Book Title: Vastu Ratna Kosh
Author(s): Priyabala Shah
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पुरातत्त्वाचार्य, जिन विजय मुनि [सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान] १४१४४**** [ग्रन्थाङ्क ४५] *#******* अज्ञातविद्वत्कृत व स्तु रत्न कोश ********* प्रकाशक ******** राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (RAJASTHAN ORIENTAL -RESEARCH INSTITUTE) ":' जोधपुर (राजस्थान). . . ' Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rajasthāna Puratana Granthamalā Published by the Government of Rajasthan A series devoted to the Publication of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha, Old Rajasthani-Gujarati and Old Hindi works pertaining to India in general and Rajasthan in particular 83 GENERAL EDITOR Acharya JINA VIJAYA MUNI, Puratattvacharya Honorary Director, Rajasthan Oriental Research Institute. (Honorary Member of the German Oriental Society (Germany); Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona; Gujarat Sahitya Sabha, Ahmedabad; and Vishveshvaranand Vaidic Research Institute, Hosıyarpur, Punjab,) * ** No. 45 VASTURATNAKOŠA (A short samskiit treatise containing one hundred and one topics of the general culture). ** * EDITED BY Prof. Dr. PRIYA BALA SHAH M. A, Ph. D (Bombay), D Litt (Paris) (Head of the Department of Ancient Indian Culture, Ramanand Arts College, Ahmedabad) PUBLISHED BY THE DIRECTOR RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE JODHPUR (RAJASTHAN) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तु रत्न को श ( नानावस्तुप्रतिपादक - एकोत्तरशतसंख्यासमुच्चयात्मक ) बहुसंख्यक प्राचीन - आदर्शोपलब्ध- विविधपाठभेदादिसमन्वित शब्दानुक्रमादियुक्त प्रथमवार प्रकाशित । ** वि. सं. २०१५ ] सम्पादिका डॉ० प्रियबाला शाह एम्. ए. पीएच. डी. (बम्बई), डि.लिट्. (पेरिस ) ( प्राध्यापिका, रामानन्द आर्टस् कॉलेज, अहमदाबाद ) * प्रकाशक राजस्थान राज्याज्ञानुसार संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान (Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur) जोधपुर (राजस्थान ) * - प्रथमावृत्ति राजकीयनियमानुसार सर्वाधिकार सुरक्षित [ ई. स. १९५९ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ALA.. .. . .... ... .. ... .... .. . . .. .. . .. .... .. . ......... .. . - प्रकाशक - . सचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के आदेशानुसार, गोपाल नारायण बोहरा. -मुद्रक - लक्ष्मीबाई नारायण चौधरी, निर्णयसागर प्रेस, २६-२८, कोलभाट स्ट्रीट, बम्बई, नं. २. स म य - - - - - - - - - - - - - - - - Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pages w , , , V V V V O १६ Intıoduction Text 1 त्रीणि भुवनानि 2 त्रिविधं लोकसस्थानम् 3 त्रिविधा भूमि 4 त्रिविधा पुरुषा 5 त्रय पदार्था 6 चत्वार पुरुषार्था 7 षट्त्रिंशद् राजवंशा 8 सप्ताङ्गं राज्यम् 9 षण्णवती राजगुणा 10 षट्त्रिंशद् राजपात्राणि 11 षट्त्रिंशद् राजविनोदाः 12 अष्टादशविध आस्थानम् । 13 चतस्रो राजविद्या 14 चतस्रो राजनीतय 15 षट्त्रिंशद् आयुधानि 16 सप्तविंशति. शास्त्राणि 17 द्विपञ्चाशत् तत्त्वानि 18 द्विसप्तति कला 19 चतुरशीतिर्विज्ञानानि 20 चतुरशीतिर्देशा 21 द्वात्रिंशलक्षणस्थानानि 22 चतुर्विंशतिविध गृहम् 23 अष्टोत्तरशतं मालानि 24 त्रिविधं दानम् 25 पञ्चविधं यश 26 सप्तविधा कीर्ति 27 नव रसा 28 एकोनपञ्चाशद् भावाः 29 चत्वारोऽभिनया 30 चतस्रो वृत्तय 31 चत्वारो महानायका CONTENT's. Pages 1 to7 32 चत्वारो नायका 33 द्वात्रिंशद्गुणयुतो नायक. 34 त्रिविधा महानायिका ७ 35 अष्टौ नायिका 36 द्वात्रिंशन्नायिकाना गुणा । 37 त्रिविधं सौख्यम् 38 चत्वारि सौख्यकारणानि . 39 नवविधो गन्धोपयोग 40 दशविधं शौचम् । 41 द्विविध काम 42 दश कामावस्था । ४५ 43 विंशती रक्तस्त्रीणा लक्षणानि 44 एकविंशतिर्विरक्तस्त्रीणां लक्षणानि 45 द्वाविंशति कामिनीनां विकारेशितानि ४८ 46 चतुर्विशतिरसतीनां लक्षणानि । ४९ 47 षोडश दुष्टस्त्रीणां लक्षणानि । 48 अष्टौ स्त्रीणामविश्वासकारणानि ।। 49 अष्टौ नार्योऽगम्याः । 50 अष्टविधो मूर्खः 51 चतुर्विंशतिविधं नागरिकवर्णनम् 52 त्रिविधं रूपम् 58 त्रिविधं स्वरूपम् 54 द्वादशविध प्रमदोपचार 55 पञ्चविध. परिचय 56 दश पुरुषा स्त्रीणामनिष्टा भवन्ति 57 दशभि कारण स्त्रियो विरज्यन्ते 58 त्रिभि. कारण. कामिन्य संवध्यन्ते ३६ 59 सप्तविधाः कामुकानां सुरतारम्भा. 60 अष्टविध विदग्धानां सुरतम् 61 नवविधं सुरतावसानम् 62 नव शयनगुणा 63 दशविधः पार्थिवानां प्रमोद 64 चतुर्विध प्रबोध 65 चतुर्विधा चुद्धि. १७ ० or m m m Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pages 'Pages AM AW ७३ 66 अष्टौ बुद्धिगुणा. 67 चतुर्विधं गान्धर्वम् 68 त्रिविधं गीतम् 69 षट्त्रिंशद् गीतगुणा 70 चतुर्विधं वाद्यम् '71 द्विविध( 2 द्विप्रकारं) नृत्यम् 72 षोडशविवं काव्यम् 73 दशविधं वक्तृत्वम् 74 षड्विधं भाषालक्षणम् । 75 पञ्चविधं पाण्डित्यम् 76 चतुर्विंशतिविधं वादलक्षणम् 77 षड्विधं दर्शनम् 78 अष्टविधं माहेश्वरम् 79 दशविधं ब्राह्वयम् 80 चतुर्विधं सायम् 81 सप्तविधं जैनम् 82 दशविधं वौद्धम् 83 चतुर्विधं चार्वाकम् 84 चतुर्विंशतिविधं विचारकत्वम् 85 दशविधं गुरुत्वम् 86 पञ्चविधं चरितम् 87 पञ्चविधं पार्थिवानां पालनम् 88 सप्तविधा प्राप्ति. 89 चतुर्विंशतिविधं शौर्यम् 90 दशविधं बलम् ७२ 91 दशविध सङ्ग्रह. 92 दशविधो जय 93 पञ्चविध परिच्छेद. 94 पञ्चविधं प्रभुत्वम् 95 सप्तविधमुत्तमत्वम् 96 नवविधा शक्तिः . 97 सप्तविधा भुक्ति. 98 अष्टविधमभिमानलक्षणम् 99 चतुर्विधं वात्सल्यम् 100 पञ्चविधो महोत्सव 101 अष्टौ लब्धियोग Appendıx A Appendix B ७८-८० अकारादिकमेण शब्दानामनुक्रमणी १-६१ ७४ ७४ ७५ ७६ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक .. राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के ४५ वें अंकके रूपमे प्रस्तुत, वस्तुरनकोश की एक प्राचीन प्रति, हमको जेसलमेरके जैन ग्रन्थ भंडारोंका अवलोकन करते समय, सन् १९४२ मे, दृष्टिगोचर हुई । उस प्रतिका केवल अन्तिम पत्र नहीं मिला था, जिसमे शायद लेखकके समय आदिका निर्देश किया गया होगा। बाकी कृतिका ग्रन्थपाठ प्रायः पूर्ण था। ग्रन्थका विषय उपयोगी और नूतन मालूम दिया, इस लिये हमने उसकी प्रतिलिपि करवा ली। बादमें, जब राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर (अब नूतन नाम 'प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान') के लिये, राजस्थानमे प्राप्त प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह कार्य हमारे निर्देशनमें आरंभ हुआ, तो उसमें दो-तीन और हस्तलिखित पुरानी प्रतियां इसकी संग्रहीत हो गई। ___ यह रचना अभी तक कही प्रकाशित नहीं ज्ञात हुई और विषयकी दृष्टि से विद्वानोंके लिये एक विशेष अभ्यसनीय रचना मालूम दी, अतः हमने, राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला द्वारा, इसका प्रकाशन करना निश्चित किया; और ऐसे ग्रन्थों के संपादन' कार्यमे पूर्ण उत्साह और प्रावीण्य रखने वाली विदुषी कुमारी डॉ. प्रियवाला शाहाको इसका संपादान कार्य दिया गया। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके संग्रहके अतिरिक्त, अहमदाबादकी गुजरात विद्या सभाके संग्रहमें तथा डभोईके मुक्ताबाई जैन ग्रन्थ सग्रहमें भी, इसकी प्राचीन प्रतियां उपलब्ध हुई। इस तरह ७ प्राचीन प्रतियोके आधार पर, संपादिका विदुषीने बहुत परिश्रम करके इसका उत्तम संपादन किया है जो तज्ज्ञ विद्वानोको प्रस्तुत ग्रन्थ दृष्टिगोचर होते ही ज्ञात हो सकेगा। ग्रन्थगत वस्तु नामसे ही ज्ञात होती है। साहित्यकारों, कथाकारो, प्रवचनकारों और उपदेशकोंको वारंवार उपयोगमें आने लायक ऐसे सौ विषयोंके भेदोपमेद और नामावलिका समुचित संग्रह इसमें किया गया है । इस तरह वस्तुविज्ञानका यह एक संक्षिप्त कोश ही है अतः रचनाकारने इसका नाम वस्तुरनकोश ऐसा उचित नाम दिया ज्ञात होता है। पर संक्षेपमें इसका नाम रनकोश भी बहुतसी प्रतियोंमें लिखा हुआ मिलता है । इसका मुद्रणकार्य पूरा हो जाने पर, बादमें हमें पाटणके भंडारोमे भी इसकी कुछ प्राचीन प्रतियां देखनेमें आई जिनमे दो प्रतियां उल्लेखनीय हैं । (१) तपागच्छवाले पाटणके भडारमें एक ७ पन्नोंकी प्रति है जिसका अन्तिम पुष्पिकारूप लेख निम्न प्रकार है "संवत् १५१५ वर्षे कार्तिके श्रीचित्रकूटे व्यलेखि । शुभं भूयात् ॥" (२) दूसरी प्रति भी इसी भंडारमे सुरक्षित है जिसके १२ पन्ने हैं और निम्न प्रकार पुष्पिकालेख है "इति श्रीवस्तुविचाररत्नकोशसूत्रशतवस्तुविवरणं समाप्तं ॥ संवत् १५९६ वर्षे मागशीर्षवदि ७ कुजे लेखि ब्रह्मदासकेन ॥" Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन पुष्पिकालेखोंसे ज्ञात होता है कि यह रचना ५००-६०० वर्ष जितनी प्राचीन तो अवश्य है ही; और इसके जो अनेकानेक पाठभेद मिलते हैं उनसे ज्ञात होता है कि अभ्यासियोंमें इसके पठन-पाठनका प्रचार भी बहुत ही रहा है । इसका रचयिता कौन है यह निश्चित रूपसे तो नहीं कहा जा सकता-पर केवल एक प्रतिमें, जैसा कि संपादिका विदुषीने अपने प्रास्ताविकमें सूचित किया है, कोई पृथ्वीधराचार्यका नाम लिखा मिलता है; सो अवश्य विचारणीय एवं विशेष अन्वेषणका विपय है । जबतक किसी कर्ताका निश्चय नहीं हो जाय तब तक हमने इसे अज्ञात विद्वत्कृत के विशेषणसे ही प्रसिद्ध करना उचित समझा है। इसके साथ कुछ प्रतियोंके पन्नोंके ब्लाक वनवा कर उनके प्रतिचित्र भी दिये जा रहे हैं। अन्तमें हम विदुपी संपादिका श्रीमती कुमारी डॉ. प्रियबाला शाहाके प्रति अपना आभार भाव प्रदर्शित करना चाहते हैं कि जिनने अत्यन्त परिश्रम पूर्वक इस रचनाका सुसंपादन कर, प्रस्तुत ग्रन्थमालाकी शोभावृद्धिके लिये सुन्दर पुष्प समर्पित किया । प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ) माघ शुक्ला १४, संवत् २०१६ -११. फरवरी. १९६० - मुनि जिन विजय Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला ] [ वस्तुरत्नकोश " धारा झण्डी दिनानिमिठो विनिविविघ्वरुपाध्या पदावरुजिंगः स प्रागं ए सवतिरा अविद्याऊडपाणि विद्या विनोद यादवमाह्यानं चाचोरा विद्यारचा मोरानी शासन विज्ञातिशा आणि 1. asana मिश्वद्विद्या प्रतिकलो चनुरशीतिविज्ञाना निश्री विदेश २ का निश्च निति विगो शतमगलानावि प्रविशविधाका तिमिरस 23 एकोन्यं जात्रा शराः वचौरासियानायका रोमहानायकाः ध्यादाना थका श्रीनायक एपनाका विशिय सोय वा रिसोय साधा निश्कार मानिन विद्योग योगद विधुकादश ४२तिपालक पानिएकविंशतिवरील णानि द्वार्वनात्रिका मिनीना विकारे गिनिजति सतीना लक्षणानि विगविविधरूप२विविधे कानी सुतारान दामा विद्यादोधार बि विधायोविकारान विश्वविध वि विध मोकाशी अविश्वासका राणा निशम्यलेना येगिस्याः विधप्रसाद एचविंशतिविधारिया इस प्राचीणामनिधानराशिः काश जियो विरज्यते यच विनिःकार : कामिनी शराब विदयानावविरताना ६दशविधायाधिवानामो ६ विद्याधर्व विविधगुणः ६र्दिवाद्य पहि नागलक्षणंविण यंत्र ज्ञातिविवादल विधदर्शन खाद्य सविधान पर शावितिविधविचारका वैयतिविधविद्यानापाल विविएस विमान शरीरसौदा विधवराः प्रतिवसे परिच्छेदाण्य विकासकामांना गतो विविधता कसाना दानानामान व सामाधानश ॥विविधाः पुरुषाणामाः। ममममयादा मदा की जायदा मूलदारु मोहरात्रि सोमवायाद३४२मात्राज्ञायालुका मोरिक २ का २२ वोटा सतीदार २४ का २२ वंश करा. २८ करपाल शानद प्रशा२य दिलवाता २२ का एक ः २४ कलश नगराः सा निकस वंश २४द विश्वा माणिक दरपाडोडियानववंश ३६ ॥ ॥ श्रामीमा जनपद३ साड हमेशात मध तिज गा॥ वंशः विद्योऽचिनयत्र विजयाच विवेक विचार ६सदाचार विश्वास साशोन्मान २१ समान DESERVED MADANE ८४ दज्ञाति विश्व विधेष त्रिविधामि mailies acto ४ 'डी' संज्ञक प्रतिका प्रथम पत्र Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला] [वस्तुर नकोश नशतिमिवगतकानशक्तिप्रवशक्तिीकामवातिसुक्ष्वाक्तिोव्यायामशक्किालाजनशक्तिमावि बालाजमीयारमावाप्रतिमानाशाययष्यविधतिमानलागोजानाधमाकामाबलालाघातोंस मरतास्मितेचनिधिदासरता देवानाराणायामेत्रागावलोझनादनमानयवानदासलावविधार। पेनविशेमामाकानमहासवानदासकाममहोमवारसविध्यातिझानेधोबिलेकामवि: झानेपानमयदामहादेहलजानित्यूानिसनविधमनपसदिशनिविधाशयाशवशायाप्रतापशायी दानालानावयातनासयामापतिपन्नाजयमानाझा नासामधारणागतापरिवाधाक्षमादानापाथ घानाचारावलकासिालपायालानामनाए द शदिदिलायाक्कायवदिमानचांदगनसैन्य सुहानाकानवान्यतिराशावाविनालासरस्थादियांझानासमेघनापति पश्चिमझाननिनादानियाछलिायझादया विजयाराशविष्ोत्यहाशानेपान शामाध्यमायोगाबालधमेजयोगुणेषुवतयः॥ यसिजनुचोकनपुलवादानजलबारमा नरतबस्तयपतययातिनकाशवरातव्यारवानसन्मालालालायाधनसागरनिता वा-सुन्यमेणगणिजारपाजाश्रीश्रारखाकल्याएमासु खः॥ 'बी' संज्ञक प्रतिका प्रथम पत्र Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VASTURÂTNAKOŚA INTRODUCTION - .., į po I Ratnakośa or Vasturatnakosa -?! Aufrecht in his Catalogus Catalogrum has several entries referring to Ratnakosa. In the entry on page 490 he describes a ms. thus "Ratnakośa or Vastuvijñānaratnakośa-enumeration of things supposed to exist in a definite number, written by a Jain' author." This description exactly applies to the contents of our work. There are, however, at least three other kinds of Ratnakośas mentioned by Aufrecht from which this Ratnakośa is to be distinguished. One Ratnakośa is a work of Vaiseşıka philosophy, an'dther is a work 'oh Advaita philosophy bearing the name Advaita-Ratnakosa and there is a third Ratnakośa which is a lexicon. H is is Ratnakośa literally means a treasure of jewels. In fact it is a short treatise on various subjects which a cultured man was supposed to know in the Indian society of old times. The larger variety of such works is represented by treatises like Yuktikalpataru of Bhoja, Caturvargacintāmaņī of Hemādri and also Abhilaśitārtbacintāmaņīki of Someśvara. Brhatsamhitā of Varāhamıhira though predominently an astronomical work also discusses many miscellaneous topics. . . Our Ratnakośa consists of two parts. The first part.consists of Sūtras containing the topics with their aggregate numbers, while, the second, Vivarana mentioning each item of the topics by name. The total number of Sūtras in different mss. varies from 100 to 104. The subject-matter of these topics is mostly secular giving general knowledge about social and political matters If we classify these according to the four Purusārthas, we would find that most of them fall under Artha and Kama; while some are of a general literary nature. Thus, for example the following topics would come under Arthanu suti, siis त्रीणि भुवनानि, त्रिविधं लोकस्थानं, त्रिविधा भूमिः, सप्तामा राज्यं, पण्णवती राज्ञां गुणाः, पत्रिंशद 375797511 for etc The following fall under Kāma - in द्वाविंशति कामिनीना विकारेशितानि, अष्टौ नार्योऽगम्या, दशमि कारणे स्त्रियो विरज्यन्ते, त्रिभिः कारणैः कामिन्य सवध्यन्ते, सप्तविधा कामुकानां सुरतारम्भा , अष्टविघं विदग्धाना' सुरतम् , नवविधं STATA etc Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N Description of the manuscripts : " The present text is based upon the following seven mss.; six of which are complete All the seven are in a well preserved state. They are named A, B, C, D, E, F and G. Ms. A Source: Muni Jinavijayaji's collection, Rajasthan, No. 57 Material paper. Folios. 4 Size. 101 x 5 inches Number of lines 19 lines per page Number of letters: 50 to 53 per line. Age: not mentioned, appears to be about three hundred years old. Author. not mentioned, Script: Devanagarī Begins: ॐ नमो वीराय । अथातो वस्तुविज्ञानं रत्नकोशं व्याख्यास्याम | 1 VASTURATNAKOŚA II 4 सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । स्वल्पग्रंथं सुवोधार्थ रत्नकोशं तमभ्यसेत् ॥ १ ॥ तत्र शतेन सूत्राणां सग्रहो यथा ॥ तत्रादौ त्रीणि भवनानि etc. Ends • पंचविधं प्रभुत्वं कुलप्रभुत्वं ज्ञानप्रभुत्वं दानप्रभुत्वं स्थानप्रभुत्वं ॥ १०० ॥ 1 Colophon : इति रत्नकोशसूत्रशतव्याख्यानं समाप्तम् ॥ Ms. B Source. Sri Muktābāi Jñānamandira, Dabhoi. No: ? Folios: 6 Material paper Size: 10 x 4.25 inches Area of writing. 8×3 inches Number of lines. 15 to 16 lines. Number of letters. 43 to 45 in each line. C F Age: not mentioned, appears to be not later than 16th cent. A. D.'... Author: not mentioned. Script: Devanagari, Begins: अथातो वस्तुविज्ञानं । रत्नकोशं । व्याख्यास्याम ॥ सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । स्वल्पथं सुबोधार्थ रत्नकोशं तमभ्यसेत् ॥ तत्र शतेन सूत्राणां सप्रहो यथा । तत्रादी त्रीणि भुवनानि ॥ etc. 7 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION Ends: पञ्चविघं प्रभुत्वं । कुलप्रभुत्वं । दानप्रभुत्वं । स्थानप्रभुत्वं । उभयप्रभुत्वं ॥ १०॥ Colophon : इति रमकोशसूत्रशतव्याख्यानं समाप्तम् ॥ लोलाडापामे । पं. धनसागर मुनिष्टक्षतम् । __ वा. पुन्यमंडणगणिजोग्यं । श्रीः । श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु । Ms. C . Source : Gujarat Vidya Sabha, Ahmedabad. No.: 2165 Material: paper. Folios : 12 Size: 8x4.5 inches, Area of writing : 6.5 x 3.75 inches. Number of lines : 11 lines per page. Number of letters. 31 to 33. Age : Samvat 1755 (ie. 1699 A. D ) Author: Prthvīdharācārya, Script. Devanāgarī, Begins : श्रीहरि । सर्वज्ञानमयं रम्यं सर्वबुद्धिप्रकाशकम् । स्वल्पग्रंथं सुवोधाय रत्नकोशं समभ्यसेत् ॥ तत्रादौ त्रीणि भुवनानि । त्रिविधं लोकस्थानं ।...पंचविधं प्रभुत्वं ॥ १०॥ इत्यनुक्रमणिका ॥ गणराजं नमस्कृत्य गजतुण्डं सुरोत्तमम् । ____समस्तविघ्नहतारं रत्नकोशं उदीर्यते ॥ १॥ Ends : अष्टौ लब्धयोग । अणिमा । महिमा । लघिमा । गरिमा । प्राप्ति । प्रकाम्यं । ईशत्वं । वशित्वं । Colophon इति श्रीपृथवीधराचार्यकृत रत्नकोश संपूर्णम् । शुभं भवतु । कल्याणमस्तु । सवत् १७५५ वर्षे फाल्गुनमासे शुक्रपक्षे लिखितं गिरिनारायणज्ञातीय भट्टवालकृष्णसुत भट्टरामकृष्णेन लिखितं । श्रीरस्तु । श्री। हरिर्जयति । श्री। श्री। श्री। Ms. D Source: Muni Jinavijayaji's collection, Rajasthan. No.:? Material Kashmirian paper Folios: 3,(incomplete ) Size: 9.45x45 inches. Number of lines. 21 Number of letters. 61 Age: not mentioned; appears to be not later than 15th cent A, D, Author: not mentioned. Script: Devanagari. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VASTURATNAKOSA. Begins : अहं । त्रीणि, भुवनानि । १ । त्रिविधं लोकस्थानं । २ । etc. . Ends : दशविधं बौद्धं । सगता । परिमिता । पारमिता । विहार । प्रमाण । 'सौत्रांतिकं ( 'निराशकं । योगोपचार । मोक्षपर्यंतं ॥ १० छ ॥ चतु । .. Ms. E Source · Muni Jinavijayaji's Collection, Rajasthan. No: ? Material: paper. Folios: 9.1 to 8a Ratnakośa, 8a to 9 Rāgotpatti. Size: 10 x 4,5 inches. Number of lines 15 lines Number of letters 38 to 40 Age not mentioned, appears to be about 150 years' old Script. Devanāgarī Begins श्री गुरुभ्यो नम । रत्नकोशं व्याख्यास्यामः । थ(व)स्तुविज्ञानं । सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशक। खल्पग्रंथ सुबोधार्थ रत्नकोशं समभ्यसेत् ॥ १ ॥ तत्र शतेन सूत्राणा कर्तव्य सग्रहो यथा ॥२॥ अथ इति मंगलार्थे ॥ ग्रंयनु कर्ता श्रीवेदव्यास कहिछि etc . Ends लघिमा। इशत्व । वशित्व । प्राप्ति । प्रकाम्यमेव । Colophon : इति श्रीरत्नकोश सपूर्ण ॥ श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु Ms F Source. Jesalmere Grantha Bhandāra, Jesalmere No, . 315 Material paper Folios 8 Sze 97x44 inches Number of lines 14 lines Number of letters 48 letter3 Age Samvat 1709 (1 e. 1653 A D.) Author not mentioned Script Deranagarĩ. Begins ॐ अहं नम । अथ रत्नकोशो लिख्यते । सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । स्वल्पग्रन्थ सुबोधार्थ रत्नकोशं समभ्यसेत् । तत्र सर्वत्र सूत्राणा कर्तव्य. संग्रहो यथा ॥ तत्रादौ त्रीणि भुवनानि । १ । त्रिविध लोकस्थानम् । २ । "etc Ends . .. वशित्वम् । प्राकाम्यम् । चेति ॥ Colophon : इति श्री रत्नकोश[:] समाप्त[] श्रीसवत् १७०९ वर्षे वैशाषाऽशित षष्टी दिने रेवतीभवे वारे श्री महेरानगरेऽलीलिखत् । श्रीस्तात् कल्याणं भूयात् । लेखकपाठक्यो ऋद्धिवृद्धिः सदैव श्रीस्तात् मांगल्यं महोच्छवं श्री शांतिजिनप्रशादात मा श्री । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION Ms. G A copy prepared under the supervision of Muni Jinávijayaji from & ms. of Jesalmere Grantha Bhaņdāra, Jesalmere, Begins": atacrieri aparat aeglanniai tarpiai areTTA: 1 सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । ___खल्पग्रन्यं सुवोधार्थ रत्नकोशं तमभ्यसेत् ॥ ";' FOTO HTET TAT I Qaret tot wanita eto. Ends : पञ्चविधं प्रभुत्वं । कुलप्रभुत्वम् । ज्ञानप्रभुत्वम् । दानप्रभुत्वम् । स्थानप्रभुत्वम् । उभयप्रभुत्वम् । Colophon: sfat anternetaan eri HU 3 III Method of editing :I A. comparative study of the seven mss. available to me showed that even though the main substance of the text is common it has considerable variations So the possibility of discovering the original text became remote. Under the circumstances, I adopted the following procedure in presenting this text. Of the seven niss. D seems to be the oldest, though incomplete, while A, B. G. seem to belong to one proto-type. I have taken D as the basis of the text upto sūtra 85 and for the remaining portion of the text I have taken ms. A, which is next in age. The readings of D and A, however, have not been adopted in the text where they were corrupt or unsatisfactory. : Variants of other mss. have been noted in the footnotes. In presenting the Vivarana, mss. A, B and G have been adopted ás the basis, because they together yield, on the whole a satisfactory text. Where, however, the readings of other mss. seemed better, they have been given in the text. . As however, the different mss give at several places different informations, I have thought it proper to give below the main text, the texts of other mss, in full Thus the reader will have before him more or less complete texts of the Vivarana of all the miss In appendix A, are given the additional Sūtras of ms. E as well as the old Gujarati Tabbo' contained in it. In appendix B similar matter gathered from some other works is given. In the Index, I have included important variations from the texts of Vivaraņa given in the footnote. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VASTURÁTNAKOSA IV Authorship and Age : Of the seven mss. only one, namely C mentions the name of the author as Prthvīdharācārya and one, namely E mentions Vedavyāşa as the author in its Gujarati ·Tabbo’ As we have seen above Aufrecht attributes the authorship of Ratnakosa to a Jain, though he does not mention the proper name. It appears that Aufrecht was led to regard this as a Jain work on account of the mention of re-etc, at the beginning of his manuscript We have seen that four, namely A, D, F, and G, of our seven mss also begin in the Jain way. B'starts directly with the text without any mangala, C starts with sit en: and E with situazz FH, while one ms. belonging to the Oriental Institute, Baroda, not used by me being very corrupt starts with mit TÜTRY FA. Wé cannot say definitely whether sit Tan TH can be taken as a Jain or Brahmanical way of beginning " We, however, cannot draw any conclusion about the author being a Jain or non-Jain from the way in which the mss begin, because it depends upon the religion of the scribe or the patron who got the mos. copied. The absence of reference to the name of the author in five mss. and mention of Vedavyāsa in one make us hesitate in attributing our Ratnakośa to Prthvīdhalācārya or the authority of the ms. C. The only thing that we can do for the present is to accept him provisionally as the author of our work The acceptance of Pithivīdharācārya as the author of Ratnakośa, however, does not help us in fixing the age of the work Aufrecht has mentioned several Prthvīdharācāryas? We do not know which one wiote the Ratnakośa given in the ms C. Hemādri in his Caturvargacintāmani quotes Ratnakośa, at least twice, once in the Viatakhanda and second time in the Pariseşakhanda as follows ताम्वूलमुसवासयोर्लक्षणमुक्तं रत्नकोशे महापिप्पलपत्राणि क्रमुकस्य फलानि च । शुक्तिक्षारेण सयुक्तं ताम्वूलमिति संज्ञितम् ॥ 1 Aufrecht in addition to Ratnakośa has the following entries about the works of Prthyidbarācārya – (1) gaatteita, (2) ghadlenia (3) Friends, (4) aracaqui, (5) the commentary on Mrcohakatika (6) Vaišesika Ratnakoś& and (7) 997294a9efat Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेतपत्रच पूर्णञ्च क्रमुकस्य फलानि च । konttá agga || Ad. 1 (page 242) Vratakhanḍa. पुंनक्षत्राणि च रत्नकोशे दर्शितानि । INTRODUCTION हस्तो मूलं श्रवणः पुनर्वसुर्मृगशिरास्तथा पुष्यः । jükàg mèâanla gufa fa 11 (page 732) Parisesakhaṇḍa. Here it may be pointed out that from the nature of the topics, one can expect these verses in our Ratnakośa, but in fact we do not find them in any one of our mss This implies that there may be other versions of the Ratnakośa which might have contained these verses. But as the verses mentioned by Hemadri do not occur in our text, his reference to Ratnakosa cannot help us to settle the date of our Ratnakosa. So the only thing that we can say is that it is older than our oldest Ms. D which appears to belong to the 15th cent. A. D. The names mentioned in the 'Rajavamsas' vary so much that they cannot help us in settling the earlier limit of the age. The work may be supposed to belong to an age later than the 10th cent. A., D. Ahmedabad, 12-4-1959. * } 7 * Before concluding, I must not omit to tender my most sincere thanks to the reveled Acharya Si Muni Jinavijayajı, the Honorary Director of Rajasthan Puratattva Mandir, Jaipur (now Jodhpur), for not only accepting this work for publication in Rajasthan Purātana Granthamālā but also for being kind enough to spare time to go over the greater portion of the text with me and make several important suggestions which have been mostly acted upon. I take this opportunity of expressing my sincere thanks to my painstaking teacher in Ancient Indian Culture and guide in the preparation of my thesis for the Ph D degree, Prof R. C. Parikh, Director, B. J. Institute, Gujarat Vidya Sabha, Ahmedabad, for giving much of his valuable time for discussing with me several problems connected with my research work and especially the preparation of the present text. PRIYABALA SHAH Page #18 --------------------------------------------------------------------------  Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तु र त्न को शः। अथातो वस्तुविज्ञानं रत्नकोशं व्याख्यास्यामः । सर्वशास्त्रमयं रम्यं सर्वज्ञानप्रकाशकम् । खल्पग्रन्थं सुबोधार्थं रत्नकोशं समभ्यसेत् ॥१॥ तत्र शतेन सूत्राणां कर्तव्यः सङ्ग्रहो यथा । तत्रादौ १ त्रीणि भुवनानि । २ त्रिविधं लोकसंस्थानम् । ३ त्रिविधा भूमिः। ४ त्रिविधाः पुरुषाः। . ५ त्रयः पदार्थाः। ६ चत्वारः पुरुषार्थाः । । ७ षटत्रिंशद् राजवंशाः" । ८ सप्ताङ्गं राज्यम् । ९ षण्णवती "राजगुणाः । १० षट्रत्रिंशद् राजपात्राणि । ११ षट्त्रिंशद् राजविनोदाः। १२ अष्टादशविधास्थानम् । १३ चतस्रो राजविद्याः। • १४ चतस्रो राजनीतयः । ___1 puts अथ(व)स्तुविज्ञानं aftel व्याख्यास्याम I, CF drop from अथातो to स्याम ।; D drops from अथातो to तत्रादौ । 2 0°ज्ञानमयं. 30 सर्वबुद्धि । 4 c सुबोधाय। 5 AB तमभ्यसेत् । 6 F सर्वत्र। 7 ABD drop कर्तव्यः । 85 त्रिभुव । 91CF लोकाया। 10 ABC पुरुषाणामर्था । 11 : राजविनोदा । 12 # "प्तांगरा। 13 F पत्रिंशद् राना गुणा । ९ । पण्णवती रागां गुणा । १०. 14 AM “विघं स्था"1, 0 °विधमा (म)हास्थानम् ।, ६ धं आ । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "वस्तुरनकोशः । 17 १५ षटूत्रिंशंदायुधानि । १६ सप्तविंशतिः शास्त्राणि । १७ द्विपञ्चाशत् तत्त्वानि । १८ द्विसप्ततिः कलाः 1 १९ चतुरशीतिर्विज्ञानानि । २० चतुरशीतिर्देशाः । २१ द्वात्रिंशल्लक्षणस्थानानि । २२ चतुर्विंशतिविधं गृहम् । २३ अष्टोत्तरशतं मङ्गलानि । २४ त्रिविधं दानम् । २५ पञ्चविधं यशः । २६ सप्तविधा कीर्तिः । ~ 0 22 23 २७ नव रसाः 1 २८ एकोनपञ्चाशद् भावाः । २९ चत्वारोऽभिनयाः । ३० चतस्रो वृत्तयः । . ३१ चत्वारो महानायकाः । ३२ चत्वारो नायकाः I ३३ द्वात्रिंशद्गुणतो नायकः । ३४ त्रिविधा महानायिकाः " । ३५ अष्टौ नायिकाः” । 26 J 15 ABOEFG दण्डायुधानि । 16 DE °तिशा' ।, AG °तिश I, C त्यस्रा" । 17 ABCD 'तिक I, E 'द्विसकला । 18 BOD 'तिवि' I, E 'तिज्ञा' । 19 ABODE ''तिदे ।. 20 OF लक्षणानि । 21 ABO 'तम' D 'त्तरं शतं मंगलाना ।, E मंगलाना स्थानं 1. 22 ° 1. 230 सप्त इतय. । अष्टौ रसा 1; B writes नव upon अष्टौ ।, ADCG अष्टौ रसा ।. 24 D नायका । 25D महाना 1, A puts here अष्टौ नायिका 1, a drops thus sūtra. 26 A puts he1e त्रिविधं सौख्यम् ।, BD "शद्गुणनायका 1,0 ° शलक्षणनायका । G drops this sūtia sūtra त्रिविधा महानायिका । शद्गुणो नायक 1, 27 ABODE write नायका for नायिका 1; A omuts the 28 a diops this sutra را Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोशः। "३६ द्वात्रिंशन्नायिकानां गुणाः। ३७ त्रिविधं सौख्यम् । ३८ चत्वारि "सौख्यकारणानि । ३९ नवविधो गन्धोपयोगः। ४० दशविधं शौचम् । ४१ द्विविधः" कामः। ४२ दश कामावस्थाः । ४३ विंशती रक्तस्त्रीणां लक्षणानि । ४४ एकविंशतिविरक्तस्त्रीणां लक्षणानि । ४५ द्वाविंशतिः कामिनीनां विकारेङ्गितानि । ४६ चतुर्विंशतिरसतीनां लक्षणानि । ४७ षोडश दुष्टस्त्रीणां लक्षणानि । ४८ अष्टौ स्त्रीणामविश्वासकारणानि । ४९ अष्टौ नार्योऽगम्याः । ५० अष्टविधो मूर्खः। ५१ चतुर्विंशतिविधं नागरिकवर्णनम् । ५२ त्रिविध रूपम् । ५३ त्रिविधं स्वरूपम् । ५४ द्वादशविधः प्रमदोपचारः। - * G alone gives this sūtra but all the miss give its Vivaraņa. 28 F द्वात्रिंशद् नायकाना गुणा । त्रिविधं सौख्यम् ।, F त्रिंशद्गुणयुता नायिका । त्रिविधं सौख्यम् ।. 29 D सौख्यस्य का 1, Fख्यकरणानि । 30 A द्विविधं ।. 31 A omits this sutha 32 BE दशविध कामावस्था. 1, F दशविधा. कामावस्था । 33 ABODE शतिरक्त 34 ABDE °शतिविर' ।, F drops the sātra, AB put first our sutra 46 and then give this sūtra as 43 35 ABOD ET FEIT 1, E diops the sūtia; F drops द्वा। 36 ABOD शतिअस।, Ediops the sutha. 37 ABG अपलक्षणानि । 38 ABG मभिचारकाणि। 39 F चतुर्विंशतिलक्षणविधं । 40 ABG कलक्षणम् ।, 'कवर्तनम् ।. 41 F drops the sutra 42 ABRG प्रमोदोपचार ।, D प्रसादोपाचार ।, F दशविध प्रमोदविचार ।. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोशः। ५५ पञ्चविधः परिचयः। ५६ दश पुरुषाः स्त्रीणामनिष्टा भवन्ति । ५७ दशभिः कारणैः स्त्रियो विरज्यन्ते । ५८ त्रिभिः" कारणैः" कामिन्यः" संबध्यन्ते । ५९ सप्तविधाः" कामुकानां सुरतारम्भाः । ६० अष्टविधं विदग्धानां सुरतम् । ६१ नवविधं सुरतावसानम् । ६२ नवं शयनगुणाः। ६३ दशविधः पार्थिवानां प्रमोदः। ६४ चतुर्विधः प्रबोधः। ६५ चतुर्विधा बुद्धिः। ६६ अष्टौ बुद्धिगुणाः। ६७ चतुर्विधं गान्धर्वम् । ६८ त्रिविधं गीतम्। ६९ षटूत्रिंशद् गीतगुणाः। ७० चतुर्विधं वाद्यम् । ७१ द्विविधं नृत्यम् । ७२ षोडशविधं काव्यम् । ७३ दशविधं वक्तृत्वम् । ७४ षड्विधं भाषालक्षणम् । ७५ पञ्चविधं पाण्डित्यम् । 43 D पंचविंशतिविध ।, पंचविंशतिः । 44 0°नरा. 1, r drops the sutra 45 " द्वादशभिः पारणे सियोऽभिरअयन्ते। 46 ABG दशभि । 47 1 प्रकारैः। 48 D शामिनीनां , r लिय। 49 ABCEF विध । 5000 कामिना।. 51 ABOEN °रम्भः। 52 0 मुरनारम्यानं विदधना , : 'दग्धाना 1; F अष्टविधो विदग्धाना सुरतारम्भ 1. 53 ABG नवविधा। 54 A drops पार्थिवानां 1. 55_ANG प्रोग। 56 A नृत्तम्। 57 AG वादलक्षणं । 58 DANART पिंगतिविध 1, 1 पोटाविधी 59 c वशित्व।, F वक्तव्यत्व । E has fitafafere afst between 73 and 71 60 पोउनिध। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोशः। ७६ चतुर्विंशतिविधं वादलक्षणम् । ७७ षड्विधं दर्शनम् । ७८ अष्टविधं माहेश्वरम् । ७९ दशविधं ब्राहयम्। ८० चतुर्विधं सायम् । ८१ सप्तविधं जैनम् । ८२ दशविधं बौद्धम् । ८३ चतुर्विधं चार्वाकम् । ८४ चतुर्विंशतिविधं विचारकत्वम् । ८५ दशविधं गुरुत्वम् । ८६ पञ्चविधं चरितम् । ८७ पञ्चविधं पार्थिवानी पालनम् । ८८ सप्तविधा प्राप्तिः। ८९ चतुर्विंशतिविधं शौर्यम् । ९० दशविधं बलम् । ९१ दशविधः सङ्ग्रहः। ९२ दशविधो जयः। ९३ पञ्चविधः परिच्छेदः। ९४ पञ्चविधं प्रभुत्वम् । ९५ सप्तविधमुत्तमत्वम् । ९६ नवविधा शक्तिः । ? ९७ सप्तविधा भुक्तिः । ९८ अष्टविधमभिमानलक्षणम् । ____61 AG चतुर्विधं ।; F °तिवाद। 62 F षड्द. 63 0 दर्शनलक्षणम् ।, E दर्शनानि। 64 F अट विधा माहेश्वरी। 65 D ब्राह्मण्यम् ।, E ब्राह्मणम् 1. 66सप्तविंशतिविध जैन्यम् । 67 ABG ध चारकत्व, F °धं वा लक्षणम् ।' 68 चतुर्विधं । 69 AB 'चारित्रं । 70 AG diop पार्थिवाना, c पार्थिवपा 1. 71 चतुधि । 724 सप्तविधं। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोशः। ९९ चतुर्विधं वात्सल्यम्। १०० पंचविधो महोत्सवः । १०१ अष्टौ लब्धियोगाः। इति सूत्राणां शतमेकोत्तरम् ॥ १०१ ॥ ॥ इति वस्तुसंख्यासंग्रहः समाख्यातः ॥ 73 AB १०० छ ।; 0 १०० इत्यनुक्रमणिका ।, D चेति १०० छ।, १०० इति सूत्राणि समूहे समाख्यातः ।, १०२।. * B gives चतुर्विधा गतिश्च । after sutra १०० + From इति to ख्यातः is given only by B. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोश-विवरणम् । . . . अिथातो वस्तुविवरणं समाख्यायते । , *गणराजं नमस्कृत्य गजतुण्डं सुरोत्तमम् । समस्तविघ्नहन्तारं रत्नकोशमुदीर्यते ॥ १॥ यथा१. तत्रादौ त्रीणि भुवनानि कथ्यन्ते । तद् यथा १ सुरभुवनम् । २ नरंभुवनम् । ३ नागभुवनम् । इति । . २. त्रिविधं लोकसंस्थानम्। १ देवलोकसंस्थानम्। २ दानवलोकसंस्थानम्। । ३ मानवलोकसंस्थानम् । इति । . . ) A १ देवसंस्थानम् । २ मानवसंस्थानम् । ३ दानवसंस्थानम् ।। ' - . B १ देवसंस्थानम् । २ दानवसंस्थानम् । ३ मानवसंस्थानम् । }: C १ देवलोकस्थानम् । २ मनुष्यलोकस्थानम् । ३ दानवलोकस्थानम् । 1 .D १ दानवसंस्थानम् । २ मानवसंस्थानम् । ३ गंधर्वसंस्थानम् । । । । देवदानवमानवानां संस्थानम् । १ देवस्थानं । २ दानवस्थानं । ३ मानवस्थानं चेति। . . . . ! ३. त्रिविधी भूमिः। .... १ उन्नतप्रदेशा । २ निम्नप्रदेशा । ३ समप्रदेशा । इति । ३) • AG१ उत्तमप्रदेशः । २ निम्नप्रदेशः। ३, समप्रदेशः। , , , , E१ उञ्चा। २ नीचा । ३ समा। ' I F १ उन्नतप्रदेशा । २ नीचप्रदेशा । ३ समप्रदेशा।, .. । अथातो...यथा is given only by B. *o alone gives this sloka after इत्यनुक्रमणिका। 1 BOE तत्र त्रीं। 2 G भवनानि । 3 ABOBFG omit कय्यन्ते । 4 ABOBFG ommt तद्यथा ।. 5 ABG मानव। 6 ABEG omt लोक । 7 OFF स्थानम् ।। 8 Gomts लोक ।. म Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- --- - वस्तुरतकोशः। ४. त्रिविधाः पुरुषाः। . १ उत्तमाः । २ मध्यमाः । ३ अधमाः । इति । ४) ABG १ उत्तम । २ मध्यम । ३ अधम । C१ उत्तम २ मध्यम ३ अधमाश्चेति । E१ उत्तमा । २ अधमा । ३ मध्यमा । ५. त्रयः पदार्थाः। १ धातुपदार्थः। २ जीवपदार्थः। ३ मूलपदार्थः। इति । ५) धातुमूलजीवाश्चेति __E १ धातु । २ मूल । ३ जीवा। F_ १ मूलगतपदार्थाः। २ धातुगतपदार्थाः । ३ जीवगतपदार्थाः । ६. चत्वारः पुरुषार्थाः ।। १ धर्मः। २ अर्थः। ३ कामः। ४ मोक्षः । इति । ६) ABG १ धर्म । र अर्थ । ३ काम । ४ मोक्ष ।' CF धर्मार्थः। काम मोक्षः। D १ धर्म । २ अर्थ । ३ काम । ४ मोक्षरूपाः। ७. षटूत्रिंशद राजवंशाः। , १ सूर्यवंशः। २ सोमवंशः। ३ यादववंशः। ४ कदम्बवंशः। ५ परमारवंशः। ६ इक्ष्वाकुवंशः। ७ चाहुआणवंशः । ८ चौलुक्यवंशः। ९ मौरिकवंशः। १० शिलारवंशः। ११ सैन्धववंशः। १२ छिन्दकवंशः। १३ चापोत्कटवंशः। १४ प्रतीहारवंशः। १५ मुडुकवंशः। १६ राष्ट्रकूटवंशः। १७ शकटवंशः। १८ करटवंशः। १९ करटपालवंशः। '३० चन्दिल्लवंशः। २१ गुहिलवंशः। २२ गुहिलपुत्रवंशः। २३ पोतिकपुत्रवंशः । २४ मंकाणकवंशः । २५ धान्यपालवंशः। २६ राजपालवंशः। २७ अनङ्गवंशः। २८ निकुम्भवंशः। २९ दधिकरवंशः। ३० कलचुरवंशः। ३१ कालमुखवंशः। ३२ दायिकवंशः। ३३ हूणवंशः। ३४ हरिणवंशः। ३५ डोडिवंशः । ३६ मारववंशः। इति । । AANA Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ७) A १ ब्रह्मवंश। २ सूर्यवंश। ३ सोमवंश। ४ यादववंश। ५ कुडुम्ववंश । ६ परमारवंश। ७ इक्ष्वाकु। ८ वाह्लीक। ९ चौलुक्य । १० छन्दिक। ११ सिलार। १२ सैन्धव । १३ डाभी। १४ चापोत्कट। १५ पडीहार। १६ लडुक। १७ राष्ट्रकूट । १८ शक । १९ करटपाल। २० कोटपाल । २१ वंदिल्ल। २२ गुहिल। २३ गुहिलपुत्र । २४ पौतिक। २५ मोरी । २६ मंकुयाण । २७ धान्यपाल । २८ राजपाल । २९ अनङ्ग । ३० निकुम्भ । ३१ दाडिम। ३२ कलिछुर। ३३ दधिमुख। ३४ हूण । ३५ हरितड । ३६ डोड। ३७ परमार। ७) B १ ब्रह्मवंश । २ सूर्यवंश । ३ सोमवंश। ४ यादववंश। ५ कदम्बवंश । ६ इक्ष्वाकु। ७ वालीक। ८ चौलुस्य । ९ छन्दिक। १० सिलार। ११ सैन्धव । १२ डाभी। १३ चापोत्कट। १४ पडीहार। १५ लडुक। १६ राष्ट्रकूट। १७ शक । १८ करटपाल । १९ कोटपाल । २० चन्दिल्ल । २१ गुहिल । २२ गुहिलपुत्र । २३ मौदिक। २४ मोरी। २५ मंकुयाण। २६ धान्यपाल। २७ राजपाल २८ अनङ्ग । २९ निकुम्भ । ३० दाडिम। ३१ कलिछुर । ३२ दधिमुख । ३३ हूण । ३४ हरितट । ३५ डोड। ३६ परमार। ७) C१ रवि । २ सोम । ३ यादव । ४ कदम्ब । ५ परमार। ६ इक्ष्वाकु । ७ चहूआण । ८ रोरीच । ९ सिलर । १० करण्ड । ११ चण्डिल । १२ गोहिल । १३ मकुआण। १४ पौलक। १५ राजपाल। १६धानपाल। १७ देव । १८ निकुम्भ । १९ दधिकर। २० कोकिल। २१ तरुष्क। २२ दधिपक्क । २३ हूण । २४ हरिअड । २५ कोवोलिक। २६ कलानुर। २७ हरित। २८ सेभट। २९ राठोऊड। ३० शोलंक । ३१ जोधिम। ३२ कलश्च । ७) E १ सूर्यवंश । २ सोमवंश। ३ यादव। ४ ईक्ष्वाकु । ५ कदंव । ६ परमार। ७ चौहाण। ८ चौलुक्य । ९छिंदक। १० मोरी। ११शेलार। १२ सैन्धव १३ चापोत्कट। १४ प्रतीहार। १५ लकुट। १६ कराट। १७ काल । १८ पाल । १९ टाक। २० चंडेल। २१ राष्ट्रकूट। २२ शंकु। २३ फरंड। २४ गोहिलपुत्र । २५ गहिलुत्र । २६ पोतिक । २७ मुष्कायण । २८ मकुआंणा । २९ पोलक । ३० राजपालक । ३१ धनपालक। ३२ धान्यपाल। ३३ अनङ्ग। ३४ निकुम्भ । ३५धिधिम। ३६दधिकर। ३७ कोल । ३८ कोलानुर। ३९ दधिपक। ४० सिंहिलंक-जातिभेद । ४१ सोलंकी। ४२ दापिक । ४३ हूंण । ४४ हरिअड । ४५ डोड । ४६ डोडीआ। ४७ राष्ट्रकूट।-जातिभेद ४८ मारू राठुडा । ४९ माखवा । ५० पातिकर । ५१ शेलार । ५२ लुइक । ५३ फराट। ५४ कोल। ५५ चिन्दिलु। ५६. मुष्कायण । ५७ डोडीआंकाश्चेति जातिभेदाः अनेककोटिशः ॥ ३६॥ ७) F १ सूर्यवंश । २ सोमवंश । ३ याद्ववंश । ४ कदम्बवंश । ५ चहुआण । ६ चौलिक्य । ७ छन्दिक । ८'सिलार। ९ सैन्धव । १० चाउडा। ११ पडिहार । १२ तुडक। १३, राठउड । १४ करटवाल। १५ चन्दिल्ल । १६ गुहिल। १७ गउलोत्त । १८ पौमिक । १९ मोरी । २० मकूआणा । २१ अनंग । २२ राजपाल । २३ वारड । २४ दहीया। २५ डाभी । २६ हरीयडा । २७ टाक । २८ सींदा । २९ माषा । ३० हूणा । ३१ निकुन्दम । ३२ कोल । ३३ दधिपक । ३४ डेडिया । ३५ सूरिमा। ३६ परिमारवंशाश्चेति । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० संविवरण-वस्तुरत्नकोशः । ७ ) G १ ब्रह्मवंश | २ सूर्यवंश । ३ सोमवंश | ४ यादववंश | ५ कुटुम्बवंश । ६ परमार वंश | ७ इक्ष्वाकु । ८ वालीक । ९ चौलुक्य । १२ सैन्धव । १३ डाभी | १४ चापोत्कट । १५ पडिहार । १८ शक । १९ करटपाल । २० कोटपाल । २१ बंदिल्ल । २४ पौतिक । पुत्र । २५ मोरी । २६ मंकुयाण | २७ धान्यपाल । २८ राजपाल । २९ अनङ्ग । ३० निकुम्भ । ३१ दाडिम । ३२ कलिच्छुर । ३३ दधिमुख । ३४ हूण | ३५ हरितड । ३६ डोड । ३७ परमार । १० छन्दिक । १६ लडुक । २२ गुहिल । ११ सिलार । १७ राष्ट्रकूट २३ गुहिल ८. सप्ताङ्गं राज्यम् । १ स्वामि । ६ बल । ७ मित्राङ्ग । इति' । २ अमात्य । ३ जनपद । ४ भाण्डागार । ५ दुर्ग । ८) स्वामी | जनपद । अमात्य । कोश । दुर्ग । बल | सुहृदिति । स्वामी । अमात्य । दुर्ग । राष्ट्र । भण्डार । सैन्य । मित्राङ्गं चेति । ९. षण्णवती राजगुणाः । १३ सौख्यगुण । १७ स्वरूपगुण । १ वंशगुण । २ विद्यागुण । ३ विनयगुण । ४ विजयगुण । ५ विवेक - गुण । ६ विचारगुण । ७ विस्तारगुण । ८ सदाचारगुण । ९ सत्यगुण । १० शौचगुण । ११ सन्मानगुण । १२ समाधानगुण । १४ सौजन्यगुण । १५ सौभाग्यगुण । १६ रूपगुण । १८ संयोगगुण । १९ वियोगगुण । २० विभागगुण । २१ साङ्गव्यगुण । २२ संपूर्णत्वगुण । २३ सौम्यत्वगुण । २४ सकलत्वगुण । २५ सलज्जत्वगुण । २६ डसनत्वगुण । २७ प्रभुत्वगुण । २८ प्राञ्जलत्वगुण । २९ पावकत्वगुण । ३० पाण्डित्यगुण । ३१ प्रणयिमानत्वगुण । ३२ प्रामाणिकत्वगुण । ३३ शरणप्रदत्वगुण । ३४ प्रमोदगुण । ३५ प्रतापगुण । ३६ प्रारंभगुण । ३७ परिच्छेदगुण । ३८ संग्रहगुण । ३९ विग्रहगुण । ४० सदाग्रहगुण । ४१ निग्रहगुण । ४२ अनुग्रहगुण । ४३ तुष्टिगुण । ४४ पुष्टिगुण । ४५ प्रीतिगुण । ४६ प्रशंसागुण । ४७ प्रतिष्ठागुण । ४८ स्थैर्यगुण । ४९ धैर्यगुण । ५० शौर्यगुण । ५१ चातुर्यगुण । ५२ बुद्धिगुण । ५३ बलगुण । ५४ सामर्थ्यगुण । ५५ आक्षेपगुण । ५६ विरोधगुण । ५७ आदरगुण । ५८ दोषगुण । ५९ विशेषगुण । ६० विनोदगुण । ६१ वृद्धिगुण । 2 IE चेति राज्याद्गानि । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ६२ सिद्धिगुण । ६३ कान्तिगुण । ६४ कीर्तिगुण । ६५ विस्फूर्तिगुण । ६६ व्युत्पत्तिगुण । ६७ वात्सल्यगुण । ६८ माङ्गल्यगुण । ६९ महोत्सवगुण । ७० मन्त्रगुण । ७१ रसिकत्वगुण । ७२ भावकत्वगुण । ७३ गुरुत्वगुण । ७४ स्मृतिगुण । ७५ शक्तिगुण । ७६ अशक्तिगुण । ७७ युक्तिगुण । ७८ अयुक्तिगुण । ७९ अनुक्रमगुण । ८० अभिमानगुण । ८१ दानगुण । ८२ मानगुण । ८३ कारुण्यगुण । ८४ दाक्षिण्यगुण । ८५ दर्शनगुण । ८६ श्रवणगुण । ८७ घ्राणगुण । ८८ रसनगुण। ८९ मर्यादागुण । ९० मदनगुण । ९१ उदारगुण । ९२ उत्साहगुण । ९३ हर्षगुण । ९४ क्रोधगुण । ९५ लोभगुण । ९६ उत्तमगुणश्चेति । ९) A १ विद्या। २ विनय । ३ विवेक । ४ विस्तार। ५ सदाचार। ६ सत्य । ७ शौच । ८ सन्मान । ९ संस्थान । १० समाधान । ११ सौख्य । १२ सौजन्य । १३ सौभाग्य । १४ रूपगुण । १५ स्वरूपगुण । १६ संयोग । १७ वियोग । १८ विभाग। १९ सांगत्य । २० संपूर्णत्व। २१ सोमत्व । २२ सकलत्व । २३ सलजत्व । २४ प्रसन्नत्व। २५ प्रभुत्व। २६ प्रासलत्व । २७ पालकत्व। २८ पाण्डित्य । २९ प्रणयित्व । ३० प्रमाण । ३१ शरण । ३२ प्रमोद । ३३ प्रसाद । ३४ प्रताप । ३५ प्रारंभ । ३६ प्रभाव । ३७ परिछद। ३८ संग्रह । ३९ सदाग्रह । ४० निग्रह । ४१ विग्रह । ४२ अनुग्रह । ४३ तुष्टि । ४४ पुष्टि । ४५ प्रीति । ४६ प्राप्ति । ४७ प्रशंसा । ४८ प्रतिष्ठा । ४९ प्रतिज्ञा । ५० स्थैर्य । ५१ धैर्य । ५२ शौर्य । ५३ चातुर्य । ५४ गांभीर्य । ५५ बुद्धि । ५६ वल । ५७ अध्यक्ष । ५८ विरोध । ५९ विषय । ६० विशेष । ६१ विनोद । ६२ वृद्धि । ६३ सिद्धि । ६४ कान्ति । ६५ कीर्ति। ६६ विस्फूर्ति । ६७ व्युत्पत्ति । ६८ वात्सल्य। ६९ माङ्गल्य । ७० महोत्सव । ७१ मन्त्र । ७२ रसिकत्व । ७३ भावकत्व । ७४ गुरुत्व । ७५ स्मृति । ७६ शक्ति । ७७ भुक्ति। ७८ युक्ति। ७९ आसक्ति। ८० अनुक्रम । ८१ अभिमान । ८२ दान । ८३ कारुण्य । ८४ दर्शन । ८५ स्पर्शन । ८६ रसन । ८७ श्रवण । ८८ घ्राण । ८९ मर्यादा। ९० मंडन । ९१ उदात्त । ९२ उदय । ९३ उत्साह । ९४ उत्तमगुणाः। ९) B१ विद्या । २ विनय । ३ विवेक । ४ विजय । ५ विस्तार । ६ सदाचार । ७ सत्य । ८ शौच । ९ सन्मान । १० संस्थान । ११ समाधान । १२ सौख्य । १३ सौजन्य । १४ सौभाग्य । १५ रूप। १६ स्वरूप । १७ संयोग। १८ वियोग । १९ विभाग। २० सांगत्य । २१ संपूर्णत्व। २२ सोमत्व। २३ सकलत्व। २४ सलजत्व। २५ प्रसन्नत्व। २६प्रभुत्व । २७ प्रालित्व। २८ पालकत्व। २९ पाण्डित्य । ३० प्रणयित्व । ३१ प्रमाण । ३२ शरण । ३३ प्रमोद । ३४ प्रसाद । ३५ प्रताप। ३६ प्रारंभ। ३७ प्रभाव । ३८ परिछद । ३९ संग्रह । ४० सदाग्रह । ४१ निग्रह। ४२ विग्रह । ४३ अनुग्रह । ४४ तुष्टि । ४५ पुष्टि । ४६ प्रीति । ४७ प्राप्ति । ४८ प्रशंसा । ४९ प्रतिष्ठा । ५० प्रतिज्ञा । ५१ स्थैर्य । ५२ धैर्य । ५३ शौर्य । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ५४ चातुर्य । ५५ गांभीर्य । ५६ वुद्धि । ५७ वल । ५८ अधीक्ष। ५९ विरोध। ६० विषय । ६१ विशेष । ६२ विनोद । ६३ वृद्धि । ६४ सिद्धि । ६५ कान्ति। ६६ कीर्ति। ६७ विस्फूर्ति। ६८ व्युत्पत्ति। ६९ वात्सल्य। ७० महोत्सव। ७१ मन्त्र। ७२ रसिकत्व । ७३ भावकत्व । ७४ गुरुत्व । ७५ स्मृति । ७६ मुक्ति। ७७ यक्ति। ७८ आसक्ति। ७९ अनुक्रम । ८० अनुराग। ८१ अभिमान । ८२ दान । ८३ कारुण्य । ८४ दर्शन। ८५ स्पर्शन। ८६ रसन। ८७ श्रवण । ८८ घ्राण। ८९ मर्यादा। ९० मण्डन । ९१ उदात्त । ९२ उदय। ९३ उत्साह । ९४ उत्तमगुणाः। ९) D१ वंश । २ विद्या । ३ विनय । ४ विजय । ५ विवेक। ६ विचार । ७ सदाचार । ८ विस्तार । ९ सत्य । १० शौच । ११ सन्मान । १२ समाधान । १३ संस्थान । १४ सौख्य । १५ सौजन्य । १६ सौभाग्य । १७ रूप। १८ स्वरूप। १९ संयोग । २० वियोग । २१ सांगत्य । २२ संपूर्णत्व । २३ सोमत्व । २४ सकलत्व। २५ प्रसन्नत्व । २६ प्रभुत्व। २७ प्राञ्जलत्व। २८ पालकत्व। २९ पाण्डित्य । ३० प्रणयित्व । ३१ प्रसरण । ३२ प्रमोद। ३३ प्रताप । ३४ प्रारंभ। ३५ प्रभाव । ३६ परिच्छद। ३७ संग्रह। ३८ विग्रह। ३९ अनुग्रह । ४० सदाग्रह । ४१ निग्रह । ४२ तुष्टि । ४३ पुष्टि । ४४ प्रीति । ४५ प्राप्ति । ४६ प्रशंसा । ४७ प्रतिष्ठा । ४८ प्रतिज्ञा । ४९ स्थैर्य । ५० धैर्य । ५१ शौर्य । ५२ गांभीर्य । ५३ चातुर्य । ५४ यशोवंत । ५५ सदोदित । ५६ सर्वसह । ५७ धर्मचर। ५८ वुद्धि। ५९ बल। ६० अध्यक्ष । ६१ निरोध । ६२ विनोद । ६३ वृद्धि । ६४ सिद्धि । ६५ कान्ति । ६६ कीर्ति। ६७ विस्फूर्ति। ६८ व्युत्पत्ति । ६९ वात्सल्य । ७० माङ्गल्य । ७१ महोत्सव । ७२ मन्त्र । ७३ रसिकत्व । ७४ भावकत्व । ७५ गुरुत्व । ७६ स्मृति । ७७ शक्ति । ७८ भक्ति। ७९ युक्ति। ८० अनुराग । ८१ अनुक्रम। ८२ अभिमान । ८३ दान । ८४ कारुण्य । ८५ दाक्षिण्य । ८६ दर्शन । ८७ स्पर्शन । ८८ श्रवण । ८९ रसन । ९० घ्राण । ९१ मर्यादा । ९२ मण्डन । ९३ उदय । ९४ उदारता । ९५ उत्साह । ९६ उत्तमत्व । गुणाश्चेति। ९) E १ वंश। २ विद्या । ३ विनय । ४ विजय । ५ विवेक । ६ विचार । ७ विस्तार । ८ सदाचार । ९ सत्य । १० शौच । ११ सन्मान । १२ संस्थान । १३ समाधान । १४ सौजन्य । १५ सौख्य । १६ सौभाग्य । १७ सावधान । १८ रूप । १९ स्वरूप । २० संयोग । २१ सांगत्य । २२ विभाग। २३ संपूर्णत्व । २४ स्वजनत्व । २५ प्रसन्नत्व । २६ प्रभुत्व । २७ प्राञ्जलत्व । २८ पालकत्व । २९ पाण्डित्य । ३० प्रणयित्व। ३१ प्रमाणत्व। ३२ शरण। ३३ प्रमोद। ३४ प्रताप । ३५ प्रारंभ । ३६ प्रभाव । ३७ परिच्छेद। ३८ संग्रह । ३९ निग्रह । ४० अनुग्रह । ४१ विग्रह । ४२ आग्रह । ४३ पुष्टि । ४४ तुष्टि । ४५ प्रीति । ४६ प्राप्ति । ४७ प्रशंसा । ४८ प्रतिष्ठा । ४२ स्थैर्य । ५० धैर्य । ५१ शौर्य । ५२ चातुर्य । ५३ गांभीर्य । ५४ वुद्धि । ५५ वल । ५६ आक्षेप । ५७ निरोध । ५८ विषय । ५९ विशेष्य । ६० विनोद । ६१ ऋद्धि । ६२ वृद्धि । ६३ सिद्धि । ६४ कान्ति । ६५ कीर्ति। ६६ विस्फूर्ति। ६७ वात्सल्य । ६८ माङ्गल्य । ६९ महोत्सव । ७० मन्त्र । ७१ रसिकत्व । ७२ गुरुत्व । ७३ भावुकत्व । ७४ स्मृति । ७५ शक्ति। ७६ भुक्ति । ७७ युक्ति। ७८ मुक्ति। ७९ अनुराग । ८० अनुवास। ८१ उपकृति। ८२ अभिमान । ८३ दान । ८४ करुणा। ८५ दाक्षिण्य । ८६ दर्शन । ८७ स्पर्शन । ८८ रसन । ८९ श्रवण । ९० श्रावण । ९१ मर्यादा । ९२ मंडण । ९३ घ्राण । ९४ उदय । ९५ ग्रहण । ९६ उदात्त । ९७ उत्साह । ९८ उत्तमत्व । गुणाश्चेति । । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । २ विद्या । ३ विजय | ४ विनय । ५ विवेक ९ सत्य । १० शौच । ११ सन्मान | १५ सौजन्य | २१ संगति । १६ सौभाग्य । १७ रूप । २२ संपूर्ण । २३ सौमत्य प्राञ्जलत्व | २८ प्रागल्भ्य । । ३३ प्रसरण | ९ ) F १ वंश | ७ विस्तार | ८ सदाचार । १३ समाधान | १४ सौख्य । १९ संयोग । २० विभाग । जत्व । २५ सकलत्व । २६ प्रसन्नत्व ३० पाण्डित्य । ३१ प्रणयत्व । ३२ प्रणाम ३६ प्रारंभ । ३७ प्रभाव । ३८ परिच्छेद । २७ । ४४ तुष्टि । ५० प्रतिज्ञा ३९ संग्रह । ४५ पुष्टि । ५१ स्थैर्य । ४३ तुष्टि । ४९ प्रतिज्ञा । ३४ प्रमोद । ४० सदाग्रह | ४६ प्रीति । । ५२ धैर्य । ४२ निग्रह | ४३ विग्रह | ४९ प्रतिष्ठा । ४८ प्रशंसा | ५६ वुद्धि । ५७ बल । ५८ अधिकांक्षा । ५४ चातुर्य । ५५ गांभीर्य | ६० विवोध । ६१ वेप । ६२ विशेष । ६३ विनोद | ६४ सिद्धि । ६६ कीर्त्ति । ६७ विस्फूर्ति । त्सव | ७२ मन्त्र | ७३ रसिकत्व | ७४ पावकत्व । ६८ व्युत्पत्ति । ६९ वात्सल्य | अशक्ति । ७५ गुरुत्व । ८१ अनुक्रम । ८२ अनुवश । ७७ शक्ति । ८३ अनुराग । ८९ स्पर्शन । ७८ मुक्ति । ७९ युक्ति । ८० ८४ अभिमान । ८५ वदान्य । ९० रसन । ९१ श्रवण | ९२ ग्रहण | । ८६ कारुण्य । ८७ दाक्षिण्य ९३ मर्यादा । ९४ ८८ दर्शन । मण्डन । ९५ उदय । ९६ उदात्त । ९७ उत्साह । ९८ उत्तमत्व | गुणाचेति । । ३३ प्रसाद । ३९ सदाग्रह | ४० निग्रह ३८ संग्रह । ४४ पुष्टि । ४५ प्रीति । ५० स्थैर्य । ५१ धैर्य । ४६ प्राप्ति । ५२ शौर्य । ५८ विरोध । ६४ कान्ति । । १३ ६ विचार । १२ संस्थान | १८ स्वरूप | २४ सल ६ सत्य । १२ सौजन्य । १७ वियोग । २२ सकलत्व पालकत्व । २८ । ९) G १ विद्या | २ विनय । ३ विवेक । ४ विस्तार । ५ सदाचार | ७ शौच । ८ सन्मान | ९ संस्थान । १० समाधान | ११ सौख्य । १३ सौभाग्य । १४ रूपगुण । १५ स्वरूपगुण । १६ संयोग । १९ सांगत्य । २० संपूर्णत्व । २१ सोमत्व । नत्व । २५ प्रभुत्व । २६ प्रांजलत्व । २७ ३० प्रमाण । ३१ शरण । ३२ प्रमोद | ३६ प्रभाव । ३७ परिच्छन्द । ४२ अनुग्रह । ४८ प्रतिष्ठा । ५४ गांभीर्य । ५५ बुद्धि | ६० विशेष | ६१ विनोद | ६६ विस्फूर्त्ति । ६७ व्युत्पत्ति । ६८ वात्सल्य । ६९ ७१ मन्त्र । ७२ रसिकत्व । ७३ भावकत्व । ७४ गुरुत्व ७७ मुक्ति । ७८ युक्ति । ७९ आसक्ति । ८३ कारुण्य | ८४ दर्शन । ८५ स्पर्शन । ८८ घ्राण । ८९ मर्याद | ९० मण्डन । ९१ उदात्त । ९२ उदय । ९३ उत्साह । ९४ उत्तमर्गुणाः । ५६ वल । ५७ अध्यक्ष | ६२ वृद्धि । ६३ सिद्धि । ८० अनुक्रम । २९ पालकत्व । ३५ प्रताप । ७० माङ्गल्य माङ्गल्य । । २३ सलज्जत्व पाण्डित्य । ३४ प्रताप । ६५ कान्ति | । ७१ महो ७६ स्मृति । ४१ आग्रह | ४७ प्राप्ति । ५३ शौर्य । ५९ निरोध । ७० ७५ स्मृति । ८१ अभिमान । ८६ रसन । ८७ श्रवण । १८ विभाग । । २४ प्रस २९ प्रणयित्व | ३५ प्रारम्भ । ४९ विग्रह । ४७ प्रशंसा । ५३ चातुर्य । ५९ विषय | ६५ कीर्त्ति । महोत्सव । ७६ शक्ति । ८२ दानं । १० षट्त्रिंशद् राजपात्राणि । १ धर्मपात्रं । २ अर्थपात्रं । ३ कामपात्रं । ४ विनोदपात्रं । ५ विद्या-पात्रं । ६ विलासपात्रं । ७ विज्ञानपात्रं । ८ विचारपात्रं । ९ क्रीडापात्रं । १० हास्यपात्रं । ११ शृङ्गारपात्रं । १२ वीरपात्रं । १३ दर्शनपात्रं । १४ सत्पात्रं । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः । १५ देवपात्रं । १६ राजपात्रं । १७ मानपात्रं । १८ मत्रिपात्रं । १९ संधिपात्रं । २० महत्तमपात्रं । २१ अमात्यपात्रं । २२ प्रधानपात्रं । २३ अध्यक्षपात्रं । २४ सेनापात्रं । २५ नागरपात्रं । २६ पूज्यपात्रं । २७ मान्यपात्रं । २८ पदस्थपात्रं । २९ देशीपात्रं । ३० राज्ञीपात्रं । ३१ कुलपुत्रिकापात्रं । ३२ पुनर्भूपात्रं । ३३ वेश्यापात्रं । ३४ प्रतिचारिकापात्रं । ३५ गुणपात्रं । ३६ दासीपात्रं । इति । १०) A १ धर्मपात्र । २ अर्थपात्र। ३ विनोदपात्र। ४ कामपात्र। ५विलासपात्र । ६ विज्ञानपात्र । ७ क्रीडापात्र। ८ हास्यपात्र । ९ शृङ्गारपात्र । १० वीरपात्र । ११ देवपात्र । १२ दानवपात्र । १३ कर्मपात्र । १४ मंत्रिपात्र । १५ महत्तमपात्र । १६ अमात्यपात्र । १७ अध्यक्षपात्र । १८ सेनापालपात्र। १९ नागरपात्र। २० प्रधानपूजापान । २१.मान्यपात्र । २२ राजमान्यपात्र । २३ पदस्थपात्र । २४ देवीपात्र । २५ राज्ञीपात्र । २६ कुलपुत्रिकापात्र । २७ पुनर्भूपात्र । २८ देशीपात्र। २९ प्रतिसारकपात्र । ३० दासीपात्र । ३१ देशपात्र । ३२ गुणपात्राणि । १०) B १ धर्मपात्र। २ अर्थपात्र । ३विनोदपात्र । ४कामपात्र । ५विलासपात्र ६ विद्यापात्र । ७ विज्ञानपात्र । ८ क्रीडापात्र । ९ हास्यपात्र । १० शृङ्गारपात्र । ११ वीरपात्र । १२ देवपात्र । १३ दानवपात्र । १४ कर्मपात्र । १५ मंत्रिपात्र । १६ संधिपात्र । १७ महत्तमपात्र । १८ अमात्यपात्र । १९ अध्यक्षपात्र । २० सेनापात्र । २१ सेनापालपात्र । २२ प्रधानपूजापान । २३ मान्यपात्र । २४ राजमान्यपात्र । २५ पदस्थपात्र । २६ देवीपात्र । २७ राज्ञीपात्र । २८ कुलपुत्रिकापात्र । २९ पुनर्भूपान । ३० वेश्यापात्र । ३१ प्रतिसारकापात्र । ३२ दासीपात्र । ३३ देशपात्र । ३४ गुणपात्राणि । १०) १ धर्मपात्र । २ अर्थपात्र । ३ कामपात्र । ४ विनोदपात्र । ५ विद्यापात्र । ६ विलासपात्र । ७ विज्ञानपात्र । ८ ज्ञानपात्र । ९ क्रीडापात्र । १० हास्यपात्र । ११ शृङ्गारपात्र । १२ वीरपात्र । १३ स्नेहपात्र । १४ राजमानपात्र । १५ मंत्रिपात्र । १६ संधिपात्र । १७ महापात्र । १८ गंधपात्र । १९ अध्यक्षपात्र । २० सेनापात्र । २१ नागरपात्र । २२ पुष्पपात्र । २३ मान्यपात्र । २४ पदस्थपात्र । २५ कुतूहलपात्र । २६ सारिकापात्र । २७ सेवकपात्र । २८ श्रेष्ठपात्र । १०) १ धर्मपात्र। २ अर्थपात्र। ३ कामपात्र । ४ विनोदपात्र। ५ विलासपात्र । ६ विशालपात्र । ७विद्यापात्र । ८ विज्ञानपात्र। ९क्रीडा। १० हास्य। ११ शृङ्गार । १२ वीर। १३ अभिनव । १४ देव। १५ दानव। १६ मानव। १७ श्रवण। १८ रथ। १९ कर्म । २० स्नेह । २१ मंत्री । २२ सिद्धिस्थान । २३ संधि । २४ महामात्य । २५ अमात्य । २६ प्रधान । २७ अध्यक्ष। २८ सेना । २९ नगर । ३० पूज्य । ३१ जागरी। ३२ मान्य। ३३ द्वारपदस्थ । ३४ राज्यमान्य । ३५ देवी। ३६ राजी। ३७ कुलपुत्रिका । ३८ पुनर्मू । ३९ वेश्या । ४० अभिचारिका । ४१ दासी । ५२ दास । ४३ परिचारिका । ४४ देश। ४५ गुणपात्राणि । इति । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। १०) F १ धर्मपात्र । २ अर्थपात्र । ३ कामपात्र। ४ विनोदपात्र । ५ विद्यापात्र । ६ विशालपात्र । ७ ज्ञानपात्र । ८ विज्ञानपात्र । ९ क्रीडापात्र । १० हास्यपात्र । ११ शङ्गारपात्र । १२ वीरपात्र । १३ स्नेहपात्र । १४ राजपात्र । १५ मान्यपात्र । १६ देवपात्र। १७ दानपात्र। १८ मानपात्र। १९ कर्मपात्र। २० मंत्रपात्र । २१ संधिपात्र । २२ अमात्यपात्र । २३ प्रधानपात्र । २४ अक्षरपात्र । २५ सेनापात्र । २६ नागरपात्र । २७ पुष्फपात्र। २८ पदच्छेदिपात्र । २९ राशीपात्र। ३० पुनर्भूपात्र । ३१ वेश्यापात्र । ३२ दासीपात्र । ३३ पूज्यपात्र । ३४ अभिचारिकापात्राणीति । १०) G १ धर्मपात्र । २ अर्थपात्र । ३ विनोदपात्र । ४ कामपात्र । ५ विलासपात्र । ६विज्ञानपात्र। ७ क्रीडापात्र । ८ हास्यपात्र । ९ शृङ्गारपात्र । १० वीरपात्र । ११ देवपात्र । १२ दानवपात्र । १३ कर्मपात्र । १४ मंत्रिपात्र । १५ महत्तमपात्र । १६ अमात्यपात्र। १७ अध्यक्षपात्र। १८ सेनापालपात्र। १९ नागरपात्र। २० प्रधानपूजापान । २१ मान्यपात्र । २२ राजमान्य । २३ पदस्थपात्र । २४ देवीपात्र । २५ राक्षीपात्र। २६ कुलपुत्रिकापात्र। २७ पुनर्भूपात्र। २८ वेसापात्र। २९प्रतिसारकापात्र । ३० दासीपात्र । ३१ देशपात्र । ३२ गुणपात्राणि । ११. षट्त्रिंशद् राजविनोदाः। १ दर्शनविनोदः । २ श्रवणविनोदः। ३ कृत्रिमविनोदः। ४ गीतविनोदः। ५ वाद्यविनोदः। ६ नृत्यविनोदः । ७ शुद्धलिखितविनोदः । ८ सख्यविनोदः । ९ वक्तृत्वविनोदः । १० कवित्वविनोदः। ११ शास्त्रविनोदः। १२ करविनोदः। १३ विबुध्यविनोदः। १४ अक्षरविनोदः । १५ गणितविनोदः। १६ शस्त्रविनोदः। १७ राजविनोदः। १८ तुरगविनोदः। १९ पक्षिविनोदः । २० आखेटकविनोदः। २१ जलविनोदः । २२ यंत्रविनोदः । २३ मंत्रविनोदः। २४ महोत्सवविनोदः। २५ फलविनोदः। २६ गणितविनोदः। २७ पठितविनोदः । २८ पत्रविनोदः। २९ पुष्पविनोदः। ३० कलाविनोदः। ३१ कथाविनोदः। ३२ केशविनोदः। ३३ प्रहेलिकाविनोदः । ३४ चित्रविनोदः । ३५ चलचित्रविनोदः। ३६ स्तवविनोदः । इति । ११) A १ दर्शन । २ श्रवण । ३ गीत । ४ नृत्य । ५ वाद्य । ६ नृत्तपाठ । ७ लेख्य । ८ वकृत्व । ९ कवित्ववाद । १० शास्त्र । ११ युद्ध । १२ नियुद्ध । १३ गणित। १४ गज। १५ तुरग। १६ पक्षि। १७ आखेटक। १८ द्यूत। १९ जल। २० यंत्र । २१ मंत्र। २२ महोत्सव । २३ पत्र । २४ फल। २५ पुष्प। २६ कला । २७ कथा । २८ प्रहेलिका । २९ पदार्थकरण । ३० तत्त्व । ३१ वल। ३२ चित्र । ३३ सूत्र। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ सविवरण- वस्तुरनकोशः । ११) B१ दर्शन । ८ शास्त्र । ९ युद्ध । १४ तुरग । १५ पक्षि । २ गीत । ३ नृत्य । ४ वृत्त । १० विनोद | ११ नियुद्ध | १६ आखेटक | १७ द्यूत त्सव । २१ पत्र । २२ फल । २३ पुष्प | २४ कला । २५ कथा । २६ प्रहेलिका | २७ पदार्थकरण । २८ तत्त्व | ३० चित्र । ३१ सूत्रविनोद | २९ बल । ३ लिखित | ४ लेख्य । ११) C १ गीत | ७ शास्त्र । ८ युद्ध १४ द्यूत । १५ जल । २१ चित्रगुण | द्यूत २ वाद्य । ९ नियुद्ध १६ यंत्र । २२ कथा । २३ प्रहेलिका । । । १० गज १७ मंत्र | । ५ पाठ । ६ लेख्य । ७ कवित्व | १२ वार्जित्रविनोद | १३ गज । १८ जल | १९ यंत्र । २० महो ५ वक्तव्य । १२ पक्षि । ११ तुरंग । १८ महोत्सव | २४ सूत्रविनोदाचेति । १९ फल । ११ कवित्व । ११ ) E १ दर्शनविनोद | २ श्रवण । ३ नृत्य । ४ गीत । ७ पाठ्य । ८ आख्यान । ९ वक्तव्य । १० लेख्य । १४ शस्त्रशास्त्र । १५ युद्धकार । १६ नियुद्धकार । २० पक्षी । २१ आखेटक | २२ द्यूत । २३ जल । त्सव | १७ गणित । २४ यंत्र । १७ आखे | २७ पत्र । २८ पुष्प । २९ फल । ३० कला । ३१ कथा । ३२ ३३ पदार्थ । ३४ तत्त्व । ३५ बल । ३६ चित्रसूत्र । इति विनोदाः । ११) F १ गीतविनोद | २ वाद्य विनोद | ३ दर्शनविनोद | ४ श्रवणविनोद | ५ नृत्यविनोद | ६ लिखित । ७ लेख्य । ८ वक्तृत्व । ९ कवित्व । १० वादिशास्त्र । ११ युद्ध । १२ नियुद्ध । १३ गणित । १४ गज । १५ तुरग । १६ पक्षि । टक | १८ द्यूत । १९ जलक्रीडा । २० यंत्र । २१ मंत्र | २२ महोत्सव २४ फल | २५ कला । २६ कथा । २७ प्रहेलिका । २८ पदार्थ । ३० वल । ३१ वित्त । ३२ सूत्र | ३३ खेलन । ३४ चित्रविनोदश्चेति । ११) १ दर्शनविनोद | २ श्रवणविनोद | ३ गीतविनोद | ४ नृत्य । ६ वृत्त । ७ पाठ । ८ लेख्य । ९ वक्तृत्व । १० कवित्व | ११ वादशास्त्र । १३ नियुद्ध | १४ गणित १५ गज । १६ तुरग १७ पक्षि । २० जले । २१ यंत्र | २२ मंत्र । २३ महोत्सव | २४ पत्र । 7 ५ वाद्य । १२ युद्ध१८ आखेटक विनोद | १९ २५ फल 1 २६ पुष्प । २७ कला । २८ कथा । २९ प्रहेलिका । ३० पदार्थकरण । ३१ तत्त्व | ३२ वल । ३३ चित्र । ३४ सूत्रविनोद | ६ कवित्व | १३ आखेटक । २० पुष्प । ५ वाद्य । १२ वाद । १८ गज । २५ मंत्र । ६ महन्तम | ७ अमात्य | ८ बुद्धि । ९ सुख । १० अभयसुख । १२ संग्रामिक | १३ आनायिक १४ देशी पुरुष | १५ धर्मपुरुष । १७ कामपुरुष | १८ राजपुरुष । विज्ञानविनोदपात्राणि च । 1 A G विधं स्थानं । ६ नृत्य । १३ शास्त्र । १९ तुरग । २६ महोप्रहेलिका । २३ पुष्प । २९ तत्त्व । १२. अष्टादशविधेमास्थानम् । १ मल्ल । २ आप्त । ३ हित । ४ स्निग्ध । ५ मंत्रि | ६ महत्तम । ७ अमात्य । ८ बुद्धि । ९ सुख १२ देशीपुरुष । १३ धर्मपुरुष । १४ धनपुरुष । १५ धान्यपुरुष । १६ काम्यपुरुष । १७ विज्ञानपुरुष । १८ राजपुरुष । इति । । १० उभयसुख । ११ आम्नायिक | ११) AB १ मल्लस्थानं । २ आप्तस्थानं । ३ हितस्थानं । ४ स्निग्धस्थान | ५ मंत्रि । ११ आरामिक | १६ धनपुरुष । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । १२ ) C १ मल्ल । २ आप्त । ३ हित । ७ प्राधान्य । ८ वुद्धिसुख' ।' मिक । १३ देशीय । १४ कामिक | ९ विवाद । १० उभयसुख । ४ स्निग्ध । ९८ प्रशंसा चेति । १५ विज्ञान । १२ ) E १ मल्ल | २ आप्त । तम । ८ वुद्धि । ९ सुख । १३ देशीपुरुष । १४ धर्म पुरुष । १५ धनपुरुष । १९ राजमान्य । २० विनोद | इति पात्र आस्थानम् । १२) F १ मल्ल । २ आप्तहित । ७ प्रधान । १२ देशीयपुरुष । १७ विज्ञानपुरुष | १२ ) G १ मलस्थानं । ६ महत्तम । मिक | ७ अमात्य । १२ आनायिक | पुरुष । १७ राजपुरुष । ३ स्निग्ध । ४ मंत्रि । ५ महत्तम । ६ अमात्य । १३ धर्मपुरुष । १४ अर्थपुरुष । १५ कामपुरुष । ८ बुद्धिमुख । ९ उदयमुख । १० आनायिक | १८ राजपुरुषश्चेति । ११ सांग्रामिक | १६ ज्ञानपुरुष । २ आप्तस्थानं । ३ हितस्थानं । ४ स्निग्धस्थान | ८ बुद्धिसख । ९ अभयसख । १० आरामिक । १३ देशी पुरुष । १४ धर्मपुरुष । १८ विज्ञानविनोद पात्राणि च । १५ धनपुरुष । १४. चतस्रो राजनीतयः । १ साम । २ दान । ३ हित । ४ स्निग्ध । १० उभयसुख । ११ आम्नायक । ५ मंत्रि । ६ अमात्य । ७ मह१६ काम । १७ विज्ञान । १८ राज्य । १२ संग्रामिक | १३. चतस्रो राजविद्याः । १ आन्वीक्षिकी । २ त्रयी । ३ वार्त्ता । ४ दण्डनीतिश्चेति विद्याः । 1 G अथ चतस्रो राजविद्याम् । १३ ) ABD आन्वीपिकी । E अन्वेषिकी । F आन्वेषिकी । * ३ भेद | 1 A BE F G षटूत्रिंशदंडायुधानि । ३ १७ ५ महत्तम । ६ अमात्य । १६ विचारिक । १७ संतोष । ११ आनाइक । १२ संग्रा *** 1 E चतत्र राजनीतयः । १४ ) C सामदानविधिभेदनिग्रहश्चेति । १४ ) D सामनीति उपप्रदान नीति मेदनीति दंडनीति । १४) F साम दानं भेदः दण्डश्चेति । ४ दुण्ड । इति । १५. षट्त्रिंशद् आयुधानि । १ चक्र । ७ कुंत । ८ शूल । ९ त्रिशूल । १० शक्ति । ११ पाश । धनुः। ३ वज्र । ४ खड्ग । ५ क्षुरिका । ६ तोमर । १३ मुद्गर । १४ मक्षिका । १५ भल्ल । १६ भिंडमाल । १२ अङ्कुश । १७ मुसुंठि । ११ संग्रा५ मंत्रि । १६ काम Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। १८ लुंठि। १९ गदा । २० शंख । २१ परशु । २२ पट्टिस । २३ रिष्टि । २४ कणय । २५ संपन्न । २६ हल । २७ मुशल । २८ पुलिका। २९ कर्तरि । ३० करपत्र । ३१ तरवारि । ३२ कोदाल । ३३ दुस्फोट । ३४ गोफण । ३५ डाह । ३६ डबूस । इति । १५) AB १ चक्र। २ धनुप। ३ खग। ४ तोमर । ५ कुंत । ६ त्रिशूल । ७ शक्ति। ८ पाश । ९ अंकुश । १० मुद्गर । ११ मक्षिका । १२ भल्ल । १३ भिडिमाल। १४ मुषंडि । १५ गदा । १६ शक्ति । १७ परशु । १८ पट्टिसु । १९ कृष्टि । २० करणक । २१ कंपन । २२ हल । २३ मुशल । २४ कुलिका। २५ करपत्र । २६ कर्तरि । २७ कोपूल । २८ तरवारि। २९ दुस्फोट। ३० गोफणि । ३१ डाह । ३२ डवूस। ३३ लुंठि। ३४ दंडशास्त्राणि । १५)C चक्र। २ पाश। ३ चाप। ४ वज्र। ५ खग। ६ छुरिका । ७ तोमर । ८ कुंतल । ९ शूल । १० शक्ति । ११ अंकुश। १२ मुद्गर । १३ भिंडिमाल । १४ मुषंडी। १५ परिघ। १६ गदा। १७ परशु। १८ पट्टिश। १९ इष्टि। २० यष्टि। २१ कणय । २२ कंकण । २३ हल । २४ मुशल । २५ करपत्र । २६ कर्तरि । २७ कोदाल । २८ डवुस । २९ नाराच । ३० खेटक । ३१ कुठार । ३२ दंड । ३३ पाश। ३४ चर्म । ३५ कुलिश। ३६ दुस्फोट । ३७ डाह । १५) १ चक्र। २ धनुष। ३ वज्र। ४ खग। ५ छुरिका। ६ तोमर। ७ नाराच। ८ कुंत । ९ शूल। १० शक्ति । ११ पास । १२ मुडु। १३ भल्ल । १४ मक्षिक । १५ भिडपाल । १६ मुपंडी । १७ लंठि । १८ दंड । १९ गदा । २० फांकु। २१ परशु। २२ पट्टिश। २३ रिट। २४ कणय। २५ कणव। २६ कंपन। २७ हल। २८ मुशल । २९ आगलिका। ३० कर्तरि। ३१ करपत्र । ३२ तरवारि। ३३ कोदाल । ३४ अकुश। ३५ करवाल । ३६ दुस्फोट । ३७ गोफिणि। ३८ दाहड। ३९ डमरु । इति। १५) F १ चक्र । २ धनुः। ३ वज्र। ४ अंकुश। ५खड्ग। ६छुरिक। ७ तोमर। ८ कुन्त । ९शूल। १०त्रिशूल। ११ शक्ति। १२ पाश। १३ मुद्गर। १४ कुद्दाल। १५ दुस्फोट । १६ गोफण । १७ यन्त्रगोलिका । १८ मसंठि । १९ लुण्ठि । २० गदा। २१ शङ्क। २२ परशु। २३ पट्टिश। २४ रिष्ट। २५ कणाय। २६ कंपन । २७ कर्तरी । २८ हल । २९ मुशल। ३० गुहिलका । ३१ करपत्र । ३२ तरवारि। ३३ डाव । ३४ ढाल। ३५ डस्थूर। ३६ कुठार। ३७ दण्डश्चेति । १५) G १ चक्र। २ धनुप। ३ खङ्ग। ४ तोमर । ५ कुन्त । ६ त्रिशूल । ७ शक्ति। ८ पाश । ९अङ्कश। १० मुद्गर । - ११ मक्षिका। १२ भल्ल । १३ भिण्डिमाला। १४ मुपण्डि। १५ गदा। १६ शक्ति । १७ परशु। १८ पट्टिसु। १९ कृष्टि । २० करणक ।। २१ कंपन । २२ हल । २३ मुशल । २४ हुलिका । २५ परपत्र । २६ कर्तरि । २७ कोपूल। २८ तरवारि। २९ दुस्फोट । ३० गोफणि । ३१ डोह । ३२ डवूस। ३३ लुण्ठि । ३४ दण्डशस्त्राणि । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । १६. सप्तविंशतिः शास्त्राणि । १ शब्दशास्त्र । २ छंदः शास्त्र । ३ अलंकारशास्त्र । ४ काव्यशास्त्र | ५ कथाशास्त्र । ६ नाटकशास्त्र । ७ वाद्यशास्त्र । ८ निर्घट । ९ धर्मशास्त्र । १० अर्थ | ११ काम । १२ मोक्षशास्त्र । १३ वाद । १४ विद्या । १५ वास्तुशास्त्र । १६ विज्ञान । १६ विज्ञान । १७ कलाशास्त्र । १८ कृत्यशास्त्र । १९ कल्पशास्त्र । २० शिक्षा । २१ लक्षणशास्त्र | २३ मंत्रशास्त्र । २४ तर्कशास्त्र । २५ गणित । २६ गांधर्व शास्त्र । इति । । ९ धर्म १६ ) AB १ शब्दशास्त्र | २ छंदशास्त्र । ३ अलंकारशास्त्र | ५ कथाशास्त्र । ६ नाट्यशास्त्र | ७ नाटकशास्त्र । ८ निघंट । ११ काम । १२ मोक्ष । १३ तर्क । १४ गणित १५ गांधर्व । १८ वास्तु । १९ विज्ञान | २० विनोद | २१ कृत्य । २४ शिक्षा | २५ लक्षण । २६ पुराण । २७ सिद्धांतशास्त्राणि । १६ मंत्र २२ ३ अलंकार । । १६ ) E १ शब्द | २ छंद । ७ नाटक । ८ निघंट । ९. निर्णय । १० धर्म १४ तर्क । १५ गणित । १६ गांधर्व । १७ २० विज्ञान । २१ विनोद | २२ नृत्य । , ४ काव्य । ११ अर्थ । मंत्र । १८ कला । 1 C gives no Vivarana. २२ पुराण । २७ सिद्धांत १९ ४ काव्यशास्त्र | । १० अर्थ | १७ वैद्यक । २३ कल्प । । ५ काथा । १२ काम । विद्या । ६ नाट्य १३ मोक्ष । १९ वास्तु । १६ ) F १ शब्दशास्त्र । २ छंदःशास्त्र । ३ अलंकारशास्त्र । ४ काव्यशास्त्र । ५ कथा । ६ नाटकशास्त्र | ७ निघण्टु | ८ धर्मशास्त्र । ९ अर्थशास्त्र ११ मोक्षशास्त्र । १२ तर्कशास्त्र । १३ वाद । १७ गणित | १८ गान्धर्व । १९ मंत्र | २३ शिक्षा | २४ पुराण । २५ सिद्धान्त । १० कामशास्त्र | १६ व्याख्यान । १४ वैद्यक । १५ वास्तु । २० विनोद | २१ कला । २२ कल्प | २६ नीतिशास्त्र । २७ वेद । इति शास्त्राणि । । १६ ) G १ शब्दशास्त्र । २ छन्दशास्त्र । ३ अलङ्कारशास्त्र । ४ काव्यशास्त्र । ५ कथाशास्त्र । ६ नाट्यशास्त्र | ७ नाटकशास्त्र । ८ निघण्ट । ९ धर्म ११ काम । १२ मोक्ष । १३ तर्क । १४ गणित । १५ गान्धर्व । १७ वैद्यक । १८ वास्तु । १९ विज्ञान । २० विनोद । २१ कृत्य । २३ कल्प | २४ शिक्षा । २५ लक्षण । २६ पुराण । २७ सिद्धान्तशास्त्राणि । १० अर्थ | १६ मंत्र । २२ कला | ** Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। १७. 'द्विपञ्चाशत् तत्त्वानि । १ पृथ्वी । २ अप । ३ तेज । ४ वायु । ५ आकाश । ६ शब्द । ७ रूप । ८ रस । ९ गंध । १० स्पर्श । ११ रसन । १२ स्पर्शन । १३ प्राण । १४ चक्षुः । १५ श्रोत्र । १६ वाक् । १७ पाणि । १८ पाद । १९ गुद । २० उपस्थ । २१ मन । २२ बुद्धि । २३ अहंकार । २४ प्रकृति । २५ पुरुष । २६ रक्त । २७ मांस । २८ मेद। २९ मज्जा । ३० अस्थि । ३१ शुक्र । ३२ वात । ३३ पित्त । ३४ कफ । ३५ मल । ३६ काम । ३७ क्रोध । ३८ लोह । ३९ मात्सर्य । ४० राग । ४१ नियति । ४२ कालविद्या । ४३ शुद्धविद्या । ४४ माया। ४५ शक्ति । ४६ नाद । ४७ बिंदु। ४८ कला। ४९ ज्योतिः। ५० ईश्वर । ५१ श्लेष्म । ५२ सदाशिव । इति । १७) AB १ पृथ्वीतत्त्व । २ अपतत्त्व । ३ तेजस्तत्त्व । ४ वायुतत्त्व । ५ आकाशतत्त्व । ६ शब्द । ७ स्पर्श । ८ रस । ९ रूप । १० गंध। ११ रसन। १२ स्पर्शन । १३ घ्राण । १४ चक्षु। १५ श्रोत्र । १६ त्वक् । १७ पाणि । १८ पाद । १९ गुद । २० उपस्थ । २१ मन । २२ वुद्धि । २३ अहंकार । २४ प्रकृति । २५ पुरुप । २६ विंदु । २७ रक्त। २८ मांस। २९ मेद । ३० अस्थि । ३१ मजा। ३२ शुक्र । ३३ यात । ३४ पित्त । ३५ कफ । ३६ मल। ३७ काम । ३८ क्रोध । ३९ लोभ । ४० मोह। ४१ भय । ४२ मात्सर्य। ४३ राग। ४४ नियति। ४५ कला। ४६ कालविद्या। ४७ शुद्धविद्या । ४८ माया । ४९ ज्योति । ५० नाद । ५१ शक्ति । ५२ ईश्वर । १७) C१ पृथिवी। २अप। ३ तेज। ४ वायु। ५आकाश। ६शब्द। ७ स्पर्श । ८ रूप । ९ रस । १० गंध । ११ श्रोत्र। १२ त्वक् । १३ चक्षु । १४ जिह्वा । १५घ्राण । १६ वाक् । १७ हस्त। १८ उपस्थ। १९ वायु। २० पाद। २१ मनांसि । २२ वुद्धि । २३ अहंकार। २४ प्रकृति। २५ पुरुप । २६ रक्त । २७ मांस । २८ मेद । २९ मजा। ३० शुक्र । ३१ अस्थि। ३२ वात। ३३ पित्त । ३४ कफ । ३५ मल । ३६ काम । ३७ क्रोध । ३८ लोभ । ३९ मोह । ४० मान । ४१ भय । ४२ आश्चर्य । ४३ राग। ४४ नियति । ४५ कालविद्या। ४६ माया। ४७ शक्ति । ४८ नाद । ४९ विंदु। ५० कला। ५१ ज्योतिरिति । १७) E१ पृथिवी। २ अप। ३ तेज । ४ वायु। ५ आकाश । ६ शब्द । ७ स्पर्श । ८ रस । ९ रूप। १० गंध । ११ रसन । १२ स्पर्शन । १३ घ्राण । १४ चक्षु। १५श्रोत्र । १६ त्वक् । १७ वुद्धि। १८ अहंकार। १९ पाणि। २० गुद। २१ पाद । 1 A B अथ द्विप। