Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 39
________________ वीर-स्तुति किरियाकिरियं वेणइयाण वायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्व-वायं इति वेय इत्ता, उवठिए संजम दीह-रायं ॥२७॥ श्री वीर स्वामी ने क्रियामत, अक्रियामत को तथा। अज्ञान, विनयक पक्ष को भी जानकर के सर्वथा । अन्यान्य भी मत पक्ष सब समझा-बुझा सम्यक्तया । संयम-क्रिया में जन्म भर तत्पर रहे सम्यक्तया ॥२७॥ वीर स्वामी ने क्रिया अरु अक्रिया के बाद को, पनि विनय के वाद को, अज्ञानता के वाद को। जान कर निष्पक्ष मति से सब स्वयं समझा दिया, नष्टकर अज्ञान तम, पालन सुचिर संयम किया ॥२७॥ भगवान महावीर ने क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद, अज्ञानवाद, आदि सब प्रकार के मत-मतान्तरों को पहले स्वयं भली-भाँति जाना और फिर जनता को सत्य का वास्तविक मर्म समझाया। भगवान ज्ञान के साथ संयम के भी बड़े उत्कृष्ट साधकः थे । अस्तु आपने शुद्ध संयम का जीवन पर्यन्त सर्वथा दोष-रहित परिपालन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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