Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ १४ वीर-स्तुति सुमेरु पर्वत की कन्दराओं में से देवताओं का मधुर संगीत-स्वर दूर-दूर तक गूजता रहता है । तपाये हुए स्वर्ण जैसी उज्ज्वल कान्ति बड़ी मनोहर लगती है । सुमेरु सब पर्वतों में श्रेष्ठ है और ऊँची-नीची मेखलाओं के कारण दुर्गम है । मंगल-ग्रह के समान अतीव उज्ज्वल कान्ति वाला है। टिप्पणी - सुमेरु की कन्दरा-गत गम्भीर ध्वनि के समान भगवान महावीर की वाणी भी अतीव ओजस्विनी दिव्य-ध्वनि के रूप में प्रगट होती थी। वह दूर-दूर तक बैठे हुए श्रोताओं को सुनाई देती थी और उनके अन्तःकरण पर अपना अमिट प्रभाव डाल देती है। सुमेरु, मेखलाओं के कारण दुर्गम है और भगवान महावीर भी नय-निक्षेप आदि की भंगावलियों के कारण तत्त्व चर्चा के क्षेत्र में वादियों के द्वारा सर्वथा अजेय थे । अनेकान्त'वाद का सिद्धांत भला कहीं पराजित होता है ? भौम का एक अर्थ मंगल ग्रह है, दूसरा अर्थ पृथ्वी परिणाम भी होता है । इस प्रसंग में ज्वलित भौम का अभिप्राय यह होगा कि जिस प्रकार पृथ्वी अनेक तेजोमय औषधियों से देदीप्यमान रहती है, उसी प्रकार मेरु पर्वत भी अनेक वृक्ष समूह से, देदीप्यमान रहता है, चमकता रहता है। भगवान __ भी मेरु के समान अनन्तानन्त सद्गणों से प्रकाशमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58