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २२ प्रकृति । २९ मजा । ३६ क्रोध | ३७ लोभ । ४३ कालविद्या | 22 बुद्धि । ४५ शक्ति । ४६ २३ पुरुष । ३० शुक्र । ५० शक्ति । ५१ नियति । ४९ नाद | ७१) F ७ रुप । ८ रस । ९ १ पृथ्वी | १४ पाणि । १५ पाद कार । २१ प्रकृति । विद्या | ५२ ईश्वर । सविवरण- वस्तुरतकोशः । २५ रक्त । ३२ पित्त । ३९ भय । २४ बिंदु | ३१ वात । ३८ मोह । २ अप् । स्पर्श । १० १६ गुद | २२ पुरुष । २९ वात २८ अस्थि । २७ शुक्र । ३४ क्रोध । ३५ लोभ । ४१ कालविद्या | ४२ ४७ ईश्वर । ४८ शिव । १७) G ६ शब्द । १३ घ्राण | २० उपस्थ । २६ विन्दु | ३३ वात । ४० मोह । १४ चक्षुः । २१ मन २७ रक्त । ३४ पित्त । १ पृथ्वीतत्त्व | ७ स्पर्श । । ३ तेजस् । । २८ मांस । ३५ कफ । ३६ मोह । ३७ भय । युद्ध | ४३ माया । ४९ सदाशिवश्चेति । गन्ध । ११ १७ उपस्थ । २३ रक्त | २६ मांस । ३३ कफ । ४० मात्सर्य । ऐश्वर्य । ३० पित्त । ४२ मात्सर्य । ४९ भय । ४७ शुद्धविद्या । ४८ माया २९ मेद । ३६ मल । ४ वायु । दर्शन । ४३ राग । । * २४ मांस । १८ मनस् ३१ कफ ३८ मात्सर्य । ४४ शक्ति । ४७ माया । ५ आकाश । १२ श्रोत्र | २७ मेद् । ३४ मलं । ४१ राग । । । २ अप्तत्त्व | ३ तेजस्तत्त्व । ४ वायुतत्त्व । ५ ८ रस । ९ रूप । १० गंध । ११ रसन । १५ श्रोत्र । १६ त्वक् । १७ पाणि । २२ बुद्धि | २३ अहङ्कार । २४ प्रकृति । ३० अस्थि ३७ काम । । १९ बुद्धि २५ मेद । । ३२ मल ३९ राग । ४५ नाद । '४४ नय । ४९ ज्योतिः । ५० १८ पादं ३१ मज्जा । ३८ क्रोध । । ४५ कला । नाद । कला | २८ शकुनकला । २९ क्रीतकला | ३० ३१ संयोगकला । ३२ हस्तलाघवकला । ३३ सूत्रकला । 1ABC अथ द्वि° - २१ २८ अस्थि । ३५ काम | आकाशतत्त्व । १२ स्पर्शन । १९ गुद । ४२ कला । ४८ ज्योति । ६ शब्द | १३ वाकू । । २० अहं २६ मज्जा । ३३ काम | ४० नियति । ४६ विन्दु | २५ पुरुष । ३२ शुक्र । ३९ लोभ । ४६ काल५१ शक्ति । १८. 'द्विसप्ततिः कलाः । ४ गणितकला | ८ कवित्वकला । १ गीतकला । २ वाद्यकला | ३ नृत्यकला । ५ पठितकला । ६ लिखितकला । ७ वक्तृत्वकला । ९ कथाकला । १० वचनकला । ११ नाटककला | १२ व्याकरणकला । १३ छंदः कला । १४ अलंकारकला । १५ दर्शनकला । १६ अभिधानकला | १७ धातुवादकला । १८ धर्मकला । १९ अर्थकला । २० काम२१ वादकला । २२ बुद्धिकला । २३ शौचकला । २४ विचारकला | २५ नेपथ्यकला | २६ विलासकला | २७ नीतिवित्तकला | ३४ कुसुम कला | ވނ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सविवरण-चस्तुरनकोशः। कला। ३५ इंद्रजालकला। ३६ सूचीकर्मकला । ३७ स्नेहकला । ३८ पानककला । ३९ आहारककला। ४० सौभाग्यकला । ४१ प्रयोगकला। ४२ मंत्रकला। ४३ वास्तुकला। ४४ वाणिज्यकला। ४५ रत्नकला। ४६ पात्रकला। ४७ वैद्यकला। ४८ देशकला । ४९ देशभाषितकला। ५० विजयकला। ५१ आयुधकला। ५२ युद्धकला । ५३ समयकला । ५४ वर्तनकला। ५५ हस्तिकला। ५६ तुरगकला । ५७ नारीकला । ५८ पक्षिकला। ५९ भूमिकला। ६० लेपकला । ६१ काष्ठकला। ६२ पुरुषकला। ६३ सैन्यकला । ६४ वृक्षकला । ६५ छमकला । ६६ हस्तकला । ६७ उत्तरकला । ६८ प्रत्युत्तरकला । ६९ शरीरकला । ७० सत्त्वकला । ७१ शास्त्रकला । ७२ लक्षणकला । इति । m १८) A B १ गीतकला । २ नृत्यकला। ३ वाद्यकला। ४ बुद्धिकला। ५शौच । ६मंत्रकला। ७ विचार। ८ वाद । ९ वास्तु। १० नेपथ्य । ११ विनोद । १२ विलास । १३ नीति । १४ शकुन । १५ चित्र। १६ संयोग । १७ हस्तलाघव । १८ कुसुम। १९ इंद्रजाल। २० सूचीकर्म । २१ स्नेहपात्र। २२ आहार। २३ सौभाग्य । २४ प्रयोग। २५ गंध । २६ वस्तु । २७ पात्र । २८ रत्न। २९ वैद्य । ३० देशभापित । ३१ विजय । ३२ वाणिज्य । ३३ आयुध । ३४ युद्ध । ३५ नियुद्ध । ३६ समय । ३७ वर्त्तन । ३८ हस्ति । ३९ तुरग। ४० पक्षि । ४१ पुरुष । ४२ नारी । ४३ भूमिलेप। ४४ काष्ठ। ४५ सैन्य। ४६ वृक्ष। ४७ छद्म। ४८ प्रस्थ। ४९ उत्तर। ५० शस्त्र । ५१ शास्त्र । ५२ गणित । ५३ पठित । ५४ लिखित । ५५ वक्तृत्व । ५६ कथा । ५७ व्यवन । ५८ व्याकरण । ५९ नाटक । ६० छंद । ६१ अलंकार। ६२ दर्शन। ६३ अध्यात्म । ६४ धातु। ६५ धर्म। ६६ अर्थ। ६७ काम । ६८ द्यूत । ६९ शरीरकलाश्चेति । १८) C१ वाद्यकला। २ नृत्यकला। ३ गणित । ४ पठित । ५ लिखित । ६ लेख्य । ७ वक्तृत्व । ८ वचन । ९ कथा । १० नाटक । ११ व्याकरण । १२ छंद । १३ अलंकार। १४ दर्शन । १५ अभिधान । १६ धातुकर्म । १७ धर्म । १८ अर्थ । १९ काम। २० वाद। २१ वृद्धि। २२ पाचक। २३ मंत्र । २४ विनोद । २५ विचार। २६ नेपथ्य । २७ विलास । २८ नीति । २९ शकुन ।, ३० क्रीडन । ३१ तंत्र । ३२ संयोग । ३३ हस्तलाघव । ३४ सूत्र । ३५ कुसुम । ३६ चंद्र । ३७ जीव । ३८ स्नेह । ३९ पान । ४० आहार । '४१ विहार। ४२ सौभाग्य । ४३ प्रयोग । २४ गंध। ४५ वाद । १६ वस्तु । ४७ रत्न । ४८ पात्र, । ४९ विद्या। ५० व्यासकला। ५१ दशा। ५२ विजय । ५३ वणिज । ५४ आयुध । ५५ युद्ध । ५६ समयनियुद्ध । ५७ वृद्धन । ५८ वर्त्तन । ५९ हस्ति। ६० तुरग। ६१ पक्षि। ६२ नारि । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-चस्तुरनकोशः। ६३ भूमि। ६४ लेपन। ६५ दंत । ६६ काष्ठ। ६७ इष्टिका। ६८ पाषाण। ६९ उत्तर। ७० प्रत्युत्तर। ७१ सूचीकर्म । ७२ शरीरशस्त्रकलाश्चेति।। १८) १ गीत । २ नृत्य । ३ वाद्य । ४ गणित । ५ पठित। ६ लिखित । ७ वक्तत्व। ८ कवित्व। ९ काव्य । १० वाचकत्व । ११ नाद । १२ व्याकरण । १३ छंद । १४ अलंकार। १५ दर्शन । १६ अभिधान । १७ धातुवाद। १८ बुद्धि। १९ शौच। २०विचार। २१ नेपथ्य। २२ विलास। २३ नीति। २४ शकुन। २५ क्रीतविक्रय । २६ संयोग। २७ हस्तलाघव । २८ सूत्र। २९ कुसुम। ३० इंद्रजाल। ३१ सूचिकर्म । ३२ स्नेहपान । ३३ आहार। ३४ सौभाग्य। ३५ प्रयोग। ३६ गंध। ३७ वस्तु । ३८ रत्न। ३९ पात्र । ४० वैद्य। ४१ देशभापित। ४२ देशविजय । ४३ वाणिज्य । ४४ आयुध । ४५ युद्ध । ४६ समय । ४७ वर्तन । ४८ हस्ती । ४९ तुरग। ५० पुरुप। ५१ नारी। ५२ पक्षी। ५३ भूमि। ५४ लेप। ५५ काष्ठ। ५६ सैन्य । ५७ वृक्ष । ५८ छद्म । ५९ हस्त । ६० उत्तर। ६१ प्रत्युत्तर। ६२ शैल। ६३ शारीर। ६४ शास्त्रकला चेति । १८) १ लिखित । २ गणित। ३ गीत । ४ वाद्य । ५ नृत्य । ६ पठित । ७ वक्तृत्व । ८ कवित्व । ९कथा । १० विनोद। ११ वचन। १२ नाटक। १३ व्याकरण । १४ छन्दस्। १५ अलंकार। १६ दर्शन। १७ अभिधान। १८ धातुवाद। १९धर्मवाद । २० अर्थवाद। २१ कामवाद। २२ बुद्धि। २३ शौच। २४ मन्त्र। २५ विचार। २६ नेपथ्य। २७ विलास । २८ स्वस्थकर्म । २९ नीति। ३० शकुन । ३१ क्रीडन । ३२ चित्र । ३३ लोहकर्म। ३४ काष्ठकर्म। ३५ दन्तकर्म। ३६ चर्मकर्म। ३७ संयोग। ३८ हस्तलाघव । ३९ कुसुम । ४० इन्द्रजाल। ४१ स्नेहपान। ४२ आहार । ४३ विहार । ४४ सौभाग्य । ४५ प्रयोग। ४६ गंध। ४७ वाद। ४८ वास्तु। ४९ रत्न । ५० पात्र। ५१ वैद्य। ५२ देशभाषा। ५३ विजय । ५४ वाणिज्य । ५५ आयुध। ५६ युद्धसमय । ५७ हस्तिपरीक्षा। ५८ अश्वपरीक्षा। ५९ नरपरीक्षा। ६० नारीपरीक्षा। ६१ रत्नपरीक्षा। ६२ पक्षिपरीक्षा। ६३ भूमिपरीक्षा। ६४ इटकर्म । ६५ पापाणकर्म । ६६ उत्तर । ६७ प्रत्युत्तर। ६८ वृक्ष । ६९ छद्म । ७० शास्त्र । ७१ चोरग्रहण । ७२ कागडाजय । १८) G१ गीतकला। २ नृत्यकला। ३ वाद्यकला। ४ वुद्धिकला। ५शौचकला। ६मंत्रकला । ' ७ विचारकला। ८ वाद । ९ वास्तु। १० नेपथ्य। ११ विनोद । १२ विलास। १३ नीति। १४ शकुन। १५ चित्र। १६ संयोग। १७ हस्त । १८ लाघव । १९ कुसुम । २० इन्द्रजाल । २१ सूचीकर्म। २२ स्नेह । २३ पान । २४ आहार। । २५ सौभाग्य। २६ प्रयोग। २७ गंध। २८ वस्तु । २९ पात्र । ३० रत्न। ३१ वैद्य। ३२ देश। ३३ विजय। ३४ वाणिज्य। ३५ आयुध। ३६ युद्ध । ३७ नियुद्ध। ३८ समय। ३९ वर्तन। ४० हस्ति। ४१ तुरग। ४२ पक्षि। ४३ पुरुष। ४४ नारी। ४५ भूमि। ४६ लेप। ४७ काष्ठ । ४८ सैन्य । ४९ वृक्ष । ५० छद्म। ५१ प्रस्थ । ५२ उत्तर । ५३ शस्त्र । ५४ शास्त्र । ५५ गणित । ५६ पठित । ५७ लिखित । ५८ वक्तृत्व। ५१ कथा। ६० व्यवन । ६१ व्याकरण । ६२ नाटक। ६३ छन्द । ६४ अलंकार। ६५ दर्शन। ६६ अध्यात्म। ६७ धातु । ६८ धर्म। ६९ अर्थ । ७० काम। ७१ चूत । ७२ शरीरकलाश्चेति । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ A सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । १९. चतुरशीतिर्विज्ञानानि । : ४ कर्मविज्ञानं । १ हेतुविज्ञानं । २ तत्त्वविज्ञानं । ३ मोहविज्ञानं । ५ धर्मविज्ञानं । ६ लक्ष्मीविज्ञानं । ७ योगविज्ञानं । ९ शंखविज्ञानं । १० दंतविज्ञानं । ११ का विज्ञानं । १४ वचनविज्ञानं । १७ पारंपर्यविज्ञानं । २० मेघविज्ञान । २१ यंत्रविज्ञानं । विज्ञानं । १३ रसायनविज्ञानं । विज्ञानं । १६ गुरुत्वविज्ञानं । विज्ञानं । १९ वैद्यकविज्ञानं । २२ मंत्रविज्ञानं । २३ मर्दनविज्ञानं । २४ नेपथ्यविज्ञानं । २५ मस्तक - विज्ञानं । २६ इष्टिविज्ञानं । २७ लेपविज्ञानं । २८ सूत्रविज्ञानं । २९ चित्रकर्मविज्ञानं । ३० रंगविज्ञानं । ३१ शूचिकर्मविज्ञानं । ३२ शकुनविज्ञानं । ३३ छद्मविज्ञानं । ३४ गंधयुक्तिविज्ञानं । ३५ आरामविज्ञानं । ३६ शैलविज्ञानं । ३७ काव्यविज्ञानं । ३८ कांस्यविज्ञानं । ३९ काष्ठविज्ञानं । ४० कुंभविज्ञानं । ४१ लोहविज्ञानं । ४२ पत्रविज्ञानं । ४३ वंशविज्ञानं । ४४ नखविज्ञानं । ४५ तृणविज्ञानं । ४६ प्रासादविज्ञानं । ४७ धातुविज्ञानं । ४८ विभूषणविज्ञानं । ४९ स्वरोदयविज्ञानं । ५० द्यूतविज्ञानं । ५१ अध्यात्मविज्ञानं । ५२ अग्निविज्ञानं । ५३ विद्वेषणविज्ञानं । ५४ उच्चाटनविज्ञानं । ५५ स्तंभनविज्ञानं । ५६ वशीकरणविज्ञानं । ५७ वस्तुविज्ञानं । ५८ स्वयंभूविज्ञानं । ५९ हस्तिशिक्षाविज्ञानं । ६० अश्वविज्ञानं । ६१ पक्षिविज्ञानं । ६२ स्त्रीकामविज्ञानं । विज्ञानं । ६५ पशुपाल ६३ चक्रविज्ञानं । ६६ कृषिविज्ञानं । ६४ वस्त्राकारविज्ञानं । ६७ वाणिज्यविज्ञानं । ६८ लक्षण विज्ञानं । ६९ कालविज्ञानं । ७० शस्त्रबंधविज्ञानं । ७१ शुद्ध करविज्ञानं । ७२ विशुद्धकरविज्ञानं । ७३ आखेटकविज्ञानं । ७४ कौतूहलविज्ञानं । ७५ कोशविज्ञानं । ७६ पुष्पविज्ञानं । ७७ इंद्रजालविज्ञानं । 1ABFG अथ चतु' | ८ देवविज्ञानं । १२ गुटिका १५ कवित्व - १८ ज्योतिष्क Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ७८ पानविधिविज्ञानं । ७९ अशनविधिविज्ञानं । ८० विनोदविज्ञानं । ८१ सौभाग्य-विज्ञानं । ८२ शौचविज्ञानं । ८३ विनयविज्ञानं । ८४ नीतिविज्ञानं । इति । १९) A.१ हेतुविज्ञान । २ तत्त्वविज्ञान। ३ मोहजविज्ञान । ४ कर्मविज्ञान। ५धर्मविज्ञान । ६ मर्मविज्ञान । ७ शंख विज्ञान । ८ दंतविज्ञान । ९ काच। १० गुटिका। ११ योग । १२ रसायन। १३ वचन। १४ कवित्व । १५ नेपथ्य । १६ मंत्र। १७ तंत्र । १८ मर्दन। १९ पत्रक। २० वृष्टिक। २१ लेपकर्म। २२ सूत्र। २३ चित्र । २४ रंग। २५ सूचीकर्म । २६ शकुन । २७ छ। २८ निर्माल्य । २९ गंधयुक्ति । ३० आसन। ३१ शील। ३२ काष्ठकर्म। ३३ कुंभ। ३४ लोह। ३५ यंत्र। ३६ वंश । ३७नख। ३८ तृण। ३९ प्रसाद । ४० धातु। ४१ विभूषण । ४२ स्वरोदय । ४३ द्यूत । ४४ अध्यात्म। ४५ अग्नि। ४६ जल । ४७ विद्वेषण । ४८ उच्चाटन । ४९ स्तंभन । ५० वशीकरण। ५१ हस्तिशिक्षा। ५२ अश्व। ५३ पक्षि। ५४ स्त्रीकाम। ५५ रत्न। ५६ वस्त्राकार। ५७ पाशुपाल्य। ५८ कृपि। ५९ वाणिज्य । ६० लक्षण । ६१ काल। ६२ शास्त्र। ६३ शस्त्रवंध । ६४ आयुधकार। ६५ नियुद्धकार। ६६ आखेटक। ६७ कुतूहल। ६८ कोश। ६९ पुष्प। ७० इंद्रजाल। ७१ पानविधि । ७२ अशन । ७३ विनोद। ७४ सौजन्य । ७५ सौभाग्य । ७६ शौच । ७७ विनय । ७८ नीति । ७९ आयु । ८० वाद । ८१ व्यापार । ८२ धारण । इति विज्ञानानि । १९) B १ हेतुविज्ञान | २ तत्त्वविज्ञान । ३ मोहन । ४ कर्म। ५धर्म। ६मर्म। ७ शंख। ८ दंत। ९काच। १० गुटिका। ११ योग। १२ रसायन। १३ वचन । १४ कवित्व। १५ नेपथ्य। १६ मंत्र । १७ मर्दन । १८ पत्रक। १९ वृष्टिक । २० लेपकर्म। २१ सूत्र । २२ चित्र। २३ रंग। २४ सूचीकर्म। २५ शकुन । २६ छद्म। २७ नैर्मल्य। २८ गंधयुक्ति। २९ आसन । ३० शील। ३१ काष्ठकर्म। ३२ कुंभ। ३३ लोह। ३४ यंत्र । ३५ वंश। ३६ नख । ३७ तृण । ३८ प्रसाद । ३९ धातु। ४० विभूषण। ४१ स्वरोदय । ४२ द्यूत । ४३ अध्यात्म। ४४ अग्नि । ४५ जल। ४६ विद्वपण। ४७ उच्चाटन । ४८ स्तंभन । ४९ वशीकरण । ५० हस्तिशिक्षा। ५१ अश्व । ५२ पक्षि। ५३ स्त्रीकाम। ५४ रत्न। ५५ वस्त्राकार । ५६ पाशुपाल्य । ५७ कृषि। ५८ वाणिज्य । ५९ लक्षण। ६० काल । ६१ शास्त्र। ६२ शस्त्रवंध। ६३ आयुधकार। ६४ नियुद्धकार। ६५ आखेटक । ६६ कुतूहल । ६७ कोश। ६८ पुष्प । ६९ इंद्रजाल। ७० पानविधि। ७१ अशन। ७२ विनोद ।' ७३ सौजन्य। ७४ सौभाग्य। ७५ शौच । ७६ विनय । ७७ नीति । ७८ आयुर्वेद । ७९ व्यापार। ८० धारण । इति विज्ञानानि । १९) ८१ हेतुविज्ञान। २ तत्त्वविज्ञान। ३ मोहविज्ञान। ४ कर्मविज्ञान। ५शंखविज्ञान । ६ काचविज्ञान । ७ गुटिकाविज्ञान । ८ योगविज्ञान । ९ रसायनविज्ञान । १० वचनविज्ञान । ११ कवित्वविज्ञान । १२ नेपथ्यविज्ञान। १३ मंत्रविज्ञान। १४ तंत्र। १५ मर्दन। १६ क्षेत्रक। १७ इष्टिका । १८ लेपन । १९ सूत्र। २० शांति। २१ सचि। * after नीतिविज्ञानं we find आयुर्विज्ञानं । वादविज्ञानं । व्यापारविज्ञानं । and धारणविज्ञानं चेति। ! Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। २२ शकुन । २३ छद्म। २४ नैर्मल्य। २५ गंधयुक्ति। २६ आराम। २७ शैल ।, २८ काव्य। २९ कांस्य। ३० रौप्य। ३१ कांचन। ३२ काष्ट । ३३ लोह। ३४ पत्र । ३५ वंश। ३६ नख । ३७ दशन। ३८ तृण। ३९ प्रसाद। ४० धातु। ४१ भूषण । ४२ स्वरोदय। ४३ द्यूत । ४४ अध्यात्म । ४५ अग्नि । ४६ जल। ४७ विद्वेपण । ४८ उच्चाटन। ४९ स्तंभन। ५० मोहन। ५१ वशीकरण। ५२ संदीपन। ५३ स्वयंभू । ५४ हस्तिशिक्षा। ५५ अश्वशिक्षा। ५६ पक्षि। ५७ स्त्रीकाम। ५८ चरित्र। ५९ वज्रकर। ६० पशुपालन। ६१ कृपि। ६२ वाणिज्य । ६३ लक्षण । ६४ काल। ६५ पान। ६६ शस्त्रवंध। ६७ नियुधकरण। ६८ आखेटक । ६९ कुतूहल । ७० कोश। ७१ पुष्प । ७२ इंद्रजाल। ७३ विनोद । ७४ सौभाग्य । ७५ वस्त्र । ७६ शौच। ७७ आयुरिति । १९) E १ हेतुविज्ञानं। २ तत्त्व। ३ मोहन । धर्मविज्ञानं। ५ कर्मविज्ञानं । ६ मर्म । ७ लक्ष्मी। ८ संयोग। ९ शंख। १० दंत । ११ काक । १२ गुटिका । १३ योग। १४ रसायन । १५ वचन। १६ कवित्व । १७ यंत्र। १८ मंत्र। १९' मर्दन । २० तंत्र। २१ नेपथ्य। २२ खचित। २३ इटिका। २४ लेख्य । २५ सूत्र । २६ चित्रकर्म । २७ शकुन । २८ रंगकर्म । २९ सूचीकर्म । ३० छद्म । ३१ कर्मकार। ३२ नैर्माल्य। ३३ गंधयुक्ति। ३४ आराम। ३५ शील। ३६ कांस्य । ३७ काष्ट । ३८ कुंभ। ३९ लोहपात्र। ४० विश। ४१ नख । ४२ दशन। ४३ तृण । ४४ वशीकरण। ४५ भूतकर्पणं । ४६ वस्तु। ४७ स्वयंभू । ४८ हस्ती। ४९ शिक्षा। ५० पक्षी। ५१ हस्तीकाम। ५२ अश्वशिक्षा। ५३ रत्न। ५४ वस्त्रकार। ५५ चक्र । ५६ वज्राकार । ५७ पशुपाल। ५८ कृपि। ५९ वाणिज्य। ६० लक्षण । ६१ काल । ६२ पानविधि। ६३ अशनविधि। ६४ प्रसाद। ६५ धातु। ६६ विभूपण । . ६७ स्वरोदय। ६८ धृत। ६९ अध्यात्म। ७० अग्निविशेषणं । ७१ उच्चाटनं । ७२ स्तंभनं। ७३ मोहनं। ७४ वंश। ७५ वंध। ७६ नियुद्धकार । ७७ आखेट । ७८ काकु। ७९ कुतूहल। ८० कोश। ८१ पुष्प। ८२ इंद्रजाल। ८३ विनोद । ८४ सौभाग्य । ८५ प्रयोग। ८६ शौच । ८७ ज्ञाननय । ८८ प्रीति । ८९ आयुः। ९० वाद । ९१ व्यापार । ९२ धारणं । ९३ आयुर्वेदाश्चेति ।। १९) F १ हेतुविज्ञान । २ धर्मविज्ञान। ३ चर्मविज्ञान । ४ कर्मविज्ञान । ५ लक्ष्मीयोग। ६शहकर्म । ७ दन्तकर्म। ८ काष्ठकर्म। ९गुटिका । १० रसायन । ११ वचन । १२ कवित्व। १३ यंत्र। १४ मंत्र। १५तंत्र। १६ मर्दन । १७ नैपथ्य। १८ सूतिका । १९ इष्ट । २० लेख्य । २१ सूत्र । २२ चित्रकर्म । २३ रंगकर्म। २४ सूचीकर्म । २५ शाकुनि। २६ छद्मकर। २७ कर्मकर। २८ नैर्मल्य। २९ गंधयुक्ति। ३० आराम । ३१ शैल। ३२ काव्य । ३३ कांस्य । ३४ काष्ठ। ३५ कुंभकर्म । ३६ लोहकर्म । ३७ उपदंश। ३८ पत्र । ३९ वंश। ४० नख। ४१ दशन । ४२ तृण । ४३ प्रासाद । ४४ धातु। ४५विभूपण। ४६ स्वरोदय। ४७ द्यूत । ४८ अध्यात्म । ४९ अस्थिस्तम्भ । ५० जलस्तम्भ। ५१ विद्वेपण । ५२ उच्चाटन । ५३ स्तम्भन । ५४ मोहन । ५५ वशीकरण ।' ५६ वस्तु। ५७ गजशिक्षा। ५८ अश्वशिक्षा। ५९ पक्षिशिक्षा । ६० रत्नकर्म । ६१ वस्त्रकर्म । ६२ वज्रकर्म। ६३ पशुपाल्य । ६८ कृपि। ६५ वाणिज्य । ६६ लक्षण । ६७ कला। ६८ पानविधि। ६९ अशनविधि। ७० अस्त्रवंध। ७१ नियुद्धकरण । ७२ आखेटक। ७३ कुतूहल। ७४ पुप्प। ७५ इन्द्रजाल। ७६ विनोद। ७७ सौभाग्य Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. सविवरण-वस्तुरनकोशः। શ૭ कारण। ७८ प्रयोग। ७९ शौच । ८० ज्ञान। ८१ विनय । ८२ नीति। ८३ आयु । ८४ प्रीति। ८५ व्यापार। ८६ धारणविज्ञान । , १९) G १ हेतुविज्ञान। २ तत्त्वविज्ञान। ३ मोहन । ४ कर्म। ५ धर्म। ६मर्म । ७ शङ्ख। ८ दंत। ९ काच । १० गुटिका। ११ योग। १२ रसायन। १३ वचन । १४ कवित्व। १५ नेपथ्य। १६मंत्र। १७ तंत्र। १८ मर्दन। १९ पत्रक। २० वृष्टिक । २१ लेपकर्म। २२ सूत्र । २३ चित्र । २४ रङ्ग । २५ सूचीकर्म । २६ शकुन । २७ छद्म। २८ नसल्य। २९ गंध। ३० युक्ति। ३१ आसन। ३२ शील। ३३ काष्ठकर्म। ३४ कुंभ। ३५ लोह। ३६ यंत्र। ३७ वंश। ३८ नख । ३९ तृण । ४० प्रसाद । ४१ धातु। ४२ विभूषण । ४३ स्वरोदय। ४४ द्यूत। ४५ अध्यात्म। ४६ अग्नि । ४७ जल। ४८ विद्वेषण। ४९ उच्चाटन। ५० वशीकरण। ५१ हस्तिशिक्षा। ५२ अश्व । ५३ पक्षि। ५४ स्त्री। ५५ काम। ५६ रत्न । ५७ वस्त्रकार । ५८ पाशुपाल्य। ५९ कृषि। ६० वाणिज्य। ६१ लक्षण। ६२ काल। ६३ शास्त्र। ६४ शस्त्रवन्ध । ६५ आयुधकार। ६६ नियुद्धकार। ६७ आखेटक । ६८ कुतूहल । ६९ केश। ७० पुष्प । ७१ इन्द्रजाल। ७२ पानविधि। ७३ अशन। ७४ विनोद । ७५ सौजन्य। ७६ सौभाग्य । ७७ शौच। ७८ विनय । ७९ नीति। ८० आयु । ८१ वाद । ८२ व्यापार। ८३ धारणा। इति विज्ञानानि । २०. चतुरशीतिर्देशाः। पूर्वदेशाः-१ अंजनदेशः। २ गौडदेशः। ३ कान्यकुब्जदेशः। ४ कलिंगदेशः। ५ अंगदेशः। ६ बंगदेशः। ७ कुरंगदेशः । ८ गोलादेशः। ९ राढ्यदेशः। १० वरेन्द्रदेशः। ११ यामुनदेशः। १२ गंगापारदेशः। १३ अंतर्वेदिदेशः। १४ मागधदेशः। ____ मध्यदेशाः-१ कुरुदेशः। २ डाहलदेशः। ३ कामरूपदेशः। ४ कामाक्षदेशः। ५ उंड्रदेशः। ६ पुंड्रदेशः। ७ उड्डीसदेशः। ८ अग्निमुखदेशः। ९पंचालदेशः। १० सूरसेनदेशः। ११ जालंधरदेशः । १२ लोहितपाददेशः। ___ पश्चिमस्थलदेशाः-१ कच्छदेशः। २ वालंभदेशः। ३ सौराष्ट्रदेशः । ४ कोंकणदेशः। ५ लाटदेशः। ६ मालवदेशः। ७ अवंतीदेशः । ८ श्रीमालदेशः। ९ अर्बुददेशः। १० मेदपाटदेशः। ११ मरुदेशः। १२ कंबोजदेशः । १३ पारियात्रदेशः । १४ लोहपुरदेशः । 1 1 B इति चतुराशीति, C अथ चतुराशीति देशा, D चतुर्दशाः। - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। १५ सेरटकदेशः । १६ ‘तामलिप्तदेशः । १७ किरातदेशः । १८ सौवीरदेशः। १९ बोक्काणदेशः। उत्तरापथदेशाः-१ गूर्जरदेशः। २ सिंधुदेशः। ३ केकाणदेशः। ४ नेपालदेशः। ५ टाकदेशः। ६ तुरुष्कदेशः। ७ ताईकारदेशः । ८ बर्बरदेशः। ९ कीरदेशः। १० खसदेशः। ११ काश्मीरदेशः। १२ हिमालयदेशः। १३ श्रीराष्ट्रदेशः। १४ वज्रलदेशः।। दक्षिणापथदेशाः-१ सिंहलदेशः। २ चउडदेशः। ३ कोरलदेशः। ४ पांडुदेशः। ५ आन्ध्रदेशः। ६ विंध्यदेशः। ७ कर्णाटदेशः। ८ द्रविडदेशः। ९ श्रीपर्वतदेशः। १० विदर्भदेशः । ११ धाराधरदेशः। १२ कांजीदेशः । १३ तापीतटदेशः । १४ महाराष्ट्रदेशः। १५ आभीरदेशः । १६ नर्मदातटदेशः । १७ मलयदेशः । १८ वराटदेशः। १९ उरलदेशः। २०) A पूर्वदेशाः-१ अगदेश। २वंगदेश। ३ गौडदेश। ४कन्यकुज। ५ कलिङ्ग । ६ गोष्ट । ७ अंग। ८ वंगाल। ९ कुरंग। १० राठ। ११ वारंध्री। १२ यामुन । १३ सरयूपार । १४ अतर्वेद । १५ मगध । मध्यदेशा:-१ कुरु। २ डाहल । ३ कामरू। ४ उड। ५पंचाल। ६सौरसेन । ७ जालंधर। ८लोहपाद। पश्चिमस्थल-१ वालंभ। २ सौराष्ट्र। ३ कुंकुण । ४ लाट। ५श्रीमाल। ६ अर्बुद । ७ मेदपाट। ८ कच्छ । ९ मालव। १० अवंती। ११ पारियात्र। १२ कंवोज। १३ तामलिप्त। १४ किरात। १५ सेरटक। १६ सौवीर। १७ बीकाण। उत्तरापथ-१ गूर्जर। २ सिंधु। ३ केकाण । ४ नेपाल। ५ तुरष्क। ६ ताजिक। ७ वर्वर। ८ खसकीर । ९ काश्मीर। १० वज्रल। ११ हिमालय। १२ लोहपुर। १३ श्रीराष्ट्र । दक्षिणापथ-१ मलय। २ सीघल। ३ पांड। ४ कोरल। , ५ अंध्र । ६विध्य । ७ कर्णाट। ८ द्रविड। ९ श्रीपर्वत । १० वैदर्भ। ११ विराट। १२ उरल। १३ तापीतट । १४ महाराष्ट्र। १५ आभीर। १६ नार्मद। १७ कामाक्ष। १८ कंडु । १९ पापांतिका। २० चौड। २१ आराढ्य । २२ वरेंद्र। २३ गंगापार । २४ सौसष । २५ कांती। २६ नागणिक। २७ द्वीपदेशाश्चेति । २०) B पूर्वदिशि देशाः-१ अंगदेशः। २वंगदेशः। ३गौडदेशः। ४ कन्यकुब्ज । ५ कलिङ्ग। ६गोष्ट। ७ बगाल। ८ कुरंग। ९ सरठ। १० वारंद्री। ११ यामुन । १२ सरयूपार। १३ अंतर्वेद । १४ मगध। मध्यदेशाः-१ कुरु। २ डाहल। ३ कामरू। ४ उड। ५ पंचाल। ६ सौरसेन । ७ जालंधर। ८ लोहपाद । पश्चिमस्थल-१ वालंभ। २ सौराष्ट्र। ३ कुंकुण। ४ लाट। ५ श्रीमाल | ६ अर्बुद । ७ मेदपाट। ८ मरु। ९ कच्छ। १० मालव। ११ अवंती। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरतकोशः। १२ पारियात्र। १३ कंबोज । १४ तामलिप्त । १५ किरात । १६ सेरटक । १७ सौवीर। १८ बोकाण। उत्तरापथ-१ गूर्जर। २ सिंधु। ३ केकाण ।। ४ नेपाल । ५ तुरष्क। ६ ताजिक। ७ बर्वर। ८ खसकीर। ९ काश्मीर । । १० वज्रल । ११ हिमालय । १२ लोहपुर। १३ श्रीराक्ष। दक्षिणापथ-१ मलय । २ सीधल । ३ पांड। -४ कोरल। ५ अध्र। ६ चिंध्य। ७ कर्णाट। ८ द्रविड। ९ श्रीपर्वत । १० वैदर्भ। ११ विराट। १२ उरल। १३ कांजी। १४ तापीतट। १५ महाराष्ट्र । १६ आभीर। १७ नामर्द । १८ कामाक्ष । १९ कंड। २० पापांतिका। २१ चौड । २२ आराढ्य । २३ वरेंद्र। २४ गंगापार। २५ सौसष। २६ कांती। २७ नागणिक । २८ द्वीपदेशाश्चेति। २०) C१ कुरंग। २ बंगाल । ३ आराध्य । ४ वरणेंद्र। ५ यामन । ६ गंगापार । ७ अंतर्वेध। ८ मागध। मध्य-१ कुरु । । २ डाहल । ३ कामरू। ४ पुंद्रक । ५पंचाल। ६ अग्नि। ७ कास। ८ सूरसेन । ९ जालंधर। १० लोहितपाद । अथ पश्चिमायां दिशि-१ काछल। २ वालंभ। ३ सौराष्ट्र। ४ कुंकण। ५ लाड । ६ श्रीमाल। ७ अर्बुद । ८ मेदपाट। ९ मारू। १० मावल। ११ अवंति। १२ नागणित। १३ किरात । १४ शकट । १५ सौवीर। १६ बोकाण । उत्तरपंथे१ गुर्जर। २ सिंधु। ३ केकाण । ४ नेपाल। ५ तुरुष्क। ६ तायक। ७ बब्बर । ८ बजूर। ९ कीर। १० कश्मीर। ११ हिमालय। १२ लोहपुर। १३ श्रीराज्य । दक्षिणदिशि-१ पांडु। २ कौरल। ३ पाडल। ४ अद्र। ५ वंध्य । ६ कर्कट । ७ द्राविड। ८ श्रीपर्वत । ९ तंद्रभद्र। १० धरानंग। ११ उरल । १२ जीमूत । १३ मुलतान। १४ तापीतट। १५ महातट। १६ महाराष्ट्र । । १७ आभीर । १८ नर्मदातट । १९ कामाक्षा। २० एणदेश। २१ कलिंग। २२ मद्र। २३ सुमंतदेश। २४ द्वीपश्चेति। २०) : पूर्वदिशि-१ गौड। २ कन्यकुब्ज। ३ कलिंग। ४ गोल। ५वंग । ६ कुरंग। ७ बंगाल। ८ आराट। ९ वरेंद्र। १० यामन । ११ गंगापार। १२ अंतर्वेध। १३ मगध। मध्य देश-१ कुरुदेश। २धाहल। ३ कामरूप। ४ बंधु। ५ पुंढ। ६ चोड। ७ मालव। ८ आग्नि। ९पंचाल। १० सूरसेन । ११ जालंधर। १२ लोहितपाद । पश्चिम-१ काच्छल। २ वालंभ। ३ सौराष्ट्र । ४ कुंकण । ५श्रीमाल। ६ अर्बुद । ७ मेदपाट। ८मारु। ९ मच्छ। १० मालवु । ११ पारियात्र। १२ कंवोज । १३ तामलिप्त । १४ अवंती। १५ नागाणित । १६ किरात। १७ शकुंत। १८ सौवीर। १९ कुंकण । २० बोकाण। उत्तर-१ गूजराति । २ सिंधु। ३.नेपाल । ४ गुर्जर। ५ भोट । ६ टाक। ७ तुरष्क। ८ तायक। ९ ववर। १० बूसर। ११ कास्मीर। '१२ वजुर। १३ हिमालय। १४ लोहपुर । १५ श्रीकाष्ठ। १६ स्त्रीराज्य । दक्षिण-१मालय। २ शिधल। ३ कौरिल। ४ पाडल। ५ अंध्र। ६ विंध्य । ७ कर्णाट। ८ द्राविड। ९ श्रीपर्वत । १० वैदर्भ। ११ वैराट। १२ धारउर। १३ लाज। १४ तापीतट। ' १५ महाराष्ट्र । १६ आभीरदेश। १७ नर्मदातट। १८ कामाक्षा। १९ कच। २० पापांतिक । २१ चोढ । द्वीपांतर देश बहु छिं। ' २०) F १ गौड । २ चौड। ३ कान्यकुब्ज। ४ अङ्ग। ५ वङ्ग। ६ कलिङ्ग । ७तिलङ्ग । ८गोल । ९ वगाल । १० आराध्य । ११ वरेन्द्र । १२ यामन । १३ गंगापार। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , सविवरण-वस्तुरनकोशः। १४ अंतर्वेद ।' १५ मागध। मध्य-१ कुरुक्षेत्र। २ डाहल। ३ कामरूप । ४ उन्द्र। ५ पोन्द्र। ६ पञ्चाल। ७ शौरसेन । ८ अग्निमुख। ९मालव । १० जालन्धर। ११ लोहितपाद। पश्चिमायां दिशि-१ काछेल। २ वालंभ । ३ सौराष्ट्र। ४ कुंकण। ५ लाटदेश। ६ स्थलदेश। ७ दमगान। ८ अर्बुद । ९ मेदपाट। १० अवंती। ११ किरात। १२ शकट। १३ सौवीर। १४ कुंकुम । उत्तरापथाः-१ गूजर। २ सिंधु। ३ केकाण । ४ नेपाल। ५ टाक। ६ तुरक। ७ तायक। ८ वर्बर। ९ वर्जर। १० कीर। ११ कास्मीर। १२ हिमालय । १३ लोहपुर। १४ श्रीकाष्ट। दक्षिणस्यां दिशि-१ मलय। २सिंहल। ३ कोरल। ४ पाडल। ५ अध्र । ६ वंध्य । ७ कर्कट। ८ द्रविड । ९ श्रीपथ । १० वैदर्भ। ११ धारउर। १२ लाजी। १३ तापीतट। १४ तोमल। १५ पण्ड । १६ स्त्रीराज्य । दक्षणपथ- १ कर्णाट। २ महाराष्ट्र। ३ आभीर। ४ नर्मदातट । ५ कामाक्षा। ६कंचण। ७ कुंतल। ८ पापीतिक। ९ चौदही । एते देशा द्वात्रिंशत्सहस्राः। , २०) G पूर्वदेशः-१ अंगदेशः। २ बंगदेश । ३ गौडदेश। ४ कन्यकुब्ज । ५ कलिंग। ६ गोष्ट । ७ अंग। ८ बंगाल। ९ कुरंग। १० सरठ। ११ वारंध्री। १२ यामुन । १३ सरयूपार । १४ अंतर्वेद । १५ मगध। मध्य-१ कुरु ।' २ डाहल 1 ३ कामरू। ४ ओड। ५ पंचाल । ६ सौरसेन । ७ जालंधर। ८ लोहपाद । पश्चिमस्थल-१ वालंभ। २ सौराष्ट्र। ३ कुंकुण । ४ लाट । ५ श्रीमाल। ६ अर्बुद । ७ मेदपाट । ८ कच्छ। ९ मालव । १० अवंती। ११ पारियात्र । १२ कंबोज । १३ तामलित। १४ किरात। १५ सेरटक। १६ सौवीर। १७ वोकाण । उत्तरापथ-१ गूर्जर। २ सिंधु। ३ केकाण। ४ नेपाल। ५ तुरष्क। ६ताजिक । ७ घर्वर। ८ खस । ९ कीर। १० काश्मीर। ११ वज्रला। १२ हिमालय । १३ लोहपुर। १४ श्रीराज। दक्षिणापथ-१ मलय। २ सीघल। ३ पांड। ४ कौरल। ५ अंध्र। ६ विंध्य । ७ कर्णाट। ८ द्रविड। ९ श्रीपर्वत । १० वैदर्भ। ११ विराट। १२ ओरल। १३ तापीतट। १४ महाराष्ट्र। १५ आभीर। १६ नार्मद। १७ कामाक्ष। १८ कंदु। १९ पापांतिका। २० चौड। २१ आराध्य । २२ वरेंद्र। २३ गङ्गापार। २४ सौसप। २५ कांती। २६ नागणिक । २७ द्वीपदेशाश्चेति। २१. द्वात्रिंशल्लक्षणस्थानानि । १ वर्गलक्षणं । २ मर्त्यलक्षणं । ३ पाताललक्षणं । ४ तनुलक्षणं । ५ विद्यालक्षणं । ६ विज्ञानलक्षणं । ७ वास्तुलक्षणं । ८ विनोदलक्षणं । ९ वादलक्षणं । १० कलालक्षणं । ११ गीतलक्षणं । १२ वाद्यलक्षणं । १३ नृत्यलक्षणं । १४ रूपलक्षणं । १५ धर्मलक्षणं । १६ अर्थलक्षणं । १७ कामलक्षणं । १८ मोक्षलक्षणं । १९ देशलक्षणं । २० पात्रलक्षणं । 1 C E F लक्षणानि । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः । ३१ २१ समयलक्षणं । २२ पुरुषलक्षणं । २३ ज्योतिष्कलक्षणं । २४ चित्रलक्षणं । २५ स्त्रीलक्षणं । २६ गजलक्षणं । २७ तुरगलक्षणं । ✓ २८ पक्षिलक्षणं । २९ सत्त्वलक्षणं । ३० व्यापारलक्षणं । ३१ वस्तुलक्षणं । ३२ विवेकलक्षणं । इति । २१ ) A B १ स्वर्गलक्षण । २ मृत्यु । ३ पाताल । ४ तत्त्व । ७ ज्ञान । ८ वास्तु । ९ विनोद | ११ कला । १५ नृत्य । १६ कृत्य । १८ अर्थ । १४ वाद्य । २१ देश २८ पक्षि । २२ काल । २९ रत्न । २१ ) C ८ विज्ञान । १५ रूपक । २२ पात्र । २९ तुरग । १ स्वर्ग । ९ वस्तु । १६ धर्म । २३ द्रव्य । ३० धर्म । f २ २ १ स्वर्ग । ९ वाद्य । २१ ) E ८ विनोद । १५ धर्म । २२ समय । २३ पुरुष २९ पान । ३० आहार । १६ अर्थ | । २३ पात्र । ३० सद्व्यापार । पाताल | १० विनोद । १७ अर्थ । १० वाद । १७ धर्म । २४ समय ३१ रन । २४ पुरुष 1 ३१ सत्त्व ३ मृत्यु । १९ वार्ता १८ काम । । २५ पुरुष । ३२ सितहार । ११ नाट्य । १८ मोक्ष । 1 । २५ तुरग । २४ स्त्री । २५ गज । ३१ सद्व्यापार । ३२ २५ स्त्री । मृत्यु । ३ पाताल । ४ तनु । ५ विद्या । १२ वार्ता । १० गीत । १७ काम । ३२ आहार १० वाद् । १७ धर्म । २२. चतुर्विशतिविधं गृहम् । १ प्रासाद । २ आयतनं । 1AB अथ चतु° । ४ तत्त्व । ५ रूप । १२ गीत । ३२ वस्तु १९ मोक्ष । २१) G १ स्वर्गलक्षण । २ मृत्यु । ३ पाताल ७ ज्ञान । ८ वास्तु | 1 १५ नृत्य । ९ विनोद | १६ कृत्यु । २२ काल । २३ पात्र । २८ रन । २९ सद्व्यापार । ३० सत्त्व | ३१ आहार । १४ वाद्य । २१ देश । २४ पुरुष । ५ विद्या । १२ कल्प । १९ काम । २६ स्त्री । २७ गज । ३३ सद्यवस्तु ज्ञानमिति ४ तत्त्व । २६ गज । । । ११ कला । १८ अर्थ | २५ स्त्री । ६ विद्या १३ वाद्य । २० काल । ३ हर्म्यं । इति लक्षणानि । २७ रन । । एतानि शुभलक्षणानि । ६ विज्ञान । २१) F १ स्वर्गलक्षण । ५ विद्यालक्षण | ६ विज्ञानलक्षण | ११ कल्प । १२ गीतलक्षण | २ मृत्युलक्षण । ३ पाताललक्षण । ४ तत्त्वलक्षण | ८ विनोद | ९ वाद | १० कला । ७ वास्तु । १३ वाद्यलक्षण | १४ नृत्यलक्षण | १६ धर्म । १७ अर्थ । १८ काम । १९ मोक्ष । २० काल । २१ पात्र । २३ स्त्रीलक्षण | २४ गज । २६ पक्षि । २९ सत्त्व । ३० वस्तु । ३१ भद्र । १३ नृत्य । १९ देशकाल । २० पात्र । २१ सम्यक । २६ तुरग । २७ पक्षी । २८ रत्त । वस्तुलक्षणं चेति । ५ विद्या । ६ विज्ञान | १३ गीत । २० मोक्ष | १२ कल्प | १९ काम । २६ तुरग । ३२ वस्तुलक्षणानि २७ तुरग । । ४ गृहं । ७ मनु । १४ नृत्य । २१ देश । २८ पक्षी । । ७ वास्तु | १४ रूप । १५ कृत्य । २२ पुरुष । २८ पान । ६ विज्ञान | १३ गीत । २० मोक्ष | २७ पक्षि | । ५ कोश | Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-चस्तुरनकोशः। ६ कोष्ठागारं । ७ पानीयगृहं ।। ८ शौचगृहं । ९ शालागृहं । १० मठस्थानं । ११ सत्रागारं । १२ शृङ्गारगृहं । १३ धर्मस्थानं । १४ विनोदस्थानं। १५ अश्वशाला। १६ गजशाला । १७ वास्तुभुवनं । १८ मंडपं । १९ भोजनशाला। २० तापसशाला। २१ अग्रासनं । २२ आवेशनं । २३ अर्घस्थानं। २४ राजांगणम् । इति । २२) A.१ प्रासाद । २ हर्म्य । ३ आयतन। ४ गृह । ५ कोश। ६ कोष्ठागार । ७ पानीयस्थान। ८ शौचगृह । ९ माल्यगृह। १० मठस्थान। ११ सत्रागार । १२ शृङ्गारगृह। १३ धर्मस्थान। १४ विनोदस्थान। १५ मंडुरा। १६ हस्तिशाला । १७ वासभवन। १८ मंडप। १९ महानस। २० भोजनशाला। २१ अग्रासन । २२ आवेशन। २३ अर्घस्थान । २४ राजांगणं च । २२) B १ प्रासाद। २ हये। ३ आयतन। ४ गृह । ५ कोश। ६ कोष्ठागार । ७ पानीयस्थान। ८ शौचगृह। ९ माल्यगृह । १० मठस्थान। ११ सत्रागार । १२ शृङ्गारगृह । १३ धर्मस्थान। १४ विनोदस्थान। १५ मंदिर। १६ हस्तिशाला । १७ वासभवन। १८ मंडप। १९ महानस। २० भोजनशाला। २१ अग्रासन । २२ अर्घस्थान। २३ राजांगणं च । २२)C १ प्रासाद । २ हयं । ३ आयतन | ४ गृह। ५ कोश। ६कोष्ठागार । ७ पानीयगृह । ८ शौचगृह । ९ शालागृह । १० माल्यगृह। ११ मठगृह । १२ सत्रागार। १३ शंगारगृह । १४ धर्मस्थान। १५ विनोदस्थान । १६ मंदिर। १७ हस्तिशाला । १८ मंडपशाला। १९ अन्नशाला। २० भोजनशाला। २१ शयनशाला । २२ गर्भागार। २३ सत्रास्थान । २४ राज्यांगणं चेति । २२) E १ प्रासाद् । २ आयतन। ३ हर्म्य । ४ गृह । ५ कोश। ६ कोष्ठागार। ७ पानीगृह। ८ धौतगृह । ९ शालागृह । १० माल्यगृह । ११ मठस्थान । १२ सत्रागार । १३ शंगारगृह। १४ धर्मस्थान । १५ विनोदस्थान । १६ मंदुर । १७ हस्तिशाला। १८ वासमंडप। १९ महानसं। २० भोजनशाला। २१ अग्रासनं । २२ आवेशनं। २३ अर्थस्थानं । २४ राजांगणं इति ।। ___ २२) १ प्रासाद । २ हर्म्य। ३ आयतन । '४ गृह । ५ कोश। ६ कोष्ठागार । ७ पानीयगृह । ८ शौचगृह । ९शालागृह । १० मालागृह । ११ मठस्थान। १२ सत्रागार। १३ शंगारस्थान। १० धर्मस्थान । १५ विनोदस्थान । १६ वाजिशाला । १७ हस्तिशाला। १८ वासमंडप। १९ महानस। २० भोजनशाला। २१ अग्रासन । २२ आवेशन । २३ अर्थस्थान । २४ राजांगणं चेति । २२) G१ प्रासाद । २ हर्म्य । ३ आयतन। ४ गृह । ५ कोश। ६ कोष्ठागार। ७ पानीयस्थान। ८ शौचगृह । ९ माल्यगृह । १० मठस्थान। ११ सत्रागार। १२ शंगारगृह । १३ धर्मस्थान । १४ विनोदस्थान । १५ मंदुरा। १६ हस्तिशाला। १७ वासभवन। १८ मंडप । १९ महानस। २० भोजनशाला। २१ अग्रासन । २२ आवेशन । २३ अर्चास्थान। २४ राजांगणं च । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। २३. अष्टोत्तरशतं मङ्गलम् । १ ब्रह्मा। २ विष्णु। ३ महेश्वर । ४ आदित्य । ५ लोकपाल । ६ अग्नि । ७ अमर । ८ सागर । ९ नदी । १० पर्वत । ११ गगन । १२ अहर्गण । १३ गंधर्व । १४ स्कन्द । १५ विनायक । १६ ज्योतिष्क । १७ तीर्थ । १८ द्विज । १९ वर । २० धर्मशास्त्र । २१ वेद । २२ पद्म। २३ पर्वांश । २४ कौस्तुभ । २५ काञ्चन । २६ रूप्य । २७ ताम्र। २८ घृत । २९ मधु । ३० मद्य। ३१ सिद्धान्त । ३२ चंदन । ३३ श्वेतवस्त्र । ३४ वेश्या । ३५ रोचना। ३६ मृत्तिका । ३७ गोमय । ३८ शस्त्र । ३९ अंजन । ४० ओषध । ४१ मणिमय । ४२ शिला। ४३ मोदक । ४४ शंख । ४५ प्रियङ्ग। ४६ वाच । ४७ पुष्प । ४८ श्रुत । ४९ सर्षप । ५० दधि । ५१ दूर्वा । ५२ अक्षत । ५३ उदंबर। ५४ आम्र। ५५ छत्र। ५६ वादिन। ५७ हस्ति । ५८ मुक्ताफल । ५९ खंजरीट। ६० वृष । ६१ ध्वज । ६२ हंस । ६३ कन्या । ६४ दर्पण । ६५ पीठ । ६६ कुश । ६७ तुरंग । ६८ वेणु । ६९ वीणा। ७० ध्वनि । ७१ सिंघ । ७२ मेघ । ७३ स्वस्तिक । ७४ तोरण । ७५ कुंभ । ७६ चामर । ७७ गौ सवत्सा । ७८ आईमांस । ७९ स्त्री सवत्सा । ८० वाहन । ८१ प्रदान । ८२ विद्या। ८३ पानीय । ८४ तुष्टि । ८५ पुष्टि। ८६ प्रसाद। ८७ उल्लोच । ८८ सत्य । ८९ पूर्णपात्र । ९० आर्द्रशाक । ९१ आमिष । ९२ पिप्पलपत्र । ९३ श्रीवृक्ष । ९४ तालवृक्ष । ९५ पूजा । ९६ निधि । ९७ नर । ९८ सहया । ९९ गौरी । १०० गङ्गा । १०१ सरस्वती । १०२ नर्मदा। १०३ यमुना । १०४ कमला । १०५ सिद्धि । १०६ प्रीति । १०७ कीर्ति । १०८ बीज । इति । 1 AG drop अष्टो... लम् । BC अष्टोत्तरशतमंगलानि ।। अष्टोत्तरशतमंगलानां स्थानानि । F अष्टोत्तरशतं मंगलानि । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રેષ્ઠ सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । २३ ) A १ ब्रह्मा । २ विष्णु । ३ महेश्वर । ४ स्कन्द । ५ आदित्य | ६ लोकपाल । ७ अग्नि । ८ अमर । ९ सागर । १० नदी । ११ पर्वत । १२ गगन । १३ ग्रह । १४ गण । १५ गंधर्व । १६ चन्द्र । १७ विनायक । १८ ज्योतिष । १९ धर्मशास्त्र । २० द्विजवर । २१ वेद । २२ पद्म । २३ प्रदीप । २४ कौस्तुभ । २५ कांचन । २६ रूप्य । २८ घृत । २९ मधु । ३० मद्य ३६ मृत्तिका । } । ३१ सिद्धान्त । ३७ गोमय । ३२ चंदन । ३३ सितवस्त्र । ३८ शस्त्र । ३९ अजन | ३५ रोचना । ४१ अक्षत । ४२ रत्नमणि । ४३ मोदक | ६३ दर्पण । ६४ मत्स्य । ६५ तुरंगम । ७२ तोरण ४७ श्वेतपुष्प | ४८ सर्षप । ४९ दधि । ५० आम्र ५४ हस्ति । ५५ बीजपूरक । ५६ मुक्ताफल | ६० ध्वज । ६१ हंस । ६२ कन्या । ६७ वीणा । ६८ ध्वनि । ६९ सिंह । ७० मेघ । ७१ स्वस्ति ७४ चामर । ७५ गौ सवत्सा । ७६ आर्द्रमांस । ७७ स्त्री सपुत्रा । ७८ वाहन विद्या । ८१ पानीय । ८२ पुष्टि । ८३ तुष्टि । ८४ प्रसाद । ८५ उल्लोच । ८७ आर्द्रशाखा । ८८ प्रियवाक्य । ८९ श्रीवृक्ष । ९० तालवृंत । ९१ पूजा ९३ नरसहस्र । ९४ गौरी । ९५ गंगा । ९६ सरस्वती । ९७ नर्मदा | ९९ सिद्धपीठ | १०० कीर्त्ति । इति मंगलानि ।, ; ८०, । $ । ४४ शङ्ख । ५१ उदुंबर ५७ दूर्वा । ४५ प्रियङ्गु । । ५२ छत्र । ५८ खंजरीट । · ४८ सर्षप । ४३ मोदक | ४९ दधि । ५५ मुक्ताफल । ४७ श्वेतपुष्प । ५३ हस्ति । ५९ ध्वज । ६६ वीणा । 1 ५४ बीजपूरक । ६० हंस । ६१ कन्या । ६२ दर्पण । ६७ ध्वनि । ६८ सिंह । ६९ मेघ । ७३ चामर । ७४ गौ सवत्सा । ७५ आर्द्रमांसं । ७६ स्त्री सपुत्रा ७९ विद्या । ८० पानीय | ८१ पुष्टि । ८२ तुष्टि । ८५ पूर्णपात्र । ८६ आर्द्रशाखा । ८७ प्रियवाक्य | ९० पूजा । ९१ निधि । ९२ नरसहस्र । ९३ गौरी ९६ नर्मदा । ९७ यमुना । ९८ कमला । ९९ सिद्धपीठ । । ५० आम्र । ५६ दूर्वा । ५७ ६३ मत्स्य । ७० स्वस्ति । í ४५ - प्रियंगु ५१ उदंबर | खंजरीट । । ६४ तुरंगम ७१ तोरण ६ २० २३ ) B १ ब्रह्मा । २ विष्णु । ३ महेश्वर । ४ स्कन्द । ५ आदित्य । ७ अग्नि । ८ अमर । ९ सागर । १० नदी । ११ पर्वत । १२ गगन । १३ ग्रह । १५ गंधर्व । १६ चन्द्र । १७ विनायक । १८ जोतिष । १९ धर्मशास्त्र । २१ वेद् । २२ पद्म । २३ - प्रदीप । २४ कौस्तुभ । २५ कांचन । २६ रूप्य २८ घृत । २९ मधु । ३० मद्य । ३५ रोचना । ४१. अक्षत । ४२ रत्तमणि । । ३२ चंदन । ३३ सितवस्त्र । ३१ सिद्धान्त । ३७ गोमय । ३६ मृत्तिका । ३८ शस्त्र । . ३९ अजन | . ४४ शंखं । ७७ वाहन ८३ प्रसाद । ८८ श्रीवृक्ष ! ९४ गंगा । | । ~ । । । २७ ताम्र | (३४ वेश्या । ४० ओषध । ५३ २६ रूप्य । ३३ श्वेतवस्त्र । । ३९ अंजन । ४६ जव । वादित्र । ५९ वृषभ । ६६ गीत । ७३ कुंभ | ७९ प्रदान ८६ पूर्णपात्र । ९२ निधि । ९८ यमुना । लोकपाल 1 १४ गण | द्विजवर ! २७ ताम्र ३४ वेश्या । 2 ४० ओषधं । ४६ जव । ५२-छत्र । ५८ वृषभ । ६५ गीत । ७२ कुंभ । ७८ प्रदान । ८४ उल्लोच । 3 ८९ तालवृंत । ९५ सरस्वती । १०० कीर्ति । इति मंगलानि । 