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वोर-स्तुति से पन्नया अवय - सायरे वा, महोदही वा वि अणंतपारे । अणाइले वा अकसाइ मुक्के,
सक्के व देवाहिवई जुइमं ॥८॥ निर्मल अनंत - अपार - संभूरमण सागर है यथा । श्री वीर भी वर-बुद्धि से अक्षय पयोनिधि थे तथा । भव-बन्धनों से मुक्त, भिक्षु कषाय-मल से दूर थे।
देव-स्वामी शक्र-सम धृतिमान, विजयो शूर थे ॥८॥ जिस प्रकार अपार सागर वह स्वयंभूर मण है, त्यों अखिल विज्ञान में वह वीर सन्मति श्रमण है। कर्म-मुक्त, कषाय से निलिप्त, धन्य पवित्रता, देव-पति श्री शक्र-सम द्य ति की अनन्त विचित्रता ॥८॥
भगवान अनुपम हैं । संसार का कोई भी पदार्थ उनकी बराबरी में नहीं आ सकता । फिर भी परिचय की दृष्टि से स्वयभरमण सागर और इन्द्र की उपमा दी गई है ---
जिस प्रकार स्वयंभूरमण महासागर अपार एवं निर्मल है, उसी प्रकार भगवान महावीर भी पूर्ण शुद्ध अनन्त ज्ञान के अक्षय सागर थे। क्रोध, मान आदि चार कषाय से सर्वथा रहित थे । वासनाजन्य कर्मों के बन्धन से मुक्त थे। जिस प्रकार देवताओं का स्वामी इन्द्र प्रभावशाली है, उसी प्रकार भगवान महावीर भी महान् तेजस्वी एवं महान् प्रभावशाली थे।
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