Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 110
________________ १०१ पुरिसभेया ] पेढिया । सेणो य परिवासियं पुरफसेहरगं कुमारसंतियं मग्गिऊण णेइ कहिं पि, तहा वत्थपरियट्ट, मोदके य भुत्तसेसे एगते' खाइस्सं ति । एवं वच्चइ कालो। ___ कंचुकीओ य आगतो रहं गहाय विण्णवेइ-कुमार! संदिढ देवेण-रयणकरंडए उज्जाणे गणियादारिगाओ सुहिरण-हिरण्णाओ नटुं उवदंसेहिन्ति, तत्थ भे पासणिएहिं गंतवं । तुट्ठो संबो सवयंसो आरूढो रहं, सुदारओसारही, मग्गे जाणस्स अक्खो सजिजइ।5 तत्थेगा पडिरूवा कण्णा, तीए संबकुमारस्स कओ पणामो । बुद्धिसेणेण य कुमारो सणियगं भणिओ-अजउत्त! मउडस्स पयरगाणि ललंति, दोहि वि हत्थेहिं णं उण्णामेहि त्ति । तेण तहा कयं । जाणे हयसहो जातो, पडिच्छिओ संबेण, पुच्छिओ य बुद्धिसेणो-का मण्णे एसा जाणे पगासा चिट्ठति ? । तेण भणिया-कुलकण्णा होहिति त्ति । गया उज्जाणं, सभाए उवविठ्ठा पासणिया । तहिं नालियागलएहिं सबा नट्टविही उवदंसियत्वा । हिरण्णाएं 10 दंसिया । उदयपरिक्खए सम्मत्ते सुहिरण्णा दंसेउं पयत्ता । बुद्धिसेणो हितो संबस्स पुरओ, जयसेणेण भणिओ-अवसर एकपासं । सो भणइ-एए ममं पेच्छगा पेल्लंति । विहीए दंसिया सुहिरण्णाए बत्तीसतिनट्टभेया । नालिगासेसेण उदएण उवज्झाएण पहविया । अवसरिओ बुद्धिसेणो । दिट्ठा य कुमारेण सिरी विव कयाभिसेगा, तीय वि सायरं दिवो रईए विव कामो । पत्थिओ य पुरि रहारूढो सवयंसो संबो। 15 पुरिसभेया __ जयसेणो भणइ-अजउत्त ! बुद्धिसेणो तवस्सी अप्पपाणो वयणसारो, जो पेल्लणं न सहइ कुपुरिसो त्ति । तेण भणिओ-तुमं पुरिसविसेसं न याणसि अंघो इव रूवविसेसं । जयसेणेण भणिओ-तुम जाणसि, निउणो सि, कइ पुरिसा ? भणसु, ततो विण्णाणं पगासं होहिति ? । सो भणइ-अत्थ-धम्म-कामेसु पुरिसविभत्ती चिंतिजइ, उत्तम-20 मज्झिमा-ऽधमा. तत्थ अत्थे उत्तमो जो पिउ-पियामहऽजियं अत्थं परिभुजंतो वड्डावेइ, जो ण परिहावेइ सो मज्झिमो, जो खवेइ सो अधमो. धम्मे दुवे पुरिसा-उत्तमो मज्झिमो य, सयंबुद्धो बुद्धबोहिओ य. कामे वि तिन्नि-जो कामेइ कामिजइ सो उत्तमो, जो कामेजइ ण कामेइ सो मज्झिमो, जो कामेइ न कामिजइ सो अधमो । जयसेणेण भणिओ-एएसु अजउत्तो कयरो? । सो भणइ-अत्थ-धम्मसु न ताव पारं वच्चइ, कामे पुण मज्झिमो 125 सो भणइ-तुमं कयरो? । सो भणइ-अहं उत्तमो । सो रुट्टो-अरे पंडितमाणि! अप्पसंभाविओ सि. सामि भणसि ‘मझिमो' त्ति, कायवो ते विणओ। बुद्धिसणो भणइ-तुमं अयाणओ सि, जो कामेजमाणो न कामेइ सो मज्झिमो होइ । सो भणइ-साहु, को कामेय णं?।सो भणई-न कहेमि, जदि मं सयं पुच्छिति तो साहामि । कुमारेण भणिओकहेहि । सो भणइ 30 १ ते खाइ क्खाइ° उ २ विना ॥ २ यं भ° शां० विना॥ ३ °सु चिंति° शां. उसं० संसं० विना॥ ४ ली ३ विनाऽन्यत्र-मो सि काय क ३ गो ३ उ० ॥५°इ क° उ० विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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