1 " '२३ ) C'१ ब्रह्मा । २ विष्णु । ३ महेश | ४ स्कन्द | ५ आदित्य | ६ लोकपाल । ७ अग्निपाल । ८ अमर । ९ सागर । १० नदी । ११ पर्वत । १२ गगन । १३ ग्रहण | १४ गांधर्व । १५ चंद्र । १६ विनायक । १७ ज्योति । १८ तीर्थाधि । १९ धर्मशास्त्र । २० वेद । २१ पद्म । २२ पर्यंत । २३ कौस्तुभ । २४ कांचन । २५ भूमि ३२ चंदन । २८. घृत् । २९ मद्ये । ३० मधु । ३१ सिद्धान्त । ३५ गोरोचन । ३६ मृत्तिका । ३७ गोमय । ३८ वस्त्र । २७ ताम्र । ३४ वेश्या । ४० ओषध । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ४१ रत्न । ४२ अन्न । ४३ मोदक । ४४ शङ्ख। ४५ प्रियङ्गुः । ४६ वाक। ४७ श्वेतपुष्प । ४८ सर्षप ।' ४९ दधि । ५० दूर्वा । ५१ अक्षत । ५२ उदंबर। ५३ आम्र । ५४ छत्र। ५५ वाद्य । ५६ दर्भ। ५७ हस्ति । :५८ वाजि। ५९ मुक्ताफल। ६० खंजरीट। ६१ वृषभ। ६२ राजहंस। ६३ कन्या.। ६४ दर्पण। ६५ दीप। ६६ अंकुश । ६७ गो सवत्सा।। ६८ आर्द्रमांस। ६९ रेणु । ' ७० वीणा। ७१ ध्वनि । ७२ सिंह। ७३ मेघ । ७४ स्वस्तिक। ७५ तोरण । ७६ कुंभ । ७७ चामर। ७८ विद्युत् । ७९ गीत । ८० मत्स्य। ८१ स्त्रीपुरुष। ८२ सपुत्रा स्त्री। ८३ वाहन । ८४ विद्या । ८५ पानीय। ८६ पुष्टि। ८७ तुष्टि। ८८ पूर्णकलश । ८९ प्रसाद । ९०, उल्लोच । ९१ मंदिर । ९२ शय्या। ९३ पूर्णपात्र । ९४ आर्द्रशाक । ९५ पिप्पलपत्र । ९६ गंगा। ९७ यमुना। ९८ श्रीवृक्ष । ९९ पूजाविधि । १०० निधि । - १०१ सिद्धि । १०२ जीति । १०३ कीर्ति । १०४ गौरी। १०५ यशश्चेति । २३.) E१ ब्रह्मा। २ विष्णु। ३ महेश्वर। ४ चंद्र। ५ सूर्य । ६ लोकपाल 1 ७ अग्निपाल। ८ अमर । ९ सागर। १० नदी। ११ पर्वत । १२ गगन । १३ ग्रहण । १४ गंधर्व । १५ नायक । १६ स्वज्योतिष । १७ तीर्थ । १८ द्विजवर । १९ धर्मशास्त्रविद् । २० समपंथ। २१ कौस्तुभ । २२ कांचन ।। २३ रूप्य । २४ ताम्र। २५ मधु । २६ मद्य । २७ सिद्धान्त । २८ चंदन। २९ श्वेतवस्त्र। ३० वेश्या । ३१ गोरोचन । ३२ मृत्तिका। ३३ गोमय । ३४ शास्त्र। ३५ भाजने । ३६ ओषधी। ३७ कमल । ३८ मध । ३९ शय्या । ४० पोत । ४१ प्रियवाक्य । ४२ प्रीति । ४३ रत्न । ४४ मणिशाला। ४५ मोदक । ४६ शंख । ४७ प्रियंगु । ४८ वचा। ४९. श्वेतपुष्प । ५० सर्षप । ५१ दधि । '५२ दूर्वा । ५३ अक्षत। ५४ चंदन । ५५ वंदन। ५६ माला। ५७ उदंवर । '५८ आम्ल । ५९ छत्र । ६० वादिन। ६१ हस्ति। ६२ बीजपूर ।। ६३ मुक्ताफल । ६४ खंजरीट। ६५ वृषभ। ६६ हंस । ६७ कन्या। ६८ दर्पण । ६९ पीठ । ७० कुश। ७१ तुरंगम। ७२ गीत। ७३ वेणु। ७४ सिंह। ७५ मेष । ७६ मेघ । ७७ स्वस्तिक । ७८ तोरण । '७९ कुंभ। ८० चामर। ८१ सवत्सा गौ। ८२ आर्द्रमांस। ८३ स्त्रीपुत्र । ८४ वाहन । ८५ विप्रदान। ८६ विद्या। ८७ आर्द्रामलक। ८८ आमिष। ८९ पिप्पल । ९० श्रीवृक्ष। ९१ तालवृक्ष। ९२ पूजा। ९३ निधि। ९४ नगरनायक। ९५ गौरी। ९६ गंगा। ९७ सरस्वती। ९८ यमुना। ९९ नर्मदा। १०० प्रसिद्धा । १०१ कीर्तयश्चेति मंगलम् ।। .. . २३) १ ब्रह्मा। २ विष्णु । ३ माहेश्वर । ४ वीतराग। ५ स्कन्द । ६ आदित्य । ७ लोकपाल। ८ गान्धर्व । ९चंच। १० विनायक। ११ ज्योतिष्क। १२ तीर्थ । १३ द्विज। १४ धर्मशास्त्र। १५ वेदशास्त्र। १६ पुराण । १७ पद्म। १८ पर्यक। १९ कौस्तुभ। २० कांचन । २१ रूप्य । २२ तान्न। २३ घृत। २४ मद्य । २५ मधु । २६ सिद्धांत । २७ श्वेतांवर। २८ गोरोचन । २९ मृत्तिका। ३० अग्नि। ३१ अमर। ३२ सागर। ३३ नदी। ३४ पर्वत। ३५ गगन । ३६ ग्रहण। ३७ गोमय । ३८ शस्त्र। ३९ अजन। ४० ओषधीरत्त। ४१ मनशाला। ४२ मोदक । ४३ संरक। ४४ वाजिन ।४५ प्रियंगु। ४६ श्वेतपुष्प । ४७ सर्पप ।- ४८ द्धि। ४९ दूर्वा । '५० अक्षत। ५१ आम्र। ५२' उदुम्बर। ५३ छत्र। ५४ वाजिन। ५५ दर्भ। ५६ हस्ति। ५७ वीजपूर । ५८ मुक्ताफल । ५९ खअरीट। ६०,वृषभ। ६१ राजहंस । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः । ६४ प्रदीप । ६५ अंकुश । । । ७० ध्वनि । ७१ भूमि । ७२ सह ७६ कुंभ । ७७ चमर । ७८ सर्व 1 ८१ स्त्रीपुरुषजुग्म । ८२ वाहन । ८३ प्रदान | ८४ विद्या ८७ पुष्टि । ८८ प्रसाद् । ८९ उल्लास । ९० मदिरा । ९३ आईशाक । ९४ पिप्पलपत्र | ९५ श्रीवृक्ष फल | ९८ निधि । ९९ गौरी । १०० गंगा । १०१ सरस्वती । १०४ तप्ती । १०५ गोदावरी । १०६ सिद्धि । १०७ प्रीति । १ ब्रह्मा । २ विष्णु । ३ महेश्वर । ९ सागर । १० नदी । २३ ) G ७ अग्नि । १४ गण । २० शास्त्र । २६ कांचन ३३ चंदन । ३६ ६२ कन्या । ६८ वेणु । ६९ वीणा । ७५ तोरण | ६३ दर्पण | ८ अमर । १५ गंधर्व । १६ चंद्र | । २१ द्विजवर २७ रूप्य । २८ ताम्र । ३४ सितवस्त्र । २२ वेद ४० अंजन | ४६ प्रियंगु । ५२ उदुम्बर । । ५८ दूर्वा ६४ दर्पण | ७० सिंह । ७१ ३९ शस्त्र । ४५ शंख | ५१ आम्र । ५७ मुक्ताफल .६३ कन्या । ६९ ध्वनि । ७६ गौ । ७७ सवत्सा | ८२ प्रदान । ८३ विद्या । ८८ उल्लोच । ८९ पूर्णपात्र । ९३ तालवृंत । ९४ पूजानिधि । ९९ नर्मदा । १०० यमुना । । २९ १७ विनायक । २४) C adds चेति after दानानि । २३ पद्म । घृत । ३६ रोचना । ३५ वेश्या । ४९ औषध । ४७ जव । ४२ अक्षत । ४८ श्वेतपुष्प ५४ वादित्र । ५३ छत्र । ५५ ५९ खंजरीट | ६० वृषभ । २५. पञ्चविधं यशः । १ ज्ञानकृत । २ प्रतापकृत । ५ रूपकृत । इति । ६६ तुरंग । ७३ मेघ । ७९ गौ । ४ स्कन्द । ५ आदित्य | ६ लोकपाल । ११ पर्वत । D उभयदान । पूर्णदान । उपायकरदान । E द्रव्यविद्यादिदानं । E अभय उपकारद्रव्य । * ८५ पानीय ९१ सैन्य । ८० आर्द्रमांस | । ८६ तुष्टि | ९२ वोर्णपात्र । ९७ पूजा । ९६ तालवृक्ष । १०२ नर्मदा । १०३ यमुना । १०८ कीर्त्तयश्चेति । २४ प्रदीप | । ३० मधु । ३९ मद्य ३७ मृत्तिका । ४३ रत्नमणि । । ६७ गीत । ७४ स्वस्तिक । १२ गगन | १८ ज्योतिष । ६५ मत्स्य । ६६ तुरंगम | ६७ गीत । । मेघ । ७२ स्वस्ति । ७३ तोरण । ७४ कुंभ ७८ आई । ७९ मांस । ८० स्त्री सपुत्रा । ८४ पानीय । ८५ पुष्टि । । ८६ तुष्टि ९० आर्द्रशाखा । ९१ प्रियवाक्य | ९५ नरसहस्त्र । ९६ गौरी । १०१ कमला । १०२ सिद्धपीठकीर्त्ति । ९७ गंगा । * ४९ सर्षप । हस्ति । ५६ ६१ ध्वज । २५ कौस्तुभ | ३२ सिद्धांत । ३८ गोमय । १३ ग्रह । १९ धर्म । २४. त्रिविधं दानम् । १ अभयदान । २ उपकारदान । ३ द्रव्यदान । इति दानानि । ४४ मोदक | ५० दधि । वीजपूरक । ६२ हंस । ६८ वीणा । ७५ चामर । ८१ वाहन । ८७ प्रसाद । . ९२ श्रीवृक्ष । ९८ सरस्वती । इति मंगलानि । ३ पराक्रमकृत । ४ स५. पा कृत । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। २५) A १ शानकृतयश। २ प्रतापयश । ३ पराक्रमयश। ४ सदाचारयश । ५ वर्णन । B १ ज्ञानकृतयश। २प्रतापयश । ३ सदाचारयश । ४पराक्रमयश । ५वर्णन। C१ शानकृतं। २ प्रतापकृतं । ३ पराजयकृतं । ४ जन्मकृतं। ५ सदाचार वर्तितमिति। D १ जनतन्वतां यशः। २ प्रतापः। ३ कीर्ति । ४ पराक्रमः। ५ रूपसदाचार, वर्णकृतश्चेति। - १ जन्मरूपं। २ बालकृतं । ३ प्रतापकृतं । ४ कीर्तिरूपं । ५ पराक्रमरूपं । G १ ज्ञानकृतयश । २ प्रतापयश । ३ पराक्रमयश । ४ सदाचारयश। वर्णन । २६. सप्तविधा कीर्तिः। १ दानकीर्ति । २ पुण्यकीर्ति । ३ काव्यकीर्ति । ४ वक्तत्वकीर्ति। ५ वर्तनकीर्ति । ६ शौर्यकीर्ति । ७ विद्वज्जनकीर्ति । इति । २६) AB १ दानकीर्ति । २ पुण्य । ३ वर्तन । ४ विज्ञान । ५ काव्य । ६ वक्तृत्व । D १ दानकीर्तिः। २ पुण्यकीर्ति। ३ विद्वजनकीर्ति। ४ वकृत्वकीर्ति । ५ काव्यकीर्ति। ६ वर्तनकीर्ति। ७ सूर्यकीर्ति।। E १ दानकीर्ति । २ पुण्यकीर्ति। ३ विद्वजनसंगतिकीर्ति । ४ वकृत्वकीर्ति । ५ काव्यवर्तन। ६ शौर्य । ७ गीतिकीर्तिश्चेति । F१ दानकीर्ति। २ पुण्यकीर्ति। ३ द्विविधजनकीर्ति । ४ वक्रोक्तिकीर्ति । ५काव्यकीर्ति। ६ आवर्तनकीर्ति। ७ शौर्यकीर्तिः। , G १ दानकीर्ति । २ पुण्य । ३ वर्तन । ४ विज्ञान । ५ काव्य । ६ वक्तृत्व । २७. नव रसाः। १.शृङ्गार । २ हास्य । ३ करुण। ४ रौद्र । ५ वीर । ६ भयानक । ७ बीभत्स । ८ अद्भुत । ९ शान्त.-इति रसाः। 1 A B D G अष्टौ रसाः । E नव नाट्यरसाः। C omits this Sūtra and Vivarana. 2 AB शान्तरस। D शान्ताश्च। B शांत इति । _ शांत नवधा रसाः। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રૂ २८. एकोनपञ्चाशद् भावाः । .. १ रति । २ हास्य । ३ उत्साह । ४ विस्मय । ५ क्रोध । ६ शोक | " ७ जुगुप्सा। ८भय। ९ स्तंभ । १३ वेपथु । १४ विवर्ण । १८ ग्लानिं । २३ आलस्य । २८ धृति । ३३ हर्ष । ३८ निद्रा । ४२ उग्रता । ४७ वितर्क । ३२ स्वरभेद । ३८ ग्लानि । १९ शंका | २४ दैन्य । २९ क्रीडा । ३४ विवाद | ४८ त्रास । ३२ विरक्ति । ३८ विपत्ति । ४४ उद्योत । i ३९ सुप्ता । ४३ उन्माद । सविवरण- वस्तुरनकोशः । २८ ) AB १ रति । २ हास । जुगुप्सा १४ हर्पता । २० औत्सुक्य | । ८ भय । ९ स्तंभ | १५ जडता । २१ गर्व । २६ अमर्प । २७ उन्माद | ३३ रोमांच | ३९ शंका | ४४ मोह । ४५ स्मृति । इति भावाः । } २८ ) C १ रति । ७ ग्लानि । १४ धृति । २० विपाद । २६ वोध । ३० २१ असुख २७ अमर्प । । ४९ ३३ वितर्क । ३९ व्यावृत्ति ४५ नीरसता १० स्वरभेद । ११ स्वेद' । '१२ रोमांच । १५ अश्रु । १७ निर्वेद | २० असूया । २५ चिंता । चपलता । ४० श्रम । ४६ अवहित्थ | १० स्वेद । १६ मति । t २२ अपस्मार । २८ उग्रता । ३४ वेपथु । 4 ३५ असुख । ४० विबोध ।' ४४ मति । मरण । इति । २ हा । ३ उत्साह । ८ शंका | ९ श्रम । १० आलस्य । १५ क्रीडा । १६ चपलता । २२ गर्व | २८ उग्रता । ३४ संतोप । । १६ प्रलय । ३ उत्साह । ४ विस्मय | । ४० प्रशंसा ४६ तितिक्षा । ३१ जडता । 1 ३६ गर्व । २१ मूढ २६ मोह ४१ आलस्य । ४७ विदा | १७ गूढ | २३ निद्रा । २९ व्याधि | ३५ वैवर्ण्य | '४१ अवभिषा ( हित्थ ) । ४५ व्याधि । ४६ विरक्त | १७ जडता । । ११ स्ववृत्ति । १२ व्रीडा | १८ आवेग । ४ विस्मय । ११ चिंता । २३ अपस्मार । २९ उन्माद | ३५ विचार । | 4 । ३२ आवेश । T ३७ अपस्मार । २४ सुप्त । ३० वितर्क २२ श्रम । २७ स्मृति । ५ क्रोध । ४२ दैन्य । ४८ प्रलाप । ३६ अश्रु । २४ निद्रा । ३० मति । ३६ विध्वंस | । .५ शोक १२ मोह । १८ हर्प । ६ शोक । १३ चपलता । १९ विषाद । २५ विबोध | ३१ त्रास | ३७ निर्वेद | ४३ चिंता । ४९ मरणांत । 1 । ६ क्रोध । १३ स्मृति । '१९ आवेश । - २५ स्वपन । ३१ व्याधि । ३७ विश्लेष । 4 ४१ कारुण्य । ४२ दंभ । ४७ त्रास | ४८ मरण । चेति । ४३ मान । २८ ) E १ रति । २ हास । ३ शोक । ४ क्रोध । ५ उत्साह । ६ भय । ७ जुगुप्सा 1 ८ विस्मय । ९ शम । १० स्तंभ | १५ विवर्ण । १६ अश्रु । १७ प्रलाप । ११ स्वेद् । १२ स्वरभेद् । १८ निर्वेद । १९ ग्लानि । १३ रोमांच । १४ वेपथु । २० शंका | २१ असूया । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। २२ मद । २३ प्रमोद । २४ आश्रम । २५ आलस । २६ दैन्य । २७ चिंता । २८ मोह । २९ स्मृति । ३० धृति । ३१ क्रीडा । ३२ चपलता। ३३ जडता। ३४ हर्षे । ३५ मति । ३६ मूढ । ३७ आवेश। ३८ विषाद। ३९ आसुख। ४० औत्सुक्य । ४१ गई । ४२ अपस्मार । ४३ निद्रा। ४४ स्वप्न। ४५ विवोध। ४६ अमर्षे । ४७ उत्सर्गः। २८) F१ रति । २ हास । ३ शोक । ४क्रोध । ५ उत्साह । ६ भय । ७ जुगुप्सा। ८ विस्मय। ९स्तम्भ । १० स्वेद। ११ स्वरभेदाः। १२ रोमाञ्चाः। १३ वेपथु । १४ विवर्णता। १५ अश्रु । १६ प्रलाप । १७ निवेद । १८ ग्लानि । १९ शंका । २० असूया। २१ आश्चर्य । २२ आलस्य । २३ देश्य । २४ चिंता। २५ दैन्य । २६ अशौच । २७ मद । २८ श्रम । २९ मोह । ३० स्मृति । ३१ धृति । ३२ व्रीडा । ३३ च[प]लता। ३४ जडता । ३५ हर्ष । ३६ आवश्य। ३७ विषाद । ३८ असुख । ३९ गर्व । ४० उत्सुक्य । ४१ अपस्मार। ४२ निद्रा। ४३ स्वप्न । ४४ विवोध । ४५ अमर्ष । ४६ उग्रता । ४७ उन्मद । ४८ मति । ४९ व्याधि। ५० रक्त। ५१ वितर्क। ५२ त्रास । ५३ मरणं । चेति । ....: २८) G १ रति। २.हास। ३ उत्साह । ४ विस्मयः। ५ क्रोध। .६.शोक । ७ जुगुप्सा। ८ भय। ९स्तंभ। १० स्वेद । ११ स्ववृत्ति। १२ वीडा । १३ चपलता। १४ हर्षता। १५ जडता। १६ मतिमूढ । १७ आवेग। १८ विषाद । १९ औत्सुक्य । २० गर्व । २१ अपस्मार । २२ निद्रा । २३ सुप्त । २४ विवोध । '२५ अमर्ष। २६ उन्माद । २७ उग्रता। २८ व्याधि । २९ रव । ३० तर्क । ३१ त्रास । ३२ स्वरभेद । ३३ रोमांच । ३४ वेपथु। ३५ वैवर्ण्य । ३६ अस्तु । ३७ प्रलाप । ३८ निर्वेद । ३९ ग्लानि । ४० शंका। ४१ श्रम । ४२ आलस्य । ४३ दैन्य । ४४ चिंता । ४५ मोह। ४६ स्मृति । ४७ अवहित्थ । ४८ विदाघ। ४९ मरणांत । इति भावाः। २९. *चत्वारोऽभिनयाः। - ३०: चतस्रो वृत्तयः। १ सात्वती। भारती। ३ कैशिकी। ४ आरभटी । इति ३०)A१ सात्वती। २ भारती। ३ कैशकी। ४ आरभटी। . . B १ सात्वती। २ भारती। ३ कोशकी। : ४ आरभटी। ! C१ भारती। २ शाश्वती। ३ कौशिकी।४'आरभटी चेति । STD: १ सात्त्विकी । २ भारती। ३ कैशिकी। ४ आरभटी चेति ।.. E १ भारती। २ सारस्वती। ३ कौशिकी। ४ आर्भटी। F १ भारती। २ सात्विकी। ३ कौशिकी। ४ आरभटी। G १ सावत्ती। २ भारती। ३ कौशकी। ४ आभरटी। * There is no Vivai aņa of this sūtia given in the Mss. though the sūtra 18 mentioned in the contents 1 Ediops चतस्रो वृत्तयः । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ३१. चत्वारो महानायकाः । १ धीरोद्धत । २ धीरोदात्त । ३ धीरललित । ४ धीरशान्त । इति । ३१ ) A १ धीर । २ वीरोदात्त । २ उद्धत । B १ धीर । C 1 gives no Vivaraṇa DEF १ धीरोद्धत । २ धीरोदात्त । ३ धीरललित | G १ धीर । २ उद्धत । ३ वीरोदात्त । सविवरण- वस्तुरनकोशः । ३२. चत्वारो नायकाः । १ अनुकूल । ३२) C १ अनुकूल । D १ दक्षिणः । E १ दक्ष । F१ अनुकूल । २ दक्षिण । 1 A G नायक । B नायक । ३ धीरललित । ३. वीरोदात्त । २ दक्षिण । २ अनुकूल । २ अनुकूल । २ दक्ष | ** ३ शठ । ४ उद्धत । ४ वीरललित । ३ धृष्ट । ३ शिव । ३ शठ । ३ शत । **** ४ धीरोपशांत । ४ वीरललित | ४ धृष्ट । इति । ४ पडश्च । ४ धृष्टश्वेति । ४ धृष्टश्वेति । ४ धृष्टश्चेति । ३३. द्वात्रिंशद् नायकगुणाः । १ कुलीन । २ शीलवान् । ३ वयस्थ । ४ शूरवान् । ५ संततव्यय । ६ प्रीतिवान् । ७ सुराग । ८ सावयववान् । ९ प्रियंवद । १० कीर्ति११ त्यागी । १२ विवेकी । १३ शृङ्गारवान् । १४ अभिमानी । वान् । १६ समुज्वलवेषः । २२ सुगंध । १५ श्लाघ्यवान् । १७ सकलकलाकुशल | १८ सत्यवंत । १९ प्रिय । २० अवदान । २१ सुजन । २३ सुवृत्तमंत्र । २४ क्लेशसह । २५ प्रदञ्चपध्यः । २७ उत्तमसत्य । २८ धर्मिष्ठमहोत्साही । २९ गुणग्राही । ग्राही । ३१ क्षमी । ३२ परिभावक । इति । २६ पंडित । ३० सुपात्र 2 G नायिकाः 3 A द्वात्रिंशणनायक 1; E द्वात्रिंशहुगो नायक: 1, R द्वात्रिंशगुणो नायकः । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ४१ ३३) A १ कुलीन। २ शीलवान् । ३ वयस्थ। ४ शौचवान् । ५ स्वतंत्र । ६सावयव । ७ प्रीतिमान् । ८ प्रियंवद । ९ सुभग । १० सत्यवान् । ११ कीर्तिवान् । १२.त्यागी। १३ विवेकी। १४ शृङ्गारी। १५ अभिमानी। १६ श्लाघावान् । १७ समुजवलवेष ।' १८ शयाशी। १९ सकलकलाकुशल। २० सत्यासह । २१ श्रद्दधान । २२ सुगंध । २३ सुवृत्त। २४ मंत्र। २५ क्लेशसह। २६ भाषापंडित। २७ उत्तमसत्य । २८ धर्मिष्ठ । २९ महोत्साह । ३० गुणग्राही । ३१ क(?क्ष)मी । ३२ परिभावुक। ३३) B१ कुलीन । २ शीलवान् । ३ वयस्थ । ४ शौचवान्। ५ स्वतंत्र । ६ सावयव । ७ प्रीतिमान् । ८ प्रियंवद। ९ सुभग। १० सत्यवान् । ११ कीर्तिमान् । १२ त्यागी। १३ विवेकी। १४ शृङ्गारी। १५ अभिमानी। १६ श्लाध्यवान् । १७ समुजवलवेषः। १८ शयाज्ञ। १९ सकलकलाकुशल। २० सत्यावसह । २१ श्रद्धावान् । २२ सुगंध। २३ सुवृत्त । २४ मंत्र । २५ क्लेशसह । २६ भाषापंडित । २७ उत्तमसत्य । २८ धर्मिष्ठ। २९ महोत्साह। ३० गुणग्राही। ३१ क्षमी। ३२ परिभावुकः। ३३) E १ कुलीन। २ शीलवान् । ३ वयस्थ । ४ शौचवान् । ५प्रियंवद । ६ संततव्यय। ७ प्रीतमना। ८ सुभग । ९ विनयवान् । १० त्यागी। ११ विवेकी । १२ शृङ्गारवान् । १३ अभिमान। १४ श्लाघ्य। १५ समुज्वलवेष । १६ सकलकलाकुशल। १७ सत्यवान् । १८ प्रियः। १९ सुवृत्तः। २० अवदात। २१ स्वजन । २२ सुहृद । २३ [श्रद्दधान । २४ सुगंधप्रिय । २५ मंत्रवान् । २६ क्लेशसह । २७ प्रदत्ता। २८ प्रकाशकः । २९ पंडित । ३० उत्तम । ३१ ससत्त्व। ३२ धार्मिक। ३३ महोत्साही । ३४ गुणग्राही। ३५ क्षमा[वान्]। ३६ परिभाषिकश्चेति । ___३३) F १ कुलीन। २ शीलवान् । ३ वयस्थ । ४ शौचवान् । ५ संततव्ययी। ६ प्रतिभावान् । ७ शुभग। ८ विनयवान् । ९ कीर्तिमान् । १० त्यागी। ११ विवेकी । १२ शृङ्गारी। १३ अभिमानी।। १४ श्लाघावान् । १५ समुज्वलवेष । १६ सकलकलाकुशल। १७ सत्यवान् । १८ प्रिय । १९ अवदान । २० स्वजनप्रियः। २१ सुगंधप्रियः। २२ सुवृत्त । २३ मंत्रवान् ।' २४ क्लेशापहारी। २५प्रदत्ताप्रकाशकः। २६ पंडितसत्तम । २७ उत्समसत्तम । , २८.धार्मिक। २९ महोत्साही। '३० गुणग्राही । ३१ क्षमी। ३२ परिभावकश्चेति । ३३) G१ कुलीन । २ शीलवान् ३ वयस्थ। ४ शौचवान् । ५ स्वतंत्र । ६ सावयव। ७ प्रीतिमान् । ८ प्रियंवद । ९ सुभग ।, १० सत्यवान् । ११ त्यागी। १२ विवेकी। १३ शृंगारी। १४ अभिमानी। १५ श्लाघावान् । १६ समुज्वलवेष। १७ शयाज्ञी । १८ सकलकलाकुशल । १९ सत्यासवह । २० श्रद्दधान। २१ सुगंध। २२ सुवृत्त । २३ मंत्र । २४ क्लेशसह । २५ भाषापंडित । २६ उत्तमसत्य । २७ धर्मिष्ठ । २८ महोत्साह । २९ गुणग्राही । ३० क्षमी। ३१ परिभावुक । ३४. त्रिविधा महानायिकाः । १ वकीया । २ परकीया। ३ पण्याङ्गना । इति । 1 CE चेति । F पण्याङ्गनाश्चेति । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ३५ अष्टौ नायिकाः। १ वासकसज्जा । २ विरहोत्कण्ठिता । ३ खण्डिता । ४ विप्रलब्धा । ५ प्रोषितभर्तृका। ६ कलहांतरिता । ७ अभिसारिका । ८ वाधीनभर्तृका । इति । mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ३५) A B १ विरहोत्कंठिता । २ खण्डिता । ३ कलहांतरिता । ४ विप्रलुब्ध(?ब्धा)। ५ प्रोषितभर्तृका। ६ अभिसारिका । ७ स्वाधीनपतिका। , ३५) C१ वासकसजा। २खंडिता। ३ उत्कंठिता। ४ कलहांतरिता । ५ विप्रलब्धा। ६ प्रोपितभर्तृका। ७ अभिसारिका। ८ स्वाधीनपतिका चेति । । ३५) D १ वासकसजा। २ विरहोत्कण्ठिता। .३ खंडिता। ४ विप्रलंभा। ५ प्रोषितभर्तृका। ६ कलहांतरिता । ७ अभिसारका। ८ स्वाधीनभर्तृका चेति । ३६. द्वात्रिंशद् नायिकानां गुणाः । १ सुरूपा । २ सुभगा। ३ सुवेषा । ४ सुरतप्रवीणा । ५ सुनेत्रा । ६ सुखाश्रया । ७ विभोगिनी। ८ विचक्षणा । ९ प्रियभाषिणी । १० प्रसन्नमुखी। ११ पीनस्तनी। १२ चारुलोचना । १३: रसिका । १४ लज्जान्विता । १५ लक्षणयुता। १६ पठितज्ञा। .१७ गीतज्ञा । १८ वाद्यज्ञा। १९ नृत्यज्ञा । २० सुप्रमाणशरीरा । २१ सुगंधप्रिया । २२ नातिमानिनी। २३ चतुरा। २४ मधुरा । २५ स्नेहमती । २६ विमर्षमती। २७ गूढमंत्रा। २८ सत्यवती। २९ कलावती । ३० शीलवती । ३१ प्रज्ञावती। ३२ गुणान्विता । इति । ३६) AB १ सुरूपा । २ सुवेपा । ३ सुभगा। ४ सुरतप्रवीणा.। ५ सुसत्त्वा । ६ विप(?सुख)श्रिता। ७विनीता। ८ भोगिनी। ९विचक्षणा। १० प्रियभाषिणी । ११ प्रसन्नमुखी। १२ पीनस्तनी। १३ चारुलोचना। १४ रसिका। १५ लज्जान्विता। १६ लक्षणयुता । १७ वाक्यज्ञा। १८ गीतज्ञा । १९ नृत्यज्ञा । २० वाद्यज्ञा । 1 A B G नायिका ।, C D E नायकाः। 2 F स्वाधीनपतिका। 3 A B द्वात्रिंशद्गुणनायिकाः ।, CD द्वात्रिंशगुणानायकाः ।, E द्वात्रिंशन्नायकानां ___ गुणा I, G द्वात्रिंशद्वणनायिका ।, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सविवरण-वस्तुरनकोशः। २१ सुप्रमाणशरीरा। २२ सुगंधप्रिया । २३ नातिमानिनी। २४ चतुरा। २५ मधुरा। २६ स्नेहवती। २७ विमर्शवती। २८ सुवृतमंत्रा। २९ सत्यवती । ३० प्रज्ञावती। ३१ चैतन्या। ३२ शीलवती । ३३ गुणान्विता। ३६) C १ कुलिना। २ शीलवती । ३ वयस्विनी । ४ प्रियंवदा । ५ श(मितव्यया। ६प्रीतिमति। ७ सुभगा। ८ सुसत्त्वा। ९ सुवेषा। १० सुविनीता। ११ सुरतप्रवीणा । १२ चारुनेत्रा। १३ सुखप्रिया। १४ विभोगिनी। १५ विचक्षणा। १६ प्रियभाषिणी । १७ प्रसन्नमुखी। १८ पीनस्तनी। १९ रसिका। २० लजान्विता । २१ लक्षणयुक्ता। २२ पठितज्ञा। २३ गीतज्ञा। २४ नृत्यज्ञा। २५ वि(वा)द्यज्ञा। २६ सुकुमारशरीरा। २७ सुगंधप्रिया। २८ नातिमानिनी। २९ स्नेहवती! ३० गुणान्विता। चेति । ३६). E१ कुष्टि(?लि)नी। २ सुरूपा। ३ सुभगा। ४ समर्था । ५ सुवेषा। ६ सुविनीता। ७ सुरतप्रवीणा। ८चारुनेत्रा । ९ सुखप्रिया । १० विभोगिनी । ११ विचक्षणा। १२ प्रियभाषिणी। १३ प्रसन्नमुखी। १४ पीनस्तनी। १५ रसिका। १६ लजान्विता। १७ लक्षणयुक्ता। १८ पठितज्ञा। १९ गीतज्ञा । २० वाद्यज्ञा। २१ नृत्यज्ञा । २२ सुकुमारशरीरा । २३ सुगंधप्रिया । २४ नातिमानिनी। २५ मधुरवाक्या:।, २६ स्नेहवती। २७ आचारवती। २८ रूपवती। २९ संभोगवती। ३० गुणवती। ३१ सुशीला। ३२ धर्मज्ञा। चेति । ३६) F१ कुलीना। २ सुभगा। ३ स्वरूपा । ४ सुसत्त्वा । ५ सुवेषा। ६ सुविनीता। ७ सुरत्न(?त)प्रवीणा। ८चारुनेत्रा। ९ सुखप्रिया। १० विभोगिनी। ११ विचक्षणा। १२ प्रियभाषिणी। १३ प्रसन्नमुखी। १४ पीनस्तनी। १५ रसिका। १६ लजान्विता। १७ लक्षणयुता। १८ गीतज्ञा। १९ वाद्यज्ञा । २० नृत्तज्ञा। '२१ सुकुमारशरीरा। २२ सुगन्धप्रिया। २३ नातिमानिनी। २४ मधुरवाक्या। २५ स्नेहवती। २६ ईर्ष्यारहिता। २७ सत्यवती। २८ शीलवती। २९ प्रज्ञावती। ३० सुसंवृत्तशरीरा। ३१ गुणान्विता । चेति। ३६) G१ सुरूपा। २ सुवेषा। ३ सुभगा। ४ सुरतप्रवीणा। ५ सुसत्त्वा। ६विष(सुखोथता। ७ विनीता। ८भोगिनी। ९विचक्षणा। १० प्रियभाषिणी। ११ प्रसन्नमुखी। १२ पीनस्तनी। १३ चारुलोचना। १४ रसिका। १५ लजान्विता लक्षणयुता। १६ वाक्यज्ञा। १७ गीतशा । १८ नृत्यज्ञा। १९ वाद्यज्ञा । २० सुप्रमाणशरीरा। २१ सुगंधप्रिया ।, २२ नातिमानिनी। २३ चतुरा। २४ मधुरा। २५ स्नेहवती । २६ विमर्शवती। २७ संवृतमंत्रा। २८ सत्यवती। २९ प्रज्ञावती। ३० चैतन्या।' ३१ शीलवती। ३२ गुणान्विता। . ३७. 'त्रिविधं सौख्यम् । १ आङ्गिक । २ वाचिक । ३ मानसिक । इति । ३७) F शारीरं। मानसिकं चेति । wwwww ___ 1 ABG add अथ त्रिविधं |, F द्विविधं ।. 2 ABG शारीरिक, E कायिकं ।. 3 AB drop इति ।, CDE मानसिकं चेति । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ३८. चत्वारि सौख्यकारणानि । १ योगाभ्यासकारणम् । २ अभिमानकारणम् । ३ सम्प्रत्ययकारणम् । ४ विषयकारणम् । इति । ३९. नवविधो गंधोपयोगः । १ तैलाधिवासः। २ जलाधिवासः। ३ वस्त्राधिवासः। ४ मुखाधिवासः। ५ उद्वर्त्तनाधिवासः। ६ विलेपनाधिवासः। ७ स्नानाधिवासः। ८ धूपनाधिवासः। ९ भोजनाधिवासः । इति । ३९) C१ तैलाधिवास । २ पुष्पवास। ३ मुखवास । ४ जलवास । ५ स्नानवास । ६ उद्वत्तेनवास। ७धूपनवास। ८ तांवोलवास। ९ भोजनवास। ३९) D १ तैलाधिवासे। २जलाधिवासे । ३ मुखाधिवासे । ४ स्थाने । ५ उद्वर्तने। ६ उदके। ७ विलेपने। ८ धूपने। ९ भोजने । चेति । ३९) E १ तैलाधिवासः। २जलाधिवासः। ३ सुरभिजलं। ४ उद्वर्त्तता। ५ धूप। ६ तांबूल । ७ भोजनाधिवासः। ८ वस्त्राधिवासः। ९ मुखाधिवासः। ३९) F १ तैलाधिवासे । २ जलाधिवासे। ३ वस्त्राधिवासे । ४ मुखे । ५ उद्वर्त्तने । ६ स्नाने । ७ विलेपने। ८ धूपने । ९ भोजने । चेति । ~~~~~~~~~ ~~ می ی ی ی ی ی ی ی ४०. देशविधं शौचम् । .. १ भावशौचं । २ स्नानशौचं । ३ जलशौचं । ४ मृत्तिकाशौचं । ५ श्मश्रुशौचं । ६ संस्कारशौचं । ७ पवित्रवाक्यं । ८ प्राणिदयाशौचं । ९ अर्थशौचं । १० आचारशौचं । इति । ४०) B १ जलशौचं। २ मृत्तिकाशौचं। ३गंध । ४ श्मश्रु। ५ संस्कार । ६ पवित्रवाक्य । ७ प्राणिदयाशौचं । ८ अर्थशौचं । ९ आचारशौचं। ४०) C१ भावशौचं । २ मुखशौचं । ३ मृत्तिकाशौचं । ४ गंधशौचं । ५ कक्षाशौच । ६ श्मश्रुशौच । ७ स्नानशौच। ८ नखशौच । ९ आनल चेति । 1 ABCDEF omit the Sūtia and its Vivarana 2 A B G अथ नव। 3 A B G अथ दश । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरतकोशः। ४०) D १ मुखगौच। २ कक्षा। ३ कर। ४ श्मश्रु। ५ जल। ६ मृत्तिका । ७ नख । ८ मल। ९ वृत्ति। १० भावशौच । ४०) E १ मुखशौच । २ स्नानशौच । ३ मृत्तिकाशौच । ४ गंधशौच । ५ कक्षा । ६ श्मश्रु । ७ जल । ८ नख । ९ अनिल । १० सर्वशौच । इति दशविधं शौचम् । ४०) F १ मुखशौच । २ सानशौच । ३ मृत्तिका । ४ कक्षा । ५गंध । ६म(?श्म)नु । ७ जल । ८ पवित्रभाषण । ९ नख । १० आचारशौच चेति । ४०) G १ भावशीचं । २ स्नानशौचं । ३ जलशौचं । ४ मृत्तिकाशौचं । ५ गंधश्मश्रु । ६ संस्कार । ७ पवित्रवाक्य । ८ प्राणिदयाशौचम् । ९ अर्थशौचम् । १० आचारशौचम् । ४१. 'द्विविधः कामः । १ स्वाभाविक । २ कृत्रिम । इति । ४२. देश कामावस्थाः। १ अभिलाषा । २ चिंता । ३ स्मृति । ४ गुणकीर्तन । ५ उद्वेग । ६ प्रलाप । ७ उन्माद । ८ व्याधि । ९ जडता। १० मरण । इति । ५ उद्वेग । ४२) C१ अभिलाषा । २ चिंता। ३ स्मृति । ४ गुणकीर्तन। ६ उन्माद । ७ व्याधि । ८ जडता। ९ मरणं चेति । ४२) D१ अभिलापा। २ चिंता। ३रस। ४ गुणकीर्तन। ५उद्वेग। ७ उन्माद। ८ व्याधि। ९ जडता। १० मरणं चेति । प्रलाप। ४३. विंशती रक्तस्त्रीणां लक्षणानि ।। १ पूर्व भाषते । २ दर्शनात्प्रसन्ना भवति । ३ समागमे तुष्यति । ४ संभाषिता हृष्यति । ५ गुणान् सखीजने कथयति । ६ दोषान् प्रच्छादयति। ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चात् स्वपिति । ९ पूर्वमुत्तिष्ठति । १० मित्राणि पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेष्टि । १२ प्रोषिते दुर्मना 1 A BG अथ द्वि। 2 A G कृत्रिमश्च । 3 F दशविधा कामावस्था। 4 D लक्षणस्थानानि । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। भवति । १३ वधनं ददाति । १४ प्रथममालिङ्गनं करोति । १५ पूर्वमेव चुम्बनं करोति । १६ समदुःखसुखा । १७ स्नेहवती । १८ संभोगार्थिनी । १९ सन्मुखावलोकिनी । २० सदा विनीता। ४३ ) A B १ पूर्व भाषते । २ दर्शनात्प्रसन्ना भवति । ३ समागमे तुष्यति । ४ संभापिता हृष्यति । ५ शुणान् सखीजने कथयति । तदोपान् छादयति । ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चात् स्वपिति। ९ पूर्वमुत्तिष्ठति। १० मित्राणि' पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेष्टि । १२ प्रोषिते दुर्मना भवति । १३ स्वधनं ददाति । १४ प्रथममालिंगयति । १५ पूर्वचुंबनं करोति । १६ समदुःखसुखावलोकिनी। १७ सदा विनीता। १८ स्नेहवती । १९ संभोगार्थिनी । ४३) C १ पूर्व भाषितं । २ दर्शनात्प्रसन्ना भवति । ३ समागमे पुष्यति । ४ संभाषिता हृष्टा भवति। ५ सखिजने गुणान् कथयति ।' ६ दोषान् प्रच्छादयति । ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चाद् स्वपिति । ९ पूर्वमुत्तिष्ठते । १० मित्राणि पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेषयति । १२ प्रोषिते दुर्मना। १३ स्वधनं ददाति । १४ प्रथममालिंगनं करोति । १५ चुंबनं ददाति। १६ समदुःखा। १७ स्नेहवती। १८ मिष्टान्नं दात्री। १९ सुवेषा। २० सुभोगार्थिनी चेति । ४३) D १ अर्थानुभाविनी । २ दर्शने प्रसन्ना भवति । ३ समं तुष्यति । ४ संभाविता हृष्यति । ५गुणान् सखीजने कथयति । ६ दोषान् प्रच्छादयति । ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चात् सुपति। ९ पूर्वमुत्तिष्ठति । १० मित्राणि पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेषयति। १२ प्रोषिते दुर्मना भवति। १३ स्वधनं ददाति । १४ प्रथममालिंगनं करोति । १५ पूर्वमेव चुंबनं करोति। १६ समदुःखसुखा। १७ सन्मुखावलोकिनी। १८ स्नेहवती। १९ संभोगार्थिनी चेति । ४३) E १ अर्थानुभाविनी । २ दर्शनात प्रशांता भवति । ३ संतुष्टा इ(?तुष्यं)ति । ४ संभापणेन हृष्यति । ५ गुणान् प्रकाशयति। ६ स्तनयोः पीडनं। ७भूषणोद्धाटनं । ८ हसनं । ९ नूपुरोत्कर्षणं । १० कर्णकंडूयनं। ११ केशकीर्ण । १२ प्रचारणसंयमनं । १३ सखीजने दोपान् प्रच्छादयति । १४ सन्मुखी शेते। १५ पश्चात् स्वपति । १६ पूर्वमुत्तिष्ठति । १७ मित्राणि पूजयति । १८ अमित्राणि द्वेषयति। १९ प्रोषिते दुर्मना भवति। २० स्वधनं ददाति २१ प्रथमं आलिंगनं करोति। २२ पूर्वमेव स्ववचनात् भाषयति । २३ चुंवनं करोति। २४ समदुःखे सदा विनीता। २५ सन्मुखविलोकिनी। २६ स्नेहवती। २७ संभोगार्थिनी। ४३) F १ पूमायात(? भापते)। २ दर्शनात् प्रसन्ना भवति । ३ संतुष्टा । ४संभापिताद् हृष्यति। ५ गुणान् सखीजनं वदति। ६ दोषान् प्रच्छादयति । ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चात्स्वपिति। ९पूर्वमुत्तिष्ठति। १० मित्राणि पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेष्टि। १२ प्रोपिते दुर्मना। १३ स्वधनं ददाति । १४ प्रथमालिङ्गनं करोति । १५ पूर्वमेव ध्रुवनं ददाति । १६ समानदुःखा। १७ विनीता। १८ सम्मुखावलोकनी। १९ स्नेहवती । २० संभोगार्थिनी चेति । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ .. ४७ सविवरण-चस्तुरनकोशः। । ४३) G १ पूर्व भापते । २ दर्शनात्प्रसन्ना भवति । ३ समागमे तुष्यति । ४ सम्भाषिता हप्यति । ५गुणान् सखिजने कथयति। ६ दोषान् छादयति। ७ सन्मुखी शेते। ८ पश्चात् स्वपिति । ९ पूर्वमुत्तिष्ठति । १० मित्राणि पूजयति । ११ अमित्राणि द्वेष्टि । १२प्रोपिते दुर्मना भवति । १३ स्वधनं ददाति । १४ प्रथममालिंगयति। १५ पूर्वचुंबनं करोति । १६ समदुःखसुखावलोकिनी। १७ सदा विनीता। १८ स्नेहवती। १९ सम्भोगार्थिनी। ४४. एकविंशतिर्विरक्तस्त्रीणां लक्षणानि । ' १ चुंबिता विमुखं करोति । २ मुखं परिमार्जयति । ३ निष्ठीवति । ४ प्रथमं शेते। ५ पश्चादुत्तिष्ठति। ६ पराङ्मुखी शेते। ७ वाक्यं नावमन्यते । ८ मित्राणि द्वेष्टि । ९ अमित्राणि पूजयति । १० सदा गर्विता भवति । ११ उक्ता कुप्यति । १२ गमने तुष्यति । १३ दुष्कृतं स्मरति । १४ सुकृतं विस्मारयति । १५ दत्तं न मन्यते । १६ दोषान् प्रकटीकरोति । १७ गुणान् प्रच्छादयति । १८ सन्मुखं न पश्यति । १९ दुःखिते सुखिता भवति । २० विप्रियं वदति । २१ संभोगे सुखं न वाञ्छति । ४४) १ चुंवने मुखं परिमार्जयति। २ निष्ठीवति। ३ प्रथमं शेते। ४ पश्चादुत्तिष्ठति । ५ सन्मुखी न शेते। ६ मित्राणि द्वेषयति। ७ अमित्राणि पूजयति । ८गर्विता उत्कथयति। ९गमने हृष्टा । १० दुष्कृतं स्मरति। ११ सुकृतं विस्मारयति । १२ उक्तं न मन्यते। १३ दोपान प्रगटीकरोति । १४ गुणानाच्छादयति । १५ सन्मुखं न पश्यति । १६ दुःखिते सानंदा। १७ अप्रियंवदा। १८ संभोगे सुखं नावगच्छति । १९ कोपमुत्पादयति। ४४ ) D १ चुम्बिता विमुख करोति। २ मुखं च परिमार्जयति। ३ निष्ठीवति। ४ प्रथमं शेते। ५ पश्चादुत्तिष्ठति । ६परान्मुखी शेते । ७ वाचं न मन्यते । ८ मित्राणि द्वेषयति । ९ कुमित्राणि पूजयति। १० गर्विता भवति । ११ उक्ता कुप्यते। १२ गमने तुष्यति। १३ दुष्कृतं स्मरयति । १४ सुकृतं विस्मरयति । १५ दत्तं न मन्यते । १६ दोपान प्रकटीकरोति । १७ गुणान् प्रच्छादयति। १८ सन्मुखं न पश्यति । १९ विप्रियं वदति । , २० दुःखिते सुखिता भवति। २१ संभोगेषु सुखं न वाञ्छति । ४४) E १ मुखं परिमार्जयति। २ निष्ठीवती। ३ प्रथमं शेते। . ४ पश्चादत्तिष्ठति । ५ परामुखी शेते। ६ मित्राणि द्वेष्टि। ७ अमित्राणि पूजयति। ८ गर्विता भवति । ९ उक्ता कुप्यति । १० गमने तुष्यति । ११ दुःखिते दुःखिता [न] भवति । १२ विप्रियं 1 A B C D विंशति विरक्त ।, विंशति अरक्त।. । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। वदति। १३ संभोगसुखं न वांछति। १४ स्वेच्छया विचरति। १५ दुष्कृतं स्मरति । १६ सुकृतं विस्मारयति । १७ दत्तं न मन्यते। १८ दोषान् प्रकटीकरोति । १९ गुणान् प्रच्छादयति । २० सन्मुखं न पश्यति । ४४) F १ चुम्बिता परान्मुखी भवति । २ चुम्बितानन्तरं निष्ठीवति । ३ मुखं च परिमार्जयति। ४ प्रथमं शेते। ५ पश्चादुत्तिष्ठति। ६ पराङ्मुखी शेते। ७ वचनं नावमन्यते। ८ मित्राणि द्वेष्टि । ९ अमित्राणि पूजयति । १० सदैव गर्विता। ११ उक्ता कुप्यति । १२ प्रोषिते तुष्यति । १३ दुष्कृतं स्मारयति । १४ सुकृतं विस्मारयति । १५ दत्तमवमन्यते । १६ दोषान् प्रकटयते । १७ गुणानाच्छादयति । १८ सम्मुखं न पश्यति । १९ दुःखेन दु:खिता न भवति । २० विप्रियं वदति। २१ संभोगं न वदवाञ्छ)ति । * ४५. द्वाविंशतिः कामिनीनां विकारेङ्गितानि ।। १ सानुरागनिरीक्षणं । २ श्रवणसंयमनं। ३ अङ्गुलीमोटनं । ४ मुंद्रिकाकर्षणं । ५ नूपुरोत्कर्षणं । ६ गुप्ताङ्गदर्शनं । ७ सख्या सह हसनं। ८ भूषणोद्घाटनं। ९ कर्णमोटनं । १० कर्णकंडूयनं । ११ केशप्रकीर्णनं । १२ पुष्पसंयमनं । १३ नखविलेखनम् । १४ -परिधानसंयमनं । १५ निश्वासोच्छ्रसनं । १६ प्राग् विजृम्भणं । १७ बालालिङ्गनं । १८ बालमुखचुम्बनं। १९ प्रियभाषणं । २० परोक्षे नामकीर्तनम् । २१ अतिक्रान्तप्रेक्षणम् । २२ गुणव्यावर्णनं । इति । ४५) C १ उच्चैर्निष्ठीवती। २ सानुरागा संयमनं । ३ अङ्गुलीस्फोटनं । ४ मुद्रिकाकर्षणं । ५ गुप्तांगदर्शनं। ६ सख्या सह हसनं। ७ नूपुरोत्कर्षणं । ८ स्तनोपपीडनं । ९ भूषणोद्धाटनं। १० कर्णकंडूयनं । ११ केशप्रकीर्णनं। १२ परिधानसंयमनं । १३ निश्वासोच्छासनं। १४ वागविज़ंभणं। १५ वालालिंगनं। १६ बालमुखचुंबनं । १७ प्रियभाषणं। १८ अतिक्रांतप्रेक्षणं । १९ परोक्षनामस्मरणं ।' २० गुणवर्णनं ।। २१ विरहवेदना। ४५) D१ सानुरागनिरीक्षणं । २ श्रवणसंयमनं। ३ अंगुलीस्फोटनं । ४ सदा प्रसन्न । ५ मुद्रिकाकर्पणं । ६ गुप्तांगदर्शनं । ७ सख्या सह हसनं। ८ भूषणोद्धाटनं। ९ कर्णोत्कर्षणं । १० कर्णकंड्यनं। ११ केशप्रकीर्णनं । १२ पुष्पसंयमनं। १३ नखविलेखनं । १४ परिधानसंयमनं। १५ विश्वासोल्लसनं। १६ प्रार विज़ुभनं। १७ वालालिंगनं । १८ घालमुखचुंबनं। १९ प्रियभाषणं ।। २० परोक्षे नामकीर्तनं ।। ___1 A G द्वात्रिंशत्कामिनीनां ।, B D E द्वाविंशतिकामिनीनां ।, Cअथ द्वाविंशति कामिनीनां। 2 ABG मुद्रिका अर्पणं।. 3 A.BG केशप्रक्षरणम्। 4 ABG omit प्राग। 5 ABG वालचुम्वनं।, 6 AB परोक्षे नामग्रहणं।, G omits परोक्षे नामकीर्तनम्।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। । ४५) । १ उच्चैर्निष्ठीवती । २ सानुरागनिरीक्षणं । ३ श्रवणसंयमनं। ४ अंगुलीस्फोटनं । ५ मुद्रिकाकर्पणं । ६गुप्तांगदर्शनं । ७ परिधानसंयमनं। ८ निश्वासोश्वा(१च्छा)सनं । ९ प्राक(?)विजृभणं । १० वालमुखचुंबनं । ११ प्रियलक्षणं(?श्लेषणं)। १२ अतिक्रांतप्रेक्षणं । १३ पश्चान्नामस्मरणं । ४५) F १ सानुरागनिरीक्षणं । २ श्रवणसंयमनं। ३ अङ्गुल्या मोटनं। ४ मुद्रिकाकर्षणं। ५ गुप्ताङ्गदर्शनं। ६ सख्या सह हसनं। ७ स्तनोपपीडनं। ८ भूपणोद्घाटनं । ९ नूपुरोत्कर्पणं । १० कर्णकण्डूयनं । ११ केशप्रकीर्णनं । १२ प्रावरणसंयमनं । १३ नखविलेखनं। १४ वि(?नि)श्वासोच्छासनं। १५ प्रार विजृम्भणं । १६ वालालिङ्गनं । १७ वालकमुखचुम्बनं। १८ प्रियलेपणं। १९ अतिक्रान्तप्रेक्षणं। २० परोक्षे नामस्मरणं। २१ गुणव्यावर्णनं। २२ संभोगवाञ्छा चेति । ४६. चतुर्विशतिरसतीनां लक्षणानि । १ द्वारदेशे शायिनी। २ पश्चादवलोकिनी। ३ पुंश्वली सखी । ४ भोगार्थिनी। ५ गोष्ठिप्रिया । ६ राजमार्गाश्रिता । ७ पतिद्वेषिणी । ८ पतिरहिता । ९ हीनाङ्गभार्या । १० मृतापत्या । ११ बहुदेवरालापिनी । १२ बहुदेवतापूजिनी। १३ विनोदप्रिया । १४ भोगिनी [ सखी]। , १५ अतिमानिनी । १६ कृत्रिमलज्जान्विता । १७ परप्रीतिरता । १८ वृद्धभार्या । १९ सततहास्या । २० प्रोषितभर्तृका। २१ लोभान्विता । २२ बहुभाषिणी । २३ क्रीडनप्रिया । २४ वंध्या । इति । ४६) A B १ द्वारदेशे शायिनी । २ पाश्चात्यावलोकिनी । ३पुंश्चली सखी। ४ भोगिनी। ५गोष्ठिप्रिया। ६ राजमार्गाश्रिता। ७ पतिद्वेषिणी। ८ पतिरहिता। ९ हीनांगभार्या । १० मृतापत्या । ११ वहुदेवरालापिनी । १२ बहुदेवतापूजनी । १३ विनोदकारिणी। १४ भोगार्थिनी। १५ अतिमानिनी। १६ कृत्रिमलजान्विता। १७ परप्रीतिरता । १८ वृद्धभार्या। १९ सततहास्या। २० प्रोषितभर्तृका। २१ लोभान्विता। २२ वहुभाषिणी। २३ कीडनप्रिया। २४ वंध्या। ४६) १ द्वारदेशशायिनी। २ पश्चादवलोकिनी । ३ पुंश्चली। ४ भोगिनी । ५गोष्ठिप्रिया। ६ राजमार्गमाश्रिता। ७ पतिद्वेषिणी। ८ पतिरहिता। ९दा(?ही)नयुवतीनां संगिनी । १० जलवाहनीनां संगिनी ।, ११ विनोदप्रिया । १२ अतिमानिनी । १३ दूर जलानयने गच्छति । १४ कुंभकाररजकानां संगिनी । “१५ कुहिनी । १६ तत्रिमलजान्विता(?कृत्रिमलज्जान्विता)। १७ अप्रणीता। १८ संत(?सतत)हास्या.।' १९ लोभान्विता । २० वहुभाषिणी। २१ क्रीडनप्रिया। २२ केशसंवाहनप्रियां। २३ आत्मगृहं परित्यज्य परगृहे वार्ता करोति । २४ स्वपति परित्यज्य अन्यमाकांक्षति। 1 A BG अथ चतु, चतुर्विंशत्यसतीलक्षणानि ।, C D चतुर्विंशति असतीनां लक्षणानि । 2 B पश्चादवलोकनी ।. