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वीर - स्तुति
थणियं व सहाण अणुत्तरे उ, चंदो व ताराण महाणुभावे । गंधेसु वा चंदणमाहु सेटूठ, एवं सुणीणं अपडिन्नमाहु ||१६||
॥१६॥
जैसे घनाघन - गर्जना सब शब्द में उत्कृष्ट है । जैसे कलानिधि चंद्रमा नक्षत्र गण में श्रेष्ठ है ॥ जैसे सुगन्धित वस्तुओं में मलय चन्दन श्रेष्ठ है । तैसे अकामी वीर सारे साधुओं में श्रेष्ठ हैं ॥१६ ॥
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मेघ गर्जन है अनुत्तर शब्द के संसार में, कौमुदी - पति चन्द्रमा है श्रेष्ठ तारक हार में सब सुगन्धित वस्तुओं में बावना चन्दन प्रवर, विश्व के मुनि-वृन्द में निष्काम सन्मति श्रेष्ठतर ||१६||
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जिस प्रकार शब्दों में मेघ की गर्जना का शब्द अनुपम है, तारा मण्डल में चन्द्रमा महानुभाव है, सुगन्धित वस्तुओं में मलय अर्थात् बावना चन्दन श्रेष्ठ है, उसी प्रकार भूमण्डल के समस्त मुनियों में लोक और परलोक की वासना से सर्वथा मुक्त भगवान महावीर श्रेष्ठ थे ।
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