुधर्मा श्रेष्ठ है मंगलकरी ॥ संसार के सब धर्म वर निर्वाण-पद प्राधान्य हैं।। श्री ज्ञात नन्दन वीर-सम ज्ञानी न कोई अन्य हैं ॥२४॥ देव-स्थिति में श्रेष्ठ स्थिति लव पत्तमों की है बड़ी, स्वग की परिषद् सुधर्मा सब सभाओं में बड़ी। सर्व धर्मों में अमर निर्वाग का पद श्रेष्ठ है, ज्ञानियों में वीर से बढ़कर न कोई ज्येष्ठ है ॥२४॥ जिस प्रकार सुखमय जीवन की सबसे बड़ी आयु में सर्वार्थसिद्ध नामक छब्बीसवें देव लोक के देवताओं की आयु श्रेष्ठ है, सब सभाओं में प्रथम देवलोक के सौधर्म इन्द्र की सुधर्मा सभा श्रेष्ठ है, सब धर्मों में निर्वाण (मोक्ष) की ही श्रेष्ठता है, उसी प्रकार ज्ञात पुत्र भगवान महावीर भी ज्ञानियों में सबसे श्रेष्ठ थे अर्थात् उनसे बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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