Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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वसुदेव हंडी
[ जंबुपभवसंवादे कुबेरदत्त
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तं च परमासु हूण निदंतो नियगविण्णाणं परमदुक्खिओ चिंतेइ- - जइ इत्तो मे निग्गमो होज्जा तो अलं मे एरिसपज्जवसाणेहिं भोगेहिं ति । ताओ य से अणुकंपणट्ठा भुत्तसेसमाहारं पखिवंति । तं च छुहावसेण परिचयवसेण य तब्भाविओ अहिलसति । पाउसकाले मेहोण पुणो कुषो । निद्धमणोदयखायसंबद्धो उग्घाडिओ पुरिसेहिं । सलिलवेगेण निच्छु5 ग्भमाणो निग्गओ खाइतीरे । वाएण समाहओ मुच्छिओ, दिट्ठो य नियगधाईए, पक्खालिऊण संचारिओ य सघरं पवेसिओ । पडियरिओ कमेण जहापोराणसरीरो जातो ॥
अस्स दितस्स उवसंहारो - जहा सो ललियंगतो, तहा जीवो । जहा देवीदरिसणसंबंधकालो, तहा मणुस्सजम्मं । जहा सा चेडी, तहा इच्छा । जहा वासघरे पवेसो, तहा विसयसंपत्ती । जहा रायपुरिसा, तहा रोग - सोग-भय-सी- उण्हपरितावा । जहा कूवो, तहा 10 गब्भवासो । जहा भुत्तसेसाहारपंरिक्खेवो, तहा जणणिपरिणामियऽन्न-पाणा परिसवादाणं । जहा निग्गमो, तहा पसवसमतो । जहा धाई, तहा देहोपग्गहकारी कम्मविवागसंपत्ती ॥
पभव ! जइ तस्स देवी रूवविम्हिया पुणो पट्टवेज्जा तो पविसेज्जा ? । पभवो भणइ -- कहं पविसिहइ तहाणुभूयदुक्खो ? | जंबुनामेण भेणियं - अवि सो अन्नाणयाते विसयसभोगगाए य पुणो पविसेज्जा, जहा अन्नाणिणो सत्ता विसयपडिबद्धा गन्भवासं । अहं 16 पुण गहियबंध - मोक्खसब्भावो पुणो राग - दोसवत्तिणिं न पवज्जिस्सं ॥
तओ पभवो भाइ - सोम ! सुणह, जहा तुब्भेहिं कहियं तहा तं । एगं पुण विन्नवेमिलोगधमाणुवत्तिणा भत्तुणा भज्जातो पालणिया लालणिया य । तं कयवि संवच्छराणि एयार्हि समं वहूहिं सुमहविऊण तओ सोभिहह पवयंताँ । जंबुनामेण भणिओ - पभव ! न एस नियमो संसारेरे-जा इह भवे भज्जा माया वा सा भवंतरे वि, किं पुण माया भगिणी भज्जा 20 दुहिया वा हवेज्जा । एवं सेसविवज्जासो—भत्ता वि पुत्तो, पिया वि भाया परो वा, तहा इत्थि (त्थी) पुरिसो नपुंसगो य कम्मवसगो जीवो । जा पुण माया भगिणी दुहिया वा जम्मं - तरे आसी सा कहं भज्जायारेण लालणीया भवइ ? । [ पभवो भणइ - ] भवंतरगओ भावो दुविन्नेओ, वत्तमाणं पडुच्च भण्णइ - पुत्तो वि, पिया वि जओ । भणइ जंबुणामोएवमादी अन्नाणस्स दोसा, जेण अकज्जे कज्जबुद्धीअ पवत्तइ जणो, अथवा भोगलोलुयाए 26 संपइसुहमोहिओ अकज्जे पैवत्तिज्ज जाणंतो वि । तं अच्छउ ताव भवंतरगतीसंबंधो, एकभव. वृत्तं तमन्नार्णमयं सुणाहि
।
एगभवम्मि वि संबंधविचित्तयाए कुबेरदत्त-कुबेरदत्ता कहाण
महुरा नयरी कुबेरसेणा गणिआ पढमगब्भदोहलँखेदिया जणणीए तिगिच्छियस्स सिआ । तेण भणिया-जमलगब्भदोसेण एईसे परिवाहा, नैत्थि कोइ वाहिदोसों दीसई ।
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१ पक्खे उ० ॥ २ भणिओ ली ३ गो ३ ॥ ३ °तो डे० मो० सं० ॥ ४ 'लोल' ली ३ ॥ ५ पवत्तेजा ली ३ ॥ ६ गतं सु क ३ उ० ॥ ७ लक्खेविया ली ३ ॥ ८ न एत्थ को उ० ॥
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