Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 41
________________ C वार-स्तुति सोच्चा य धम्मं अरिहन्तभासियं, समाहितं अट्ठ-पदोवसुद्ध । तं सदहाणा य जणा अणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्सं ॥२६।। अर्हन्त-भाषित, अर्थपद से शुद्धतर सम्यक् कथित । संसार-विश्रुत धर्म को सुनकर सदा जो हों मुदित । श्रद्धा करें जो धर्म पर वे देवपति हो जायी। आयुष्-कर्म से विमुक्त होकर सिद्ध पद को पायेंगे ॥२६॥ वीर-जिनभाषित, समाहित, अर्थ पद से शुद्धतर, धर्म पर श्रद्धान रक्खेंगे, सुजन जो श्रवण कर । कर्ममल से मुक्त हो वे सिद्ध प्रभु बन जायगे, स्वर्ग में अथवा सुरेश्वर इन्द्र का पद पायगे ।।२६।। श्री सुधर्मास्वामी गणधर श्री जम्बूस्वामी से वीर स्तुति का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि जो साधक राग-द्वेष के विजेता भगवान महावीर के द्वारा सम्यक् प्रकार से कहे हुए शब्द और अर्थ दोनों ही दृष्टियों से सर्वथा शुद्ध धर्म प्रवचन पर श्रद्धा रक्खेंगे, वे जन्म मरण के बन्धन से रहित होकर सिद्ध-पद प्राप्त करेंगे, अथवा स्वर्ग में देवताओं के राजा इन्द्र बनेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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