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण- वस्तुरत्तकोशः । ४६) D १ द्वारदेशशायिनी । २ पश्चात् पश्चादवलोकिनी । ३ पुंश्चली । ४ भोगिनी । ५ गोष्टिप्रिया । ६ राजमार्ग (? र्गा) श्रिता । ७ पतिद्वेपिणी । ८ पतिरहिता । ९ हीनांगभार्या । १० मृतवत्सा । ११ देवरजन (? रालापिनी) । १२ गोष्ठिप्रिया । १३ वहुदेवतापूजनं । १४ वि (सं) भोगार्थिनी । १५ अतिमानिनी । १६ कृत्रिमलजान्विता । १७ परप्रीतिरता । १८ वृद्धभार्या । १९ सततहास्या । २० प्रोषितभर्तृका । २१ लोभान्विता । २२ वहुभाषिणी । २३ क्रीडारा चेति । ५० ४६ ) E १ द्वारदेशशायिनी । २ पश्चादवलोकिनी । ३ पुंश्चली । ४ भोगिनी । ५ गोष्ठिप्रिया । ६ राजमार्ग (? र्गा) टिनी । ७ पतिमन्वेषणी (? पतिद्वेषिणी ) । ८ पतिरहिता । ९ हीनयुवतीसंगिनी । १० जलवाहिकीनां संगिनी । ११ विनोदप्रिया । १२ प्र ( अ ) तिमानिनी । १३ दूराजलानयनाय गच्छति । १४ कुंभकाररजकसंगतिं करोति । १५ कृत्रिम - लज्जान्विता । १६ परप्रीतिरता । १७ सततं हास्या । १८ विनोदं बहिर्ग्रामति । १९ लोभान्विता । २० वहुभाषिणी । २१ क्रीडणप्रिया । २२ केशसंवाहनप्रिया । २३ आत्मगृहे वार्तां परित्यज्य परगृहे वार्ताकरणाय रसिका । २४ स्वपतिं परित्यज्य परपुरुषान्वेषणं करोतीति । · ४६ ) F १ द्वारदेशार्द्ध स्थायनी । २ पञ्चात्प्रविलोकनी । ३ पुंश्चलीसखी । ४ भा (? भो ) गिनी । ५ गोष्ठिप्रिया । ६ राजमार्गाश्रिता । ७ पतिद्वेषिणी । ८ पतिवर्जिता । ९ हीनयुवतीनां सङ्गिनी । १० गजवाहकानां प्रिया । ११ विनोदप्रिया । १२ अभिमानिनी । १३ दूरे पानीयानयनाय व्रजति । १४ कुम्भकाररजकसंगतिं करोति । १५ कन्दुकासंगतिं करोति । ' १६ कृत्ति (? त्रि) मलजान्विता । १७ परप्रीतिरता । १८ संततहास्या । १९ निर्जने वहिर्गामिनी । २० लोभान्विता । २१ बहुभापिणी । २२ क्रीडनप्रिया । २३ केशसंवाहन प्रिया । २४ स्वगृहं मुक्वान्यगृहे वार्ताकरणाय गच्छति । २५ रसिका । २६ स्वपतिं परित्यज्य परपुरुषान्वेषणं करोति । + + ४६ ) G १ द्वारदेशे शायिनी । २ पाश्चात्यावलोकिनी । ३ पुंश्चलीसखी । ४ भोगिनी | ५ गोष्टिप्रिया । ६ राजमार्गाश्रिता । ७ पतिद्वेषिणी । ८ पतिरहिता । ९ हीनाङ्गभार्या । १० वंध्या । १९ मृतापत्या । १२ वहुदेवरालापिनी । १३ बहुदेवतापूजनी । १४ विनोदकारिणी । १५ भोगार्थिनी । १६ अतिमानिनी । १७ कृत्रिमलजान्विता । १८ परप्रीतिरता । १९ वृद्धभार्या | २० सततहास्या । २१ प्रोषितभर्तृका । २२ लोभान्विता । २३ बहुभाषिणी । २४ क्रीडनप्रिया । * ४७. षोडश दुष्टस्त्रीणां लक्षणानि । १ पिङ्गाक्षी । २ कूपगल्ला । ३ लम्बोष्ठी । ४ खरालापा । ५ ऊर्ध्वकेशी । ६ लम्बोदरी । ७ दीर्घललाटी । ८ संहितभ्रूः । ९ पुष्पितनखी । १० प्रविरलदशना । ११ अतिदीर्घा । १२ अतिवामना । १३ अतिस्थूला । १४ अतिकृशा । १५ अतिगौरा । कृष्णा । इति । १६ अति 1 A G अथ पोडशस्त्रीणामपलक्षणानि ।; _B अथ पोडशदुष्टस्त्रीणामपलक्षणानि । C पोडशस्त्रीणां अपलक्षणानि ।, E दुष्टस्त्रीणां पोडशापलक्षणानि । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ४७) A B G १ पिङ्गाक्षी। २ कूपगल्ला । ३ लंबोष्ठी। ४ खरालापा । ५ ऊर्द्धकेशी । ६ दीर्घललाटी। ७संहितभ्रूः। ८ पुष्पितनखी। ९प्रविरलदशना। १० अतिदीर्घा । ११ अतीववामनी । १२ अतीवस्थूला । १३ अतीवगौरा। १४ अतीवकृष्णा । १५ अतीवकृशा। १६ प्रलंबोदरी। ४७) C१ पिंगाक्षी। २ कृपगल्ला। ३ लंवोष्टी। ४ ऊर्ध्वकेशा। ५ लंबोदरी। ६ दीर्घललाटा। ७मिलितभ्र(भूः)। ८ पुंपितनखी। ९ अतिवश्ल(?विरल)दशना। १० अतिदीर्धा। ११ अतिवामना। १२ अतिस्थूला । १३ अतिकशांगि। १४ अतिगौरा। १५ अतिकृष्णा। १६ अती[व] रोमवतीति । , ४७) D१ पिंगाक्षी। २ कूपगला। ३ लंबोष्टी। ४ खरालापी। ५ ऊर्द्धकेशी । ६ लंबोदरी। ७ दीर्घललाटा। ८संगतभू[]। ९ पुष्फितमुखी(?पुष्पितनखी)। १० प्रविरलदशना । ११ अतिदीर्घा । १२ अतिवामना । १३ अतिस्थूला। १४ अतिकशा। १५ अतिगौरा । १६ अतिकृष्णा । चेति। ४७) F १ पिंगाक्षी। २ कूपगंडा। ३ लंबोष्ठी। ४ उर्द्धकेशी। ५ प्रलंबोदरी। ६दीर्घललाटा। ७ मिलितभ्र(?भ्रूः)। ८ पुष्पितनखी। ९ अतिविरलकेशा। १० विरलदशना। ११ अतिदीर्घा । १२ अतिवामना। १३ अतिस्थूला। १४ अतिकशा। १५ अतिगौरा। १६ अतिरोमवती। १७ भूमिपर्यंतांगुलका। १८ मुक्तकेशा। १९ दीर्घदंता। २० खरदेहा। ४७) F१ पिंगाक्षी । २ कूपगल्ला । ३ लंबोदरी । ४ लिम्वोष्टी(?लम्बोष्ठी)।५खरालापा । ६ऊर्ध्वकेशी। ७ दीर्घललाटा। ८ संहितचूचुका । ९ पुष्पितनखी। १० प्रवी(?वि)रलदशना । ११ अतिदीर्घा । १२ दीर्घजवा । १३ अतिस्थूला। १४ अतिकशा । १५ अतिगौरा। १६ अतिकृष्णा। १७ अतिरोमवती। १८ दीर्घदंता। १९ खरदेहा। २० मुखे(?) किला। २१ भूसिलगितपादपूर्वाङ्गुलिकाश्चेति । ४८. अष्टौ स्त्रीणामविश्वासकारणानि । १ भर्तुः खैरिता । २ पुरुषार्थिनी । ३ प्रण(?णी)तगोष्ठी । ४ निरङ्कुशा। ५ विदेशवासा। ६ अन्यपुरुषं सन्मुखं विलोकयति । ७ यस्य तस्य सन्मुखं हसति । ८ उक्ता सती शपथं करोति । इति । ४८) ABG १ भर्तुः स्वैरिता। २ पुरुषार्थिनी। ३ प्रण(?णी)तगोष्ठी। ४ निरंकुशा। ५ विदेशवासा।६ पुंश्चली। ७ पति(?त्यु)रीयांदोपाः। ४८) C१ भर्तुः स्वैरं विचरति । २ अन्यपुरुषसन्मुखं विलोकयति । ३ गोष्ठी करोति। ४ निरंकुशा। ५ यं यं पश्यति तस्य तस्य सन्मुखं विलोकयति । ६ गोष्ठी करोति(?)। ७ संसर्ग करोति। ८ ईर्षां करोति । ४८) D १ भर्तृस्वैरिता। २ पुरुषार्थिनी। ३ प्रण(?णी)तगोष्ठी । ४ निरंकुशा। ५ विदेशवासा । ६ सध्यानी समृत्युपघातः(?)। ७ पुंश्चलीसंसर्गजा। ८ दूर्ध्याकदोषा(ईयादोषा)श्चेति । __ 1 ABG अष्टौ स्त्रीणां अभिसारिकाणि ।। C अष्टौ अवलानां अविश्वासकारणानि । स्त्रीणां अष्टौ अविश्वासकरणानि । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ४८) E१ भर्तुः खैरं विचरति । २ अन्यपुरुषं सन्मुखं विलोकयति। ३ गोष्ठी करोति । ४ निरंकुशं करोति । ५ यस्य तस्य सन्मुखं हसति । ६ उक्ता सती यथासचिमनुकरोति । ७ अन्यं जल्पति। ८ स्वैरिणीसंसर्ग करोति। ९पति वञ्चयित्वा रात्री परपुरुषगृहे गच्छति । ४८) F१ खैरगमा। २ परपुरुषसंमुखं विलोकयति । ३ उक्ता सती शपथान् करोति। ४ अलीकं जल्पति । ५ खैरिणीसंसर्ग विदधाति । ६ पतौ ईर्ष्या करोति । ४९. अष्टौ नार्योऽगम्याः । १ खगोत्रजा। २ गुरुपत्नी। ३ राजपत्नी। ४ मित्रपत्नी। ५ वर्णाधिका । ६ अस्पर्शा । ७ प्रव्रजिता । ८ कुमारी । इति । ४९) A १ स्वगोत्रजा। २ राजपत्नी। ३ मित्रपत्नी। ४ वर्णाधिका। ५पूजिता। ६ कुमारी। ७ राजपत्नी । ४९) B १ स्वगोत्रजा । २ राजपत्नी । ३ मित्रपत्नी। ४ वर्णाधिका। ५अस्पृशा। ६ पूजिता। ७ कुमारी। ८गुरु[ पत्नी ।। ४९) C १ स्वगोत्रजा। २ गुरुपत्नी। ३ मित्रपत्नी । ४ वयोधिका। ५ राजपत्नी। ६ अस्पर्शा। ७ दोषसंयुक्ता। ८ कुमारी चेति ।। ४९) D १ स्वगोत्रजा । २गुरुपत्नी। ३ राजपत्नी । ४ मित्रपत्नी। ५वर्णाधिका। ६ अस्पृशा। ७ प्रवजिता। ८ कुमारी चेति । ४९) F १ स्वगोत्रजा । २ गुरुपत्नी। ३ मित्रपत्नी । ४ राजपत्नी। ५ वर्णाधिकी(१का)।६ अस्पर्शा। ७ प्रव्रज्या। ८ कुमारी चेति । ४९) : १ स्वगोत्रजा। २ [पर]पुरुषपत्नी। ३राजपत्नी। ४ मित्रपत्नी। ५ वर्णाधिका। ६ अस्पर्शा। ७ दोषसंयुक्ता। ८ कुमारिका।। ४२) G १ स्वगोत्रजा। २ राजपत्नी। ३ मित्रपत्नी। ४ वर्णाधिका । ५ पूजिता । ६ कुमारी। ७ राजपत्नी। ५०. अष्टविधो मूर्खः। · १ निर्लजः। २ शठः। ३ क्लीबः । ४ निर्धणः। ५ व्यसनी । ६ अतिलोभी। ७ गर्वितः । ८ निष्ठुरः इति । ५०), १ अप्रस्तावज्ञ । २ कुपंडित । ३ कुबुद्धि। ४ कुव्यसन। ५ स्वभुंशी। ६ स्वमर्मप्रकाशी। ७गर्वित । ८ विष्टर(? निष्ठुर)श्चेति । ५०) E १ निर्लजः । २ शठः । ३ क्लीवः । ४ निर्गुणः । ५ व्यसनी। ६ अतिभोगी। ७ गर्वितः। ८ निष्ठुरः। इति । ५०) F १ अप्रश्नावी(१)। २ कुपठितः। ३ कुवुद्धिः। ४ कुव्यसनी। ५ निष्ठुरः । ६ स्वमर्मप्रकाशकः। ७ अभिमानी। ८ असंवद्धप्रलापी चेति । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ५१. चतुर्विंशतिविधं नागरिकवर्णनम् । . - - - - - १ नगरे संस्थानं। २ आसन्नोदकभवनं। ३ प्रच्छन्नमहानसं । ४ गुप्तकार्यचिकित्सास्थानं । ५ निकटे नेपथ्यमंडपः। ६ विभक्तं वासभवनं । ७ नेपथ्योपकारप्राचुर्य । ८ गृहोपकरणबाहुल्यं । ९ शयनासनरम्यत्वं । १० वाञ्छितपरिजनः। ११ पार्श्वे प्रविशा( ? वेश)नस्थानं । १२ मध्ये स्नानपीठं। १३ प्रभाते व्यायामविधानं । १४ मध्याह्न भोजनविधानं । १५ नित्यमेव विद्याभ्यसनं । १६ कुलोचितविधिना वर्तनं । १७ प्रदोषे गीतादिविनोदविधानं । १८ निशायां खदारासुरतं । १९ कदाचिद्गोष्ठीरम्यत्वं । २० कदाचित् पात्रप्रेक्षणं । २१ कदाचिदुद्यानगमनं। २२ माल्यादिभोगकथनं। २३ सदैव ऋतुसमुचितोपभोगः। २४ विद्वज्जनसंसर्गः । ५१) A १ नगरे संस्थानं। २ आसन्नोदकभवनं। ३प्रच्छन्नमहानसं। ४गुप्तकार्यचिकित्सास्थानं । ५ निकटे नेपथ्यमंडपः। ६ विभक्तं वासभवनं । ७ नेपथ्योपकारप्राचुर्य । ८ गृहोपकरणवाहुल्यं । ९ शयनासनरम्यत्वं । १० वाञ्छितपरिजनः पार्था प्रविशा(?वेश)नस्थानं । ११ मध्ये स्नानपीठं। १२ प्रभाते व्यायामविधानं । १३ मध्याह्न भोजनविधानं । १४ नित्यमेव विद्याभ्यसनं। १५ कुलोचितविधिना वर्तनं । १६ प्रदोषे गीतादिविनोदविधानं। १७ निशायां स्वदारासुरतं । १८ कदाचिद्गोष्ठीरम्यत्वं । १९ कदाचित्पात्रप्रेक्षणं । २० कदाचिद्वि(?दु)द्यानवाव(?वन)गमनं । ___५१) B १ नगरे संस्थानं। २ आसन्नो द] कभवनं। ३ प्रच्छन्नमहानसं। ४ गुप्तकार्यचिकित्सास्थानं । ५ निकटे नेपथ्यमंडपः। ६ विभक्कं वासभवनं । ७ नेपथ्योपकारप्राचुर्य । ८ गृहोपकरणवाहुल्यं । ९शय्यासनरम्यत्वं । १० वाञ्छितपरिजनपार्श्वे प्रविशा(?वेश)नस्थान। ११ मध्ये स्नानपीठं। १२ प्रभाते व्यायामविधानं। १३ मध्याहे भोजनविधान । १४ नित्यमेव विद्याभ्यसनं। १५ फुलोचितविधिना वर्त्तनं । १६ प्रदोषे गीतादिविनोदविधानं । १७ निशायां स्वदारासुरतं । १८ कदाचित् गोष्ठीरम्यत्वं । १९ कदाचित् पात्रप्रेक्षणं । २० कदाचित् वि(१उ)द्यानवन(ना)वगमनं। २१ सदैव ऋतुसमुचितोपभोगः । ५१) C१ नगरे संस्थानं । २ आसनो(नो)दकभवनं । ३ गुप्तकार्यचिंता। ४ स्थापनीय पार्श्वपानीयं । ५ सुप्तावेदकं । ६ पृथक् धनकं । ७ नेपथ्याग्रहणं । ८ नेपथ्योपप्रकरणं । ९ प्राचुर्यगृहोपकरणं । १० वाहुल्यं रम्यत्वं । ११ माल्यादि भोगभव्यत्वं । १२ गुप्तस्थानं । १३ प्रमाते व्यायामविधान। १४ मध्याह्ने भोजनविधानं। १५ डाछन्नप्रकारस्थान(?)। १६ नित्यविद्याभ्यसनं । १७ कुलोचिते मार्गे वर्तनीयं । १८ प्रदोषे गीतविनोद । 1 ABC वर्तनं । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-चस्तुरनकोशः। १९ निशायां सुरतोपचारः। २० कदाचि[दु]द्यानगमनं । २१ कदाचित् क्षेत्रनिरीक्षणं । २२ सदैव कर्मसूचितो विभाग। २३ पुत्रपौत्रेषु हेतुकरणं ।। ५१) D १ यथा नगरे स्थानं। २ आसन्नो द]कभवनं। ३ सवतां(?)प्रच्छादनं । ४ महासनं । ५ परसेव्या गृहमुत्पत्तिच्छाया मित्राणां स्थानस्फोट(?) । ६ नव विश्वमंडपं । ७ विरक्तरक्तवासभवः । ८ नेपथ्यैवकरणं । ९ प्रासार्यगृहे(?) उपकरणवाहुल्यं । १० शय्यासनरम्यत्वं। ११ माल्यादिभोगकथनं। १२ वांछितमित्रजनपार्श्व आचमनस्थानं । १३ अंतरे स्थानस्थानं । १४ प्रभाते व्यायामविधानं । १५ मध्ये भोजनं विधानं । १६ नित्यमेव विद्याभ्यसनं । १७ कुलोचितव्यवहरणं । १८ प्रदोषांते गीतविधानं । १९ निशायां सुरतोपचरणं । २० कदाचिद्गोष्ठीरम्य त्वं]। २१ न(?) कदाचित्पात्रप्रेक्षणं । २२ कदाचिदुद्याने गमनं चेति । ___५१) : १ आसन्नोदकाभुवनांतसुप्तं । २ कार्यचिंतास्थापनं। ३ पार्श्व पानीयरंधनं । ४ विभक्त नेपथ्यगृहं । ५ नेपथ्योपकरणं । ६ प्राचुर्य गृहोपकरणं । ७ प्राचुर्य गृहप्रकरणवाहुल्यं । ८ शास्त्रवाहुल्यं । ९ आसनबाहुल्यं । १० रम्यत्वमौल्यादिभागभव्यत्वं । ११ गुप्तं स्थानं स्यात् । १२ प्रभाते नियमविधानं । १३ मध्याह्ने भोजनविधानं । १४ प्रच्छन्नभंडारस्थानं। १५ नित्यं विद्याभ्यसनं। १६ कुलोचितेन मार्गेण वर्तनीयं । १७ प्रदोषे गीतविनोदः। १८ निशायां सुरतोपचारः। १९ कदाचिदुद्यानगमनं । २० कदाचित् क्षेत्रनिरीक्षणं । २१ सदैव देवगुरुभक्तिः कार्या । २२ स्वजनपालनं । २३ सदैव समुचितवित्तविभागः।। ५१) F १ आसन्नोदुःक(?दक)भवनं। २ गुप्तकार्यचिन्तास्थापनं। ३ पार्श्वे पानीयस्य स्थाने रन्धनक। ४ विमुक्तने मध्यगृहं । ५ नेपथ्योपकरणप्राचुर्य । ६ गृहोपकरणवाहुल्यं । ७ रम्यत्वं। ८ माल्यादिभोगभावितत्वं । ९मालादिभोमभव्यत्वं । १० गुप्तस्थानं स्थानस्य। ११ प्रभाते आयामविधानं। १२ मध्याह्ने भोजनविधानं। १३ प्रच्छन्न भण्डारस्थानं। १४ नित्यं विद्याभ्यसनं। १५ कुलोचितेन मार्गेण प्रवर्तनीयं । १६प्रदोषे गीतविनोदाः। १७ निशान्ते सुरतोपचारः। १८ कदाचिदुद्यानगमनं। १९ कदाचित्क्षेत्रनिरीक्षणं । २० विद्वजनसंसर्गः। २१ कुसंगपरित्यागः । २२ धर्मश्रद्धा। २३ जीवरक्षा। २४ सदैव समुचितोपक्रिया।। ___५१)G१ नगरे संस्थानं। २ आसन्नोदकभवनं। ३ प्रच्छन्नमहानसं। ४ गुप्तकार्यचिकित्सास्थानं । ५ निकटे नेपथ्यमंडप । ६ विभक्तं वासभवनं । ७ नेपथ्योपकारप्राचुर्य । ८ गृहोपकरणवाहुल्यं । ९शयनासनरम्यत्वं । १० वाञ्छितपरिजनः। ११ पायें प्रविशा(?वेश)नस्थान । १२ मध्ये स्नानपीठं । १३ प्रभाते व्यायामविधानं । १४ मध्याह्ने भोजन विधानं। १५ नित्यमेव विद्याभ्यसनं। १६ कुलोचितविधिना वर्त्तनं। १७ प्रदोषे गीतादिविनोद विधानं । १८ निशायां स्वदारासुरतं । १९ कदाचिद्गोष्ठीरम्यत्वं । २० कदाचित्पात्रप्रेक्षणं । २१ कदाचिद्वि(१दु)द्यानवाव(धन)गमन । २२ असम्पूर्णलक्षणावयव २३ निर्लक्षण । २४ ५२. 'त्रिविधं रूपम् । १असंपूर्णलक्षणावयवं। २ संपूर्णलक्षणावयवं। ३ निर्लक्षणावयवं । इति। 1A omits त्रिविधं रूपं । † These ought to be in the following section Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ५२) A १ असंपूर्णलक्षणावयवं। २ निर्लक्षण । ५२) B १ संपूर्णलक्षणावयवं। २ असंपूर्णलक्षणावयवं। ३ निर्लक्षण । ५२) C १ संपूर्णावयवं । २ निर्लक्षणावयवं। ३ असंपूर्णालक्षणावयवं । ५२) D १ संपूर्णलक्षणावयवं चेति । ५२) E १ संपूर्णलक्षणावयवं। २ लक्षणावयचं । ३ असंपूर्णलक्षणावयवं । 42) G has given no Vivarana ( see foot note p. 54) ५३. त्रिविधं स्वरूपम् । १ मुग्धस्वभावं । २ चतुरस्वभावं । मुग्धचतुरस्वभावं । इति । ५३) AB १ मुग्धस्वभाव । २ मुखर। ३ चतुर । ५३) C१ मुग्धस्वभावं। २ मुग्धचतुरस्वभावं । ३ चतुरस्वभावं । ५३) D१ मुग्धस्वभावं। २ सुसद्भावं। ३ चतुरस्वभावश्चेति । ५३) E१ मुग्धस्वभावं। २ मुग्धस्वभावं। ३ मुग्धचतुरस्वभावं चेति । F१ मुग्धस्वभावं। २ मुग्धचतुरस्वभावं । ३ चतुरस्वभावं । ५३) G१ मुग्धस्वभाव । २ मुरख। ३ चतुर ५४. द्वादशविधः प्रमदोपचारः । १ रूपस्विनीनां रम्योपचारेण । २ भीरूणामाश्वासनेन । ३ चपलानां गांभीर्येण । ४ पंडितानां सत्येन। ५ प्रज्ञावता(?तीनां) कलाभिः । ६ शृङ्गारिणीनां सुवेषतया । ७ विनोदशिलानां क्रीडनेन । ८ हीनसत्त्वानां कारुण्येन । ९ शठवभावानां शाव्येन । १० निर्विकल्पानां सरलखभावेन । ११ बालानां भक्षप्रदानेन । १२ विदग्धानां कुकुमो( ? कुकभो )पचारेण । इति । ५४) A. १ रूपखिनी रम्योपचारेण । २ भीरूमाश्वानयेन। ३ चपलां गांभीर्येण ।। ४ पंडितानां सत्येन । ५ प्रशावतां कलाभिः। ६ शृङ्गारिणा सुवेषतया । ७ विनोदशीलां क्रीडनेन। ८ हीनसत्यां कारुण्येन । ९शठस्वभावानां शाव्येन । १० निर्विकल्पां सुकुमारप्रयोगेन। ११ बालानां भक्षप्रदानेन । १२ धूर्तानां शाठ्येन । ___ 1 AB अथ द्वादशविधप्रमोदोपचारः।; C द्वादश प्रमोदोपचारा; D द्वादशविधः प्रमोदोपचारः। अथ द्वादशविधः प्रमोदोपचारः।। F द्वादशविधः प्रमदानामुपचारः।, G अथ द्वादशविधप्रमादोपचारः। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ५४) B १ रूपस्विनां रम्योपचारेण । २ भीरूणामाश्वासनेन । ३ चपलानां गांभीर्येण । ४ पंडि[तानां सत्येन। ५प्रज्ञावतां कलाभिः। ६ शृङ्गारिणां सुवेषतया। ७विनोदशीलानां क्रीडनेन। ८ हीनसत्त्वानां कारुण्येन। ९ शठस्वभावानां शाव्येन । १० निर्विकल्पना सुकुमारप्रयोगेन । ११ वालानां भक्षप्रदानेन । १२ धूर्तानां शाठ्येन । ५४)C १ रूपवती रम्योपचारेण । २ मीरूणामविश्वासनेन । ३ चपलानां गांभीर्येण । ४ पंडितानां सखीत्वेन । ५ वालानां भक्षप्रदानेन । ६ प्रजावतीनां कलाभिः। ७ शृङ्गारिणीनां सुवेषेण । ८ विनोदिनीनां सुक्रीडनेन । ९ हीनसत्त्वानां कारुण्येन । १० शठस्वभावानां घातेन। ११ निर्विकल्पानांसरलस्वभावेन । १२क्षुधितानांभोजनदानेन । ५४) D१ सुरूपिणी । २ राजोपचारेण । ३ मीसमां(?भीरूणामा)श्वासनेन । ४ चपलां गांभीर्येण । ५ पंडितां भोजन्येन। ६ धाण्यं कारुण्येन । ७प्रज्ञावती। ८ कलाभिः शृङ्गारिणी । ९ सुवेषतया विनोदिनी । १० क्रीडनेन । ११ विदग्धानां कुकुभोपचारेण चेति । ५४) E १ रूपवती रम्योपचारेण । २ भीरोः आश्वासनेन । ३ चपला गांभीर्येण । ४ पंडिता सत्येन । ५ वाला भक्षप्रदानेन । ६ प्रज्ञावती कलाभिः । ७ शृङ्गारिणी सुवेपतया । ८ विनोदशीला क्रीडनेन। ९दीनसत्वा कारुण्येन । १० शत(?ठ)स्वभावशाव्येन । ११ निर्विकल्पा सरलस्वभावेन। १२ सुकुमारा सुकुमारोपचारेण । ५४) F १ रूपवती रम्योपचारेण । २ भीरोः आश्वासनेन । ३चपलानां गांभीर्येण । ४ पंडितानां ना (१)सत्येन । ५ वाला भक्ष्यप्रदानेन । ६ प्रनावती कलनैः। ७ शृङ्गारिणीरन्यवेपतया। ८ विनोदशीला क्रीडनेन। ९ दीनसत्त्वां क्रीडनेन । १० कारुण्येन वा। ११ शठभावा घातेन । १२ निर्विकल्पां सरलस्वभावेन। १३ सुवामां(?)आरोपचारेण । ५४)G १ रूपस्विनी रम्योपचारेण । २ भीरुमाश्वानयनेन । ३ चपलां गांभीर्येण । ४ पंडितानां सत्येन । ५ प्रज्ञावतां कलाभिः। ६ शृङ्गारिणां सुवेपतया। ७ विनोदशीलं क्रीडनेन। ८ हीनसत्यां कारुण्येन । ९ शठस्वभावानां शाट्येन । १० निर्विकल्पां सुकुमारप्रयोगेन । ११ वालानां भक्षप्रदानेन । १२ धूर्तानां शाट्येन । ५५. पञ्चविधः परिचयः। १ प्रसिद्धिख्यापनं। २ दर्शनेनावर्जनं। ३ संभाषणमाधुर्यं । ४ वाञ्छितोपचारप्रयोजनं। ५ विकारसूचनं । इति । ५५) C १ प्रसिद्धस्थापनं। २ दर्शनेनावर्जनं । ३ संभापणमाधुर्य । ४ विकारशोधनं । ५ वाञ्छितोपचारप्रयोजनं ।। ५५) D १ सीक्षापनः । २ दर्शनावर्जनः। ३ संभाषणमाधुर्यया । ४ सविकारसुवचने । ५ कथितापचारप्रयोजनं चेति । ५५) १ प्रसिद्धल्यापनं । २ दर्शनेनावर्जनं। ३ मधुरवचःसंभाषणं । ४ आतिथ्यकरणं । ५ वाञ्छितोपचारप्रयुं(?यो)जनं चेति । ५५) F ? प्रसिद्धरयापनं। २ दर्शनेनावर्जनं। ३ मधुरवचनसंभापणं । ४ आतिथ्यकरणं । ५ वाञ्छितोपचारपूजनं । 1 ABEG अथ पंच 1, C पंचविधपरिचय ।. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ५६. देश पुरुषाः स्त्रीणामनिष्टा भवन्ति । १ कुरूपः। २ निर्लज्जः। ३ अभिमानी। ४ असंबद्धप्रलापी । ५ सङ्कचितशायी । ६ निष्ठुरः । ७ कृपणः । ८ शौचहीनः । ९ मूर्खः । १० क्रोधनः । इति । ५६) C १ कुरूपा। २ निर्लज्जा। ३ अभिमानयुक्ता। ४ अनंतभाषिण। ५ निरंकुशा। ६ निष्ठुरा । ७ कृपणा। ८ अशौचरता। ९हीना। १० भूर्खा । ५६) D १ कुरूपः । २ निर्लजः। ३ अभिमानी । ४ असंबद्धप्रलापी । ५संकुचितशायी। ६ निष्ठुरः। ७ कृपणः। ८ शौचहीनः। ९ मूर्खश्चेति । ५६) १ कुरूपः। २ निर्लजः। ३ नित्यरोगी। ४ अभिमानी। ५ असंबद्धप्रलापी। ६संकुचितशायी। ७ निष्ठुरः। ८ कृपणः। ९शौचहीनः। १० क्रोधी। ११ रूपभागी। १२ कर्णदुर्वलः। १३ मूर्खश्चेति । ५६) F१ कुरूप। २ निर्लज। ३ नित्ययोगी। ४ अभिमानी। ५ असंबद्धप्रलापीः। ६ संकुचितशायी। ७ निष्ठुर । ८ कृपण । ९ शौचहीन । १० क्रोधी। ११ विरूपभाषी। १२ कर्णदुर्वल । मूर्ख। चेति। ५७. देशभिः कारणैः स्त्रियो विरज्यन्ते । १ अज्ञानता। २ अभिमानावलेपता । ३ निष्ठुरता । ४ दरिद्रता । ५ अंतिप्रवासता । ६ फरव्यसनता । ७ भोगहीनता । ८ अतिप्रसंगता। ९ सौभाग्यहीनता। १० अनुचितता । इति । ५७) C १ अज्ञानता। २ अभिमानता। ३ प्रतापिता। ४ निष्ठुरता। ५ अतिप्रवासता । ६ अतिप्रसंगता। ७ सौभाग्यहीनता। ८ अनौचितं । ९ निर्दयत्वं । १० अप्रीतिता। ५७) D १ अक्षमता। २ अभिमानता। ३ अवलेपता । ४ निष्ठुरता। ५ दरिद्रता। ६ सौभाग्यहीनता। ७ अतिअसंगता। ८ अतिअनौचित्यता। ९ अतिशता। ११ भावुका चेति। . ५७) E १ अज्ञानता। २ मभिमानता। ३ निष्ठुरता। ४ दरिद्रिता। ५ सौभाग्यहीनता । ६ अरूपता । ७ अनौचित्यता । ८ दीनहीनता । ९निर्दिनी(?)। १० वार्धक्यता। ११ विरूपभाषिता। १२ अभावश्चेति । ५७) F १ अक्षानता। २ अभिमानता। ३ निष्ठुरता। ४ दरिद्रता। ५ सौभाग्यहीनता । ६ अरूपता । ७.अनौचित्यता । ८ दानहीनता। ९ निर्यिता। १० काठवाकता(१)। ११ विरूपभाषिता। १२ अभावश्चेति ।। __11 द्वादशपुरुषाः स्त्रीणां अनिष्टाः। 2 C वदन्ति । 3 C दशभित्रियो विरज्यते।। F दशभिःप्रकारैः स्त्रियो विरज्यन्ते । 4 A B G अतिप्रवसता। 5A BG अनौचित्यता। - Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ५८, 'त्रिभिः कारणैः कामिन्यः संबध्यन्ते । १ अर्थतः। २ कामतः। ३ सुकुमारोपचारतः । इति । ५८) A B G १ अर्थतः। २ कामतः। ३ कुमारोपचारतः। ५८) C१ अर्थकामतः। २ सुकुमारोपचारतः। ३ संभोगकामतः। ५८) D१ अर्थतः कामरतः। २ सुकुमारः। ३ उपचारश्चति । ५८) E १ अदानतः। २ कामतः। ३ सुकुमालवचनाद्युपचारतः। ५८) F१ अर्थदानत । २ कामत। ३ वचनाद्यप्रचारत । चेति ।। ५९. सप्तविधाः कामुकानां सुरतारम्भाः। १ क्रीडापात्राणि । २ भोजनादि । ३ उपचारविलेपनानि । ४ धूपनानि । ५ ताम्बूलादीनि । ६ पुष्पादिमाल्यानि । ७ हास्यादि(?नि) मर्माणि । इति । ५९) C१ पुष्पमालादिदानं। २ वस्त्रालंकारदानं। ३ आश्वासनं। ४ सुस्वादभक्षभोज्यं । ५ आलिङ्गनादिदानं। ६ अशेषकथा प्रस्ताव । ७विनोदहास्यकरणं ।। , ५९) D१ क्रीडापात्राणि। २ भोजनाद्युपचारेण विलेपनानि । , ३ धूपनानि । ४ तांबूलकानि । ५ पुष्पमाल्यादि । ६ हास्यादि । ७ रम्यादि। चेति ५१) E १ क्रीडापात्राणि । २ भोजनाद्युपचारविलेपनानि । ३ तांबूलदा(?लादी)नि । ४ पुष्पादिमाल्यानि । ५ वस्त्रालंकारदानानि । ६हास्याष्णिर्मरतानि(दि मर्माणि)। ५९) १ क्रीडनेन । २ नाट्यनाथुपचारेण । ३ विलेपनेन । ४ तांबूलदानेन । ५ पुष्पादिभोगेन । ६ वस्त्रालंकरणेन । ७ अर्थप्रदानेन ।। ५९) G१ क्रीडापात्राणि । २ भोजनाद्युपचार। ३ विलेपनानि । ४ धूपनानि । ५ ताम्बूलादिना। ६ पुष्पादिमाल्यानि । ७ हास्यादिमर्माणि । ६० अष्टविधं विदग्धानां सुरतम् । . १ आलिङ्गनं। २ चुम्बनं। ३ धावनं। ४ केशधारणं । ५ वराङ्गशोधनं । ६ सीत्कारादिमोचनं । ७ नखस्पर्शनं । ८ मृदुकुट्टनं । इति । ___ 1 A B G-त्रिभिः कामिन्यः संवध्यते। Cत्रिभिः संवध्यते ।, D त्रिभिः कारणैः कामिनीनां संवध्यते ।; E त्रिभिः प्रकारैः कामिन्यः संवध्यते। 2 ABG सप्तविधकामुकानां सुरतारंभः। 3 ABG अथाष्टविधं विदग्धानां सुरतं; C अष्टविधं सुरतं ।। D अष्टविधं विदग्धानां सुरतावस्थानं । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ६०) A.B १ आलिङ्गनं। २ चुंबनं। ३ धावनं। ४ केशाधारणं। ५रंग(श्वरांग)संवेशनं। ६शरीरादिकूजनं। ७ नखस्पर्शनं। ८ कुट्टनं । ६०) १ आलिंगनं। २ चुंवनं । ३ धावनं । ४ कचप्रधारणं । ५ वरं(१)गशोधनं । ६ सीत्कृतादिमोचनं। ७ नखस्पर्शनं । ८ मृदुकुट्टनं ।। ६०) D १ आलिंगनं । २ चुंबनं । ३धावनं । ४ केशोभा(?द्धा)रणं । ५ रागादिव्यसन। ६ सीत्कारादिमुंचनं। ७ नखस्पर्शनं । ८ मृदुकुट्टनं। चेति । ६०) E १ आलिंगनं। २ चुंबनं। ३ शयनं। ४ केशधारणं । ५ वरांगशोधनं । ६ सीत्कृतादिमोचनं। ७ नखस्पर्शनं । ८ मृदुकुट्टनं । ६०) F १ आलिङ्गनं। २ चुंबनं। ३ धावनं। ४ केशग्रहणं। ५ वराङ्गशोधनं । ६ शीत्कृतकरणं । ७ नखस्पर्शनं । ८ मूठकुट्टनं । चेति ।। ६०) G १ आलिंगनं। २ चुंबनं। ३ धावनं। ४ कन्ता(?कुन्तला)धारणं । ५ रन(?वराङ्ग)संवेशनं। ६ शरीरादिकूजनं। ७ नखस्पर्शनं । ८ कुट्टनं ।। ६१. नवविधं सुरतावसानम् । - १ वस्त्रादिसंयमनं। २ पार्श्वे आचमनं। ३ ताम्बूलादिग्रहणं । ४ फलादिभक्षणं । ५ पानभोज्यादिविधानं । ६ क्रीडापात्रप्रवेशनं । ७ सुभाषितजल्पनं। ८ सानुरागप्रेक्षणं । ९ मनोवाञ्छितविनोदः। इति । ६१) C १ वस्त्रादिसंयमनं। २ पार्श्वचालनं । ३ तांबूलादिग्रहणं । ४ अनुरागपोषणं । ५ वांछितविनोद । ६१) D१ पार्श्व आचमनं । २ तांबूलादिग्रहणं ।. ३ इक्षुरसादिभक्षण। '४ पानभोज्यादिविधानं । ५ क्रीडापात्रप्रवेशनं । ६ सुभाषितजल्पनं । ७ अनुरागपोषणं । ८ संतोषवांछित। ९ विनोदा श्चेति । ६१) । १ वस्त्रादिसंयमनं । २ पार्श्वविवर्तनं । ३ तांबूलादिग्रहणं । ४ फलादिभक्षणं । ५पानभोजन विधानं । ६ क्रीडापात्रप्रवेशनं । ७ सुभाषितभाषणं । ८ अनुगोषणं(?अनुरागपोषणं)। ९ मनोवांछितविनोदाश्चेति । ६१) F १ वस्त्रादिसंयमनं । २ पार्श्वे वाऽऽचमनं । ३ तांबूलादिभक्षणं । ४ फलादिभक्षणं । ५पानभोजनादिविधानं। ६ क्रीडापात्रप्रवेशनं । ७ सुभाषितजननं । ८ अनुरागपोषणं। ९ मनोवाञ्छितविनोदः । चेति। ६२. नव शयनगुणाः । - १ अनग्नशायी। २ प्रसारितगात्रशायी। ३ मृदुगात्रशायी। 1 A B G अथ नवविधं सुरतावसानं ।, D नवविधं सुरतावस्थान। . Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। ४ सौम्यावयवशायी । ५ अनुशयनं । ६ अभूमिशायी । ७ अशब्दशायी। ८ सन्मुखशायी। ९ वामपार्श्वशायी । इति । ६२) A B १ अनग्नशायी । २ मृदुगात्रशायी । ३ प्रसारितगात्रशायी । ४ सौम्यावयव । ५ अनुशयन । ६ नात्यर्थानप्रात(?)। ७ अशब्द । ८ सन्मुख । ६२) C १ अनन्न। २ प्रसादितगात्र। ३ सौम्यावयव। ४ सन्मुखशायी । ५ अशब्दशायी । ६ अभूमिशायी । ७ संबद्धशायी । ८ मृदुपत्रशायी । ९ नात्यर्थशायी। ६२) D १ अनग्नशायी। २ प्रसारिंगात्रशायी। ३ अन्योन्यशायी । ४ सौम्यशायी। ५ असन्मुखशायी। ६ असंबद्धशायी। ७ सन्मुखशायी । चेति । ६२) E १ अनग्नशायी । २ प्रसारितगात्रशायी । ३ सौम्यावयवशायी । ४ संबंधशायी। ५ सन्मुखशायी। ६ अनुशयनाद्यर्थः । ७ अशब्दशायी। ८ वामपार्श्वशायी। ९ उक्तानि(?त्तान)शायी। ६२) F १ अनुशायी। २ संमुखशायी। ३ प्रसारितगात्रशायी। ४ सौम्यावयव. शायी। ५ संवन्धशायी। ६ वामपार्श्वशायी । ७ अवि(?ध)स्तनशायी। ८ निश्चलाङ्गशायी। चेति । ६२) G १ अनग्नशायी। २ मृदुगात्रशायी। ३ प्रसारितगात्रशायी । ४ सौम्यावयव । ५ अनुशयन । ६ नात्यर्थ(१)। ७ नमात(१)। ८ अशब्द । ९ सन्मुख । ६३. देशविधः पार्थिवानां प्रमोदः। १ ज्ञाने। २ दाने। ३ बले। ४ राज्ये । ५ विनोदे । ६ वैरिनिग्रहे। ७ शौर्ये । ८ धर्मे । ९ सुखे । १० शौचे प्रमोदो दशधा मतः ॥ ६३) C ज्ञाने दाने जये रावे(? ज्ये) विनोदे वैरिविग्रहे । शौर्ये धर्म च सौख्ये च। प्रमोदो दशधा मत()॥ ६३) D ज्ञाने दाने वले राज्ये विनोदे वैरविग्रहे । सूर्ये धर्मे तपे सौख्ये प्रमोदो दशधा मतः॥ ६३) E ज्ञानेन । दानेन । बलेन । सुराज्येन । विनोदेन । वैरिनिग्रहेण । शौर्येण । धर्मेण । तपसा । सौख्येण । प्रमोदो दशधा मत । ६३) F१ शाने । २ दाने। ३ वले। ४ राज्ये। ५ विनोदे। ६ वैरनिग्रहे। ७ शौर्ये । ८ धर्म । ९ जये। १० मौष्ये(१सौख्ये)। प्रमोदो दशधा मतः। __1 A B अथ दशविधः ।, C दशविधपार्थिवानां प्रमोद । D दशविधः प्रमोदः । F दशविधप्रमोदविचारः। 2 B वैरनिग्रहे। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ६४. चतुर्विधः प्रबोधः। १ बालसंस्कारप्रबोधः। २ शास्त्रप्रबोधः। ३ प्रज्ञाप्रबोधः । तत्त्वनिश्चयप्रबोधः । इति । ६४) B १ शास्त्रप्रबोधः। २ प्रज्ञाप्रवोधः। ३ तत्त्वनिश्चयप्रबोधः । ६४) C१ शास्त्र अवोध्य। २ प्रज्ञानप्रबोध। ३ तत्त्वप्रवनप्रवोधश्चेति । ६४) D १ वालानां संस्कारप्रवोधः । २ काव्यप्रवोधः। ३ ज्ञानप्रबोधः। ४ तत्त्वनिर्णयप्रवोधः। ___६४) F १ वालसंयमनं । २ वालसंस्कारप्रवोधः। ३ शास्त्रप्रवोधः। ४ प्रज्ञाप्रबोधः। ५ तत्वनिश्चयप्रबोधः।। ६४) F १ तालसंस्कारप्रवोध। २ शास्त्रप्रवोध । ३ प्रज्ञाप्रबोध। ४ वचन निश्चयप्रवोध। ६५. चतुर्विधा बुद्धिः। १ खभावजाता । ४ पारिणामिकी । इति । २ श्रुतोत्पादिता । ३ कर्मजाता । ६५) C१ स्वभावजा। २ उत्पादिता। ३ परिणामकी। ४ कर्मजाश्चेति । ६५) D१ उत्पत्तिकी। २ वैनयिकी। ३कार्मजा।.४ पारिणामिकी चेति। ६५) १ स्वभावजा। २ उत्पादिका। ३ परिणामिका। ४ कर्मजा चेति । ६५) F १ स्वभावजा। २ श्रुतोत्पन्ना। ३ उत्पातिकी। ४ परिणामकी चेति । ६६. अष्टौं बुद्धिगुणाः। शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा । ऊहापोहोऽर्थविज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः। ६६) १ सुश्रूषा। २श्रवणं । ३.ग्रहणं। ४ दर्शनं। ५धारणं। ६अर्थविज्ञानं । ७ धर्मविज्ञानं । तत्त्वविज्ञानं। ६६) D १ स्वरूपग्रहणं। २ ग्रहण। ३ धारणं। ४ विज्ञानं। ५ऊहनं । ६ अपोहनं। ७ तत्त्वज्ञानं चेति । ६६) E १ शुश्रूषा। २ श्रवणं । ३ ग्रहणं । ४ धारणं । ५ऊह। ६ अपोह । ७ विज्ञानं । ८ तत्त्वज्ञानं चेति। ६६) F१शुश्रूषा। २ श्रवणं । ३ ग्रहणं । ४ धारणं। ५ऊह। ६अपोह । ७ अर्थविज्ञानं। ८ वचनज्ञानं चेति। . ___ 1 C चतुर्विध आयोध्य ।। E चतुर्विधः योधः।. 2 G तत्त्वधान ।। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-चस्तुरनकोशः। ६७. चतुर्विधं गान्धर्वम् । १ अवधानगतं(?) । २ स्वरगतं । ३ पदगतं । ४ तालगतं । इति । ६७) C E F १ स्वरगतं । २ पदगतं । ३ तालगतं । ४ अवधानगतं । ६७) D १ स्वरगतं । २ पदगतं । ३ अवधानं चेति । ६८, त्रिविधं गीतम् । १ महागीतं । २ अनुगीतं । ३ उपगीतं । इति । ६८) A B G १ महागीतं । २ अनुगीतं । ३ अपगीतं । ६८) D १ उपांगगीतं। २ महागीतं । ३ अनुगीतं चेति । ६८) Egives only त्रिविधं गीतं but does not mention the names. ६८) F १ महागीतं । २ उपगीतं । ३ अनुगीतं । ६९. षेत्रिंशद्गीतगुणाः। . १ सुवरं । २ सुतालं। ३ सुपदं। ४ शुद्धं । ५ ललितं । ६ सुबन्धं । ७ सुप्रमेयं । ८ सुरागं । ९ सुरसं। १० समं । ११ सदर्थं । १२ सुग्रहं । १३ सुश्लिष्टं । १४ क्रमस्थं । १५ सुसमयकं ( ? सुयमकं)। १६ सुवर्ण। १७ संपूर्ण । १८ सालंकारं । १९ सुभाषाढ्यं । २० सुगन्धस्थं ( ? सुगंभीरं)। २१ व्युत्पन्नं । २२ मधुरं । २३ स्फुटं । २४ सुप्रभ । २५ प्रसन्नं । २६ कंपितं । २७ समजातं । २८ रोद्रगीत । २९ ओजःसगतं ( ? ओजःसंगतं) । ३० द्रुतं। ३१ मुखस्थापकं । ३२ हतांशं । ३३ विलंम्बितं । .३४ अग्राम्यं । . ३५ मध्यं । ३६ सुप्रमाणं । इति । ६९) A १ सुस्वरं। २ सुतालं। ३ सुपदं। ४ शुद्धं । ५ ललितं । .६ सुवध । ७ सुप्रमेयं । ८ सुरागं । ९ सुरसं। १० समं। ११ सदध(थ)। १२ सुग्रहं । १३ श्लिष्टं । १४ क्रमस्थं । १५ सुसमयकं(?सुयमकं)। १६ सुवर्ण । १७ सुरक्तं । १८ सुसंपूर्ण। १९ सालंकारं। २० सुभापाद्यं । २१ सुगंधस्थं। २२ व्युत्पन्नं। २३ मधुरं,। _1_F षट्त्रिंशद् गुणाः। - - - -- - - - Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति । २४ स्फुटं । संगतं । सविवरण-वस्तुरत्नकोशः । २७ समजातं । २५ सुप्रभं । ३० दर्शनस्थितं । ३४ मध्यं प्रमाणं । ३५ कवित्कंपितं । २६ प्रसन्नं । ३१ सुखस्थापकं । ५ ललितं । ६९ ) B १ सुस्वरं । २ सुतालं । ७ सुप्रमेयं । १३ लिटं । ८ सुरागं । ९ सुरसं । १९ सालंकारं । ३ सुपदं । १० समं । L ४ शुद्धं । ११ सदार्धं ( ? सदर्थ ) । २२ व्युत्पन्नं । २३ मधुरं । १४ क्रमस्थं । १५ सुमय (? यम ) कं । १६ सुवर्ण । १७ सुरक्तं । २४ स्फुटं । २५ सुप्रभं । २६ प्रसन्नं । २७ अग्राम्यं । २८ कवित्कंपितं । २९ समजातं । २० सुभाषाढ्यं । ३० रौद्रगीतं । ३१ ओजःसंगत । ३२ दर्शनस्थितं । ३३ सुखस्थापकं । ३४ हतंसं ( हतांश) । २१ सुगंधस्थं । ३५ विल(?भा) षितं । ३६ मध्यं प्रमाणं । २८ रौद्रगीतं । ३२ हतांशं । ४ ललितं । ५ सुसंबंधं । विषमं । ११ सदर्प(?र्थ)। । १० ६९) C १ सुस्वरं । २ सुपदं । ३ शुद्धं ७ सुरागं । १३ सुलिएं । ९४ क्रमस्थं । १५ यमकं । ८ सुरसं । ९ समं । १९ सुभाषाष्पं (?ढ्यं) । २० सुसंधिस्थं । २१ सु (व्यु ) त्पत्तिकं । २२ मधुरं २४ प्रसन्नं । २५ अग्रण्यं (? ग्राम्यं ) । २६ सुकवित्वं । २७ विचारवतां ( ? ) । २८ २९ विलंवितं । ३० द्रुतं । ३१ मध्यं । ३२ उत्क्रीयमाणं । १६ सुवर्ण । १७ सुरक्तं । । ३३ सुवाद्यं । ३५ सुनृत्यं । । ६९) D १ सुस्वरं । ७ सुरागं । ८ सुरम्यं । ९ समं । १० सदर्ध ( ? ) । ११ सुग्रहं २ सुतालं । १४ सुयमकं । ३ सुपदं । १९ सुसंधिस्थं । २० व्युत्पन्नं । २१ गंभीरं । २२ स्फुटं । २३ सुप्रभं । १५ सुरक्तं । १६ संपूर्ण । ४ शुद्धं । २५ कुंचितं । २६ क्व (कं) पितं । २७ समायातं । २८ रौद्रगीतं । २९ प्रसन्न । १७ सालकारं । ३१ मुखस्था (? सुखस्थापकं ) । ३६ प्राञ्जलत्वं । ३७ उक्तप्रमाणं चेति । ३२ द्रुतं । ३३ मध्यं । ३४ विलम्बितं । ४ शुद्धं १० सुसंगीतं । । ६३ २९ ओजः ३३ विभ (? भाषितं । ५ ललितं । ११ सुहर्ष १७ सुरकं । ६९ ) E १ सुस्वरं । २ सुतालं । ३ सुपदं । ७ सुप्रमेयं । १३ श्लिष्टं । ८ सुरागं । १४ क्रमस्थं । - १५ सुवर्ण । ९ सुरसं । १९ सालंकारं । २४ प्रसन्नं । '२५ अग्राम्यं । २६ कुंचितं । २० सुभाषाद्यं (?ढ्यं)। ३० प्रथमस्थितं । ३१ मुखस्थं । ३२ द्रुतं ३६ प्रमाणं चेति । २१ २७ कंपितं । सुधिष्पं ( ?ण्यं) । १६ सुगमं । ३३ विलंबनं (? वितं ) । ३४ मध्यं । २२ मधुरं । २८ समायातं । २९ । C । / ६ सुजियं (?) १२ सुग्रहं । १८ सालंकारं । ५ ललितं । १३ सुकाव्यं । ६ सुप्रबद्धं । १२ दृष्टं । १८ मुषाभव्यं (? सुभाषाढ्यं) २४ अग्राम्यं । ६ सुबंधं । १२ सुग्रहं । १८ संपूर्ण २३ स्फुटं । सुखस्थितं । ३४ सुकलं । ३० स्थितं । ३५ गुरुत्वं । ६ सुसंबंधं । १२ सुग्रहं १८ संपूर्ण । ३५ उक्तं । २३ स्फुटं । विद्यासंगतं । ४ शुद्धं । ५ ललितं । ६ सुसंबद्धं । ११ सहर्षी(?र्ष) । १२ सुग्रहं । ६९) F १ स्वरगतं । ७ सुप्रमेयं । ८ सुरागं । ९ सुरसं । २ सुस्वरं । ३ सुपदं । १३ सुश्लिष्टं । १४ क्रमस्थं । १५ सुवर्ण । १६ सुगमं । १७ सुरक्तं । १८ संपूर्ण । १९ सालंकारं । १० सुसंगी [तं ] | २० सुभाषाद्यं (?ढ्यं । २१ । सुसंधिष्ठं । २२ सुद्यतनं (१) । २३ सुद्यु ( ? व्यु ) त्पन्नं । २४ मधुरं । २५ स्फुटं । २६ प्रसन्नं । २७ संग्राम्यं । २८ विकम्पितं । २९ समूज (र्जि)तं । ३२ सुखस्थं । ३३ द्रुतविलंवितं । ३४ मध्ये | ३० विद्यासंगतं । ३५ सुप्रमाणं । चेति । ३१ प्रथमस्थं । 2 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सविवरण-वस्तुरनकोशः। ६९) G १ सुस्वरं। २ सुतालं। ३ सुपदं ४ शुद्धं । ५ ललितं । ६ सुबंधं । ७ सुप्रसेयं । ८ सुरागं। ९ सुरसं। १० समं । ११ सदर्थ । १२ सुग्रहं । १३ श्लिष्टं। १४ क्रमस्थं । १५ सुसमयकं । १६ सुवर्ण । १७ सुरकं । १८ संपूर्ण। १९ सालङ्कारं । २० सुभाषायं(?ढ्यं)। २१ सुगन्धस्थं । २२ व्युत्पन्नं। २३ मधुरं । २४ स्फुटं । २५ लुप्रभं। २६ प्रसन्नं। २७ [क]पितं । २८ समजातं । २९ रौद्रगीतं । ३० ओजः संगतं । ३१ दर्शनस्थितं। ३२ सुखस्थापकं । ३३ हताशं। ३४ विल(?भा)षितं । ३५ मध्यं प्रमाणं । ७०, चतुर्विधं वाद्यम् । १ ततं । २ विततं । ३ घनं। ४ सुषिरं । इति । ७०) C १ ततं। २ विततं । ३ धनं। ४ सुखिर(?षिरं)। ७०) D १ ततं। २ विततं । ३ घनं। ४ शिखरं (सुषिरं) चेति । ७०) F१ स्फुटं। २ विततं । ३ धनं। ४ सुपिरं । ७१. द्विप्रकारं नृत्यम् । १ ताण्डवं । २ लास्यं । इति । ७१) D E १ लास्यं तांडवं च । ७१) F १ लास्यं तांडवं चेति । * 2 ७२. षोडशविधं काव्यम् । १ समयः। . २ प्रतिभा । ३ अभ्यासः। ४ विद्या ।। ५ जातिः। ६ गीतिः। ७ रीतिः। , ८ वृत्तिः । ९ वाच्यं । १० वाचकं । ११ छन्दः। १२ अलङ्कारः। १३ गुणः । १४ रसः। १५ भावः। १६ अभिनयः । इति । ७२) A B १ समयप्रतिभा। २ अभ्यास। ३ विद्या। ४ जाति। ५ गीति । ६ रीति। ७ वृत्ति। ८ वात्सल्य । ९ वाचक। १० छंद। ११ अलंकार । १२ गुण । १३ दोप। १४ रस । १५ भाव। १६ अभिनय । ___७२) १ समवर्ति। २ अभ्यास। ३ विद्या। ४ जाति । ५ गीति। ६ वृत्ति । ७ वाच्यं । ८ वाचकं । ९ छंद । १० अलंकार । ११ गुण। १२ दोप। १३ रस । १४ भाव। १५ हाव। १६ अभिमानश्चेति ।। 15 द्विविधं नृत्यं । 25 पोडशविधं भापालक्षणं ।. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सविवरण-वस्तुरनकोशः। ७२) D.१ अभ्यासः। २ विद्या। ३रीति। ४ गीति। ५वृत्तिः। ६काव्यं । ७ अलंकारः। ८वांचना । ९प्रबोधः। १० गुणः। ११ दोषः। १२ रसः।, १३ भावः। १४ अभिधानं। १५ जातिः। चेति । ७२) E१ समय। २ प्रतिभाषा। ३ अभ्यास। ४ जाति। ५ गीत(ति)। ६रीति। ७ वृत्तवाच्य। ८ वाचक। ९छंद'। '१० अलंकार। ११ गुण । १२ दोष । १३ रस। १४ भाव। १५ अभिनय। १६ विद्या। ७२) F १ समय । २ प्रतिभा। ३ अभ्यास। ४ विद्या। ५ जाति । ६ गीति । ७ रीति। ८वृत्ति । ९ वाच्य। १० वाचक। ११ छंदस्। १२ अलंकार । १३ गुण । १४ दोष। १५ रस। १६ अभिनयश्चेति । ७२) G १'समय । २ प्रतिभा। ३ अभ्यास । ४ विद्या। ५ जाति । ६ गीति । ७ रीति। ८वृत्ति। ९ वात्सल्य । १० वाचक। ११ छन्द। १२ अलंकार । १३ गुणदोष। १४ रस। १५ भाव। १६ अभिनय । ७३. 