Book Title: Veerstuti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 24
________________ वोर-स्तुति महीइ मझमि ठिये णगिंदे, पन्नायते सूरिय - सुद्ध - लेसे । एवं सिरीए उ स भूरि-वन्ने, मणोरमे जोइय अच्चिमाली ॥१३॥ भूमध्य में स्थित पर्वतेश्वर लोक में प्रज्ञात है। मातंण्ड-मण्डल तुल्य शुद्ध सुतेज-युत विख्यात है ॥ पूर्वोक्त शोभावान बहुविध वर्ण से अभिराम है। दर्शन-मनोहर सूर्य-सम उद्योत-कर छवि-धाम है ॥१३॥ भूमि-तल के मध्य में स्थित है नगेन्द्र सुमेरुवर, सूय-जैसा शुद्ध तेजोराशि से युत अति प्रखर । क्या मनोहर रंग मणियों का विचित्रित सोहता ? दश दिशा-द्योतक किरण का पूज जग को मोहता ॥१३॥ सुमेरु पर्वत ठीक भूमण्डल के बीच में है । वह पर्वतों का राजा, सूर्य के सामान अतीव दिव्य कान्ति वाला है। नाना प्रकार के रत्नों के कारण विचित्र वर्गों की प्रभा से युक्त है। उसमें से सब ओर उज्ज्वल किरणें निकलती रहती हैं, जो दश दिशाओं को अपने आलोक से उद्भासित करती हैं। टिप्पणी--जिस प्रकार सुमेरु भुमण्डल के बीच में है, उसी प्रकार भगवान महावीर भी धर्म साधकों की भावनाओं के मध्य बिन्दु अर्थात् केन्द्र थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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