Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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अगडदत्तस्स सामदत्ताए परिचओ] अगडदत्तमुणिअत्तकहा । अगडदत्तस्स सामदत्ताए परिचओ
ततो अहं अण्णया कयाई आयरियगिहरुक्खवाडियाए अइगंतूण जोगं करेमि । तस्स य गुरुभवणस्स सएज्झयभवणे एगा वरतरुणी दिवसे दिवसे फल-पत्त-सुमण-पुप्फदामखियण-लेगुएहि य मे पहरेइ । ततो तं गुरुसंकाए विज्ञागहणलोभेण य इच्छंतो वि न तत्थ अणुराग दंसेमि। ___ ततो कइवएसु दिवसेसु अइकतेसु जोगं करेंतस्स मे तत्थेव रुक्खवाडियाए पलंबलंबंतकसण-रत्ततरपल्लेवस्स, कुसुमभरोणमियअग्गसालस्स, भमर-महुकरिकुलोगिजंतमहुलउवसहकुहरस्स, रत्तासोयवरपायवस्स हेट्ठा साहं वामहत्थेण अवलंबिऊण एगुक्खित्ततरुक्खंधचिट्ठितचलणा णवसारभूयं जोवणयं वहती दिट्ठा मे तरुणजुवती । सा य नवसिरीससरसकुसुमोवमाणकंचणकुम्मसरिसएहिं चलणएहिं, अइविन्भर्मंचकिल्लएणं कयलीखंभसमाणएणं 10 उरुजुयलेणं, महानदीपुलिणेसंघसाकारएणं जंघएणं फालियमज्झमझंतरत्तंसुयसन्निभं वत्थं नियत्था, हंसायलिसद्दसन्निभेणं रसणाकलावएणं, ईसिसंजायमाणरोमराई, कामरइगुणकरेहिं उरतडसोभाकरेहिं संघसयपरिवड्यूमाणेहिं सज्जणमेत्ति व निरंतरेहि य पओहरेहिं, पसत्थलक्खणाहिं रोमोवचियाहिं बाहुलतियाहिं, रत्ततलकोमलेहिं नाइरेहाबहुलेहिं अणुपुंबिसुजातंगुलीरत्ततंबनहेहिं अग्गहत्थेहिं, नाइपलंब-रत्ताधरा, सुजाय-सुद्ध-चारुदंतपंती, रत्तुप्पलप-15 त्तसन्निगासाए जीहाए, जचुण्णयतुंगएणं नासावंसएणं, पसइपमाणतिरियायतेहिं नीलुप्पलपत्तसच्छहेहिं नयणएहिं, संगयएणं भुमयाजुयलएणं, पंचमिचंदसरिसोवमेणं निडालपट्टएणं, कजल-भमरावलीसन्निभेणं मिउ-विसँय-सुगंधिनीहारिणा सबकुसुमाहिवासिएणं केसहत्थएणं सोभमाणेणं, सबंगोवंगपसस्थ-अवितण्हपेच्छणिज्जरूवा दिट्ठा मए ।
चिंतियं च मे-किं नु एयस्स भवणस्स देवया होज ? उर्दीहु माणुसि ? त्ति । ततो मए 20 उवरिं होंती निज्झाइया, नवरि नयणा से णिमेसुम्मेसं करेंति, ततो मए नाया 'न एस देवया, माणुसी एस त्ति । पुच्छिया य मे-भद्दे ! कासि तुम? कस्स वा ? कुओ वा एसि ? त्ति । ततो तीए ईसीसिहसियेदीसंतरूवलट्ठसुद्धदंतपंतीए वामपायंगुट्ठएणं भूमितलं लिहंतीए अहं भणिओ-अजउत्त! एयरस सएज्झयभवणस्स गहवइजक्खदत्तस्स धूया हं सौमदत्ता नाम. दिट्ठो य मया सि बहुसो जोगं करेमाणो, संमं च मे हियए पविट्ठो, 25 तप्पभियं च अहं मयणसरपहारदूमियहियया रइं अविंदमाणी असरणा तुमं सरणं पवना.
१°एहि हिययं मे क ३ ॥ २ लवंतस्स उ२ विना॥ ३°वपिजं° ली ३। वरिजंक ३ गो ३॥ ४ भविलक्खएणं उ० । मक्खिल्लएणं ली ३ क ३ गो ३ ॥५°णसंघसाका क ३ गो ३॥ ६°भं निय कसं. शां० विना ॥ ७ °सावलि°क० उ २॥८ईसिं उ२॥९°लया° उ २ विना ॥१०°पुव्व उ२ ॥ ११°द्धयारु° मो० सं० गो ३॥ १२ °णातिरेयाऽऽय° उ २ ॥ १३ विततसु शां०॥ १४ °दाहो उ २॥ १५ °सिऊण य दीसं की ३ । सियं दीसं० उ २॥ १६ °स्स महेब्भयभ° शां० विना॥ १७ प्रतिषु क्वचित् सोमदत्ता क्वचिच्च सामदत्ता इति पाठान्तरं दृश्यते । अस्माभिस्तु सर्वत्र सामदत्ता पाठ आदृतः ॥ १८ ममं च से हिय° शां० विना ॥ १९ तयप्प° उ २॥
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