Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 63
________________ ५४ धम्मिल्लहिंडीए [ विमलसेणापरिचओ अहं समाणुसओ चंपं वच्चामिति । ततो तेण परितुट्ठेण दवाविया वसही, पवेसिओ य रहवरो, ओइन्नाओ य ताओ, मोइया य तुरया जवसजोग्गासणे य लंभिया । ततो गामसामिणा तेसिं सामिसरिसो उवयारो कओ' । तओ सा तरुणी इच्छियजणस्स अलंभेण पच्छाताव- परिस्समेण य चिरं जग्गिऊण निद्दावसमुवगया । सो वि य ताए महत्तरियाए 5 समं उल्लोवेडं पयत्तो । सा भणइ, सुणह अज्जउत्त ! - विमलसेणापरिचओ अत्थि इहेव नयरे अमित्तदमणो नाम राया । तस्स य धूया विमला नाम । सा पुरिससंसगिंग परिहरइ, कहाए य रोसं गच्छइ । ततो राईणा परिचिंतिऊण रायमग्गस्स अभासे पासाओ कारिओ । तत्थ य बहूहिं वयणकारियाहिं मए य सद्धिं अच्छइ बहुरू10ववेससंछन्ने पुरिसे पिच्छंती । चेडीहि य उल्लावियतं सुयं, जहा - इह मगहापुरे बहुरुवगुणसंपन्न धम्मिल्लो नाम सत्थवाहदारओ परिवसइ । सो य तीए अन्नया कयाई रायमग्गेण वञ्चंतो अवलोइओ, पुच्छिओ य ' को एसो ?' त्ति । ताहिं कहियं - सामिण ! एस सो धमिलो । तत एयं सोऊण पेसिया दासचेडी, पडिनियत्ता य गयसंदेसा भणइसामिण ! मया जहावत्तं सवं भणिओ सो इहं नयरे विच्छिन्नविहवस्स समुद्ददत्तस्स 15 सत्थवाहस्स पुत्त धम्मिल्लो. तेण य भूयघरे संकेओ कओ त्ति । एसा य ममं भणति - कमलसेणे ! किं एत्थ जुत्तं ? ति । मया चिंतियं - एस अच्छेरयं, जं एयाए पुरिसो वरिओ । 'पाव ताव इच्छियपुरिससमागमं ति परिगणेऊणं मया भणिया-सुंदरि ! एवं भवउ. वच्चामो, जत्थ तेण संगारो कओ । ततो अम्हे दो वि जणीओ रहवरमारूढाँओ भूयघरमागयाओ | मैयहरओ य णे वक्खेवपुत्रं विसज्जिओ, नियत्तो य । तत्थ य अम्हेहिं 20तुमं दिट्ठो । ततो एसा पुवगयनेहाणुरागेणं 'सो एस' त्ति पभाए दट्ठूण विरागमुवगया ॥ तं अज्जउत्त ! एस जियस तुस्स रण्णो धूया विमला नाम तह ते अणुणएयबा जह मए समं आणत्तिकारिया होहि त्ति । ततो धम्मिल्लेण करयलसंपुढं रएऊण भणिया-कमलसेणे ! तुज्झायत्तो मणोरहो. तहा कुणसु जहा से ममोवरिं चित्तोवसमो समारुहइ. अहं प से आराहणापरोति । ततो तेसिं उल्लाव - (ग्रंथाप्रम् - १४००) समुल्लावेण गया सा रयणी । 25 कमेण य विमलं पभायं । तओ पभाए पुच्छिओ गामसामी । कयपाणीयकज्जेण य चोइओ रहवरो, आरूढो य गंतुं पयत्तो । अवकंता गामाओ अडविं संपत्ता अणेगभीम-अज्जुणरुक्खगहणं, बहुसावय-सउणगणसेवियं, बहुसरजलाउलं । ततो थोवंतरागया य पेच्छंति पंथब्भासे महाभोगं, गुंजद्धरागरत्तनयणं, वायपुंजमिव गुमगुमायंतं, निल्लालियजमलजुयलजीहं १ ओ । तरुणी य इच्छि° उ २ विना ॥ २ 'लवियं पशां० ॥ ३ विमलसेणा नाम क ३ ॥ ४ पुरिसकहाए उ २ || ५ रायणा शां० ॥ ६ °तो ताएयं ली ३ विना ॥ ७ °ढा य भू° उ २ विना ॥ ८ घरं ग २ । ९ महत्तर° २ । १० 'लसेणा ली ३ गो ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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