'दशविधं वक्तृत्वम् । १ परिभावितं । २ सत्यं । . ३ मधुरं । ४ सार्थकं । ५ परिस्फुटं। ६ परिमितं । ७ मनोहरं। ८ विचित्रं । ९ प्रसन्नं। १० भावानुगतं । इति । JHEEF give no vivarana. ! ७३) D १ मधुरं । २ साध()कं । ३ परिस्फुट । ४ सुमनोहरं । ५ परिमित्र(?त)। ६ चित्रं । ७ प्रसन्नं। ८ भावानुगतं । ७४. षड्डिधं भाषालक्षणम् ।. . १ संस्कृतं । २ प्राकृतं। ३ अपभ्रंशं। ४ पैशाचं ५ मागधं। ६ सौरसेनं । इति । . mimimmimuminium ७४) A B G १ संस्कृतं । २ प्राकृतं । ३ अपभ्रंशं । ४ पैशाचिकं । ५ मागधं ।। ६सौरसेनं ।' .७४).८ १संस्कृतं । '२ प्राकृतं ।. ३ अपभ्रशं। ४ पैशाचिकं। ५मागधं। ६सौरसेनं ।। - ७४) D १ संस्कृतं । २ प्राकृतं। ३ अपभ्रंशं। ४ पैशाचकं। ५मागधं ।' ६ सौरसेनं। .७४) : १. संस्कृत। .. २ प्राकृत! , ३ अपभ्रंश। ४ पैशाच। ५मागध। ६सूरसेन। 1A B सार्धक। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सविवरण-घस्तुरतकोशः। ७४) F १ संस्कृतं। २ प्राकृतं । ३ अपभ्रंशं । ४ पैशाचिक। ·५ सूरसेन । ६ मागधं चेति। * . ७५, पञ्चविधं पाण्डित्यम् । १ वक्तृत्वं । २ कवित्वं । ३ वादित्वं । ४ आगमिकत्वं । ५ सारखतप्रमाणं । इति । . ७५) C १ वक्तव्यं । २ वशित्वं । ३ आगम । ४ सारस्वत ।, ५ प्रमाणं । चेति । ७५) D १ वक्तृत्वं । २ आगमित्वं । ३ शास्त्रसंस्कार। , ४ प्रौठित । ५सारस्वतप्रमाणं। ७५) E१ वक्तत्वं । २ वादिकत्वं। ३ कवित्वं । ४ आगमत्वं । ५गमत्वं । ७५) F १ वकृत्वं । २ वादस्क(?दित्व)। ३ कवित्वं । ४ आगमत्वं । ५ गमत्वं चेति । ७६. चतुर्विशतिविधं वादलक्षणम् ।। १ उत्पत्तिः। २ समाप्तिः। ३ सत्यवादः। ४ प्रतिवादः । ५ पक्षः। ६ प्रतिपक्षः। ७ प्रमाणं । ८ प्रमेयं । ९ प्रभेदः । १० प्रश्नः। ११ प्रत्युत्तरः । १२ दूषणं । १३ अर्थान्तरं । १४ उपन्यासः। १५ अनुवादः। १६ आदेशः। १७ निर्वाहः । १८ निर्णयः। १९ विग्रहस्थानं । २० अर्थान्तरसमता । २१ सुखरत्वं । २२ उच्चारणं । २३ जयः। २४ पराजयः । इति । ___७६) A.B १ उत्पत्ति। २ सभापति। ३ सत्यवादि। ४ प्रतिवादि। ५ पक्षप्रमाण । ६प्रमेय । ७प्रमोद। ८प्रश्न। ९प्रत्युत्तर। १० दूषण। ११ भूषण । १२ अर्थातर। १३ उपन्यास। १४ अनुवाद। १५ आदेश। १६ निर्वाह । १७ निर्णय। १८ निश्चय । १९ स्थान। २० समता। २१ निग्रह। २२ जय। २३ अजय ।' ७६) C१ उत्पत्ति। २ सभापति। ३ सत्यवाद। ४ पक्ष। ५प्रतिपक्ष । ६प्रमाण । ७ प्रमेय । ८प्रमेद। ९ प्रसन्न । १० प्रत्युत्तर। ११ दूषण। १२ उपन्यास। १३ आदेश। १४ निर्णय। १५ निश्चय। १६ नियम। १७ अर्थ। १८ समता। १९ वर्णन । २० माधुर्य । २१ सुस्थरत्व। २२ उधारण । २३ जय । २४ पराजय । ७६) D १ उत्पत्तिः। २ सभापति। ३ सत्यवादी। ४ पक्षि। . ५ प्रतिपक्षि । ६प्रमाण । ७प्रमेय । ८प्रसन्न। ९प्रमेद। १० उत्तरप्रत्युत्तर। ११ दूपण । 1 2 पंचपांडित्य। 2 C चतुर्विंशतिविधं नादलक्षणं । - Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। १२ भूषण। १३ अभ्यंतर। १४ अनुवाद । १५ अभेद ।। १६ निर्वाह । १७ निर्णय । १८ विग्रहस्थान। १९ समता। २० जय ।, २१ अजयश्चेति ।। ७६) E१ उत्पत्तिः। २ सभापतिः। ३ सत्यवादी। ४ सभावाद। ५ पक्ष । ६ प्रतिपक्षमाण । ७ प्रमेय । ८ शस्त्रप्रभेद । ९ प्रसन्न । १० प्रत्युत्तर। ११ दूषण । १२ भूषण। १३ उपन्यास। १४ अनुवाद । १५ दशसमिता। १६ निर्णयस्थान । १७ अर्थातर। १८ समता। १९ जय । २० पराजयश्चेति । ७६) F १ उत्पत्ति। २ समाप्ति। ३ सभावादपक्ष। ४ प्रमाण।' ५ प्रमेय । ६ प्रतिपक्ष। ७ प्रभेद। ८प्रसन्न। ९प्रत्युत्तर। १० दूषण। ११ भषण । १२ उपन्यास। १३ अनुवाद । १४ आदेश। १५ निर्णय । १६ निश्चय । १७ प्रतिपक्ष। १८ निश्चयस्थान। १९ अर्थान्तरसमता । २० जय । २१ पराजयश्चेति । ७६) G१ उत्पत्ति। २ सभापति। ३ सत्यवादि। ४ प्रतिवादि। ५ पक्ष । ६प्रमाण। ७प्रमेय । । ८प्रमोद । ९प्रश्नं। १० प्रत्युत्तर। ११ दूषण । १२ भूषण। १३ अर्थान्तर। १४ उपन्यास । १५ अनुवाद । १६ आदेश । १७ निर्वाह । १८ निर्णय। १९ निश्चय। २० स्थान। २१ समता। २२ निग्रह । २३ जय। २४ अजय। ७७. षड्विधं दर्शनम् । • १ माहेश्वरं। २ ब्राह्म । ३ साह्वयं । ४ बौद्धं । ५ जैनं । ६ चार्वाकं । इति । ७७) D १ माहेश्वरं। २ ब्राह्म। ३ सांख्यं । ४ जैनं । ५ बौद्धं । ६ चार्वाकं चेति । ७७) E १ माहेश्वरं। २ ब्राह्म। ३ सांख्यं । ४ जैन्यं । ५ बौद्धं । ६ चार्वाकं । ७७) १ माहेशं । . २ ब्राह्म। ३ सांख्यं । ४ बौद्धं । ५ जैन । ६ चार्वाक चेति । ७७) G१ माहेश्वरं। २ ब्रायं । ३ सांख्यं । ४ बौद्धं । ५ जैनं। ६ चार्वाकं । ७८. अष्टविधं माहेश्वरम् । १ नैयायिक। २ वैशेषिकं । ३ शैवं । ४ पाशुपतं । ५ महाव्रतं । ६ कालमुखं । ७ शांभवं । ८ भुक्तिपर्यंतं । इति । ७८) ABG १ नैयायिक। २ वैशेषिक। ३ शिवधर्म। ४ शैव। ५ कलामुख । ६ पाशुपत । ७ महाव्रत। ८भुतिपर्यंत । ७८) C१ पाशुपत । २ कालमुख । ३ महावत । ४ शांभवपर्येक । ५शिवधर्म। ६ शैव । ___७८) D१ न्याय। २ विशेपक । ३ शिवधर्म । ४ शौच । ५ पाशुपत । ६ कालमुस ७ महानतिकः।। ७८) । १ न्याय ।२ वैशेषिक । ३ शैव । ४पाशुपत्य । ५कालमुख। ६ महाप्रतिक। ७ शिवधर्म। ८ पर्यंतश्चेति । 1 A B E F G षट दर्शनानि ।, C षट्विधं दर्शनलक्षणं । 2 C इष्टविधं माहेश्वरं । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण वस्तुरनकोशः। ७८) F gives no Vivarana - ७९, दशविधं ब्राह्मयम् । । . १ प्रमाणं । २ संस्कारः । ३ कर्मवर्तनं । ४ होमः । ५ जापः । ६ श्रुताध्ययनं । ७ गार्हस्थ्यं । ८ वानप्रस्थं । ९ यतिः । १० ब्रह्मचर्य । इति । ७९) A १ लक्षण। २ प्रमाण। ३ संस्कार। ४ कर्म। ५ ब्रह्मचारि। ६ गृहस्थ। ७ वानप्रस्थ । ८ यति। ९ ब्रह्मपर्यंत । १० वर्तन । ७९) B १ लक्षण। २ प्रमाण। ३ संस्कार। ४ कर्म। ५ वर्त्तन। ६.ब्रह्मचारी। ७ गृहस्थ । ८ वानप्रस्थ । ९ यति । १० ब्रह्मपर्यंत। ७९) C१ तत्त्व। २ प्रमाण । ३ संस्कार। ४कर्म । ५ वर्तन । ६ ब्रह्मचारी। ७ गृहस्थ । ८ वानप्रस्थ । ९ यति। १० ब्रह्मपर्यकश्चेति । ७९) D१ प्रमाण । २ संस्कार। ३ कर्मवर्तन । ४ होम । ५जाप। ६ श्रुता. ध्ययन । ७ वानप्रस्थ । ८ गृहस्थ । ९ यति। १० ब्रह्मपर्य[त] चेति । ७९) E१प्रमाण । २ संस्कार । ३ कर्म। ४ वर्तन । ५ ब्रह्मचारी। ६ गृहस्थ। ७ वानप्रस्थ। ८ यती। ७९) F १ लक्षण। २प्रमाण । ३ संस्कार। ४ कर्म। ५वर्तन । ६ब्रह्मचारी। ७ गृहस्थ । ८ वानप्रस्थ । ९ यति । १० ब्रह्मचर्य । चेति । ७९) G १ प्रमाण। २संस्कार। ३ कर्म। ४ वर्तन। ५ ब्रह्मचारी। ६ गृहस्थ । ७ वानप्रस्थ । ८ यति। ९ ब्रह्म। १० पर्यंत । ** vrwwwwww~~ ८०. चतुर्विधं साङ्ख्यम् । १ तत्त्वं । २ प्रमाणं । ३ प्रकारः। ४ सर्वात्मं । इति । । ८०) AG १ तत्त्व । २ प्रमाण ।. ३ प्रकार। ४ सर्वात्मपर्यंत । , ८०) B १ तत्त्व। २ प्रमाण । ३ प्रकार। ४प्रमेद। ५ प्रमोदपर्यंत । ६ सर्वात्मपर्यत । ८०) ० १ तत्त्वांग। २ सर्वात्मता। ३ प्रमाणं । ४ प्रकार ।। ८०) D १ तत्त्वप्रमाणं। २ सर्वात्मा। ३प्रकार। ४ कार्य। चेति । ८०) E १ तत्त्व। २ प्रमाण । ३ सर्वात्मा। ४ प्रकारपर्यंतश्चेति । ८०) १ तत्त्व। २ प्रमाण । ३ संस्कार। ४ सर्वात्म। चेति । ८१. सप्तविधं जैनम् । १ सर्वज्ञः । २ धर्मः। ३ तत्त्वार्थः। ४ प्रमाणं । ५ प्रतिमा । ६ प्रभेदः । ७ सिद्धिः । इति । 1 DE ब्राह्मण्यं ।। G बाधं लक्षण। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सविवरण-वस्तुरनकोशः। ८१) A B D F G १ सर्वज्ञ । २धर्म । ३ तत्त्वार्थ । ४ प्रमाण। ५प्रतिमा । ६ प्रमेद। ७ सिद्धिपर्यंत । ८१) १ सर्वश। २ धर्म। ३ तत्त्वं । ४ प्रमाण । ५.अर्थ । ६ प्रतिमा । ७ प्रतिभेद। ८ सिद्धिश्चेति । ८१) १ सर्वज्ञ। २ तत्त्वार्थ । ३ प्रमाण । ४ प्रतिमा। ५ प्रभेदसिद्धि । ६पर्यंत । ७ धर्मश्चेति । ८२. देशविधं बौद्धम् । १ सौगतं । २ पारमिता । ३ विहारः। ४ प्रमाणं । ५ सौत्रान्तिकं । ६ वैभाषिकं । ७ योगाचारं । ८ माध्यमिकं । ९ मोक्षः। १० सर्वदशारिगतं । इति । ८२) A १ स्वसंबद्ध । २ पर्वत । ३ पारिगत । ४ विहार। ५ प्रमाण । ६ सूत्रांतिक। ७ भाविक । ८ योगाचार । ९ माध्यमिक । १० मोक्षपर्यंत । ८२) B G १ स्वसंबद्ध । २ पर्वद । ३ पारिगत । ४ विहारः। ५प्रमाण । ६ सूत्रांतिक । ५ त्रैभाविक । ८ योगाचार ।९ माध्यमिक । १० मोक्षपर्यन्त । , ८२ । C १ सौगतं । २ परिषद । ३ परिसितं । ४ विहार । ५ प्रमाण । ६ शेवातिक । ७ वैभाषिकं । ८ योगाचारं । ९ माध्यमिकं । १० मोक्षश्चेति । ८२) D १ सगता । २ परिमिता । ३ पारमिता । ४ विहार । ५ प्रमाण । ६ सौत्रांतिक । ७ भैराशक(?)। ८ योगोपचार । ९ मोक्षपर्यंत । ८२) E १ सुगत । २ परिगत । ३ पारमित । ४ विहार । ५ प्रमाण । ६ सौत्रान्तिक । ७ योगांत । ८ माध्यमिक ।९ मोक्ष । १० माध्यमपर्यंतश्चेति । ८२) E १ स्वागतं । २ सर्वदशारिगतविहार । ३ प्रमाण । ४ प्रभेद । ५ शौचान्तिक । ६ विभाषिका । ७ योगाचार । ८ मध्यमिका ।९ परमित । १० मोक्षपर्यन्तं । . , ८३. चितुर्विधं चार्वाकम् । . . १ तत्त्वं । २ प्रमाणं । ३ प्रभेदः । ४ प्रमोदः । इति। ८३) A B G १ तत्त्वार्थ । २ प्रमाण। ३ प्रमेद । ४ प्रमोदपर्यन्त । । ८३) ० १ तत्त्वं । २ प्रमाणं । ' ३ भेद । ४ पर्यंक । ८३) E१ तत्त्वप्रमाणं। २ प्रभेद । ३ प्रमोद। ४ पर्यंतश्चेति । ८३) F१ तत्त्वार्थ। २ प्रमाण । ३ प्रभेद । ४प्रमोदपर्यन्तं । चेति । 1 A B G अथ दशविधं । D extends thus far. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरतकोशः। ८४. चतुर्विंशतिविधं विचारकत्वम् । १ विद्या। २ विज्ञानं । ३ विनोदः। ४ कला। ५ कवित्वं । ६ वक्तत्वं । ७ गीतं । ८ वाद्यं । ९ नृत्यं । १० देशः। ११ कालः । १२ पात्रं । १३ प्रमेयं । १४ वादः। १५ जयः । १६ रसः । १७ भावः । १८ अभिनयः। १९ धर्मः। २० अर्थः। २१ कामः। २२ मोक्षः। २३ लोकवादः । २४ विचारः । इति । ८४) A B G १ विद्या। २ विनोद। ३ विज्ञान। ४कला। ५ कवित्व । ६ वक्तत्व। ७ गीत। ८वाद्य। ९ नृत्य। १० देश ।- ११ काल। १२ पात्र। १३ प्रमेय। १४ पर्याय । १५ जय । १६ रस। १७ भाव। '१८ अभिनय । १९ धर्म। २० अर्थ। २१ काम। २२ मोक्ष। २३ लोकवाद । २४ विचारपर्यत । ८४) १ विद्या। २ विज्ञान । ३ विनोद । ४ कला। ५ कवित्व । ६ वक्तृत्व । ७ गीत। ८नृत्य । ९ देश। १० काल। ११ पात्र । १२ प्रमेय । १३ पर्याय । १४ संवाद। १५ अभिनय। १६ धर्म। १७ अर्थ। १८ काम। १९ मोक्ष । २० लोकपर्यकश्चेति। ८४) E १ विद्या। २ विज्ञान । ३ विनोद । ४ कला। ५ कवित्व। ६ वकृत्व । ७ गीत। ८ नृत्य । ९ वाद्य। १० देश। ११ पात्र । १२ प्रमेय । १३ रस । १४ वाद। १५ अभिनव । १६ धर्म। १७ अर्थ। १८ काम। १९ मोक्ष । २० लोकवादपर्यंतश्चेति । ४) F१ विद्या। २ विज्ञान । ३ विनोद। ४ कला। ५ कवित्व। ६ वक्तृत्व । ७ गीत । ८नृत्य । ९ वाद्य । १० देश। ११ काल। १२ पात्र। १३ प्रमेय । १४ पर्याय। १५ जय। १६ रसवाद । १७ अभिनय। १८ धर्म। १९ अर्थ । २० काम। २१ मोक्ष। २२ लोक । २३ वाद । २४ विचारपर्यंतश्चेति । ८५. दशविधं गुरुत्वम् । १ वंशे २ ज्ञाने ३ पदे ४ सत्त्वे ५ शौर्ये ६ दाने ७ बले ८ जये। ९ संताने १० खगुणे चेति गुरुत्वं दशधा मतम् ॥ ८५) : १ वि(?)शे ज्ञाने पदे शौर्य सत्त्वे दाने वले जये। संताने स्वगुणे चेति । ८५) F १ वंशे। २ दाने। ३ पदे। शौर्ये । ५देवे । ६ दाने । ७ बले । ८ जये। ८ विजये। ९विज्ञाने । १० स्वगुणे गुरुत्वं दशधा मतम् । 1 A BG अथ चतुर्विशति । 4 A G सगुणे ।, B सुगुणे । 2 C चार्वाक 1; F वादलक्षणं । 3 C चारुत्वं । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण यस्तुरनकोशः। । ८६. पञ्चविधं चरितम् । १ ज्ञानचरितं । २ मानचरितं । ३ दानचरितं । ४ वीरविलासचरितं । ५ धर्मारंभचरितं । इति । ८६) C१ विलासचरित्रं । २ धर्मचरित्रं । ३ वीरचरित्रं । ४ गुणः प्रक्षेपणं । ८६) E१ दानं । २ मानं । ३ शानं । ४ विचार । ५ विलास । ८६) F१ वीरचरितं। २ विलासचरितं । ३ ज्ञानचरित्रं । ४ कलाचरित्रं । ५ गुणप्रक्षामचरितं चेति । ८७. पञ्चविधं पार्थिवानां पालनम् । १ राज्यपालनं । २ प्रजापालनं। ३ भूमिपालनं। ४ धर्मपालनं । ५ शरीरपालनं । इति । ८७) C१ कर्मपालनं । २ धर्मपालनं । ३ प्रजापालनं । ४ भूमिपालनं । ५शरीरपालनं । ८७) । १ धर्मपालनं । २ राज्यपालनं। ३ भूमिपालनं। ४ शरीरपालनं । ५ प्रजापालनं । ८७) F १ साधुपालनं। २ राज्यपालनं। ३ प्रजापालनं। ४ भूमिपालन । ५ सत्यपालनं । चेति। ८८. सप्तविधा प्राप्तिः। १ ज्ञाने २ धर्मे ३ बले ४ कामे ५ विज्ञाने ६ पात्रसंग्रहे । ७ महार्थे भूभुजां नित्यं प्राप्तिः सप्तविधा मता ॥ ८८) Cशाने धर्मे बले कामे विशाने पात्रसंग्रहे । सर्वार्थभूत(?भु)जां चैव प्राप्तिः सप्तविधा मता ॥ ८८) Eझाने धर्मे घले कामे विशाने पात्रसंग्रहे । सर्वार्थभूभुजां नित्यं प्राप्तिः सप्तविधा मता॥ ८८) F शाने धर्मे क(?व)ले कामे विशाने पात्रसंग्रहे । सर्वार्थे भूभुजानां नित्यप्राप्तिः । ८९. चतुर्विंशतिविधं शौर्यम् । १ शब्दशौर्य । २ प्रतापशौर्य । ३ दानशौर्य । ४ स्थानशौर्यं । ५ उदयशौर्य । ६ तेजशौर्यं । ७ संग्रामशौर्य । ८ प्रतिपत्तिशौर्य । ९ जय CP चरित्रं । 2 F पार्थिवानां प्रजापालनं। 3 F drops प्राप्तिः । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___७२, । सविवरण-वस्तुरनकोशः। शौर्य । १० मानशौर्य । ११ ज्ञानशौर्य । १२ साहसशौर्य । १३ शरणागतशौर्य । १४ प्रमोदशौर्यं । १५ उद्यमशौर्य । १६ अर्थशौर्य । १७ आचारशौर्य । १८ बलशौर्य । १९ कीर्तिशौर्य । । २० धर्मशौर्य । २१ रक्षणशौर्य । २२ गुणशौर्य । २३ परिबोधशौर्य । २४ प्रबोधशौर्य । इति । ८९) A B G १ शब्दशौर्य । २ प्रतापशौर्य । ३ दान । ४ स्थान । ५ उदय। ६ तेज। ७ संग्राम । ८ प्रतिपन्न । ९ जय । १० मान । ११ ज्ञान । १२ साहस । १३ शरणागत । १४ परिवोध। १५ प्रमोद । १६ उद्यम । १७ अर्थ । १८ आचार। १९ वल । २० कीर्ति । २१ लक्षण । २२ गुण । २३ ज्ञान । २४ मान । ८९) C१ नाम । २ शब्द । ३ प्रताप। ४ दान। ५ स्थान । ६ उत्तम ।७ वेज। ८ संग्राम। ९प्रतेपत्ति। १० जयमान। ११ ज्ञान । १२ साहस। १३ शरणागत।. १४ रक्षण । १५ प्रवोध । १६ प्रमोद । १७ आज्ञा। १८ उद्यम । १९ यथाचार । २० बल । २१ कीर्ति । २२ शौर्य । २३ धर्म । २४ रक्षण चेति । ८९) E १ स्नान । २ मान । ३ शब्द । ४ प्रताप । ५ ज्ञान । ६ उदय ।,७ तेज । ८ संग्राम । ९ जय । १० साहस । ११ प्रतिपन्न । १२ शरणागत । १३ प्रबोध । १४ प्रमोद । १५ आज्ञा । १६ उद्यम । १७ अर्थ । १८ आचार । १९ बल । २० कीर्ति । २१ लक्षण । २२ शौर्य चेति । ८९) F१ तनु। २ शब्द। ३ प्रताप। ४ दान । ५ स्थान । ६ उदय । ७ तेज। ८ संग्राम । ९ प्रतिपन्न । १० जय । ११ मान । १२ ज्ञान । १३ साहस । १४ शरणागत । १५ प्रबोध । १६ प्रमोद । १७ आज्ञा। १८ उद्यम । १९ अर्थ । २० आचार । २१ बल। २२ कीर्ति । २३ लक्षण । २४ गुणशौर्य चेति। - ९० देशविधं बलम् । वाक्कायबुद्धिमन्त्रैश्च स्थानसैन्यसुहृजनैः । शकुनैर्दैवतैश्चेति राज्ञांदशविधं बलम् ॥ ९०) १ वाक्वलं। २ कायवलं। ३ वुद्धिधलं। ४ मंत्रवलं। ५ स्थानवलें । ६ सैन्यवल । ७ मुहूर्त्तवलं । ८ शकुनवलं । ९ राजवलं ।। ९०) E १ वाक। २ काय । ३ वुद्धि । ४ मंत्र । ५मन । ६ सुहृद । ७ शकुन । ८ सैन्य । ९ ध्वनि । १० श्रुति । ११ देवता चेति। ९०) F वक्तायुः शुद्धिमन्त्रैश्च स्थानं सैन्यं सुहजनैः। . शकुनैर्देवतश्चेति राक्षां दशविधं वलम् ॥ 1 F चतुर्दशविघं वलं ।, F राज्ञां दशविर्घ वलं। 2 A B G देवतश्चे Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। ९१. देशविधः सङ्ग्रहः। ज्ञाने पात्रे गुणे शौर्ये पत्नीयोगे बले जये। धर्मे मित्रे श्रुते यज्ञे दशधा गुणसङ्ग्रहः ॥ ९१) A ज्ञाने पात्रे गुणे शौरे पत्नीयोगे बले धर्मे जये गुणेषु श्रुतसंग्रहः॥ ९१) B ज्ञाने पात्रे गुणे सौरे पत्नीयोगे बाल धर्मे जये गुणेषु श्रुतसंग्रहः॥ ९१) Cशाने पात्रे च विके च पक्ष्यायोगे बले जये लक्षित। ९१) E१ शानपात्र । २ मित्रपात्र ।। ३ शौर्यपात्र । ४ नियोग। ५.बल । ६प्रवीण । ७ यश। ८,धर्म । गुणसंग्रहः। ९१) F शाने पात्रे च मित्रे च पत्नीयोगे बले जये । धर्मे गुणे श्रुते चैव संग्रहः सप्तधा मतः॥ ९१) G शाने पात्रे गुणे शौरे पत्नीयोगे वले धर्मे जये गुणेषु श्रुतसंग्रहः ॥ . ९२. दशविधो जयः। ज्ञानासनप्रतापैश्च सङ्ग्रामैश्च सुहजनैः । निद्राहारोदयैश्चेति राज्ञां दशविधो जयः॥ ९२) A G शानासनं प्रतापैर्वा संग्रामैश्च सुहजनैः। निद्राहारोद्याञ्चेति राक्षां दशविधो जयः॥ ९२) B ज्ञानासनं प्रतापैर्वा संग्रामै स्वसुहजनैः।। . निद्राहारै दयाश्चेति राशा दशषिधो जयः॥ ९२) C १ शान । २ सैन्य । ३ प्रताप । ४ काम। ५ संग्राम । ६ ऐश्वर्य । ७ सुक्रत। ८ मित्र । ९ सत्व। ९२) : १ मित्र । २ पात्र। ३ नियोग। ४ वासना। ५सुहृद । ६ प्रताप । ७ऐश्वर्य । ८ संग्राम । ९ वाक । १० परिश्रमी । ११ निद्रा । १२ आहार ।। १३ इंद्रिय । .९२) F ज्ञानाशनप्रतापेऽर्वाक् संग्रामैह्यमुष्टुजनैः। निद्राहारेन्द्रिये चेति राज्ञां दशविधो'जयः॥ - - । । ९३. पञ्चविधः परिच्छेदः। १ अलक्षितं । २ लक्षितं । ३ मानसिकं । ४ वाचिकं । ५ कार्मिकं । चेति । ९३) A B C D G give no Vivarana. '' ९३) E १ अलक्षित । २ लक्षित । ३ मानसिक । ४ वाचिक । ५ कर्मण। १९३) F १ अलिषित । २ लिखित । ३ मानसिक । ४ वाचिक । ५ कर्मणा चेति । 1 F सप्तविधः संग्रहः। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ । सविवरण-वस्तुरनकोशः। ९४. पञ्चविधं प्रभुत्वम् । १. कुलप्रभुत्वं । २ ज्ञानप्रभुत्वं । ३ दानप्रभुत्वं । ४ स्थानप्रभुत्वं । ५ अभयप्रभुत्वं । इति । ९४) A G १ कुलप्रभुत्वं । २ ज्ञानप्रभुत्वं । ३ दानप्रभुत्वं । ४ स्थानप्रभुत्वं । ५ उभयप्रभुत्वं । ९४) B १ कुलप्रभुत्वं । २ दानप्रभुत्वं । ३ स्थानप्रभुत्वं । ४ उभयप्रभुत्वं । ९४) C१ कुल । २ शौर्य। ३ दान । ४ स्थापन । ५गुण । ९४) । १ ज्ञानप्रभुत्व । २ अक्षय । ३ शौर्य । ४ स्थापना। ५प्रदान । ६ अभय । ९४) F १ ज्ञानप्रभुत्व । २ आय(?)प्रभुत्व । ३ शौर्यप्रभुत्व । ४ स्थानप्रभुत्व । ५दानप्रभुत्व चेति । ~ ९५. सप्तविधमुत्तमत्वम् । १ वयः। २ कुलं । ३ रूपं । ४ शीलं । ५ पदं । ६ ज्ञानं । ७ प्रयोगः । इति । ९५) A B G १ वयः। २ कुल। ३ रूप। ४ शील। ५पद। ६शान । ७ प्रयोगपर्यंतं चेति ९५) C gives no Vivarana ९५) E १ वयः। २ कुलं । ३ शीलं । ४ रूपं । ५ पदं । ६ ज्ञानं । ७ प्रयोग। ९५) F १ वयस् । २ कुल। ३ शील। ४ रूप। ५पद। ६ ज्ञान । ७ योग। ८ प्रयोगश्चेति । ९६. नवविधा शक्तिः । १ धर्मशक्तिः । २ दानशक्तिः। ३ मन्त्रशक्तिः। ४ ज्ञानशक्तिः। ५ अर्थशक्तिः। ६ कामशक्तिः। ७ युद्धशक्तिः। ८ व्यायामशक्तिः । ९ भोजनशक्तिः । इति । * ९६) C १ व्यायामशक्ति। २ ज्ञानशक्ति। ३ दानशक्ति। ४ धर्मशक्ति । ५ अर्थशक्ति । ६ युद्धशक्ति । ७ भोजनशक्ति । ८ विद्याशक्ति । ९६) १ धर्मशक्तिः। २ मंत्रशक्तिः। ३ कामशक्तिः। ४ भोजनशक्तिः। ५ युद्ध । ६ व्यायाम । ७ देश । ८ उपार्जन । ९ वाद । ___९६) T १ दानशक्ति । २ धर्मशक्ति। ३ मंत्रशक्ति। ४ ज्ञानशक्ति । ५ कामशक्ति । ६ अर्थशक्ति । ७ युद्धशक्ति । ८ भोजनशक्ति । ९ व्यायामशक्तिश्चेति । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण- वस्तुरत्नकोशः । ९७. सप्तविधा भुक्तिः । ११ शब्दः । २ स्पर्शः । ३ रूपं । ४ रसः । ५ गन्धः । ६ अभिमानः । ७ देशः । इति । २ शब्द | ३ रस । ४ रूप । ५ गंध । ९७) C gives no Vivarana ९७ ) E १ प्रतिमान | २ द्रव्य । ३ शब्द । ४ स्पर्श । ५ रूप । ६ रस । ७ गंध । ८ देशभक्ति । ९७) F १ अभिमान | ७ स्पर्शभुक्तिश्चेति । " ९८ ) A ज्ञाने दाने धर्मे अर्थे कामे बले शत्रुधाते । समारंभोदितं च । ९८ ) B ज्ञाने धर्मे अर्थे कामे वले शत्रुघाते समारंमे स्थितं च । ४ धर्म । ५ अर्थ । । ३ बले । ९८ ) E १ ज्ञान । २ दान । ३ वल । ८ घात । ९ समारंभ । १० उद्धतं चेति ९८) F १ ज्ञाने । २ दाने । मारणे । ८ समारंभे चेति । ९८ ) G १ ज्ञाने । २ दाने । घाते । ८ समारम्भो स्थितं च । ३ धर्मे । * ४. कर्मे ! ४ अर्थे । * ९८. अष्टविधमभिमानलक्षणम् । ज्ञाने दाने बले धर्मे धर्मार्थे शत्रु मारणे | समारंभे च युद्धे च अभिमानं प्रचक्षते ॥ L ५ कामे । 01 ६ काम । ५ कामे । ६ अर्थे । ( ७५ -प C ६ देश | ७. 1 ७ शत्रु 1 ६ बले । ७ शत्रु ९९. चतुर्विधं वात्सल्यम् । देवानां सद्गुरूणां च मन्त्राणां वल्लभे जने । स्नेहेन मानसं यच्च तद्वात्सल्यं चतुर्विधम् ॥ ९९) A B G देवानां सद्गुरूणां च मंत्राणां वल्लभे जने । स्नेहेन मानसं यच्च तद्वात्सल्यं चतुर्विधम् ॥ ९९) C देवानां सद्गुरूणां च श्रियां वलयभोजने । स्नेहेन मानसं यच्च तद्वासे । ९९) वेदानां गुरूणां च मित्राणां वर्णभोजने । स्नेहेन मनसा यच्च तद्वात्सल्यं चतुर्विधम् ॥ ९९) F' देवानां सद्गुरूणां मित्राणां वल्लभे जने । स्नेहेन संत[तौ] वात्सल्यं चतुर्विधम् ॥ * 1 E मुक्ति: 1; F भक्तिः । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः । C १००. पञ्चविधो महोत्सवः । १ ज्ञानमहोत्सवः । २ धर्ममहोत्सवः । ३ अर्थमहोत्सवः । ४ काम - 2 महोत्सवः । ५ मोक्षमहोत्सवः । इति । १०० ) A G १ ज्ञानमहोत्सवः । २ धर्ममहोत्सवः । ३ काममहोत्सवः ।। १०० ) B १ ज्ञानमहोत्सव । २ अर्थमहोत्सव । ३ काममहोत्सव | १०० ) C १ काममहोत्सव । २ द्रव्यमहोत्सव | ३ मोक्षमहोत्सव | १०० ) E १ ज्ञान । २ धर्म । ३ अर्थ | ४ काम । ५ मोक्षमहोत्सवश्चेति । १०० ) F १ धर्ममहोत्सव । २ द्रव्यमहोत्सव । ३ काममहोत्सव | ४ ज्ञानमहोत्सव | ५ मोक्षमहोत्सव | १०१. अष्टौ लब्धियोगः । 4/ १ अणिमा । २ महिमा । ३ लघिमा । ४ गरिमा । ५ ईषत्वं । ६ वशित्वं । ७ प्राप्तिः । ८ प्राकाम्यं । चेति । innet १०१ ) ABG give no Vivarana '' F १०१ ) C १ अणिमा । २ महिमा । ३ लघिमा । '४ गरिमा । ५ प्राप्ति । ६ प्रकाम्यं । ७ ईशत्वं । ८ वशित्वं । " } १०१ ) E १ अणिमा । २ महिमा । ३ गरिमा । ४ लघिमा । : ५ ईशत्व । ६ वशित्व | ७ प्राप्ति । ८ प्रकाम्यमेव । १०१) F १ अणिमा । १२ महिमा | '३ गरिमा । ६ विसत्व (?) । ७ वशित्व । ८ प्राकाम्य चेति । * 1 C drops the Sūtra but gives the Vivarana. 1 * * ४ लघिमा । ५ ईशत्व । 1 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Appendix A. Ms E. Additional Sūtras — षट्त्रिंशत् वादित्राणि। १ मेरी २ मृदंग ३ पटह ४ मरुज ५ कसाल ६ ताल ७ लघुताल ८ शंख ९ तूर्य १० भुगल ११ घर्घरी १२ तृलूरी १३ वंश १४ वीणा १५ पणव १६ दंड १७ डमरु १८ काहल १९ गर्गरी २० दुहिलि २१ भरह २२ कुंडलिका २३ क्रकच २४ रावण २५ कर. २६ कित्ररिक २७ त्रिवल २८ भ्रातृणी २९ हंडक ३० तंत्यं ३१ करड ३२ नागक ३३ ददकुंड ३४ नवसरली ३५ वीणात्रयं ३६ लघुमली मुख वाजित्रा अपदन विनोदी ।। १०० ॥ शंख ९र्य १० १८ काहल २६ किरिक ३४ नवसर पंचविंशति गुणोमात्यः। जनपदोभिजातः स्ववह । कृत स्वल्प । चक्षुषन् । प्राज्ञ धारयिष्णु । दक्ष । वाग्मी। प्रगल्भ । प्रतिपत्तिमान् ।सोत्साह । प्रभायुक्ता।क्लेशसह । शुचि । मित्रदृढभक्ति । शीलवान् । वली। आरोग्यवान् । शक्तियुक्त । स्तंभ । चापलहर संयोगो वैरिणः । अकर्ता ॥ १०१ ॥ राज्ञां अष्टादशतीर्थानि । ___मंत्री । पुरोहित । सेनापति । युवराज । दौवारिक । अंतर्षशिक । प्रशास । महात् । संनिधात् । प्रदेष्ट । नायक। पौरव्यवहारिक। परिवादाध्यक्ष। दंड। दुर्गतिपाल । आटविका ॥२॥ अष्टौ स्वर्गगुणाः। ' विषघात । रसायण । मंगलार्थ । विनीत । प्रदक्षणावर्त। गुरु अदग्ध ॥३॥ अष्ट गुणं पयः। सुगंधि सुव्यक्तरसं । तृष्णानं । शीतलं । लघु । हघं । स्वच्छं ।। ४॥ ' Explanation in Old Gujarati : श्रीगुरुभ्यो नमः । अथातो रत्नकोशं व्याख्यास्यामः । वस्तुविज्ञानं । सर्वशास्त्रमयं रम्य । सर्वज्ञानप्रकाशकं । स्वल्पग्रंथं सुबोधार्थ । रत्नकोशं समभ्यसेत् । १।तत्र शतेन सूत्राणां । कर्तव्यः संग्रहो यथा ॥ २॥ अथ इति मंगलार्थे । ग्रंथनुकर्ता श्रीवेदव्यास कहि छिं। ये मि चौदविद्या सर्व प्रगट कीधी। हवि रत्नकोश एह विनामि ग्रंथ कहिछि । ते ग्रंथ केहवुछि । सर्ववस्तुनु शान येह थिकी जणाइ । वलीकेहवुछि ते ग्रंथ । सर्व शास्त्र मयछि। मनोरम छि। रत्ननु भंडार छि। सर्वशान- प्रकाश थाइ । स्वल्पथोडं ग्रंथ अनिबोधये प्रतिबोधते घणु । एहये रत्नकोश ते निरूपी इछि । ते ग्रंथमांहिंसु एक १०० सूत्र करी संग्रह करी इछि । ते सूत्रकी हां । ते कही इछि । तत्रादौ त्रिभुवनानि । ते सूत्रमाहिं प्रथम घण्य भुवन कही इछि ॥ त्रिविधं लोकसंस्थान... ..।। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ सविवरण-वस्तुरत्नकोशः। Appendix B. Similar topics from some other works.राजवंशाः। Kumārapala Prabandha gives the following list of the राजवंशs. They are as follows-तत्र वंशः पत्रिंशत् , एवम् इक्ष्वाकुवंश १, सूर्यवंश २, सोम ३, यादव ४, परमार ५, चाहमान ६, चौलुक्य ७, छिन्दक ८, सिलार ९, सैन्धव १०, चापोत्कट ११, प्रतीहार १२, चन्दुक १३, राट १४, कूर्पट १५ शक १६, करट १७, पाल १८, करंक १९, वाउल २०, चन्देल २१, उहिल्ल पुत्र २२, पौलिक २३, मौरिक २४, मंकुयाणक २५, धान्यपालक २६, राजपालक २७, अम(न)ग २८, निकुम्भ २९, दधिलक्ष ३०, तुरुदलियक ३१, हूण ३२, हरियड ३३, नट ३४, माष ३५, पोपर ३६, नामानः। [-जिनमण्डनकृतकुमारपालप्रवन्धः, पृ. १] आयुधानि । चक्र । धनु । वज्र । खड्ग । क्षुरिका । तोमर । कुन्त । त्रिशूल । शक्ति । परशु । मक्षिका। भल्लि । भिण्डिपाल । मुष्टि । लुण्ठि । शङ्कः । पाश । पट्टिश । यष्टि । कणय । कम्पन । हल । मुशल । गुलिका । कर्तरी । करपत्र । तरवार। कुदाल । कुस्कोट । कोफणि । डाह । उथ्थूल। मुद्गर । गदा । घन । करवालिका। [श्रीयाश्रयमहाकाव्य (पृ २२ ) अनु म. न द्विवेदी] (see p. 17 of the text.)' कला। गीतम्, वायम् , नृत्यम्, आलेख्यम्, विशेषकच्छेद्यम्, तण्डुलकुसुमवलिविकाराः, पुष्पास्तरणम् , दशनवसनाङ्गरागः, मणिभूमिकाकर्म, शयनरचनम् , उदकवाद्यम्, उदकाघातः, चित्राश्च योगाः, माल्यग्रथनविकल्पाः, शेखरकापीडयोजनम्, नेपथ्यप्रयोगा, कर्णपत्रभङ्गाः, गन्धयुक्तिः, भूषणयोजनम् , ऐन्द्रजालाः, कौचुमाराश्च योगा, हस्तलाघवम् , विचित्रशाकयूंषभक्ष्यविकारक्रिया, पानकरसरागासवयोजनं, सूचीवानकर्माणि, सूत्रक्रीडा, वीणाडमरुकवाद्यानि, प्रहेलिका, प्रतिमाला, दुर्वाचकयोगा, पुस्तकवाचनम्, नाटकाख्यायिकादर्शनम्, काव्यसमस्यापूरणम्, पट्टिकावेत्रवानविकल्पाः, तक्षकर्माणि, तक्षणम्, वास्तुविद्या, रूप्यरत्नपरीक्षा, धातुवादः मणिरागाकरज्ञानम्, वृक्षायुर्वेदयोगाः, मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः, शुकसारिकाप्रलापनम् , उत्सादने संवाहने केशमर्दने कौशलम्, अक्षरमुष्टिकाकथनम्, म्लेच्छितविकल्पाः, देशभापाविज्ञानम्, पुष्पशकटिका, निमित्तज्ञानम् , यन्त्रमातृका, धारणमातृका संपाट्यम्, मानसी काव्यक्रिया, अभिधानकोषः, छन्दोज्ञानम्, क्रियाकल्पः, छलितकयोगाः, वस्त्रगोपनानि, द्यूतविशेषाः, आकर्षक्रीडा, वालक्रीडनकानि, वैनयिकीनां, वैजयिकीनां, व्यायामिकीनां च विद्यानां ज्ञानम् (इति चतुःपष्टिरगविद्या कामसूत्रस्यावयविन्यः)॥ कामसूत्रे १ साधारणेऽधिकरणे, ३ विद्यासमुद्देशप्रकरणम् । पृ ३२-३३ (CS.S..) (see p. 21) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , सविवरण-वस्तुरतकोशः। जयमंगला on सूत्र १५ अ. ३ अधिकरण १. शास्त्रान्तरे चतुःषष्टिर्मूलकला उक्ताः । तत्र कर्माश्रया चतुर्विंशतिः। तद्यथा-गीतं, नृत्य, वाद्यं, कौशललिपिज्ञानं, वचनं, चोदारं, चित्रविधिः, पुस्तकर्म, पत्रच्छेद्यम्, माल्यविधिः, गन्धयुक्त्यास्वाद्यविधानं, रत्नपरीक्षा, सीवनं, रगपरिज्ञानम् , उपकरणक्रिया, मानविधिः, आजीवज्ञानम् , तिर्यग्योनिचिकित्सितम्, मायाकृतपाषण्डसमयज्ञानं, क्रीडाकौशलं, लोकशानं, वैचक्षण्य, संवाहनं, शरीरसंस्कारः विशेषकौशलं चेति । द्यूताश्रया विंशतिः । तत्र निर्जीवाः पञ्चदश । तद्यथा- . आयुःप्राप्ति, अक्षविधानं, रूपसंख्या, क्रियामार्गणम् , बीजग्रहणम्, नयज्ञानं, करणादानं चित्राचित्रविधिः, गूढराशिः, तुल्याभिहारः, क्षिप्रग्रहणम् , अनुप्राप्तिलेखस्मृतिः, अग्निक्रमः, छलव्यामोहनम् , ग्रहदानं चेति । सजीवाः पञ्च । तद्यथाउपस्थानविधिः, युद्धं, रुतं, गतं, नृत्तं चेति । शयनोपचारिकाः षोडश । तद्यथा पुरुषस्य भावग्रहणं स्वरागप्रकाशनम् , प्रत्यङ्गदानं, नखदन्तयोर्विचारो, नीवीप्रेसनं, गुह्यस्य संस्पर्शनानुलोम्यम्, परमार्थकौशलं, हर्षणं, समानार्थता कृतार्थता, असंप्रोत्साहनम् , मृदुक्रोधप्रवर्तनं, सम्यक् क्रोधनिवर्तन, क्रुद्धप्रसादनं, सुप्तपरित्यागः, चरमस्वापविधिः, गुह्यगृहनमिति। चतन उत्तरकला:- साश्रुपात रमणाय शापदानम्, स्वशपथक्रिया, प्रस्थितानुगमनम्, पुनः पुनर्निरीक्षणं च । इति चतुःषष्टिर्मूलकलाः । जयमंगला टीका कामसूत्रे १ साधारणेऽधिकरणे ३ अध्याये, विद्यासमुद्देशप्रकरणम् । पृ. ३१ (C.S.S) भावाः। - रतिः। हासः। शोकाक्रोधः। उत्साहः। भयम् । जुगुप्सा । विस्मयः । निर्वेदः ग्लानिः। शङ्का । असूया । मदः । श्रमः। आलस्यम् । दैन्यम् । चिन्ता । मोहः । स्मृतिः । धृतिः। ब्रीडा । चपलता । हर्षः । आवेगः । जडता । गर्वः। विषादः । औत्सुक्यम् । निद्रा । अपस्मारः। सुप्तम् । विवोधः । अमर्षः । अवहित्थम् । उग्रता । मतिः । व्याधिः । उन्मादः । मरणम् । त्रासः । वितर्कः। स्वेदः । स्तम्भः। कम्पः । अनम् । वैवण्यम् । रोमाञ्चः । स्वरसादः । (ना. शा. अ.७ काशी. सं सिरीझ) रति । हास । शोक । क्रोध । विस्मय । उत्साह । भय । जुगुप्सा । निर्वेद । ग्लानि । शङ्का । असूया । मद । श्रम । आलस्य । दैन्य । चिन्ता । मोह । स्मृति । धृति । क्रीडा । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सविवरण-वस्तुरनकोशः। बीडा। चपलता। हर्ष । आवेग । जडता । गर्व । विषाद । औत्सुक्य । निद्रा । अपस्मार । सुप्त । (वोध )विवोध । अमर्ष । अवहित्थ । उग्रता । मति । व्याधि । उन्माद । मरण । त्रास । संदेह । रोमाञ्च । स्वरमेद । अश्रु । वैवर्ण्य । (see p. 38) (विष्णुधर्मोत्तर, तृतीयखण्ड अ. ३०) अभिनयाः। आङ्गिको वाचिकश्चैव आहार्यः सात्त्विकस्तथा । ज्ञेयस्त्वभिनयो विप्राश्चतुर्धा परिकल्पितः॥ (नाट्यशास्त्र-अ. ८. श्लो. ९) (see p. 39) Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द अगीतसगता अगीतिता अग्नि ވގ " "" "" "" " ލގ अमिपाल 33 अग्निमुख अभिमुख देश अग्निविशेषणम् अग्निविज्ञानं अग्रण्य अग्रायं. >> "" अप्रासन अप्रासनं در " अजय "" अणिमा ور -- अति अनौचित्यता अति असंगतता अतिकान्त प्रेक्षणाम् अति प्रवासता " अति प्रसंगता अतिज्ञता भती 2 पृष्ठ ५७ ५७ २५ २६ २७ २९ ३३ ३४ ३५ ३६ ३४ ३५ २७ २६ २४ ६३ ६२ ६३ ६८ ३२ २८ ३२ ३२ ६६_ ૬૫ ७३ ७६ ५७ ५७ ४८ ५७ ५७ ५७ ५७ ३५ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । 1 पंक्ति शब्द २३ २१ ११,२४ ४ ९ १२ ३ २,१८ ३२ १० P ३३ १३ २ २४ २२ १६ १५ २० ८,२१,२९ ८,२१,२९ ९,१४,२९,३४ २२ ४ २४ २१ २,१५ ११ ९,१३,१५ २३ २०,२३ १७, २२ १७,१९ १९ १८,२० २३ 1 अदानत अद्भुत अद्र अधम अधिकाक्षा अधीक्ष अध्यक्ष " " 33 अध्यक्षपात्र "3 अध्यात्म 13 " 22 " " " अध्यात्मविज्ञान अनम अनग्नशायी अनंग अनंगवंश अनिल अनिष्ट अनुकूल अनुक्रम در " अनुक्रमगुण अनुगीत अनुगोषण अनुग्रह " د. अनुग्रहगुण १ अनुचितता पृष्ठ ५८ ३७ १८ ८ १३ १२ ११ १२ १३ १४ १४ १५ २२ २३ २५ २६ २७ २४ ६० ५९ ६० ९ ८ ४५ ४ ४० ११ १२ १३ ११ ~ ~ + orm & 3 ६२ ५९ ११ १२ १३ १० ५७ पक्ति ६ २० २९ २,३,४,५ १० १ १९ १८ २७ ३२ २,१०,१७,२५ ११ २१ ३७ ११,२४ ४,२२,३८ ९ १६ ५ २९ ३,८,१०,१५ ६, १२,२६,३५ २४ ४ २ ८,९,१०,११,१२ २३ ५,२१,३८ १४,३१ ५ ६,७,८,१० २३ १७,३४ १४,३१ २५ २४ १८ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ शब्द अनुराग " अनुरागपोषण अनुवा अनुवाद " अनुवास अनुशयन अनुशयनाद्यर्थ ( 2 ) अनुशयनं अनुशायर्न अनुशायी अनौचितं अनौचित्यता अनंतभाषिन् अन्नशाला अन्योन्यशायी अप " अपगीतं अपतत्त्व " अपभ्रश अपभ्रंशं अपस्मार " अपोहन अप्रियवदा अप्रीतिता अभय अभयदान अभयप्रभुत्वं अभयसुख ( 2 ) २९ ३८ ६१ ४७ ५७ ૨૪ अभयउपकारद्रव्य ३६ ३६ ७४ अभागी अभाव अभिचारिकापात्र अभिधान 8 १२ १३ ५९ >> १३ ६६ ६७ १२ ६० ६० ६६ ६० ६० ५७ ५७ ५७ ३२ ६० २० २१ ६२ २० २१ ६५ २० ६६ १७ १६ ५७ ५७ १५ २२ २३ यस्तुरतकोषः । पंफि ५,२१,३८ १५ १७, २०, २७ १४ १५,०० १,५,९,१३ ३८ ४,१६ ११ १,१६ १ १३ २० २६,२९ १९ ८ २,२१,२९ ६ ७ १२ १४ २, २३, २४, २५ १ ४,१०,१६ ८, १५, २३ २३ १८ २१ ७ ३१ २७ ३ १४ ३४ १० २३,२७,३० ७ २५ ५,१६ 1 शय्य अभिधानकला अभिधानं अभिनय 23 " अभिनव "3 अभिमान "" در "" "" " अभिमानकारण अभिमानगुण अभिमानता अभिमानयुक्ता अभिमानलक्षण अभिमानावलेपता अभिमानी ,, در अभिलापा अभिसारिका " अभूमिशयी अभेद अभ्यंतर अभ्यास " अमर " "} "" अमर्ष " "" अमात्य " " 78 २१ ६५ ૬૪ ६५ ७० १४ ७० ११ १२ १३ ४१ ६४ ७५ ૪૪ ११ ५७ ५७ ५ ५७ ४० ४१ ५७ ४५ १४ ४२ ६० ६७ ६७ ૬૪ ६५ ३३ ३४ ३५ ३६ ३८ ३९ १० १४ १६ १७ 1 पंक्ति २७ ३ २१,२४ ६,९,१२ ५,९,१३,२१ ३० १७ ૨૩ ५,२१,३८ १५,३१ १५ २७ २,५ २ ५ १९,२२,२५,२८ ५ २३ १६ १६ ३,९,२२,२९ २,७,९,१२ १२,१४,१६ ३४ ९,३५ १,६ १ १ १८,२२,२५ १,४,७,१० ३ २,१८,३४ १३,२२,३२ १० १६,२४ ४,११,१६ ९,११,१२ ३२ ३०, ३४ १,५,९,१४ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ سم अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पृष्ठ 3 शब्द अमात्यपात्र १९,२१ م م .. अमात्यपात्र अमित्राणि द्वेषयति अमित्राणि द्वेष्टि 0 0 0 0WS २५ १६,२२ पंक्ति | शब्द १०,१७ अर्थशौच ५,११ १४ अर्थशौर्य १३,१८,२६ अर्थस्थान २२ अर्थस्थान ७,३२ अर्थानुभाविनी अर्थान्तर ९,१५,२७ अर्थान्तरसमता २४,२६ अर्थान्तरसमता अर्धशक्ति २६,२९ अर्धस्थान १२,१३,१४,१५ अर्बुद १४,२० अमित्राणि पूजयति १११ . २३ W अमोह अमोहन अयुक्तिगुण अरूपता अर्चास्थान ११ & r AM MO का अर्थ ५,१०,१५ १७,३२ १४,२८ ४,१७ २८ २१,२४ २२ १७ m - 10 m urur 99 . २१,२५ ३८ ७,१२,१७,२३,२८ २४ अर्बुददेश अलक्षित अलिषित अलंकार १३ ५,१०,१३,१७,२१ ७,१५,१९ ११,१५ or mps ६ २०,२५ ५,१६,३७ २०,२३,२६ २,५,८,११ २७ २,८,१७,२२ २१ ५८ अर्थकला अर्थकामत अर्थत अर्थत कामरत अर्थदानत अर्थपात्र अलंकारकला अलंकारशास्त्र अवदान १८ ५८ १३ १६,२३ ४ अवधान अवधानगत अवन्ती " ururam . 10 १४ ७,१४,२२,२८ १,८ ११ १८,३२ १४,२९ ५,१८ 0 २,४ अर्थपुरुष अर्थमहोत्सव अर्धलक्षण अर्थवाद अर्थविज्ञान ૩૨ - .00 अवन्तीदेश अवभिपा(? हित्या) अवलेपता अवसान अवहित्य " १ ३८ ७४ २०,२७ १८,२१ १८ । अर्थशक्ति अर्थशाम १९ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ शब्द अवि (ध) स्तनशायी अविश्वास अशक्ति अशक्तिगुण " अशन "" अगन विधि अशन विधिविज्ञान अगद अगव्दशायी अशेषकथा प्रस्ताव अशौच अशौचरता अश्रु "" अश्व "" अश्वपरीक्षा अश्वविज्ञान अश्वशाला अश्वशिक्षा असन्मुखशायी असुख "" असूया 33 भवद्धप्रलापी असवद्धशायी अस्थि " अस्थिस्तम्भ अस्त्रयध अहर्गण अहंकार 12 अक्षत 3) "" " पृष्ठ ६० १३ ११ १८ २५ २७ २६ २५ ६० ६० YM 3 UM ५८ ३९ ५७ ૨૮ ३९ २५ २७ २३ २४ ३२ २६ ६० ३८ ३९ ३८ ३९ ५७ ६० २० २१ २६ २६ ३३ २० २१ ૨૪ ३३ ३५ ३६ वस्तरत्नकोषः । पंक्ति १८ १३ १४ ४ ६,१२,२२,२४ २६,२९ १४ २१,३८ ។ ४,१६ २,६,११ १३ ६ ४,१७,३० ७, १८ १२,२६ ११ २३ १९ ३ ६,१९,३६ ८, २३ १० ५,३० २,७,९,१२ ९ ७,१६,२५ १,१०,१८, ૩૪ ३८ ४ , १५, २४, ३१ ८, १७ ७,२३ ११ २,२०,३६ १५ शब्द अक्षमता अक्षरपात्र अक्षरविनोद अज्ञानता आकाश "" आकाशतत्त्व 22 आखेट आखेटक " " " आखेटक विनोद आखेटकविज्ञानं आख्यान आगम आगमिकत्व arera आगलिका आग्रह 33 आह्निक आचार आचारवती आचारशौच "" आचारशौर्य आत्मस्थान " आदरगुण आदित्य " " 33 आदेश "" ܕܕ पृष्ठ 3 5 5 3 0 0 ५७ १५ १९ ५७ १६, १९, २४, २५, २८ २,१९,२१ १५ २० २१ २० २१ २६ १५ १६ २६ २७ १५ २४ १७ ६६ ६६ ६६ १८ १२ १३ ४३ ७२ ४३ 1 ४४ ४५ ७२ १६ १७ १० ३२ ३३ ३४ पंक्ति २२ ५ ३५ ३८ २ ६६ ६७ ६ १२ १४ २३ २९ ३,७,१३,१८,२४ ३,८,९ १३ २१ २३ ११ ६,९,१० ४ ७ २१ ३२ ७ -२ ७,१५,१९ ४३ १९,२१ ६,८ ३ ३३ १३ २७ ११,१५,१९ २ १,१७,३३ २८ ९ ६ १५,२०,२४ ९,१३ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। शब्द पृष्ठ पंक्ति । शब्द पक्ति 10 आराध्य . आनल आन्ध्रदेश आन्वीक्षिकी आन्वेषिकी आप्त १८,२० १९,३९ २५ १,१६,३१ ११ ३४ १४ आराम आरामविज्ञानं आरामिक' 0 . १६ २१ आप्ताहित आमीर 22... आर्द्र आद्रमास १५,२६ . १८ १२,२८ . आमीरदेश ५,१४ । FRamanaww आद्रेशाक आमेर आमप्रभुत्व आमिष " आदेशाखा १४,३० ० ० २५ आम्नायिक ३०,३५ " YY . आम्र SAMmmmm २,३६ १७ ८,२४ आमिलक आलस आलस्य " ६,१८,२१ ८,१९ १३,२३ १,३,५,७,९,११ आम्ल २१ आलिङ्गन आयतन ,१६,२१,२६ आयु आवर्तनकीर्ति आवश्य आवेग १० १७ १०,२५ १,१५ १४ १५ आयुध आवेश ७,२२ س س १६,३१ १०,२३,३२ आवेशन س १०,३०,३५ ५,२५ س आयुधकला आयुधकार WWWWW आश्चर्य م १४,२८ १३ م " आयुर्वेद م आश्रम आश्वासन आसक्ति आरभटी २३,२४,२५,२६, २७,२८,३० १४ m आराट आराध्य " आमन Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरत्नकोषः। शब्द पृष्ठ पंक्ति शब्द छ पंक्ति उच्चा उच्चाटन १९ ११,२५ आउख आस्थानं आक्षेप आक्षेपगुण आहार ५,२२,३५ ३४ २७ २९,१४ ८,२०,३१ १९,२५,३० १७ उच्चाटनं उच्चाटनविज्ञानं उच्चारण उच्चारणं उच्चनिष्ठीवती २५ १७ आहारकला आना इन्द्रजाल 3 , rrr V१ १r me १८ ११,१५,१९ उड १६,३६ १४ اس س ७,२०,३० १५,१९ ९,२४,३९ - Sur9 o उडीसदेश उण्डदेश उत्कंठिता उक्रियमाणं उत्तम २,३,४,५ r इन्द्रजालकला इन्द्रजालविज्ञान इन्द्रिय इष्ट इष्टकर्म ८ उत्तमगुण ur ११ m इंगि उत्तमत्व १८ इष्टिका m उत्तमत्वगुण २४,४१ १८ इष्टिविनान इक्षुरसा दिभक्षण इक्ष्वाकु २५ उत्तमप्रदेश उत्तमसत्तम उत्तमसत्य उत्तरापथ ० २९ ० १८ ६,२० " रक्ष्वाकुवंश ईर्ष्यारहिता शत्व श्वर १५ " ur o ur उत्पत्ति १२,१८,२७ ९,१०,१३,१५ १०,२० १३,२२ ६७ ३,७,११ उपप्रमाण ६१ १५,१७ n 02 20. 