Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 125
________________ वसुदेवहिंडीए .. [वसुदेवपुवभवकहाए सुमित्ताए पडिसुणित्ता पडिवन्ना जिणदेसियं मग्गं, पवयणकुसला य जाया। वड्डियाए य से सयंवरो दिण्णो पिउणा । ततो णाए उभयलोगसुहोवलंभिणी इमा गीइगा पिउणो निवेदिया--. किं नाम होज तं कम्मयं, बहुनिवेसणिजं अलजणिज्जं च । पच्छा य होइ पच्छ (त्थ)यं, न य नासइ नढे सरीरयम्मि ? ॥ 5 ताय! जो मे एईए गीइगाए अत्थं सुणावेज तस्स भे अहं दायवा । तओ पगार्सियाए गीइयाए णाणाविहाणि वत्थूणि सुणाविति विउसा, तीए अहिप्पायं न लहंति । एगेण य पुरिसेण सुणाविया ___कमैयाण तवोकम्मयं, बहुनिवेसणीयं अलज्जैणीयं च । . पच्छा य होइ पच्छ(त्थ)यं, ण य णासइ नट्ठए सरीरयम्मि ॥ 10 पुच्छिओ भणइ-तुब्भे जाणह जो भावत्थो. मया पुण त्थ सुणाविया । भोयाविओ मजाविओ य पुच्छिओ भणति-रयणउरे पुरिसपंडिएण एवं भणियं. मे का सत्ती वुत्तुं ?। ततो पूइओ 'दूओ सि तुम'। तीए विसजिओ । सुमित्ताए य पिया विण्णविओतात! पुरिसपंडिएण लक्खिओ ममाऽहिप्पाओ. जइ मं अत्थेण पत्तियावेइ ता अहं भज्जा नाम तस्स, न सेसकाणं । गया य रयणउरं बहुपरिवारा, आवासे पुवसजिए ठियो । 15 सद्दाविओ गओ य पुरिसपंडिओ सुप्पभो, पुच्छिओ य-कहं तवो बहुणिवेसो सलाहणिजो? पच्छाकाले य पच्छो(त्थो) ? सरीरविणासे य फलं पइ(य)च्छइ ? त्ति । तेण भणिया- सुणाहिइन्भदारयदुगकहासंबंधो इहं दुवे इन्भदारया-एको सवयंसो उजाणाओ नयरमतीति, अण्णो रहेणं निग्ग20 च्छइ । तेसिं नयरदुवारे मिलियाणं गयेण ओसरिउमणिच्छंताणं आलावो वहिओ । तत्थेगो भणति-तुमं पितिसमजिएण अत्थेण गविओ, जो सयं समत्थो अजेउं तस्स सोहइ अहंकारो । बितिओ तहेव । तेसिं च अत्तुक्करिसनिमित्तं जाया पइन्ना-'जो अपरिच्छओ निग्गओ बहुधणो एइ बारसण्हं वासाणं आरओ, तस्स इयरो सवयंसो दासो होहिति' त्ति वयणं पत्ते लिहिऊणं णेगमहत्थे निक्खिविऊणं एक्को तहेव निग्गओ; विसयंते 25 फलाणि पत्तपुडे गहेऊण पट्टणमुवगतो, कयविक्कयं करेंतो जायपक्खेवो संजत्तगमस्सिओ, पोएण ववहरंतो पेत्ते विउले धणसंचए मित्ताणं पेसेइ । बीओ पुण वयंसेहिं चोइजमाणो न नीइ ‘सो तवस्सी जं बहुणा कालेणं विढवेइ तमहं अप्पेणं' ति । बारसमे संवच्छरे तस्साऽऽगमणं सोऊण दुक्खेण निग्गओ घराओ चिंतेइ-मया किलेसभीरुणा विसयलोलुएण य बहुकालो गमिओ. इयाणिं संवच्छरब्भंतरओ केत्तियं समैजेहं ? ति, तं सेयं मे सरीर १०सिए गीयए शां० मे०॥ २ °म्माण तवो शां० विना ॥ ३ जणिजं च ली ३॥ ४ अहं दत्ता ना शां० विना ॥ ५ °या निवेइए सहा शां० विना॥ ६ °ओ ति । त° शां० भे० विना ॥ ७°पत्तलिहियं नेग शां० ॥ ८ °डे भरेऊ शां० विना ॥ ९ पत्तविउलधणसंचओ मि° शां०॥ १० बितिओ शां०॥ ११ जेहिइ?, तं शां०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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