Book Title: Vastu Ratna Kosh
Author(s): Priyabala Shah
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 14
________________ VASTURATNAKOSA. Begins : अहं । त्रीणि, भुवनानि । १ । त्रिविधं लोकस्थानं । २ । etc. . Ends : दशविधं बौद्धं । सगता । परिमिता । पारमिता । विहार । प्रमाण । 'सौत्रांतिकं ( 'निराशकं । योगोपचार । मोक्षपर्यंतं ॥ १० छ ॥ चतु । .. Ms. E Source · Muni Jinavijayaji's Collection, Rajasthan. No: ? Material: paper. Folios: 9.1 to 8a Ratnakośa, 8a to 9 Rāgotpatti. Size: 10 x 4,5 inches. Number of lines 15 lines Number of letters 38 to 40 Age not mentioned, appears to be about 150 years' old Script. Devanāgarī Begins श्री गुरुभ्यो नम । रत्नकोशं व्याख्यास्यामः । थ(व)स्तुविज्ञानं । सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशक। खल्पग्रंथ सुबोधार्थ रत्नकोशं समभ्यसेत् ॥ १ ॥ तत्र शतेन सूत्राणा कर्तव्य सग्रहो यथा ॥२॥ अथ इति मंगलार्थे ॥ ग्रंयनु कर्ता श्रीवेदव्यास कहिछि etc . Ends लघिमा। इशत्व । वशित्व । प्राप्ति । प्रकाम्यमेव । Colophon : इति श्रीरत्नकोश सपूर्ण ॥ श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु Ms F Source. Jesalmere Grantha Bhandāra, Jesalmere No, . 315 Material paper Folios 8 Sze 97x44 inches Number of lines 14 lines Number of letters 48 letter3 Age Samvat 1709 (1 e. 1653 A D.) Author not mentioned Script Deranagarĩ. Begins ॐ अहं नम । अथ रत्नकोशो लिख्यते । सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । स्वल्पग्रन्थ सुबोधार्थ रत्नकोशं समभ्यसेत् । तत्र सर्वत्र सूत्राणा कर्तव्य. संग्रहो यथा ॥ तत्रादौ त्रीणि भुवनानि । १ । त्रिविध लोकस्थानम् । २ । "etc Ends . .. वशित्वम् । प्राकाम्यम् । चेति ॥ Colophon : इति श्री रत्नकोश[:] समाप्त[] श्रीसवत् १७०९ वर्षे वैशाषाऽशित षष्टी दिने रेवतीभवे वारे श्री महेरानगरेऽलीलिखत् । श्रीस्तात् कल्याणं भूयात् । लेखकपाठक्यो ऋद्धिवृद्धिः सदैव श्रीस्तात् मांगल्यं महोच्छवं श्री शांतिजिनप्रशादात मा श्री ।

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