0 0 M८० 1 उत्पत्तिकी उत्पादिका उत्पादिता उत्सर्ग उन्माद १७ " २००८ २५ मान)मामी urrr-mm ५,२४,४१ १७,३३ ११.१७ MAN १२,३०,२८ . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रर शग्द उत्साहगुण उत्सुक्य उत्तरं गुजराती उत्तरापथदेशा उदके उदय अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पक्ति शब्द उपस्थ उपागगीत उपायकरदान उपार्जन उभयदान उभयप्रभुत्व ७,२३,४० उभयसुख १७,३३ ५,१३,१७ उरल و ७४ م १६ س س १० उदयमुख उदयशौर्य उदंवर ७१ उरलदेश उल्लास १३,२९ ३३ ३५ १२ २,२०,३६ ७,११,१५,१९ " उल्लोच उद्यम उद्यमशौर्य उद्धत उद्धततम . ६,३४ १२ ७ 5 उदात्त ऊह ऊहन ऊहापोह ऐश्वर्य १५,३३ Mr " mmmmmmmm rurr90mmarrrrr m - ४ ओड ओज. ओज. सगतं . उदात्ता उदारगुण उदारता उत्योत उद्वर्तता उद्वर्तनवास उद्वर्तनाधिवास उद्वर्तने उन्द्र उमतप्रदेश उन्मद उन्माद ओरल ओषध । 2 dK ८०. mmm ६,२२,३८ १७,२० " ११ ओषधी ओषधीरत्न औत्सुक्य SG. १०,१६,२४ १३,१५,१७ ३,१०,१५ " ३ औपध अकुश ३८ ६,१० उपकारदान उपकृति उपगीत उपचार उपचारविलेपन उपदेश उपन्यास ५८ ३३ १५,२०,२३ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ शब्द पृष्ठ पृष्ठ वस्तुरत्तकोषः। पंक्ति । शब्द १९ कथाकला कगाविनोद कथाशास्त्र अगदेश २७ २१ ३० ३,८,२३ अंगुलीमोटन अगुलीस्फोटन अजन १८,२४ १५,२१ कदम्ब कदम्ववश " mmm Mr vvar or , ६,२२,३८ ८,३२ ५९ ११ कन्ता(कुन्तला)धारण कन्यकुब्ज कन्या m १८ १४ ८ अजनदेश अतर्विदेश अतर्वेद २१ ११,२९ १,१५ mr mmmmro Sar .८ . १०,२६ ४,२२ १,१९ ६,१७,२५ २,१०,१९ अतर्वेध कफ अध्र A २२ ५,२८,२२,३४ ९,२३ कमल कमला २२ mr m س " س कच कचप्रधारणं कच्छ " mm . १७,३२ १८ कर करटपाल م .... س कच्छप्रदेश कणय कणाय कर्कट १८ २,१४,२० س " १८ २९ करटपालवंश करटवाल करटवंश करणक करपत्र करवाल करविनोद m ० ८,३३ १४,२१,२८ कर्णकंडयन १८ ur . २२ २४ १३,२०,२६ ११,१४ م س कर्णदुर्बल कर्णमोटन कर्णाट कराट ४८ م करुण करुणा س २ कर्म س . १०,२२ م कर्णाटदेश कर्णोत्कर्षण कर्तरि कथा ०७७ Te ६८ ४,६,१२,१४,१६ ३,९,२८,३४ mms. ३१ ४,९,१४,२०,२६ १३,१७ २०,२४ १५,३६ कर्मकर कर्मकार कर्मजा कर्मजाता कर्मण १४,१६ १२ . 'W. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द कर्मण कर्मपात्र " कर्मपालन कर्मवर्तन कर्मविज्ञान " 2222222 कल कलचुरवंश कलहांतरिता कला " " " " " " در कलाचरित्र कलानुर कलामुख कलालक्षणं कलावती कलाविनोद कलाशास्त्र कछु कलिच्छुर कलिंग " 33 رو कलिंगदेश कल्प در कल्पशास्त्र कवित्व " कवित्व पृष्ठ ७३ १४ १५ ७१ ६८ २५ २६ २४ ४२ २ १५ १६ १९ २० २१ २६ ३१ ७० ७१ ९ ६७ ३० ४२ १५. १९ ९ १० २८ २९ ३० २९ २७ ३१ १९ १९ १६ २३ २५ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति २२ ९,१६ ४, १० १० १० ४,३२ ११,२७ २ २० २५ ३,४,६,९ ४ ३० ४,१४,२०,२६ ११,२०,२५ १०,१९,२८ ३,२०,२३ ३८ ६,२१ २,७,११,१५,१९ ६ १९ २६,२९ ३१ १७ २४ ५ ६,१३ १३, २८ २१, २३ १४ ३८ १९ ६,२२,२७ ११,२०,२६ ६ १,६,११,१७,२३ ४, १५ ६,२० शब्द कवित्व 33 कवित्वकला कवित्कं (? त्वकं ) पित कवित्व " कवित्ववाद कवित्वविनोद कवित्वविज्ञान कश्मीर कक्षा कक्षाशौच काकु कागडाजय (?) काच "" काच विज्ञान काच विज्ञान __काठवाकता (2) कान्ति " कान्तिगुण कान्यकुब्ज "" कान्यकुब्जदेश काम " "" "" ," މ ވ 33 , " 23 در " 23 पृष्ठ २६ २७ २१ ६३ ६६ ७० १५ I 2 x 8 % I ~ ~ 3 2 2 & 3 १५ २५ २४ २९ ४५ ४४ २६ २३ २५ २७ २५ २४ ५७ ११ १२. १३ ११ २८ २९ २७ ३ ८ १७ १९ २० २१ २२ २३ २७ ३१ ७० ७१ ७३ पंक्ति १३,२९ २५ ३,८ ४,९,१० २,७,११,१५,१९ २८ १८ १४ ५ १७ १,३,५ २२ २४ २६ ५,१९ ४ ३३ ४ ३० २० २,१८,३५ ११,२८ १ २७ २३,३८ १८ ६ १२,१३,१४, १५ ७ ४, १०, १४ ८,१७,२६ २,१०,१९ २१,२६ ३८ ११ ७,१२,१७,२३, २८ ५,१०,१३,१७,२२ १५ १४ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० शब्द काम " कामकला कामत कामपात्र "" މ कामपुरुष "3 काममहोत्सव कामरु "" " कामरूप ,, कामरुपदेश कामलक्षणं कामवाद कामशक्ति कामशास्त्र कामाक्ष " " कामासदेश कामाक्षा " कामानस्था कामिक कामिनी " चामुक याम्यपुरुष यामजा कार्मिक याय Free कार्य कान पदम्य 23 पृष्ठ ७५ ७६ २१ ५८ . १३ १४ १५ १६ १७ ७६ २८ २९ ३० २१ ३० २७ ३१ २३ ७४ १९ २८ २९ ३० २७ २९ ३० ३ १७ ३ ४ ४ १६ ६१ રે ७२ ७२ ૬૮ 5: 9= वस्तुरत्नकोषः।- पंक्ति.. ११,१३,१५ २८ २,३,६,७ ३५ ७,१४,२२,२८ १,८ ३६ ११,१५ २,३,४,५,७ १५, ३० ११ ૨૬ २५ १ २२ ३३ १७ १८,२२,२४ १८ ૨૪ ७ २५ २३ २१,३६ ११ ७ ३ .ܪ ४ ५ ३२ १५ २० २५ २३ ૪ १ ૨૪ शब्द कारुण्य "" कारुण्यगुण काल " " " "" ,, " कालमुख कालविद्य " कालविज्ञान काव्य " - " މވ "" काव्यं { काव्यकीर्ति काव्यप्रबोध काव्यवर्तन काव्यविज्ञान काव्यशास्त्र काश्मीर "" 1 काश्मीरदेश काष्ठ " काष्ठ "3 1 33 काष्टकम " काष्टकला "" कान काष्टकर्म पृष्ठ १३ ३८. ११. ९ २५ २६ २७ ३१ ६७ ७० ६८ २० २१ २४ ४ १९ २३ २६ ३७. ६५ 1 ३७ ६१ ३७. २४ १९ २८. २९ ३० २८ २३ २६ २२ २३ २६ २६. २७ २२ २९ २३ २५ पंकि १५१३.२ २६ ६ २३ १४,२७ ७२० १२ ८,१२,२३,२९ २५,२८ ३८,१२,२७ " á ९,१९,२७ ४,१२,२० १ २२ १८ १३ ४ २,३२ १०,१७ १ ८,१२,१६ ६ १.४ १२ ८,१७,२२ २१ -३,३२ ७,२१ : १ २,१६ १८ ११,३४ ३२ २८ ू ་ ८ १२ १९ ९,२२ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्ति पृष्ठ शब्द २८ 0 काष्टविज्ञान किरात 0 अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति । शब्द १३ । । कुरग १,१८ १,१५,२९ ५,१९ दुरगदेश कुल १४ M १९ N - " किर्तयः لی لی لی لم س ف ال ६,११,१३,१४, १५,१६ १८ २३,२९ क्रीडा कीर . NMOPS... १८ १४ १४ १७ कुलपुत्रिका कुलपुत्रिकापान कुलप्रभुत्वं ७४ २,४,५ " कीरदेश कीर्ति कुलिका कुलिना कुलिश ४,१७ G ३,१९,३६ १२,१८ कुलीन १ १,७,१३,२०,२७ २२ १६,३२ कुश । mrr N ... - ms m 3x कुसुम १४,२८ ७,२०,३० ३७ ७२ ७,१२,१५,२० २१ कुसुमकला कुष्टि(लि)नी " mm ८. कीर्तिमान् कीर्तिरूप कीर्तिवान् कृत्य ० १५ ! २१ ७,२२,२८ . १९ कीर्तिशौर्य ३ कुडवर्श कृत्यशास्त्र कृत्रिम कृत्रिमविनोद कृपण A १५ कुटुबवंश ३,८,१०,१३ कुट्टन कृपणा कुठार कुतूहल २,१२ १५,२९ ८,२४,२९ १३ कृषि '१३,२७ .७,२०,३७ १२ ०० 4G م कुतूहलपात्र - २५,३० कृषिविज्ञान . १८ १८ कृष्टि केकाण(देश) و ७,३२ ३,२० २,१६ ५८ ل . कुपित कुमारोपचारतः कुमित्राणि कुरु २२ ل ६,२० . २६ لم G " २२ . पुरुदेश केश - केशकीर्ण केशग्रहणं केशधारणं ५९ ७,९,१२ कुरूपा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरनकोषः। पृष्ठ . لع पंक्ति । शब्द कंकण १४,२०,२६ कंकूण कंचा ل س . ل कंडु . २४ ا ....५:४४ * शब्द केशधारणं केशप्रकीर्णनं केशोभा(द्धा)रण केशविनोद कैशकी कैशिकी कोकणदेश कोदाल कोकिल कोदाल कोटपाल २४ ३,२७ G १८ २०. कंदु कंपन कंपित (क)पितं १८ w ४,११ कुंपितं कंबोज 9 ९,३४ ७,२२ कोपूल(१) कोरल कोरल कोल कोलानुर कोवोलिक कोश कंवोजदेश काचन .. २७,३०,३७ १९ Mr ११ १५,३१ m २६ १५,२९ ९,२४ Surn ३२ कांजी कांजीदेश कांती ६,११,१६,२१, २६,३१ कोशविज्ञान कोष्ठागार २४ २४ २,१६,३२ १२ ३२ २४ कांस्य कांस्य विज्ञान कंकुण कुकण ११,१६,२१, २६,३१ १३,३० २४ १७ १८ कोपमुत्पादयति कौतूहलविज्ञानं कौरल कोरल कौरिल कौशकी कोशिकी कौस्तुभ कुंकुण कुंकुम कुंचितं س ८,२३ ३ س कुंत २२,२९ २९ ५,१८ س - २५,३० २६,२८,२९ س - कुंतल १२ س १२ س ४,२०,३६ । १५,३१ १,२३ س سے कंकण .. ३३ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति । शब्द ११,२७ प्रह पंक्ति ९,२५ ३,२२,३७ कुंभ खंजरीट ३५ ६,२४ ३,२० १८ २४ १३ कुंमविज्ञान कुरंग २८ १४ खेटक खेलन गगनं " २९ १० १५ २१ ३ २,१८,३४ १२,३३ " कुलपुत्रिकापात्र १४ १२,१९ १३ १४,२४ ६,१३,२७,३४ क्रमस्थं १० : ::: २९ १२,१८,२४,२७ २,८,१३,१८,२४ क्रीडन १८ २७ गजशाला गजशिक्षा १८ कीडनेन क्रीडा गण २,१२ " " २,९ गणित ८,१५,२३ क्रीडापात्र क्रीडापात्र क्रीडापात्रं क्रीडापात्रप्रवेशनम् क्रीडापात्राणि क्रीतविक्रय करव्यसनता क्रोध ५९ ५८ १५,२०,२३,२६ ९,१४,१६,२० २९ १२,१८,२४ ७,१०,१५,२०,२४ १९,२३ ३,१४,३५ २४ २०,२३ १,७,१३,१९, २७,३२ " गणितकला गणितविनोद गदा १७ ८,१७,२६ ३,११,१९ २,१२,२०,२८ ५,१३ गन्ध क्रोधगुण क्रोधन क्रोधी १०,१३ गन्ध गमत्वं गरिमा गर्भागार गर्व क्लेशसह १९ ७,१५ २,५,७ ९,१० ११,१४,१६,१८ १९ ८१३,१५ ३,१०,१६ १६,२२,२७ ५,१८,२१,३० ७,१८ ५,११,१७,३१ क्लेशापहारी २४ खा २८ गर्विता ग्लानि खण्डिता ५,११,२४,३० ६,८,२४ २१ खस खसकीर गहिलुत्र ग्रहण गाभीर्य २०,२२,२४,२६ खंजरीट १६,३४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3; वस्तुरनकोषः। " पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्द गांभीर्य गुणव्यावर्णन 'गुणशौर्य गुण प्रक्षेपणं गुणान् प्रकाशयति गुणान् प्रच्छादयति ।' - २३ १६ ४६ W ४८ १०,२७ १४ २७ १,६,१० ६,११ ३,१४ ६,११,१६,२७ १०,२६ ७,२३ १,१९ १९,२२,२५ २४ १७,२४ . गुणान् सखीजनं कथयति ११ 4 ४५ गीतकला २१ ४७ गुणान् सखीजने वदति ४६ 'गुणान्विता ११ । १८ गीतगुणा गीतलक्षण गीतविनोद ५,१४,३१ ८,१६ गुद १५ गुप्तांगदर्शन गुरुत्व गीतज्ञा تم १६,२२ १४,२२ ८,१३,२०,२७ १९,२२,२५ १,४,७,१० १२,१८,२५ ४,२०,३७ १३,३० اس » १४ ८ गुरुत्वगुण गुरुत्वम् गुरुत्वविज्ञानं गुहिल "गुर्जर गुर्जरदेश गुटिका ४,११,३४ १४ .२८ ४,११ १२,२८ गुहिलका गुहिलपुत्र गुटिकाविज्ञान गुण २०,२४,२६ 5 गुणकीर्तन गुणग्राही १२,१४,१६ गुहिलपुत्रवंश गुहिलवंश गोदावरी गोफण गोमय . र० ४.९,२२,३४ 4 १२,१९,२५,३२ ० गुणदोष गुणपात्र १४ ६,२२,३० १५,३३ १४ १३,२१,३५ गुणपात्राणि गुणवर्णन गुणवती गोरोचन १६,३२ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति । शब्द शब्द पंकि ७,१०,१४,१५,२० गोल .. २३,३९ गाधर्व १९ . गोलादेश २० १४,२८ . गोष्ट G गांभीर्य चउडदेश चक्र गोसवत्सा : गोहिल गोहिलपुत्र १८ ५,११,१७,२४,३० २४ ३,२१ २० चक्रविज्ञानं चक्षु ४,१४,२२,३० गौड गौडदेश- - १८ १३,२७ . २२ चन्दिलवंश चण्डिल चतुरा गौसवत्सा १६ १२,२८ ३ २१ चपलता २,९,१४ १५,३१ ९,२७ - २५ गंगापार .२६ चमर चर्म चर्मकर्म चर्मविज्ञान चरितम् चरित्र चलचित्रविनोद गंध . WWWWW ८० ०० , ११ १३,२२,३० १५,२२ ८,२१,३१ - २५ बहुआण २० चाउडा चातुर्य ३,५ १,१६,३३ १०,२६ गंधपात्र .. गंधयुक्ति १,१६,३१ ६,२२ २१ चातुर्यगुण चाप चापोत्कट गंधयुक्तिविज्ञान ३,१०,२२ गंधर्व २४ ३३ ३४. ३,९,१४ ३५६ ३६ चापोत्फटवंश चारनेत्रा चारुलोचना ६,११,१८ १३,२१ गधर्वस्थान: गंधशौच ४४, चार्वाक ६७. १८,१९,२०,२१ गंधश्मनु गांधर्व । १३ । चाहुआणवंश Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ". वस्तुरतकोपः। पंक्ति । शब्द ३१ ५,२७ पृष्ठ पंक्ति m wr १२,१६ १४ २८ ३,१९,३५ १९,२९ ७,२१ ११ चित्रकर्म चित्रकर्मविज्ञान १५,३० ८,२४ م २,२१,३६ م चित्रगुण चित्रलक्षण चित्रविनोद س १८ س १२,२५,३५ ८,२२ १५ चिन्दिलु चुम्वनं ا १,३,५,७,९,११ ० - ०८ س له ४६ س ११ छमकर छद्मकला छद्मविज्ञान छन्दशास्त्र छन्दस् छन्दिक ४७ ३ चुम्बन (ध्वनि) चुम्वन( करोति) चुम्बने (मुखं परिमार्जयति) चुम्बिता (परान्मुखि भवति) चुम्बिता (विमुखं ___ करोति) चैतन्या चोड ८,२२ १६,३७ ९,३३ ४८ २०,२४ ३,२८ चोढ चोरग्रहण २०,२३,२६ ५,८,११ २७ २,१७ चौड ७,३८ -- छंदकला छंद शास्त्र छिंदक छिन्दकवंश छुरिका जडता २२ १९ चौलिक्य चौलुक्य चौलुक्यवंश ११,१७,२४ ७,१४,२२ २,९,१५ १३,१५,१७ " PL चौहही चौहाण १० चंच - चडेल चंदन जनपद जनतन्वता जन्मकृतं जन्मरूपं ISF ३ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्ति ____शब्द जय पृष्ठ ५ ... , ३,१९ र अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति | शब्द १७ ज्योति २५ “, १७,२१,२५ ज्योतिष १,२,६,१०,१५ ज्योतिष्क ૨૨ ज्योतिष्कलक्षण ज्योतिष्कविज्ञान ३,८,१३,२५ टाक ११,२५ " 9 जयमान जल २३,३६ " S८ १० १,४,६ ४,१०,१५,२५ टाकदेश डबूस डमरू डाब . डाभी जलक्रीडा जलवास जलविनोद जलशौच २९ ३,१०,३६ ० २१ १७,२० ० डाह ३५ डाहल ४४ १०,१४ " अलस्तम जलाधिवास जलाधिवास. 'जागरी. जाति १५,२९ १,१५ २२ ७,१४,२८ 'डाहलदेश डोड १४ ३३ १९,२२,२५ ३,४,७,१० २,२०,३७ डोडीआ डोडीवंश १० जाप जालंधर - WW G डोह । १६,३० १२,२७ ३,१६ तर्क १०,२४ २४ तकशास्त्र जालंधरदेश जीति जीमूत १० तत ९,१०,११ १९ U जीव २८ तत्त्वनिर्णय तत्त्वनिश्चय तत्त्वप्रमाण २४ जीवपदार्थ जुगुप्सा ७,८,९ २,३,१३ ५,१४ " م بس ता तत्त्वम् जैनम् १७,१९,२१,२२ जैन्यम् ३१ ५,१५,२०,२६ ११ ५,१०,२६ ६८ १९,२०,२१,२५,२६ जोधिम ज्योति १९,२८ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरनकोषः। शब्द पृष्ठ पृष्ठ तत्त्वम् तत्त्वलक्षणम् तत्त्वविज्ञानम् ६९ ३१ पंक्ति ५९ १४,१७,१८,२२,२९ १०,२१ २० २४ पंक्ति | शब्द ३,२३,२५ तांबूलादिग्रहणं तांघूलादिना तांबूलादिभक्षणम् ४,१८,३२ तांबोलवास . तितिक्षा तिलंग तीर्थ ......... ६१ ६१ २३,२५ तत्त्वज्ञानम् तत्त्वार्थ २८ १४,२९ ५,२४,२७ ३५ तत्त्वांग तनु तीर्थाधि तुडक तुरक तुरग . १५ ६० ३६ १७,३२ १०,३३ ८,१४,१८,२४,२९ ८,३४ तपसा तप्ती तरवारि तरुष्का ताईकारदेश ताजिक ताण्डव तापीतट तापीतटप्रदेश तामलिप्त तामलिप्तदेश ताम्र तुरगफला तुरगविनोद तुरष्क १५ २८ २० । ३,३१ । २० २०,३५ १० १,२९ तुरुष्कदेश तुरंग १६ ३,७,१२,१८,२४ २३ १४ لس १०,२६ س ३५ س ३६ س dद ००० ० 64 AM ४,२०,३.६ १५,३१ १३ १९ १६,३१ 'तुरंगलक्षणं س ताम्रलिप्त तायक तुष्टि ३१ ११ س لسل ३४ '१५,३२ ८,२५ ११ तालगतं م २,३ १४,३० د तालत. س س لسل २४,६७ १८ २३,२९ س الس سل ४,२२ तालवृक्ष ३५ तालसस्कारप्रवोध ६१ तांबूल तावूलकानि तांबूलादीनि तावूलदानेन । । ५८ ४४ ५८ १३ तुष्टिगुण तेज १५ ५८ ‘२,२१,२९ ५,९,१३,१७ २२ तेजशौर्य Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द तेजस्तत्त्व " तैलाधिवास तैलाधिवासे तोमर तोमल तोरण " در در तंत्र " " " "" तंद्रभद्र त्रयी त्रास در त्रिशूल " "> तृण " ور در 33 33 { " दधिकर दधिकरवंश दधिपाक दधिमा दधिमुख در २७ त्वक् २० तृणविज्ञान २४ दत्तम् ( न मन्यते ) ४७ ४८ दमगान दर्पण पृष्ठ "" २० २१ ४४ ४४ १७ ३३ ३४ ३५ ३६ २२ २५ २६ २७ २९ १७ ३८' ३९ १७ १८ २५ २६ ३३ ३४ ३५ ३६ ন १० ३० ३३ ३४ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंकि शब्द १२ दर्पण १४ * १२,५८ १०,१४ २८ १० १६ ११,२७ ६,२४ ३, २० २७ ६,३४ १४,२९ 1,5 ५ 1 १९ १८ ११,१६,२७ १२,१७ २९ ५,२५ १०,२३ ३,१७,३३ १४,२२,३१ १४ ११,२३ २,८ ११ ८,२४ २,१९,३५ १६ १८, २६ २४ १८,२७,३७ १५ ६,१३ ६ ४ १४ १०,२६ 33 दरिद्रता देशन दशा दर्शन ,, 25 ر " " " "3 ލމ दर्शनकला दर्शनगुण दर्शनपात्र दर्शन विनोद " दर्शनस्थित दर्शनात् (प्रशांत भवति ) दर्शनात् (प्रसन्नता भवति ) ܐܐ दक्ष दक्षिण दक्षिणदिशि दक्षिणा दक्षिणापथ " दहीया दाडिम " ४६ ४७ "" "" " दर्शने ( प्रसन्न भवति ) ४६ ४० दान " " पृष्ठ ३५ ३६ ३५ ५७ २६ २२ ५ "" ११ १२ १५६ १६ २१ २२ २३ ६१ २१ ११ १३ १० १५ ६३ ६४ ४६ २९ २९ ४० ३० ९ १० १३ २ १९ पंकि ४,२२ १,१९ ३, ३६ १६,२२,२५,२८ ३,१७,३३ ३१ २ २४ ६,२२,२९ १५,३२ १ ७ २१,२५ ५,१६,३७ २० २७ ६ ३७ १६,२२ १६ २,१,२९ २२ १९ ४,१०,३० १ ૧૬ ११,१२ ३३ १८ ८,९,१० ११,२२ २२ ३६ ६ ६ ९ १० Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ शब्द पृष्ठ वस्तुरतकोषः। पंक्ति शब्द ०२४ दीनहीनता ५,२२,२९ दुष्फोट ११ २६ दुर्ग ९,११,१२ ३,९,१६,२६ . १८ 4 २२ ९,२५ mr २,२०,३५ ५,९,१७ १८ m " दूषण ७४ १४,१९,२३,२८ ४,८,१२ दानकीर्ति ८,१०,११,१३, १५,१७ ० ७२ देवता देवपात्र १,९,१६ दानगुण दानचरितम् दानप्रभुत्वम् दानव दानवपात्र ३,४,५,९, १४ १४ १५. ४,१० देवलोकसंस्थान देवविज्ञानं देवी.. देवीपात्र देवसंस्थान देवस्थान दानवलोकसंस्थान दानवसंस्थान दानवस्थान दानहीनता दानशक्ति १०,११,१३ १४,१५ ११,१९ १०,११ १४,१५ १७,२०,२४ २१ ३२ 6 दानशौर्य दानानि दाने ८,१२,२९ ३,८,१२,१६,२० २३ १८,२४ २४,२७ ७५ । १३,२५ २२ देशकला १७ दानेन दापिक दायिकवंश देशकाल देशपात्र - २८ २५ १४ १३,२० १५ दास १४ दासी दासीपात्र १४ १४ WWW ६,१३,२० ७,१४ १५. " देशभाषा देशभाषितकला देशभाषित देशभुक्ति देशलक्षणम् देशविजय देशीपात्र देशीपुरुष १८ दाहड दाक्षिण्य १२ । २२ ३ १५ दाक्षिण्यगुण ११ ७,१५ ३१,३५ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति । शब्द द्वत पृष्ठ । पंक्ति पृष्ठ देशीय देशीय पुरुष १९ १६,२३,३० ११ tu देश्य -१७ द्रुतविलम्बित द्वारपदस्थ द्विज ६,१८ १,८,१९ ३३ mms ६४ २४,२६ • १३ ३,१९,३५ २,१९ द्विजवर " र 5 २८ १० दोषगुण दड २२ 0 १५,१९,२९ द्वीप १८ 0 १८ द्वीपदेश दंडनीतिविद्या दंडशास्त्र दंत १०,३५ 60 VS tu س ن । द्वीपान्तरदेश धनपालक धनपुरुष धनु م ७,१५ २८ - दंतकर्म २४ - - धनुष्य दंतविज्ञान धनं धर्म ५,१७,३० ९,१०,११,१२ १२,१३,१४,१६ ९,१४,२३ २१,२५ दंभ ३,८,१३,१९,२५ २२ २३ . ३८ ३१ ७,१२,१४,१७ ११,१४ . ४,३४ ११ । २८ धुतविज्ञान २४ - द्रव्य ०,१३,१७ द्रव्यदान द्रव्यमहोत्सव द्रव्यविद्यादिदान द्रविड ७३ धर्मकला धर्मगुणसग्रह धर्मचर धर्मचरितं धर्मपात्र द्रविडदेश दृष्टम् १९ १४ ५,१४,२२,२८ १,८ ८,१०,११ दृष्टि ... द्राविड ७१ १९,३४ । धर्मपालनं Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨ शब्द पृष्ठ वस्तुरतकोषः। पंक्ति शब्द २,३,७ धारण धारणं पृष्ठ ७६ धर्ममहोत्सव धर्मलक्षण धर्मवाद धर्मविज्ञान पंकि १७,३१ २६ १०,२२,२४,२६ ३२ ६१ २४ । ११,२७ २१ २०,२२,२४, धारणा धाहल धाराधरदेश धारणविज्ञान धार्मिक * * * * * * धर्मशक्ति धर्मशास्त्र १९ " धावनं । । ४०, ३,१९,३५ १४ ७२ ३२८,१३,१८,२३,२८,३३ ३२ १,३,५,९,११ ८,९,१०,११,१२ २२ س m س धर्मशास्त्रविद् धर्मशीय धर्मस्थान धर्मस्थानं धर्मज्ञा धर्मारंभरचितं धर्मिष्ठ । धर्मिष्ठमहोत्साही ५,२१,३७ ७१ । س سے 1,३१ ३ १३ ६.१२,३१ धृति , ७,२२ १,९ धर्म ४० ६०, ७१ । २० १९,२०,२१,२५ १५ १०,१२,१३,१९ २३ ६० । धर्मण धरानंग s धातु २३। धिंधिम धीर धीरललित धीरशांत धीरोदात्त धीरोद्धत धीरोपांत धूप धूपनवास धूपनाधिवासः धूपनानि धूपने २५ $ न १०,२४ ३,२१, ३४ २५ १० । १२ CC ५८ २३. ११ धातुकर्म धातुगतपदार्थ धातुपदार्थ धातुवाद धातुवादकला धातुविज्ञान धान धान्यपाल धान्यपालवंश धान्यपुरुष धारउर १०,१४,२० । ११,१५ ११८,३५ १६,३३ ९,२६ १२ १३ धैर्यगुण १०। ३२ धीतगृह ध्राण १६ । ७r .२२ २५ ६,२३,४० Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " शब्द भ्राण " भ्राणगुण ध्वज در در ध्वनि མ, ༦ " नख " नखविलेखन नखविज्ञान नखशौच ار A नगर + नगरनायक.. नदी " " स्पर्शनं "" नप्रात (2) नर्मदा " नय नर " नर्मदातट " नर्मदातटदेश >> नरपरीक्षा नरभुषन नरसहस्र S पृष्ठ २० - २१. ११ ३३. ३४. ३६. ३३ / ३४ ३५ ३६ ७२ २५. २६ २७ ४१ ४८ २४ ४४ ३६ ६० ३३ ****** ~ * ~ x w ३४ ३५ ३६ २९ ५८ ५९ २,४,६,८,१०,१२ १४, .३५/ ३३ ३४ ३५ ३० २८ २१ ३३ २३ ७ ૨૪ 3 ३६ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति १४,२३,३० -१६ 19 · :: 1 १३ १०,२६ १८ १५ ११,२७ २, २० १०,२३ ३,१७,३३ ८ २,४,६ १४,२६ १४ २३ २४ ३२ १२६ ३ २,१८,३४ १३,३३ १५,३१ २४ शब्द नागणिक नागणित नागाणित नागभुवन नागरपात्र नागरिक नाटक " नाटककला नाटकशास्त्र नाट्य "" नाट्याद्युपचारेण नाट्यशास्त्र नातिमानिनी ވ नात्यर्थ (2) नाद नात्यर्थशायी नानप्राप्त " د " नाम नार्मद नामर्द १० १६ २१ १५,३२ २७ ७,२५ २१,३६ ११ ११ २० २० नारीकला २३ नारीपरीक्षा निकुन्दम निकुम्भ '"" नायक नायकाः नायिका नार्याः नाराच नारि नारी पृष्ठ २८ ३० २९ २९ - ७ १४ १५ ३ १९ २२ २१ १९ ३१ १९ ३ ३ १८ २२ २३ २२ २३ ९ ९ १० ५८ १९ ४२ ४३ ६० ६० ६० २० २१ २३ ७२ २८. २९ ३० ३५० २ 1 C ३,१०,२६ ६, ११ १६ १४ २०,२४ २६ ३,९,१८,२३ १६ १३, १७ १८ ९,२३ १६ ९,१४,२१,२८ १६ ७ ९,१९,२८ ५,१२,२१ ४ ९ २४ ७ पंक्ति २६ २६ १५ २९ ६ ४ २५ १४ १८,२१ १ १४ ५,१७ ३२ ११,३४ ७ २३ ૨૪ ३७ ६,१३,१७,२६ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरनकोपः। पंक्ति पृष्ठ शब्द निकुम्भवंश निग्रह ..8 १२ २७ १८,३४ - निग्रह - पंक्ति । शब्द २४ नियुद्धकार १६,३३ नियोग १४,३१ निरसता ८,२४ निरोध २१ २४ निरंकुशा ३,९,१४ निर्लज १८ निर्लज्जा १४ निर्वाह १६,२०,२१,२४ निर्वाह निर्वीर्यता " निग्रहगुण निघंट २,७,९,१२ निघण्टु ૬૬ निर्णय ६७ ६६ ५७ १,९,१४ १५,२० १,१४ २९ ४,१७,३० ७,१८ ९,१०,१४ ३८ ६७ निर्वेद निर्वेद १२ निर्णयस्थान नित्ययोगी नित्यरोगी निद्रा निश्चय निश्चयस्थान १४ my ८,१५,२३ ४,११,१६ १४ mm . १७ २० ४८ १५,२१ ८ निर्दयत्वं निर्दिनी (१) निधि ........ निश्चलानशायी निश्वासोच्छ्रसनं निष्ठीवति निष्ठुर निष्ठुर निष्ठुरता ७,१४,२०,२६ ३,८,१०,१३ १३ २० १४,३१ १०,२६ ३ ५७ १६,१९,२२,२४,२५, २८ २३ निघण्ट निर्माल्य नैर्मल्य निष्ठुरा नीचप्रदेश नीति १९,२० २२ १३,२७ ६,१८,२९ " १,३१ १७,१८ ८,१९,२७ निम्नप्रदेश नियति M52 १५,३० १,१५ २९ ', २१ । २४ m नियम नियुधकरण नीतिकला नीतिमानिनी नीतिविज्ञानं नीतिशास्त्र . ८ २६ १५ । २१ नियुद्ध २८ २,७,१८ नूपुरोत्कर्षणं * ' | २४ १२,१८ १२,१७ ६,१८,२८ २३ । - ३३ नेपथ्य SWWW २६ । नियुद्धकरण नियुद्धकार नेपथ्य ,६,२० . २५ س १४,२८ १४,२९ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति । शब्द । २९ । पत्र शब्द पृष्ठ पृष्ठ पंक्ति ४,१४,२५ १६ नेपथ्यकला नेपथ्यविज्ञान नेपथ्यविज्ञानं २५ पत्रक नेपाल, N पत्रविनोद १५ । ६,२० पत्रविज्ञानं नेपालदेश पद पदगतं नैर्मल्य नर्माल्य नैयायिक १३,१५ २,३,४ ११,१९,२६ पदस्थपात्र पदस्थपात्रं पदार्थ नैयायिक नृत्तज्ञा नृत्तपाठ नृत्य २७ १५ पदार्थकरण १६ १७ २७ १,१०,२२ ७,११,१६,२८ ३,८,१२,१६,२० २४,२७ ४,२०,३६ ३० १२ ९,१२,२१ नृत्यकला २७ पद्म २२ ११,२३ २१ २४ पयोय पर्यंका ३० ३० २५ नृत्यलक्षणं नृत्यलक्षणं नृत्यविनोद ३१ २२ पर्यंत ३६ १७ २७ " नृत्यज्ञा WWM Mo 9 - २ १५,२२ ८,१४,२७ ३० " न्याय व . परकीया पदच्छेदिपात्र परपत्र, परमार परमारवंश ३३ ७,१४,१५,२१ प्रकृति पट्टिसु २०. १८। २२ । ५,१५ ७,३२ १९,२३ ३,१४,३६ पठित س م २५ م पठितकला। । पठितविनोद पठितज्ञा पीहार س ૨૩ ८,१३,१४ ३,१०,३३ परमित पराक्रम - पराक्रमकृत पराक्रमयश पराहमुखी م ६,१२ ८,२७ पण्याना पत्र ४१ ३४ पराजय १३,२६ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ प्रा ६७ २६ २४ पराजय पराजयकृतं परान्मुखी परिगत परिचारिका परिछद परिच्छेद वस्तुरतकोपः। पंक्ति ६,१० पशुपालन पशुपालविज्ञानं पनुपाल्य पक्ष ३५ ९६,३३ पक्षप्रमाण १८ १४,३१ १८ ૬૬ १४ पक्ष ६७ १३,२२ ३,११ १८ १७,३२ ११ E पक्षि - Hay २२,२६ سر س س هم २४ १४,१७ ९,१३,१८,२४,२९ परिच्छन्द परिच्छेदगुण परिणामकी परिणागिका परिघ परिधानसंयमनं परिबोध परिवोधशौर्य परिभावक १८ पक्षिकला २२. १३ १४,२०,२७ ४८ " २३ اس سم पक्षिलक्षणं पक्षिविज्ञान पक्षिशिक्षा पक्षी سم ६ ११ ४१ १४ १२,३२ १९ १६ ४१ २३ ३,८,१३,१८,२४ ११,१३ । १९ ४१ परिगावितं परिभावुक परिगापिक परिमारवंशा परिमिता परिमितं RE १५ पक्षीविनोद पाचक पाठ पाठ्य पाउल १५,१७ १,२३ २ १४ ११ १४ १८,३४ १७ पाणि S परिपद परिश्रमी परिस्फुट परोक्षनामस्मरण पवित्रमापण पवित्रवाक्य १५,१७ २२ पाण्डित्य ४,१४,३१ ८,१६ ३१ १२,३० ६,२२ ५,१०,१५,२६ २१ " पर्वत पाताल पाताललक्षणं पर्वत २,१४,३४ पातिकर पात्र पर्षद पाश पशुपाल १५,३० ९,२२,३१ ८,१३,१७,२७,२९ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति शब्द पंक्ति शब्द पाल पात्र पालकत्व م पात्रकला १४,३१ १२,२९ ५,२२ س पात्रं ४,८,१२,१६,२० ३३ १५ १३ س पावकत्व पात्रलक्षणं पात्रसग्रह पार्थिव و By: RAM पावकत्वगुण م पाश पाद ४,१४,२३,३१ ८,१६ " पाशुपतं पाशुपत पाशुपाल्य ६,१६,१८,२५,३१ २४ २७,२८,३० १३,२७ । ११ १९,२४ १,२५ १७ पानककला पानभोज्यादिविज्ञानं ५९ पानभोजनविधानं पानविधि २५ १५,२०,२६ २३ १५,२९ २१,३८ १४ पाशुपत्य पाषाण पार्श्वचालनं पार्श्वविवर्तनं पार्श्वे आचमनं पार्श्व वाऽऽचमनं मित्त पित्त १४,१९ २५ २६ २७ पानविधिविज्ञानं पानीगृह पानीय ७,१७,२५ २,१०,१९ २५ " २२ १८ १३,२९ पिप्पलपत्र ३३ 1 ३५ ३६ पिप्पलपत्र पीठ __ - १४ ४,२२ १,२७ ७,१२,१७,३२ ३५ " पानीयगृह पानीयस्थान पापांतिक पापातिका पीनस्तनी ३६ २२ १३,२१ ७,१२,१९,२६ ८,११,१३,१५ ४६ ८ २५ पुण्यकीर्ति पुनर्भू पुन पात्र १२ ५,१२,१९ ६,१३ १८ ३० ८,१६ पुराण पापीतिक पारमित पारमिता पारिगत पारिणामिकी पारियात्र ६,१२,२६,२९ १०,१२ १३,१५ पुरुष १,२९ ६,१५,२४ १,९,१७ . परियात्रदेश पारपर्यविज्ञान ८,१३,१८,२३,२९ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द पृष्ठ वस्तुरत्नकोषः। । पंक्ति पूर्णदान पूर्णपात्र शब्द पृष्ठ पंक्ति २९ पुरुषकला पुरुषलक्षणं سے سہ لس لسد पुरुषार्थ - १३.३० 0 पुलिका । २३ पुष्टि ११ س - M ... १७,३४ १५,३२ ८,२५ १८ س पूमायात् ("वं भाषते) ४६ पूर्वदिशि पूर्वदिशि देशा पूर्वदेश पूर्वदेशा. - س .. २७ ५,२२ पुष्टिगुण १० पूर्व भाषते पूर्व भाषते पुष्प १५ पुष्प १२४ ३० ४,८,१ १५,२९ __९,२४,३९ . १४ २ ४ १० पूर्व भाषितं पूर्वमुत्तिष्ठति २१ ६,१८,२६,३२ पुष्पपात्र १४ , - १२ १५ १,८,२० ५८ ४७ पूर्वमुत्तिष्ठते पूर्वमेव चुंबनं करोति ४६ पूर्वमेव चुंबनं ददाति ४६ पूर्वमेव खवचनात् भाषयति पृथ्वी ५८ ३३ ४८ २४ २,२१,२७ पुष्पमाल्यादि पुष्पनालादिदानं पुष्पवास पुष्पविज्ञानं पुष्पसयमनं पुष्पादिभोगेन पुष्पादिमाल्यानि पुष्टि । ।' पूर्वचुंबनं करोति ४८ १८,२६ १९ पृथ्वीतत्त्व । ५८ ३४ १०,१७,२१ १३,२९ पैशाच पैशाचं ६५ पैशाच ६५ पूजा , पैशाचिकं ६५ २२,२४ पोत पूजा पूजानिधि पूजाविधि पूज्य पूज्यपान - पूज्यपात्रं पूज्य पूर्णकलश पोतिक पोतिकपुत्रवंश पोन्द्र पौतिक १०,१७ पौमिक पौलक Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। शब्द पंक्ति पण्ड . पंडित - १ OM १ °,१३,१७ १४,१६ ' ३३ पंडितसत्तम पंक्ति । शब्द १० प्रताप १९ । १८ प्रतापकृत २४ प्रतापकृतं १६,३० प्रतापगुण १२,२६ प्रतापयश २,१६ प्रताप प्रतापशौर्य ३७ । पचाल १० ३७ पांड ७२ पांडित्य पांडित्यगुण पाडित्यम् प्रतापिता प्रतापै प्रतिचारिकापात्रं प्रतिपत्ति प्रतिपत्तिशौर्य प्रतिपात्र प्रतिपक्ष प्रतिपक्षमाण प्रतिपक्षः प्रतिपक्षि प्रतिमा G6 66 WWk ६,१४,१८ ८,१० पांडदेश पुंद्रक - पुड्रदेशः पुंढ . प्रकाम्यमेव प्राकाम्य प्रकाम्यं. प्रकार प्रकार प्रकारपर्यंत प्रकाशक. प्रकृति १७ १९ ६६ १३,२२ ७६ १४ । २०,२१,२३,२४ ६८. ६४. १८ ६८ १८ प्रतिभाषा प्रतिभावान् प्रतिमेद प्रतिमा २१ २८ ૨૪ १,९,१७ २४ ८,१०,११,१२ प्रचारणसंयमनं प्रजापालनं प्रणयित्व १,३,५ ३ ११ प्रतिमान प्रतिवाद. प्रतिवादि १२ १३,३० " १० ११ १२,२० २१ प्रतिसारकापात्र प्रणयिमानत्वगुण प्रणाम प्रत्युत्तर १३ १३. १८,३५ १५,३३ ९,२६ २५ १८,३५ १० २,१२,१५ प्रतिष्ठा २३ ४,८,१२ १४,१९ प्रतिष्ठागुण प्रतिज्ञा. १५,३२ १३,३० ६,२३ । प्रतीहार प्रत्युत्तरकला प्रताप ९,२६ २३ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 वस्तुरनकोषः।। पृष्ठ पंक्ति पंक्ति शब्द प्रमाण २० शब्द प्रतीहारवंश प्रथमस्थं प्रथमस्थितं प्रथमं शेते पृष्ठ ६९ १,५,१०,१२,१६,१८ २०,२४,२७ س س r ८,१४,२१,२६ प्रमाणत्व प्रमादपर्यन्तं प्रमाणं २७ A ४१ प्रदत्ता प्रदत्ताप्रकाशक " ४१. २४ प्रमाणं ६,१३ १४,१९,२६,२८ ३,८,१४,२३,२५ प्रदान १३ mmmmm १२,२८ ४,२२ प्रभेद प्रभेदसिद्धि प्रमेय प्रदीप ४,२० १,१२ १९,२३,२८ ४,७,१२ " प्रधान प्रमेयं १३ १० ४,१२,२० १५,३२ १३,३० प्रधानपात्र प्रधानपात्रं प्रधानपूजापात्र १४ ६,२३ १०,१८ १४ १५ ११ २३,२५ प्रयोध ११,१४,१९ १२ प्रबोधशौर्य २ १९ २६ ७,११,१४,१९ प्रभाव १५ १६,३३ १३,३१ س ७,२४ २२ س प्रमोदगुण प्रमोदपर्यंत २१ م १४,३१ प्रभुत्व २४ ع १२,१९ س " २० प्रमोदशौर्य प्रमोद प्रयोग و प्रभुत्वगुण प्रभुत्वम् प्रमेद २३ १५,२९ ८,२१,३१ هم २४ २३,२८ ६७ २१,२९ ६९ २,२०,२३,२४,२६,२७ . ५ ६८ १२,१४ " प्रयोगकला . १९ प्रमदोपचार प्रमाण < ११ १५,३३ प्रलय २३ प्रलाप ७,१८,१९,३० س " १३ प्रमाण م २३,२८ ६७ ७,१२ प्रवीण ६८ ४,६,१०,१२,१६,२०, प्रशंसा २१,२५,२६ । प्रशंसा १०,३५ १५,३३ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द . पंक्ति , २,२२,२९ प्रशंसा : " २६ २८ २०,२२,२४,२६,२८ प्रशंसागुण १५,२७ प्रसन्नत्व अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति __ शब्द १३ प्रज्ञावती ४ प्राकाम्य प्राकृत २५ प्राकृतं २३,२८ ४,८ प्राग्विजृम्मणं १४,३१ प्रागल्भ्य १२,२९ प्राजलत्व ५,२१ प्राण १८ प्राणिदयाशौचं ६३ -१,८,१५,२२,२९,३६ प्राधान्य १६,१८ प्राजलत्व १३,२१ ७,१२,१९,२६ प्राजलत्वगुण प्राजलत्वं प्रालित्व १८. प्राप्ति ३५ १.१५,३२ प्रसन्न १८,२१ ६५ १२,२९ م प्रसन्नमुखी ن " س प्रसरण له " प्रस्थ mru १३ प्रसाद ११ १३ १३ २५ १०,२३ ३,२१ . प्रामाणिकत्वगुण प्रारंभ प्रारंभ १६ १७,३४ १५,३२ ८,२५ ७६ १०,११,१४ १० २१ ११ १२ १३,३१ ७,२३ २२ ३१ ३२ ६,११,१६,२१,२६,३१ १४ १३,२९ ३८ प्रारंभगुण प्रासाद ३५ ५,२२ ३२ प्रसाद प्रसादितगान प्रसारितगात्रशायी ६० प्रासादविज्ञान २९ ३,८,१०,१३,१५ प्रिय १८ प्रसिद्धा प्रश्न २७ २३ - प्रियङ्घ १० १४,१९ १२ " ७,२३ १,१९,३५ प्रहेलिका ३१ " प्रहेलिकाविनोद प्रज्ञानप्रबोध प्रज्ञाप्रबोध प्रज्ञावती ४,९,१४,२०२६ २५ प्रियभाषणं ५,१० प्रियभाषिणी २,४,८ १८ । प्रियवाक्य १६,२२,२८ १२,२० ६,१२,१९,२५ १४,३० Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ शब्द प्रियवाक्य ވ. प्रिय. प्रियंवद " प्रियंवदा प्रीतमना प्रीति " प्रीति " " " "" " प्रीतिगुण प्रीतिमति प्रीतिमान् प्रीतिवान् प्रोषितभर्तृका प्रोषिते तुष्यति प्रोषिते, दुर्मना در " प्रौठित फड फराट फल رز फलादिभक्षण फलविनोद वजूर चवर ४२. ૪૮ ४५ ४६ प्रोषिते दुर्मना भवति ४७ ४६ ६६ ९ ९ १६ वब्बर वर "" पृष्ठ ३५ ३६ ४१· ४० "" वर्वरदेश चल ४१ ४३ xx ४१ ११ १२ १३ २६ २७ ३३ ३५ ३६ १० ४३ ४१ ४० १५ ५९ १५ २९ २९ २९ २८. २९ ३० २८ १५ वस्तुरत्तकोषः । पंक्ति १८ २३ १६ १५ २,८,१३,२८ ४ १४ १७,३४ १५,३२ ८,२५ २५ २ २,८,२८ १५ ३,५,७,९ २२ १८ ८ २५ ५ २२ १३,१६,३३ 1 ७, १९ 17 ७ २४ ३० ,८,१४,२०,२५ १३० १५,२२,२५,२६ २२ १७ ३२ १६ २० ६ ७,२१ ३१ शब्द वल " वल ވ ," در در " वलगुण ॐ" "" बलम् " बिंदु ގ " वलशौर्य वलेन बारड बालकृत बालमुखचुंबन वालसयमन ६१ ६१ बालसंस्कार प्रबोध वाला लिङ्गनं ४८ बालानां सस्कारप्रवोध ६१ वाह्वीक ९ १०. २० २१. ३३ ३५ बीज बीजपूर बीजपूरक ,, वीभत्स वुद्धन बुद्धि " " در 99 " पृष्ठ १६ ७३ ११ ފމ १३ ६० ७० ७१ ७५ १० १२ ७२ ५ ७५ ७२ ६० ९. ३७ ४८ ३४ ३६. ३७ २२ ४ - १० ११ १२ १३ १६ १७ २० 1 पंक्ति ५,१५,२१,२७ “१०,२७ १८,२४ २४,२७ १५ १३,१५ १०,११,२६ १,१७,३४ ७,११,१५,१९ १९ PHIL १६,२१,२८ ६ १५ ११ ८ २,८ १५,२१,२७ २२ ३६ ५ " "" ६ 21 ९ १०,१६,२८ १,१२,१८ २ २३ २१,३७ ९,२५ १७ २० २२ २१ २६ १९ १,१७,३४ ३, १०,२७ ८,३०,३४ ५ ,१५,२४,३१ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द 照 ," " बुद्धकला در बुद्धिगुण बुद्धिगुणाः वुद्धिव वुद्धिमुख बुद्धिस बुद्धिसुख बूसर चोकाण बोक्काणा बोक्काणदेश 花花 वौद्धं बौद्ध बंगदेश बंगाल " در दिल्ल बंध बघु ब्रह्मचारि ब्रह्मपर्यक ब्रह्मपर्यंत ब्रह्मवंश ब्रह्मा رد در " " नां भक्ति : भद्र भय 22 1 • P पृष्ठ २१ २३ ७२. २१ २३ १० ४ 2 2 2 2 2 ~ ~ ~ 5 3 ७२ १७ १७ १७ २९ २९ २९ २८ ५ ६७ २७ २८ २९ ३० १०० ३३ ३४ ३५ - ३६. ६७ १२. ३१ ܩ ܢ १२ २०१ २१ । ३८ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति ४,८,१७ ५,१७ २५ २९ २७ २८ १२ ● २३ १० १४ २ ३२ १५, ३० २ ९ २६ २९ ६८ ४,६,८,१२,१४,१६ ६८ ૬૮ ९ २,१७,१९,२० ७ २१,२२ १९ १४,२८ १०,२४,३९ १४ ४ २३ २६ ५, ७, १०, १२ १८ १ २ १,१७,३३ १२,२८ ९ १७, १९, २० २१ २५ २१ १९,२६ ३,११,२० ३,१३,२८ शब्द भय भाजन भाण्डागार भारती भाव भावकत्व " भावकत्वगुण भावशौचं भावानुगतं " भावुकत्व भावुका भाषापंडित भाषालक्षण भिंडपाल भिंडमाल C " भिंडिमाला भुक्ति भुतिपर्यंत भूतकर्षण भूमि » ގ " "" भूमिकला भूमिपरीक्षा भूमिपालनं भूमिलेप भूषण " دو भूषणोद्घाटनं पृष्ठ पंक्ति ३९. । ५,१४ ३५ १७ १० ८ ३९ २३, २४, २५, २६, २७, २८,२९,३० १४ २ ६४ ६५ ७० १२ १३ ११ ४४ ६५ १२ ५७. ४१ ४ १८ १७ १८.८ १८. ५. 99 १२ ६७ २६ १ E २३ ३४ ३६ २२ २३ ७१ २२ २६ ६६ ६७ ४८ २१,२४,२७ ३,६,१२ ४,९ ४,२० ३० ३ 1 ३३ २,१७ १६,१८ ३७ २४ ५,११,३१ २० १९ ३० ६, १२ ३१ २२ २३ ३७ २५,२७ १८ ८ १६ १,११,३४ ३६ २ ७ ३४ ८,१०,११,१२ १८ ३ १९ १,५,८,१३ १३,२०,२५ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरनकोषः। शब्द पृष्ट पंक्ति शब्द पंक्ति भेद १७ मद्य 3D भोगहीनता भोगिनी of 36 ७,२०,३५ १३,२९ 0 * * * * 0 ४४ भोजनवास भोजनशक्ति भोजनशाला मर्दनविज्ञानं मधु १९,२१,२२,२५ ४,९,१४,१९,२४ २९,३४ 0mm x mmm SWG ५,२१,३७ १५,३१ س १५,२१ व मधुरवाक्या मधुरा ७,१३ १४,१६,२० ११,१५ س भोजनादि भोजनाधिवास भोजनाधुपचार भोजने भंडार मकुआण मकूआणा व ४४ س मधुरं २८ १७,२५ ७,१४,२८,३६ س » १७ २५,३५ १५,२९ 5 १४,१७ 0 मगध मध्य 0 २५ १५ " २९ मच्छ w मठगृह मठस्थान मठस्थानं २७ २,२२,२७,३२ मध्य मध्यदेश मध्यदेशाः मध्यदेशा मध्यम मध्यमपर्यंत मध्यमिका मध्यं २,३,४,५ d १९ मज्जा २० । ६,१६,२५ २,९,१८ २० س كس १६,२३,३०,३७ ل मणिमय मणिशाला मति १८ मध्यं प्रमाणं । ३,१० ६४ १०,१४,२४ २,११ मन ه " ५,१५ १३,२५ ८ س मतिमूढ मर्त्यलक्षणं मत्स्य م मनशाला मनस् ३४ ८,१७ ف १०,२६ م م " मद मदनगुण मदिरा मद्य मनुष्यलोकस्थान मनोवान्छितविनोदः ५९ मनोहरं मनासि मण्डन १० १७,२४,१२ १६,२७ १५ २३ ७,२३ " ५,२१,३७ १६,१८,३१ । मर्म Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति . ठान शब्द पृष्ठ पंक्ति १११,२४ मर्म २६ ३० २८।। महाराष्ट्र महाराष्ट्रदेश महाव्रत महाव्रतिक मर्मविज्ञान भयांदा २५ १२ । २७,२८ ३०,३१ २३,४० ६७ ६८. महानतं ६७ मर्यादा मर्यादागुण मरण २२ ११ २५ ९,११,१३,१५ م 9 س महिमा महेश महेश्वर س मरण ११ ११,२७ १३,१५ १५,१७ س ४५ १,३,१७ १२,२८ س . मरण मरणांत سه महोत्सव २१ मरु मल १२ १७,२६ ,१०,१९ १३ २ १ ३,१९,२६ १२,२९ ३० ३,८,१३,१९,२५ १५ ० " ३०. २२ मलय मलयदेश मल्ल २२ १,५,९,३० महोत्सवगुण महोत्सवविनोद महोत्साह महोत्साही मक्षिका १२,३१ १८,२५ १६ ६,३१ . मागध मल्लस्थान मल्लस्थानं म(श्म)शु मसंठि मस्तकविज्ञानं महत्तम । . . २१ मागधदेश मागधं २१,२२,२४,२६,२८ महत्तमपात्र मात्सर्य महत्तमपानं महागीतं महातट महानस महानायकाः महापात्र महामात्य २८ २९,३४ १,५,९,१४ ९,१७ ।