Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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चाहदत्तस्स अत्तकहा ]
तइओ गंधवदत्तालंभो ।
१३३
हिओ मि पाणि गंधवदत्ताय सेट्ठिणा । मंगलेहिं अइणीओ मि गन्भहिं सह पियाए । मुदितमणस्स य मे पवियारसुहफला अइच्छिया राई |
1
गएसु य वरकोउयदिवसेसु सुग्गीव-जसग्गीवा उवट्ठिया चारुदत्तसमीवं, तेहिं भणियं– गहवति ! सामा विजया य दारियाओ गंधवदत्तए सहीओ, तीसे अणुमए भयंतु ते जामाउयं । ततो तेण मम निवेदितं कारणं, मया च पिया कया पमाणं । तीसे 5 अणुमा वि बहुसकारं पाविया दो वि । रमामि य तिहिं वि सहिओ भारियाहिं, विसेसओ पुण गंधवदत्ता वड्ढइ मे पीती, गुणा मं रमाविंति न किंचि परिहायइ परिभोगस्स । गएसु बहू दिवसेसु कयाइ भुत्तभोयणो अच्छामि आसण्णगिहे सावस्सयासणनिसण्णो । ततो उवगतो सेट्ठी चारुदत्तो, सो मं अंजलिकम्मेण पूरंतो लवति --- जयंतु सामिपाया !, वाससहस्साणि वो पया आणं पालेंतु सह पियाहिं । ततो मया पूइओ गुरुभावेण विदिण्णे 10 आसणे णिसन्नो । ततो मं भणइ - सामि ! जं मया पुवं वृत्तं 'एसा दारिया तुम्हें अणुसरिसी विसिट्टा वा होज' त्ति तं कारणं कहइस्सं संदिसह । मया भणितं - सउवग्घायं कहसु त्ति । ततो भणिओ - सुणह सामि ! -
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चारुदत्तस्स अप्पकहा गंधव्वदत्तापरिचओ य
आसी य इह पुरीए चिररूढपरंपरागओ उभयजोणिविसुद्धे कुले जातो सेट्ठी भाणू 15 णाम समणोवासओ अहिगयजीवाजीवो साणुकोसो । तस्स तुल्लकुलसंभवा भद्दा नाम भारिया, सॉ उच्चपसवा पुत्तमलभमाणी देवयणमंसण- तवस्सिजणपूयणरया पुत्तत्थिणी विहरइ ।
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कयाइं च सेट्ठी सह घरिणीए पोसहिओ जिणपूअं काऊण पज्जालिएसु दीवेसु दब्भसंथारगओ थुइमंगलपरायणो चिट्ठइ | भयवं च गगणचारी अणगारो चारुनाम उवइओ । सो कय जिणसंथवो कयकायविउस्सग्गो आसीणो, सेट्ठिणा पञ्चभिण्णाओ । ततो ससंभममु - 20 ट्ठिएण सादरं वंदिओ 'चारुमुणिणो' ति भणतेण । तेण वि महुरभणिएण भणिओ - सावग ! निरामओ सि ? अविग्धं च ते तव वयर्विं हिसु ? त्ति । सेट्टिणा भणिओ - भयवं तुम्ह चलणप्पसाएणं । *तित्थयरस्स नमिसामिणो चरियसंबद्धं कहं कहिउमारद्धो ।
अत्थि णे विउलो अत्थो. जो
कतरे यघरिणीए कयंजलिवुडाए विष्णविओ - भयवं ! तस्स भोत्ता कुलसंताणहेऊ लोगदिट्ठीए सो णे पुत्तो होज ? संदिसह तुभे अमोहदंसी | 25 ततो भयवया चारुमुणिणा भणिया- 'भद्दे ! भविस्सइ ते पुत्तो अप्पेणं कालेणं' ति वोत्तूण 'सावय ! अप्पमादी होज्जासि सीलबएस' त्ति गतो अदरिसणं ।
ततो केणइ कालेण घरिणीए आहूओ गन्भो । तिगिच्छगोपदिद्वेण भोयणविहिणा वडओ गन्भो । अविमाणियडोहला य पसवणसमए पयाया दारयं । कयजायकम्मस्स य नामकरणदिवसे कयं च से नामं 'गुरुणा चारुमुणिणा वागरिओ दारओ भवउ चारुदत्तो' 30
१ सुहित° क ३ गो ३ ॥ २° त्ताय स० शां० ॥ ३ सोवग्धायं कहह त्ति शां० ॥ ४ सा हुव्व० शां० ॥ ५ मुणित्ति शां० विना ॥ ६ °विधेसु शां० ॥
* अत्र कियाँश्चित् पाठत्रुटित इति सम्भाव्यते ॥
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