Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 45
________________ ३ वीर-स्तुति नमन्नाकेन्द्राली-मुकुट-मणि-भा-जाल-जटिलं, लसत्पादाम्भोजद्वयमिह यदीयं तनुभृताम् । भवज्वाला-शान्त्यै प्रभवतिजलं वा स्मृतमपि, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः॥ नमस्कर्ता इन्द्र-प्रभृति अमरों के मुकुट की, प्रभा श्रीपादाम्भोरुह-युगल-मध्ये झलकती। भव-ज्वालाओं का शमन करते वे स्मरण से, महावीर स्वामी नयन-पथ गामी सतत हों। जिनके चरण-कमल, नमस्कार करते हुए इन्द्रों के मुकुटों की मणियों के प्रभाज से व्याप्त हैं, और जो स्मरणमात्र से संसारी जीवों की भवज्वाला को जलधारा के समान पूर्ण रूप से शांत कर देते हैं, वे भगवान महावीर स्वामी सर्वदा हमारे नयन-पथ पर विराजमान रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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