Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 42
________________ महावीराष्टक स्तोत्र : १: यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः, समं भान्तिधौव्य-व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहिता जगत - साक्षी मार्ग-प्रकटनपरो भानुरिव यो महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः! जिन्हों की प्रज्ञा में मुकुर-सम चैतन्य जड़ भी, सदा ध्रौव्योत्पादस्थिति युत सभी माथ झलकें। जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटन-विधाता तरणि ज्यों. महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी सतत हों। जिनके केवलज्ञान-रूपी दर्पण में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यविविध रूप से युक्त अनन्तानन्त जीव और अजीव पदार्थ एक साथ झलकते रहते हैं; जो सूर्य के समान जगत् के साक्षी हैं और सत्य मार्ग का प्रकाश करने वाले हैं, वे भगवान् महावीर स्वामी सर्वदा हमारे नयन-पथ पर विराजमान रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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