१० - २ ६,७,८,१० २० ,२४,२९,३४ १७ २५ माधुये माध्यमिक माध्यमिक मान ८,१९ ३,११,२० २५ ११,१३,१९ ९,१५ ३२ २६ ६,८,१८ ३१ महाराष्ट्र २८ २४ मानं ६,२०,३५ । मानगुण ur Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ शब्द तानचरितं मानपात्र मानपात्रं मानव मानवलोकस्थान मानवसस्थान मानवस्थानं मानशौर्य मानसिक " मानसिकं " "" माङ्गल्य ,, " माङ्गल्यगुण मान्य मान्यपात्र "" मान्यपात्र माया " मारणे मारववा मारू मालव 66 " در मालवदेश माला मालागृह माल्यगृह मावल मापा माहेश माहेश्वरं माहेश्वरम् در माक्षिक पृष्ठ ७१ १५ १४ १४ ७ ७ ७ १०,११,१३,१४,१५ ७२ ७३ ४३ ४३ ७३ ७३ ११ १२ १३ ११ १४ १४ १५ १४ २० २१ ७५ ८ ९ २८ २९ ३० 2 २७ ३५ ३२ ३२ २९ ९ ६७ ३५ ५ ६७ ५ वस्तुरत्तकोषः । पंक्ति २ ४ १८ १ ३० ९ १५ १ २१,२२ ३२ ३३ २० २२ २१ १९,३६ १२,२९ २ ३३ ११, १८, २६ ३,९,१२ ९ ४,१२,२१ १४ २६ २९ १८,३२ २६,२८ २,१८ २७ २० २७ ७,१२,१७,२२,३२ १४ ३७ २१ २८ ३ १७,१९,२०,२२ 1 १८ शब्द मितहार मित्र मित्रपात्र मित्रम् मित्राङ्ग मिष्टान्नं दात्री मुक्ताफल " 29 " मुक्ति मुखाधिवासः मुखाधिवासे मुखे मुडु मुडुकवंश मुद्गर "" मुष्कायण मुसुंठि मुहूर्तवल मूर्ख मुख मूठकुट्टनं मूढ पृष्ठ "" मुखवास मुखशौच ४५ मुखशौचं ४४ मुखस्था ('सुखस्थापकं ) ६३ मुखस्थापकं ६२ मुखस्थं ६३ ४४ ४४ ४४ १८ ८ १७ १८. मुद्रिकाकर्षण ४८ मुलतान २९ मुशल १८ मुषाभव्यं (? सुभाषाढ्यं) ६३ मुषंढी १८ ९ १७ ७२ " मूलगत पदार्थ ३१ ७३ ११ ७३ ७३ १० ४६ ३३ ३४. ३५ ३६ १२ १३ ४४ ३ ५७ ५७ ५९ ३८ ३९ ८ पंक्ति १४ १६ ६ - १५ १०, १२ १४ १३ ९, २५ ३,२१,३७ १८ ४,३८ १४,३१ ८ ५, १३ २२ २३ १९ ३० ५, १३ १० १४ १.८ २० ३० ६,१२,३१ १२,१८,२५ २० २,८,१४,२१ २० ७,१३,१९ २५,३० ३० २४ १५ ४,६,८,११,१४ ६ J १० ५ ३ १० Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द मूलपदार्थ मृत्तिका " " "" "" मृत्तिकाशौच मृत्तिकाशौचं " मृत्यु मृत्युलक्षणं मृदुकुट्टनं " मृदुगात्रशायी "" मृदुपत्रशायी मेध मेघ " "" " मेघविज्ञान मंडरा मेद در पाट 1 " मेदपाटदेश मोदक ," मोरी मोह 2 मोहजविज्ञान पृष्ठ. ८ ३३ ३४ ३५ ३६ ४५ ४५ ૪૪ ४५ ३१ ३१ ५९ ५८ ५९ ६० ६० ३५ ३३ ३४ ३५ ३६ २४ ३२ २० २१ २८ २९ ३० २७ ३३ ૨૪ ३५ ३६ १० २० २१ ३८ ३९ २५ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति ७,८,९ ८ ६,२२,२८ १७,३२ १४ १,५ ३ १७,२०,२२ ७ १०,१५,२६ २० ४,६,८ २५ २९ ३,१५ ६ २३ १५ ११,२७ ६, २३ ७ ६,१६,२५ १,९,१८ १७,३२ १४ ५,१८ २८ १० ७,२३ १,१९,३४ १५ ५,१२,२२,३५ ५ १८,२६ ३,१०,११ ६,१९,२१ १,९,१९ ४,३२ शब्द मोहन " " मोहविज्ञान मोहविज्ञानं मोक्ष " دو " " मोक्षपर्यंत मोक्षमहोत्सव मोक्षलक्षणं मोक्षशास्त्र मौदिक मौरिकवंश मौष्ये(सौख्ये) मत्र "3 "" मत्र " 23: " " " "" " "" "" मंत्रकला " मत्रगुण मंत्रपात्र मंत्रबलं. मत्रवान् मंत्रविनोद मंत्रविज्ञान मंत्रविज्ञान मंत्रशक्ति पृष्ठ २५ २६ २७ ४ २४ ८ १९ ३१ ६९ ७७ ६९ ७६ ३० १९ ९ ८ ६० ११ १२ १३ १५ १६ २३ १९ २३ २५ २६ २७ ४१ ७२ २२ २३ ११ १५ ७२ ४१ १५ २४ २५ ७४ ३७ पंक्ति 196 ५,२३,३५ ३२ २ १२,१३,१४,१५ १०,१४,२४ ७,१२,१७,२३,२८ ९,१५,१९ ५,१०,१३,१७,२० ११,१३,१७,२१ २,५,६,७ ३३ ४,१८ १२ १९ २५ २२ ३,२०,२६ १३,३० ३० ८,१३,१९,२५ १७ १०,२०,२४ २६ ६, २० १३,२९ ५ ५,११,३० २५ ३,१२ २८ ३ ४ २३ १७, २४ २२ ३४ १७,२२,२४ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . वस्तुरतकोषः। मान्द पृष्ठ पंकि १५ १९ मंत्रशास्त्र मंत्रि पंक्ति | शब्द यादववंश २९,३३ यादववंश ५,९,१३ यामन ९,१६,२४ यामुन १०,२४,३९ o १४,२८ ३१ my मंत्रिपात्र मंत्री मंत्रीपात्र मंकाणकवंश मंकुन्याण م १० यामुनदेश युक्ति م KU - م س - १४,२१,३८ १४,३१ س - - س मंडण मंडन मंडप मडपशाला मंदिर ف لس २५ ९,१४,३४ युक्तिगुण युद्ध س १०,३२ १६,३१ لس س १९ م لس १३,१८ १२ २८ لسد " मंदुर ३ . ... मास urr ام اس युद्धकला युद्धकार युद्धविनोद युद्धशक्ति युद्धसमय " ६,१६,२४ १,९,१८ १४ १८,२१,२५ योग mms २१ , यति س ११,१३, १५,१७ ११ ७४ १५ २ س योगविज्ञान २६ यथाचार यन्त्रगोलिका यमक यमुना '३३ १३ ११,१३,१५,२१ ४४ mmmmmmmm- १५,३२ १०,२७ ७,२५ योगाचार योगाभ्यासकारणम् योगांत योगोपचार योगाचार रक्त यश यशोवंत ११ १७ N १३ यंत्र - २,३,८,१३,१८ १९,२५ २१ ६,१६,२४ १,९,१८ १२ २,१२,२०,२८ ५,१३ १५,३० १३,२६ यंत्रविनोद यंत्रविज्ञानं यादव यादववंश १५,२१ १८,३२ १९ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति । शब्द व पृष्ठ रागादिव्यसन राजगुण ३१ ३३ ९,१४,१८,२४,३० 5,२२,३२ १,१८ . . . राजनीति २१,२३ ३५ ur . राजपात्र १५ ३४ रत्रकला रत्नपरीक्षा रसमणि १४ mr o ३ ur १४ राजपाल रथ रम्यादि राजपालक राजपालवंश राजपुरुष . . . . . ។ ३२,३६ १२,१६ १३,२२,३० राजबल राजमान्य ६ २१,२४,२६ " ८० १८,१९,२४ राजमान्यपात्र राजविद्या م " २,६,७,१२ २४ ६,२३,३९ १६,३२ ३,१३,३० राजविनोद س ... . . . س राजवंश १२ ه م " " राजहंस रसनगुण रसायन ६,१९ राजांगण . Sur ५,१०,१५,२० २५,३०,३५९ . २८ राज्य राज्यपालनं ८,११,१२ १८,२४ . रसिकत्व २२ ४,२०,३७ १३,३० राज्ये राज्यं रसिकत्वगुण रसिका रक्षण रक्षणशौर्य राग । १२,१९,२६ १२ राठउड राठोऊड राढ्यदेश राष्ट्रकूट • ... २० २१ ३,१०,२४,२९ ८,१९,२७ ३,११,२० । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द पंक्ति राज्ञी राज्ञीपात्र वस्तुरतकोषः। पंक्ति शब्द ३३ लकुट ४,१२,१९ लघिमा ६,१३ लज्जान्विता १,२७ १९,२३ १,५,८,११ लब्धियोग ललितं रिष्टि ९,११,१३ १४,२१ ७,१३,१९,२६ ,३,१० رو १७ २९ १०,२८ १२,२२ ४,११,१८,२५,३२ ३,१३,२२,३० ७,१५ १०,१६ १२,२६ १३,२७ १० लक्षणकला लक्षणयुता WWWS ११,१३,१४,१५ २,३,५ १४,२२ ७,१३,२० १२ रूपक रूपकृत रूपगुण लक्षणयुक्ता लक्षणविज्ञानं लक्षणशास्त्र लक्षणस्थान लक्षणं ० १२ ७,२०,२७ " ४,६,१४ रूपभागी रूपलक्षण रुपवती रूप्य ८,१५,२० २७ r ४,२०,३६ १५,३१ " १३ mr लक्ष्मी लक्ष्मीयोग लक्ष्मीविज्ञानं लक्षितम् लाघव लाज लाजी लाट २०,२१ रेणु mro ܘܕܶܝ रोचना : : : : : ६,२२ .१० " १४ रोमांच ३,१७,२९ १७ १७,३१ २७ लाटदेश १०. रोमाचाः रोरीच रौद्रगीत २९ लाड लास्य लिखित ६४ १४,१५ ९,२२ १६ ६,१७ * : ... २ WW १९,२३ ३,१४,३६ २२ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द लिखितकला लुइक लुंठि लेख्य 33 === در "> लेप लेपकर्म " लेपकला लेपन "" लेपविज्ञानं लोक लोकपर्यक लोकपाल در "" در लोकवाद लोकवादपर्यंत लोकसंस्थान در लोभ در लोभगुण लोह 33 लोहकर्म " लोहपात्र लोहपाद " लोहपुर लोहपुर लोहविज्ञान लोहितपाद "" लोहितपाददेश पृष्ठ २१ ९ १८ १५ १६ २२ २६ २३ २५ २७ २२ २३ २५ २४ ७० ७० ३३ ३४ ३५ ३८ ७० ७० १ G २० २१ ११ २५ २६ २३ २६ २६ २८ ३० २८ २९ २४ २९ ३० २७ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति २५ ३० १,१०,१८,२६,३५ २८ १,६,११,१७,२३ २४ १४,३० ११,३४ ७,२१ ६ ७ १ ३५ ९ २२ १४ २ १,१७,३३ १२,२९ ९ ६,१० १८ ७ १७,२६ ३,११,१९ ९,२३ २ १९ ३२ १७ १६,३० १६ २१ ४,१७,३२ १३ २७ ३ २५ शब्द लोहपुर वक्तव्य वक्तव्यं वक्तृत्व 39 "" " " "" वक्तृत्वं "" वक्तृत्वकला वक्तृत्वकीर्ति वक्तृत्त्वविनोद वक्रोक्तिकीर्ति वङ्ग वचन "" " " " वचनकला वचननिश्चयप्रबोध वचनविज्ञान वचनज्ञानं वचनाद्यप्रचारत वचा वज्र वज्रकर वज्रकर्म वज्रल "" वज्रलदेश वजुर वज्रकार वर्जर वणिज वर्णन ވ वर्तन पृष्ठ ३० १६ ६६ ४ १५ १६ २२ २३ ३७ ६६ ७० २१ ३७ १५ 2 2 2 3 3 w ga ३७ २९ २२ २३ २५ २६ २७ २१ ६१ २५ ६१ ५८ ३५ १८ २६ २६ २८ २९ २८ २९ २६ ३० २२ ३७ ६६ - २२ શું पंक्ति ८, २२ ६,११ ६ १९ २८ १७, २३ १९,२४ ३, १४,३६ १०,१७ ४,७,९,१० ३,८,११,१५,१९ २५ ८,११,१३ १८ १५ 5 m x 5 o ३८ २४ १५ ६,१९ १३,२८ ४ २६ १० ३३ २७ ७ ३५ ११,१७,२४ ६ ३७ २१ ३ ३२ २० ७ ३१ १,२,६ २५ १७,३२ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ वस्तुरत्नकोषः। पृष्ठ शब्द वर्तन वर्तन ५ mr m१४ पंक्ति १३,२६ २० १४,१७,२२,२५ २४ or " पंक्ति । शब्द पृष्ठ १०,३३ वस्त्राकार १०,१७ वनाकारविज्ञानं ५,६,८, वस्त्रादिसयमनं १२,१४,१६ वस्त्राधिवासे वस्त्राधिवास १५ वस्त्रालंकरणेन ११,१३,१४ वस्त्रालंकारदानानि ५८ १४ वस्त्रालंकारदान १,७,१३,२०,२७ वाक २० १४ ५,१३ ४४ l वर्तनकला वदान्य वय वयस्थ १९ 0 و 5 م वयस्विनी س * वाक् س वर 14 م ५८ 6 ५९ वरणेंद्र वराजशोधन वरं( रा )गशोधन वरागशोधनं वर (2 वराङ्ग) संवेशन वराटदेश वरेंद्र __... * : वाक्वलं वाक्यज्ञा वाक्यज्ञा वागविजृभण वाच वाचक سس ل ل لسه هس » 0 04 4 0 प 0 २३ ८,११ 0 ८,२४,२९ ६५ ८ WWWW २६ 0 । २३ वाचकत्व वाचक 2 or १३ वरेन्द्रदेश वशित्व वशित्वं वशित्वम् वशीकरण ७६ १०,१२,१५ १२,२५ ५,१७,३५ वाचनविज्ञानं वाचना वाचिक वाचिक Sm و १० ७३, वशीकरणविज्ञान वस्तु १८ १५,३० ८,३१ १८,३६ ९,११,२५ ३,१९,३० १९,२६ वाचिकम् वाच्य वाच्य वाजि वाजिन वाजिंत्रविनोद वाजिशाला वाणिज्य ३५,३६ س ل वस्तुलक्षणं वस्तुविज्ञानं वस्त्र २८ و वनर्म वत्रकार ९,२२,३२ १३,२७ ७७,२०३, २६ २७ . । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। शब्द पूछ पक्ति । शब्द २ वाद्यकला पंक्ति २४ ११,२३ वाणिज्यकला वाणिज्यविज्ञानं वात 0 २४ । २१ 0 M . 9 ० ३,८,१६,२० ७,१७,२५ २,१०,१९ १८ ११,१६ वाद्यम् वाद्यलक्षणं m वातो ३१ वात्सल्य १६ वाद्यविनोद वाद्यशास्त्र م २१ ३,१९,३६ س س २९ वाद्यज्ञा वानप्रस्थ و ११ १५,२२ ५,७,९,११,१३, १५,१७ २,१२,१४ २,२१,२३,२९ वात्सल्यगुण १६ वामपार्श्वशायी वायु वायुतत्त्व ४,१९ १२,२६,३० २.१२ १४ २१,०८ 01 वारद्री वारधी १७ २६ वालभ १६ ا م १६ ६,२१,२७ ४,१७,२२ १३,२७ و 9 م 9 २६ २,६,८ س س वालंभदेश वासकसज्जा वासना वासभवन वासमंडप वास्तु वादकला वादलक्षण वादलक्षण वादिकत्व वादित्र س س ९,१४,३४ २४,२९ ११,१५,१९ م ل १२ س २१,२८ ६,१५,२१,२७ م ل वादित्वं वादिशास्त्र वार्धक्यता वाद्य ४,१० १७ 2mm م ه २७ वास्तुकला वास्तुभुवनं वास्तुलक्षणं वास्तुशास्त्र वाहन سهم ي له २३ ६,१०,२२ ३,१४ ७,११,१६,२८ १७ १२,२८ ७,२५ ४,२१ विकम्पितं - Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ शब्द विग्रह "" 33 विग्रहगुण विग्रहस्थान विग्रहस्थानं विचक्षणा 33 विचार ""> "" " "" " " विचारकत्वम् विचारकला " विचारगुण विचारपर्यंत विचार पात्रं विचारवतां (2) विचित्रं विजय 222 " विजयक्ला विजयगुण विजये वित्तकला वितर्क वितर्क वितराग विततं वित्त विदर्भदेश विदाघ " पृष्ठ ११ १२ १३ १० ६७ ६६ ४२ ४३ १२ १३ २२ २३ ३८ ७० ७१ ५ २१ २३ १० ७० १३ ६३ ६५ ११ १२ १३ २२ २३ २२ १० ७० २१ ३८ ३९ ३५ ૬૪ १६ २८ ३८ ३९ वस्तुरत्नकोषः । पंक्ति १७,३४ १४,३२ ८,२४ २३ २ १६ १२,२० ६,१२,१८,२५ ८,२५ १ १२,२६ ६,१७ २५ ९ २९ २८ १५ १०,२२ ३६ १५ १५ २७ ८, २५ १ १६,३१ २२,३२ १२ २८ ९,१०,११,१२ २१ ९ १९ २० शब्द विद्वज्जनकीर्त ३७ विद्वज्जन संगतिकीर्ति ३७ विद्वेषण २५ विद्वेषण . २६ २७ २४ ވ विद्वेषण विज्ञानं वि (वा) ज्ञा विद्या " " 33 "" "" 33 25 " ५ विद्युत १४ विध्वंस २८ विनय ३१ ११,१६,२५ "" विद्या "" विद्यागुण विद्यापात्र 33 विद्यापात्रं विद्यालक्षणं " विद्याशक्ति विद्यासगतं "" " " विनयवान् विनायक "" " पृष्ठ "" ४ ३ ११ १२ १३ १९ २२ ३१ ३३ ३४ ३५ ३६ ६४ ६५ ७० १० १४ १५ १३ ३० ३१ ७४ ६३ ३५ ३८ ११ १२ १३ २५ २७ ४१ ३३ ३४ ३५ ३६ पंकि ९,११ १३ ११,२५ ४,३५ १० १७ ८,१३,२०,२७ १०,२७ ८,२५ १,८ ४ ३० ५,१०,१५,२६ १७ १३,२९ ७,२५ ४,२२ १८,२२,२५ १,६,७,१० .२,७,१५,१९,२१ १४ १५,२२ १ ३५ ३० २१ २१ २९,३७ ६ २५ १०,२७ ८,२५ १, १८ १६,३० १,१५ १४,२१ ४ ३,१९,३५ २९ ११ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पृष्ठ पंक्ति पृष्ठ शन्द विनीता विनीता पंक्ति | शब्द २० विभ(भा)षितं विभाग d mur १२ 0 १ 0 १३,३० २८ ४,२० १८ २१ १०,१४ २१,३४ १,१८,३५ ११,२८ विभागगुण विभाषिका विभूषण 0 م N م و ११,१६,२०,२५ १२,२६ و विभूषणविज्ञान विभोगिनी س १५ " س " -NNNNNm १ १Mmsur2 ७० . ६,११,१८ १२ २,२९ १६,२९ ९,२४,३९ س " ل १४ विमर्शवती विमर्षमवी वियोग १७ २३ م १२,२९ - س - س - " विनोद. विनोद्गुण ه ६,११,१६,२१,२७ २,७,१५,१९ २८ ७,१४,२२,२८ १,८ विनोदपात्र ه ه वियोगगुण विरक विरक्ति विरहवेदना विरहोत्कण्ठिता विराट विनोदपात्रं विनोदलक्षणं विनोदविज्ञानं विनोदस्थान ०६६ . . ३५ -U م WWS ८,२३, २८,३२ ३ و ३२ ५८ विरूपभाषी विरूपभाषिता विरोध م م --- س و २१ १८,२४ २२ س विनोदस्थानं विनोदहास्यकरणं विनोदाः विनोदे विनोदेन विपत्ति विप्रदान विप्रलब्धा विप्रलंभा विप्रियं वदति १३ ه १० م विरोधगुण विलम्बितं م । २५ २,४,७ س -rrrr ن विल(भा)षितं १३,२५ م विलास १२,२७ ६,१८,२९ विबुध्यविनोद १९ ه ه ه م ه विबोध و کی لس هم ११ विलासकला विलासचरित्रं ४,११,१६ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬ शब्द विलासपात्र " विलासपात्र विलेपनाधिवास विलेपनानि विलेपने विलेपनेन विलंचनं (चितं) विवर्ण विवर्णता विवाद " विवेक در " विवेकगुण विवेकलक्षणं विवेकी 33 विश निशालपात्र विशुद्धकरविज्ञानं विशेष "" "" विशेषक विशेषगुग विशेष्य विम् विचार 39 "" विन्नारगुण विस्मृति दिप farta fr पृष्ट १४ १५ १३ ४४ ७८ ४४ ५८ ६३ ३८ ३९ १७ ३८ ११ १२ १३ १० ३१ ४० ४१ २६ १५ २४ ११ १२ १३ ६७ १० १२ ७६ ११ १२ १३ १० १२ 13 ११ ૮ ૩૬ ૬૩ 19 चस्तुरत्नकोषः । पंक्ति ७,१४,२३,२८ ८ ३६ ६ २० ११,१५ १८ १६,२३,३० ४,३० ( १०,२७ ८,२५ १,१८ १४ ४ १६ ३,९,१४,२१,२९ १७ २ २३ २० २ ११,२८ ३० २८ ३५ १५ १०,२७ ९,२६ २, १८ १५ ३,१९,३६ १२,२९ १ २,१२,२०,१९ ६, १३ १२ २० शब्द विषय विपयकारणम् विप (सुख) श्रता विप (सुख) श्रिता विषाद "" विष्णु ވ "3 37 विश्लेष विश्वासो सनं विहार 22 ,, "" विज्ञान "" " 29 33 विज्ञानपात्र "" विज्ञानपात्रं विज्ञानपुरुष "" विज्ञानं " विज्ञानलक्षणं "" विज्ञान विनोद विज्ञान विनोदपात्र विज्ञाने " विचारवता (2) वीगा >> 21 77 पृष्ठ १२ १३ ४४ ४३ ४२ ܪ ܬ ३८. ३९ ३३ ३४ 31 ३८ ३८ ૪૮ २२ २३ ६९ २ १९ १७ ३१ ३७ १४ १५ १३ १६ १७ ६१ ७० ३० ३० १७ १६ ७० ७१ ૬૩ ३४ ३५ ૩૬ पंक्ति २,३४ २७ २ २५ २० १४,४३ ३, १०, १५ १ १,१७,३३ १२,३८ ९ २५ २७ २९ २१ ८,१०,१२,१४, १६,१८ ५ ५,११,१६,२५ ३,७ ५,११,१५,२६ १०,१७ ८,१५,२३,२९ २,९ ३६ ३२ १२ २२,२५ २,७,११,१५,१९ 30 २१ १६ -३६ २८ १५ १५ १५ ११,१७ ५. २,१९ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका 'पंक्ति | शब्द पृष्ठ ___ ३४ १४ वेश्या ८ ५,२१,३७ --mmmmm * . १६ ० वीरचरितं वीरचरित्रं वीरपात्र १४ ८,१६,२४ वेश्यापात्र ।। ७,१३ ३७ " १४ वेश्यापात्रं वैदर्भ २३ २८ वीरपात्रं वीरविलास चरितं वीरललित वीरोदात्त विशालपात्र विप्रिय m G० ०" ” २९ ९,२४ - 2003 १५ २८ १,४,२३ वैद्य ९,२२,३२ १०,१९,२५ वैद्यक वृत्तय(2 वृत्ति) वृत्तवाच्य वृत्ति १९,२३,२५ १,८,११ १५ ।- १९,१५ वैद्यकला वैद्यकविज्ञानं वैनयिकी वैभाषिकं वैरनिग्रहे वैराट वैरिनिग्रहे वैरिनिग्रहेण वैवर्ण्य rurr ० ૨૪ २,१८,३५ १८,१९,२४ ० :- १२२ १८ की ० वृक्ष १२,२५,३४ वृक्षकला or m 9 س لسل वृष वैशेषिक ९,२५ 0 س वृषभ 5 " 9 له لس ४,२२,३७ १८ ७,२० .r १९ . वृष्टिक २३ वैशेषिकं वोर्णपात्र घोकाण वंग वगदेश वंदन वंध्य AD WWW MANN MM , ६ WWW . 5. N १३,२७ २३ I M २० १८ ४,१७,२९ . ८,२५ ou A. tu ४,२०,३५ ३,२३,३३ K. वेदशास्त्र Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ वस्तुरनकोषः। पृष्ठ शब्द वंशगुण वंशविज्ञानं १० १४ पंक्ति । शब्द शकटवंश शकुन २४,२७ १४ पंक्ति २१ १३,२७ ६,१८,२९ ८,२१ १,१५ वंशे विंध्य ५,३४ २२ WWW . विध्यदेश व्याकरणकला व्याकरण २५ २ २०,२४ ३ शकुनकला शकुन बलं शकुन विज्ञान शकुन्त शङ्कु शक्ति व्याख्यान व्याधि १०,१६,२४ १२,१७ १३,१५,१७ १७,३१ २६ व्यापार سر WWW 4. GSSA २३ २१,३१ १४,३० २९० १८५,१२,१८,२५,३१,३२ ९,१९,२७ " २,१६ १८,२० ७४ ४,५,१२,२१ व्यापारलक्षणं व्यायामशक्ति व्यायाम व्यायामशक्ति व्यावृत्ति व्यासकला व्युत्पत्ति 9 २७ १२ २१ , शक्किगुण शत श(? मितव्यया शत्रु शत्रुधाते शठ शब्द 4 ११,१३ १२ ९५ १२,२९ व्युत्पत्तिगुण १७,२५ व्युत्पनं व्युत्पन्न २,१३,२१,२९ ६,१५ ९,१३,१७ २,३,५ वन वज़ला " २१ २,८,१७,२२ ब्रीडा शब्दशास्त्र शब्दशौर्य १३ ९,१४ ब्रीडा वीष्काण शक १९ ४,१० शयनगुण शयनशाला शयनं शयाज्ञ शयाज्ञी ८,११ १५ शकट ४,२९ ९,१८ शय्या Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द शरण " " शरणप्रदत्वगुण शरणागत शरणागतशौर्य शरीरकला " शरीरं पालनं शरीरशास्त्रकला शरीरादिकुजनं शस्त्र 33 در S ور " 1 در शस्त्रबंध " शस्त्रबन्ध शस्त्रबंघविज्ञानं शस्त्रविनोद शस्त्रशास्त्र शाकुनि शान्ता शान्त शारीर शारीरं शालागृह शान 33 " " " SA " शास्त्र अबोध्य शास्त्रकला ७ 2 22225 % * * * पृष्ठ ११ १२ १३ १० ७२ ७२ २२ २३ ७१ २३ ५१ २२ २३ ३३ ३४ ३५ ३६. २५ २६ २७ २४ १५ १६ २६ ३७ २५ २३ ४३ ३२ २ १५ १६ २२ ૨૨ २५६ २७ ३५ ३६ ६१ २२ अंकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति १५,३२ ३० २३ २२ ६, १०, १४, १८ १ १०,२२ ३८ ९,१०,११ २ २,१२ १९ ३५ ९ ६,२२ ३४ -१५ १४,२८ ८ १३ २२ २४ १२ ३१ २० ३५ १२ ३३ २ २८ १९ २५,३५ १४;२७ १२ १७ १२ ५ १० शब्द शास्त्रकला शास्त्रप्रबोधः" शास्त्रप्रभेद शास्त्रविनोद शास्त्र संस्कार शाश्वती शिखरं (? सुषिरं ) शिधल शिला शिलारवंश शिव शिवधर्म در शिक्षा शिक्षा शीत्कृतकरणं शील = "" शीलं शीलवती "" शीलवान् " शीला 'शुक शुक्र " शुद्धं د. رد शुभग शुश्रूषा शूरवान् 'शूल शृङ्गार पृष्ठ २३ ६१ ६७ L १५ ६६ ३९ ६४ २९ ३३ ८ २१ ४० २१ शुद्धकरविज्ञानं २४ शुद्धलिखितविनोद १५ शुद्धविद्या २० २१ ६७ १९ २६ ५९ २५ २६ २७ ७४ ४२ ४३ ४० -20 0 0 x x ४१ २५ २० ६४ ४१ ६१ ४० १७ १४. """" ४ पंक्ति १३ २,४,८,१० १८ ७ २६ ११ ३३ १० १९ २३ १० २६,२८,३० २ ६,१२,२१,२६ १८ १० २२ १६ ४ ७ ११, १३, १४, १५ १८ ३,४,२२,३० १४ १,७,१३,२०,२७ ९ ७,१६,२५ २,१०,१८ २२ १७ ६,२० २१ १२,२२ ४,११,१८,२५,२२ 51 १ २१ २४,२६ १४ १२,१८,१९,२५ २९ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० पृष्ठ पृष्ठ प्रति - वस्तुरत्नकोषः। । पंक्ति शब्द शौर्य २,८,१३,१८,२३,३२ ८,१५,२४ शौर्यकीर्ति शौर्यगुणं शब्द शहार झारगृह राझारपात्र १३० ३२ १४ - १४ ९,१६ . " शौर्यप्रभुत्व : शृझारपात्रं शुजारवान् १५ dal शौर्यपात्र शौर्यम् १६ १४ -७ शौर्य शुहारस्थान शुमारी शेलार शैल शौर्ये १,२२,२९ २२,३० १८,१९,२५ - २४,२७ १,३२ १२ " शौर्येण शौरसेन शौलंक शंका शैलविज्ञानं व १९ ५,१८,२१,३० ७,१८ ३९ २४ शैवाविक शोक २,१२,२०,२८ १९ ३३ ५८,२३ ११,२८ ९,२६ ११ २,१९ ५,१७ १०,२४,२६ १६,३० १,१५ " शंखकर्म शंखविज्ञान शंखविज्ञानं शाभवपर्यफ शाभवं शौचकला YY श्मश्रु । २७ १२,१७,३२ श्मश्रुशौच श्मश्रुशौचं श्रद्दधानं ४१६ शौचगुण शौचगृह शौचगृहं शौचवान् । शौचविज्ञान शौचहीनः शौचान्तिक शौर्य ४१. १,७,१३,२०,२७ श्रम ३८ ४,१७,३० ५,१८,२१ ९,१९ ३ 0 श्रवण ११ २४ ६९ ३,८,१०,१३ २० १८,३५ १२ ६,२२,४० , Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द श्रवण " श्रवणगुण श्रवणविनोद "" श्रवणसंयमन श्रवणं श्रीकाण्ठ --," श्रीपथ श्रीपर्वत " در श्रीमाल "" " । श्रीमाल देश श्रीराज श्रीराज्य श्रीराष्ट्र श्रीराष्ट्रदेश श्रीराक्ष श्रीवृक्ष } "" श्रीवृक्ष " श्रीवृक्षफल श्रुत श्रुताध्ययन श्रुति श्रुतोत्पन्ना श्रुतोत्पादिता श्रेष्ठपात्र श्रोत्र c1 वाघावान् श्लाघ्य श्वाध्यवान् विष्टं FA पृष्ठ १५ १६ ११ १५ १६ ४८ ६१ २९ ३० ३० २८ २९ ३० २८ २९ ३० २७ ३० २९ २८ २८ २९ ३३ ३४. ३५ ३६ ३६ ३३ ६८ .. ७२ ६१ ६१ १४ २० २१. ४१ ४१ ४०. ६२. ६३ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति २७ १० ७ १६ १६,२२ ११,२४ २०,२४,२६ ३३ ८ ९ ९,२३ ५,१९,३४ २२ '१७,३१ १४ ܪ २८ २२ १७ २१ ६ ४ २० १४,३० १०,२६ २३ ६ ११ १० २६ १७ १२ २७ ४,१४,२२,३१ ८. ७,१६ ३,९,२२,२८ १५ १७ २३ ६,२७ शब्द श्लिष्टं ވ श्लेष्म श्वेतपुष्प "" " श्वेतवस्त्र "" श्वेतांबर सकलकलाकुशलं "" सकलत्व "" " सकलत्वगुण सकुमार सख्यविनोद सख्यासहनं सगता प्रा. सङ्ग्रह सङ्कुचितशायी सती सत्पात्र सत्य " "" " सत्यगुण सत्यपालनं सत्यं सत्यवती " सत्यवाद सत्यवादी सत्यवादी सत्यवन्त सत्यवान् सत्यासवह सत्रागार पृष्ठ ६४ ६३ २० ३४ ३५ ३६ ३३ ३५ ३५ ४० ४१ ११ १२ १३ १० ५८ १५ ४८ ६९ ७३ ५ ५७ ३ १३ . ११ १२ १३ ३३ १० ७१ ६५ ४२ ४३ ६६ ६६ ६७ ४० ५१ पंक्ति २ ६ १० ८,२४ १,१९,३५ १६ ८ ३५ ३२ १७ ४,१०,१५,२२,३० १३,३० ११ ५,२१ १९ ५ १८ १२,२५ १६ १२ १६ ३,७,१०,१३ ११ ३७ १०,२८ ९,२६ २, १८ १९ १५ १२ १४ १७ २,२२,२९ १२,२२ १८,२७ ३,११ १८ ४ १ २,८,१६,२३,२८ ४,१०,३० ३२ ७,१२,१७,२३,२८,३२ ४१ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ शब्द सत्रागारे सत्रास्थान सत्व सत्वकला सत्वं सत्वलक्षणं सत्ये सध्यापार सदर्थ "" "" सदाग्रह 36 " सदाप्रहगुण सद (?) सदा (2 सदर्थ ) सदाचार در 39 सदाचारकृत सदाचारगुण सदाचारयश सदाचारवर्तित सदा प्रसन्न सदाविनीता "" सदाशिव "" सदैव गर्विता सदोदित सद्मपथ सव्यापार सत्यवस्तुज्ञान सन्मान "" " सन्मानगुण सन्मुख t पृष्ठ ३२ ३२ ३१ २२ ७३ ३१ ७० ३१ ६२ ६३ ६४ ११ १२ १३ १० ६२ ६३ ११ १२ १३ ३६ १० ३७ ३७ ४८ ४६ ४७ २० २१ ૪૮ १२ ३५ ३१ ३१ ११ १२ १३ १० ६० वस्तुरत्तकोषः । पंक्ति २ २० ९,२५,३० १० १५ ३ २४ १९,३० १४ १९ २ १६,३३ १४ ७, १४ २३ २३ ५,१२ १०, २७ ९,२६ २,१८ ३३ १५ १,२,६ ३ २४ ३,८ ५ ११ १३ १७ १५ ९,३० १४ ११,२८ ९,२६ २,१९ - १६ ४,१६ शब्द सन्मुखविलोकिनी सन्मुखशायी सन्मुखावलोकिनी सन्मुखं न पश्यति सन्मुखी शेते "" د. सन्मुखी नशे सभापति " सभावाद सभावादपक्ष समजतं "> "" समता " समध्या ," समदुःखसुखा समदुखा समप्रदेश समय "" " समयकला समयप्रतिमा समयलक्षणं समय: समवर्ति 1↓ 43 समाख्यात समागमे तुष्यति समागमे पुष्यति समानदुखी समाधान در ," " समाधानगुण पृष्ठ ४६ ६० ४६ ४७ ४५ ४६ ४७ ४७ ६६ ६७ ६७ ६७ ६२° ६३ ६४ ६६ ६७ ४३ ४६ ४६ ७ २२ २३ ३१ ६५ २२ ६४ ६१ ૬૪ ૬૪ ६ ४५ ४६ ४७ ४६ ૪૬ ११ १२ १३ १०. पंक्ति - २८ २,५,९,११ ३, २० १२,१७,२४ २१ ६,१२,१८,२५,३१ २ १५ 3. १८,२७ ३,११ 6 ू १८ १,८ ५ २१,२५ २,६,१४ १० २,२० १४ १७,१८,१९,२० १७ १०,३३ १३,१८ ४,७,१० ६ २२ १ १८ २५ ५ - १९ ४ 1 १० ૩૪ ११,२८ ९,२७ ३, १९ १६ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द समाप्ति 22 समायातं समारंभ समारं समारंभोदितं समारंभोस्थितं समुज्ज्वलवेष समुज्ज्वलवेष ४१ समूजतं (णि) - ६३ समं ६२ ور 31 समं तुष्यति सम्प्रत्ययकारणम् सम्भाषिता हृष्यति सम्भोगार्थिनी सम्मुखावलोकनी सम्मुखं न पश्यति सम्यक् सरठ در सरयूपार در सरखती " " "" सलज्जत्व " सलज्जत्वगुण सवत्सा वत्सा गौ सर्वत्थ पृष्ठ ६७ ६६ ६३ ७५ ७५ ७५ ७५ ४० सर्वात्मता ૐ ૬૪ ४६ ४४ सर्वदशारिगत विहार सर्वदशारिंगतं ।" सर्वशौच सर्वज्ञ सर्वज्ञ ४७ ४७ ४६ ४८ ३१ २८ ३० ૧૮ ३० ३३ ३४ ३५ ३६ ११ १३ १० ३६ ३५ ३६ ६९ ६९ ४५ ६९ ६८ ટ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति ७ १२ २२,२९ १२ १४,१५ ९ १९ १७ ३,९,१५,२२,२९ ३६ १३,२३ ५,१२,१८,१९ २ १६ २ १ ५ ३४ ८ १७ २८ १४ १५,२९ १५ २१ १५,३१ २७ ७, २४ १३,३० ४,२१ ९१ २१ २४ ३ २० ४ १,३,५ २८ २३ शब्द सर्वात्मपर्यंत सर्वात्मा सर्वात्म सर्वसह ससत्त्व सर्षप " "" " सह सहया सहर्षी साङ्ख्यम् साङ्ख्यं सागर " ,, साङ्गत्यगुण सात्त्वती सत्त्विकी सार्थकं साधुपालनं सानुरागनिरीक्षणं सानुरागप्रेक्षणं सानुरागसंयमनं साम सामर्थ्यगुण सारखत सारस्वतप्रमाणं सारिकापात्र सालंकारं " " सावत्ती सावधान सावयव सावयववान् साहस साहसशौर्य सितवस्त्र पृष्ठ ६८ ६८ ६८ १२ ४१ ६५ ३३ ३४ ३५ ३६ ३६ ३३ ६३ ५ ६७ १७,१९,२०,२१,२२ ३६ ३४ ३५ १० ३९ ३९ ७१ ४८ ५९ ४८ १७ १० ६६ ६६ १४ ६२ ६३ ૬૪ ३९ १२ ४१ ४० ५३ पंकि २०, २२ २४,२५ १९,२६ ७२ ७२ ३४ १७ १८ ११ ८,२४ २,१९,३५ १६ २ २१ ३३ ५ १० २,१८,३४ १३,३३ १८ २३,२४,२५ २७,२९ १४,१७ १२ ११,२४ १६ १८ २२ १७ ६ ༥,་ २७ १६,२५ १,१७,२०,२८,३४ ३ ३० २७ २,८,२७ १५ ६,१०,१४,१८ १ ५,२१,३७ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वस्तुरत्नकोषः। शब्द सिद्धपीठ सिद्धात पंक्ति १६,३२ शब्द सुखस्थं सुखस्थापकं पंकि २,९,३७ २१ ५,२१,३७ १६,३२ ... सिद्धातशास्त्र सिद्धि ७,१२,२६ १८,१९,२५ सुखस्थितं सुखाश्रया सुखिरं ( ? पिरं) सुखे सुगत सुगन्धस्थं सुगन्धस्थं(2 सुगंमीर) सुगमं २० २,१८,३५ ११,२८ सुगंध ४१ सुगंधप्रिय सुगधप्रिया ४१ २७,३४ १८ ५,११,३० १७,२३ १५ ९,२१,२४,२८ २५ सिद्धिगुण सिद्धिपर्यंत सिद्धिस्थान सिलर ل س ३१ सुगंधस्थं ل सिलार १६ २,९,३३ اللہ اس सुग्रह في ما ۴ १४,२३ २,५,१९,२६,३३ १४ سے सीतवस्त्रं सीत्कारादिमुचनं सीत्कारादिमोचनं सीत्कृतादिमोचनं सीधल २४ ४,६,८ सुजन सुजिय (2) सु( 2 व्युत्पत्तिकं सुद्यु(? व्युत्पन्न सुतालं WW ६ १४ રૂ ३५ " ६२ १२,२२ सुक्तम् ३ ..... ४,१८,२५ و १५ يا س س सुकलं सुकवित्वं सुकाव्य सुकुमार सुकुमारशरीर सुकुमारोपचारात् सुकृतं विस्मारयति مي सुधिष्पं (?ष्ण्यं) सुद्यतनं (2) सुनृत्यं सुनेत्रा सुपदं س ز مي ८,१४,२०,२७ س . - १२,२२ ६३ ४,११,१८,२५,३२ १,१६,२३ २,७ ४,३० ६४ सुख , सुप्त E सुप्ता सुखप्रिया ६,११,१८ । सुपात्रग्राही Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द सुपुत्रा स्त्री सुप्रबद्ध सुप्रभं " " در सुप्रमाणशरीरा 33 सुप्रमाणं " सुप्रमेयं 22 स्फुटं सुबन्धं "" "3 सुभग सुभगा " सुभाषाव्यं "" सुभाषार्थ सुभाषाद्यं (?व्यं) 33 सुभाषितजनम सुभाषितजल्पनं सुभाषितभाषणं सुभोगार्थिनी सुमनोहरं सुमंत देश सुरकं ", सुरत सुरतप्रवीणा C " सुरन (त) प्रवीणा सुरभिजलं सरभुवनम् पृष्ठ ३५ ६३ ६२ ૬૪ ૬૨ ૬૪ ४२ ૪૨ ६२ ૬૩ ६२ ६३ ૬૪ 1. ૬૪ ६२ ६३ ६४ ४१ ४२ ४३ ५९ २३ ४६ ६५ २९ अकारादिशब्दानुक्रमणिका । पंक्ति ४३ ४३ ४४ 1 ७ ७ 1 १८ १,८,११ १७ ५ ५ १५ १ १३,२३ २६,३३ 7 २१ ३८ ६२ १६ ६३ ७, १४, २०, २८, ३५ -६२ २५ ६२ १४,२८,३५ ६४ ५९ ४,१२ १२,१३ ४ १ २,८,१४,२८ ११,१९ ५,१०,१७,२४ ૪ २६ १६,२० ५९ ४ ६२ (६३ ६,१३,२०,२७,३४ ४२ १५ १७ २१ 1 २४ ११,१९ ५,११,२४ १८ १२ ६ . शब्द सुरम्यं सुरसं " "" सुराग सुरागं "" ,, सुरूपा "" सुराज्येन सुहृद् सुवर्ण "" "" सुवाद्यं सुविनीता सुवृत्त सुवृत्तमत्र वृत्तमंत्रा सुवृत्त. सुवेषा در "" सुशीला सुसत्त्वा " सुसमयक (2 सुयमकं) समयक " सुगी (त) सुधिष्ठ सुसधिस्थं पूर्ण सुसंबद्धं सुबन्धं सत्तशरीरा सुखरं C पृष्ठ ६३ ६३ ६३ ૪ २ ४० १५ ६२ • १३, २३ ६३५, १२, १८, २५, २६, ३३ ६४ ४२ ४ ३ ६० १० ६२ ૬૩ ६४ ६३ ४३ ४१ ४० ४३ ४१ ४२ ४३ ४६ ४३ ४२ ४३ ६२ ६३ ૬૪ ६३ ९६३ : ६३ ६२ ૬૩ ६३ : mor ४३ ५५ पंक्ति १९ १३,२३ ५,१२,२६,३३ ६२ 11 २ ११,१९ १०,२४ २२ ११ १५,२४ ६,१३,३४ " ३ १६ ५,११,१७ ५,११,२४,३० १९ २ १६,२४ ११,१९ ५, १७, २४ १४ १६ १९ ५, १७, २४ १५,२४ ६,२६,२० ३ २६,३३ ३५ १४,२१ २४ ३२ ११,२५,३२ २२ १२,२२ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरतकोषः। पृष्ठ पंक्ति | রা ६३ ४,११,१८,२५,३२ सूरसेन शब्द पंक्ति १२,२६ सुस्वर २९ १६ १२ सूरसेनदेशः सूरसेनं सूरिमा' सुखरत्व सुखरत्वं सुखादभक्षभोज्यं सुषाभव्यं(सुभाषाव्य) सुषिरं सुश्रूषा सुश्लिष्टं २० Au ९,१२ सेना सेनापात्र १७,२५ २० । १४ १३,३४ सेनापालपात्र ११ .................* १०,१८ मुहले ६३ सुहृद सेनापात्रं सेभट सेरटक ८ " सुहषर्षी() सूचि सूचिकर्म २५ सेरटकदेश सेवकपात्र सैन्धव ७,३० ८,२१ १४ २५ ,२२,३३ सूचीकर्म m १९ १५,३० सैन्धववंश सैन्य सैन्य १२ १८ " ११,३४ सूचिकर्मकला स्तिका सूत्र " م । १४ س सैन्यकला सैन्यवलं س م ५,२१,३५ -१४,३० सोम सोमत्व १३,३० । १११ २१ ५,९,२७ सोमवंश '२४ सूत्रकला सूत्रविनोद सूत्रविज्ञान सूत्रांतिक सूर्य सूर्यकीर्ति सूर्यवंश १,८,२१,३२ १०,१२ -१२ सौम्यशायी सौलंकी सौख्य .. १२ ११ १८,२१,३२ २८ ।।(११,२८ । १०,२७ , ३,१३ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति | शब्द सौसम शब्द सौख्यकारण सौख्यगुण م س सौख्यम् ३,७,१०,१३ س सौख्ये - सौगतं सौजन्य संकुचितशायी सगतं संगति संग्रह १३ م ११ . ११,२९ १०,२७ १२ १६,३३ १४,३१ ७,२४ १० ty १३ ३,१९ २५ १६,३० संग्रहगुण संग्राम १५ ७२ २७ ६,१०,१४,१८ १४,१७ २२ १० सौजन्यगुण सौत्रान्तिक १७ ८,१६,१८ १२,२९ १०,२७ सग्रामशौर्य संग्रामिक सौभाग्य ११ २,६,१०,१४ " १२ १३ ३,२० संग्राम्य संततव्यय १४ १४,२९ ८,२१,३१ १६,३० ९,२५,३९ २५,२६ संततव्ययी संताने संतुष्टा (तुष्यति सतुष्टा संतोष ४६ - 7 १७ * * * * * २५ .. .५७ १८,२०,२३,२५,२८ . सौभाग्यकला सौभाग्यगुण सौभाग्यविज्ञानं सौभाग्यहीनता सौमत्य सौम्यत्वगुण सौम्यशायी सौम्यावयव सौम्यावयवशायी सौरसेन १३ १९ संतोषवांछित संदर्य (2र्थ) सदीपन सधि सधिपात्र १४ २७,२४ So १,१०,१३ १६,३० . १४ و । संधिपात्रं सपन्न सपूर्ण सपूर्णत्व س 2 सौरसेन सौराष्ट्र “६५ २१,२३,२५,२७ م १७,३१ १३,३० ११,२८ م १३,२१ ।१४,१७ । १३ २१ सौराष्ट्रदेश सौवीर १० 2 सपूर्णत्वगुण सपूर्ण .१९ १५ ६,२०,२७,३४ १,१५,३० Ru सौवीरदेश सबंधशायी ६,११,१४ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुरनकोषः। - शब्द पृष्ठ शब्द पृष्ठ पंक्ति .४६ सांगत्य सिंध सिंधु १३ ३३ संभाविता हृष्यति संभाषणेन हृष्यति - ४६ संभाषिता हृष्टा भवति संभाषिता हृष्यति ४६ १५ ४६ २,१६,३१ ६,२४ सिंधुदेश सिंह ११,२७ . संभाषिताद् हृष्यति । ४६ संभोगकामतः संभोगवती सभोगसुखं न वांछति ४८ संभोगं न वेद(श्वाञ्छं)ति ४८ सभोगार्थिनी संभोगे सुखं न वाञ्छति ४७ सभोगेषु सुखं न वाञ्छति ४७ सभोगे सुखं नावगच्छति ४७ समुखशायी सयोग २,९,२१,२९,३५ सिंहल सिंहलदेश सिंहिलंक सींदा WA. स्कन्द २५ १८ १३ १२,२९ ११,२८ r س २० س १३,२८ १९,२९ س स्तनयो पीडनं स्तनोपपीडनं स्तम्भन स्तवविनोद स्तम १२ م ,.१५ २६ ३,१३,२९ م ६,१४ स्तंभन १२२५ सयोगकला सयोगगुण सरक सवाद सवृत्तमंत्रा सवेशनं सस्कार सस्कार 12 स्तंभन विज्ञानं स्तंभनं स्त्री ८,१३,१८,२९ " स्त्रीकाम १२,२६ सस्कारशीचं संस्कृत ४,६,१०,१२, १४,१६,२६ ४४ १८ ६५२०,२२,२४,२६,२८ २५ २४ , ३५ ६६ स्त्रीकामविज्ञानं स्त्रीपुत्र स्त्रीपुरुष स्त्रीपुरुषपुत्र स्त्रीपुत्र स्त्रीराज्य सस्थान ११ १२ ११,२८ १०,२६ २,१९ ___३५ १३ १० . - सांगतं. सांगत्य १४ - २९ २,२४ १३,३० , ११,२८ । स्त्रीलक्षणं खीसपुत्रा ..३४ १२,२८ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पृष्ठ अकारादिशब्दानुक्रमणिका। पंक्ति शब्द ___ २१ स्नेहवती १७ शब्द स्त्रीसपुत्रा स्त्रीसवत्सा स्थलदेशा 'पंक्ति । '४६ २,९,१४,२१,२९, ३४ । ३३ • ३० " स्पर्श २० स्थान ३,१३,२१,२९ ७,१५ ७२ ५,९,१७ कोन १२ २३ " २४ ६,२२,२९ १६,३२ ३,१३,३० स्थानप्रभुत्व स्थानवलं स्थानशौर्य स्थाने स्थापन स्थापना १ ११३ । २० २१ ४४ १५ स्पशे स्थितं ६३ ११ १८,३५ १६,३३ १,८,१४,२१, २८,३६ ४,१२ स्थैर्य *१२ १३ - “१० सन्मुखं न पश्यति । ४८ '७२ स्नानवास स्नानशौच स्थैर्यगुण स्मृति । - ११ १२ नान ४४ intent ४,२०,३७ १३,३० ६,१९,२१ २,९,१९ १२,१४ ३९ स्नानशौचं ४४ ११ - ४१ ३४ १०,१५ स्नानाधिवासः स्नाने स्निग्ध . १५ २५ ५,२०,२६ १,५,९ स्मृतिगुण वकीया वर्ग वर्गलक्षणं स्वर्गलक्षणं वजन वजनत्व स्वजनप्रिय. खतंत्र खधनं ददाति निग्धस्थान २३ । १६ . १७ ४१ ४१ “१४ ४६ १,१३ ७,१९,१७,३३ मेहकला स्नेहपान -:१४ २३ . : १५ स्वप्न १४ ८,२० mmer ४,११ १४,१६,१७ नेहपान नेहमती - स्नेहक्ती खभावजा खभावजाता स्वयंभू .१२ । ४३ २,९,१५,२१,२८ । २५,१८ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ शब्द स्वयंभूविज्ञानं खरगतं वस्तुरतकोपः। पंकि शब्द १८ हरिणवंश २,३,४ हरित हरितट ३,१७,२९ हरितट खरमेद " स्वरमेदाः खज्यातिप स्वरूप १४ १८ हरियटा م س س ६,११,१६, २१,२६,३१ २,८,१४,२८,३३ २४ و खरूपगुण १८ م हसनं س २३ ६१ १२,२९ खरूपप्रहण स्वरूपा स्वरोदय ४ १०,२४ हस्तकला हस्तलाघव १३,२८ ७,२४ ४,२२,३४ - हस्तलाघवकला हस्ति स्वरोदयविशानं स्ववृत्ति १४ m ३,२१,३७ १०,१२ खसंबद्ध स्वस्थकर्मी स्वस्ति १८ ११,२७ हस्तिकला इस्तिकाम हस्तिपरीक्षा हस्तिशाला " २३ स्वरिखक du ८,१३,१८,२४, २९,३३ 5 हन्तिशिक्षाविज्ञान हर्ष ४२ " खागतं खाधीनपतिका म्यागापिक खाधीनभर्तृका स्वामी ३,९ हर्षगुण हर्पता ९,११,१२ ३,१३,२९ ६,१४ १०२६ हता ميها २७ हाथ हास مي مي १२,२०,२८ हरिभर १८,२८ । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्ति शब्द हास्य अकारादिशब्दानुक्रमणिका। - पंक्ति । शब्द क्षुरिका क्षेत्रक ८,१५,२३ १९ हास्यपात्र ज्ञान - ६,२७ १८,२४ हास्यपात्रं हास्यादि १५,२१ २४ हित २९ ६,१०,१३,१८ १४ हितस्थान हितस्थानं हिमालय ११,१३,१५,१८ १३,१५ २१ ४,१३,३२ ७,२१ ज्ञानकृतं ज्ञानकृतं ज्ञानकृतयश ज्ञानचरितं ज्ञानचरित्रं ज्ञाननय १,२,६ हिमालयदेश हीना ६ ३३ हुलिका हूण ६,१३,१८,३७ ज्ञानपात्र २१ हूणदेश हूणवंश हेतुविज्ञान ४,८,३२ ज्ञानप्रबोधः ज्ञानप्रभुत्व ज्ञानशक्ति ज्ञानशौर्य ज्ञानसत्त्वम् १७,२०,२४ १ होम क्षमाषान् क्षमी ज्ञानं २१ १२,२५,३२ । ज्ञानं Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान राज्य द्वारा प्रतिष्ठित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर 88 सम्मान्य संचालक मुनि जिनविजयजी द्वारा संपादित राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान सरकार द्वारा पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी के संचालन में परले जयपुर अवस्थित राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर को "राजस्थान ओरिएन्टल रीसर्च इंस्टीट्यूट" अर्थात, 'राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' के नूतन नाम से, एक पूर्ण शोध संस्थान के रूप में जनवरी, सन् १६५६ ३० से पुनः संगठित किया गया है और अब इसका भव्य भवन जोधपुर में बनाया जाकर उसकी प्रतिष्ठा वहां की गई है । राजस्थान बहुत प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का एक प्रधान केन्द्र रहा है, जिसके परिणाम खप यहाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी गुजराती और हिन्दी आदि भाषाओं में अपार साहित्य की रचना हु है । खेद है कि हमारी उपेक्षा के कारण बहुत गा साहित्य नए हो गया है। विदेशों में भी हमारा बहुत गाहित्य जाता रहा है और वहां के विद्वानों ने उसका विशेष अध्ययन और प्रकाशन भी किया है। कलकत्ता, पूना, चम्परे, वौदा, पाटण, अहमदाबाद, काशी आदि के प्रन्थ भण्डारों में भी राजस्थान का साहित्य प्रचुर मात्रा में सुरक्षित है और एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता मण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, भारतीय विद्या भवन, वन्न गायकवार ओरिएन्टल इन्स्टीट्यूट, बौदा, गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, आदि सुप्ररित शोध-संस्थाओं द्वारा राजस्थान के साहित्य को आंशिक रूप में प्रकाशित भी किया गया I राजस्थान में आज भी अपरिमित मात्रा में साहित्य-सामग्री, लिखित और मौसिक दोनों रूपों में, प्राप्त होती है। इसके संग्रह, संरक्षण, सम्पादन और प्रकाशन का प्रबन्ध करना हमारा प्रधान कर्तव्य है । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान में अब तक कोई १४-१५ हजार से ऊपर प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह किय जा चुका है। बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, अलार, जयपुर आदि के व्यक्तिगत प्रन्थ- गण्डारों में भी हजारों एम्नलिखित ग्रन्य प्राप्त शेत छ । एन भन्यों में से अधिकांश अप्रकाशित है। विद्वत् जगत में राजस्थान के महत्वपूर्ण प्रयों के प्रकाशन की बढ़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा की जा रही है । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा " राजस्थान पुरातन प्रन्थमाला" का प्रकाशन, राजस्थान में रामहीत, सुरक्षित एवं प्राप्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषा नित प्रन्य रत्नों को, साहित्य-खसार के सामने सुसम्पादित रप में, प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया जाता है । प्रस्तुत ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अब तक ४०-४५ ग्रन्थ प्रकाशित किये जा चुके है और अनेक ग्रन्थ विभिन्न प्रेसों में छप रहे हैं जिनका प्रकाशन यथा समय होता रहता है। इस ग्रन्थमाला में इतः पूर्व प्रकाशित कुछ संस्कृत ग्रन्थ १. प्रमाण मंजरी - तार्किक चूड़ामणि सर्वदेवाचार्य विरचित वैशेषिक दर्शन ग्रन्थ, अनेक व्याख्याओं से सगळंकृत; संपादन- श्री पट्टाभिराम शास्त्री, भ प प्रिंसिपल गहाराजा संस्कृत कालेज, जयपुर । २. यमराजरचना - महाराजा सवाई जयसिंहकारिता । वेधशालाओं में प्रयुक्त यन्त्रनिर्माण विषयक प्रामाणिक मन्य । संपादक-स्व० पंडित श्री केशरनाथजी, भृ पू अध्यक्ष वेधशाला, जयपुर । ३. महर्षि कुलभवम् - विद्यावाचस्पति स्वर्गीय मधुसूदन ओझा, जयपुर द्वारा रचित । प्रतिवविज्ञान विषयक अनुपम अन्य संपादक - महामहोपाध्याय पं. श्रीगिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, निरूपणात्मक जयपुर । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ ४. तर्कसंग्रह - पण्डित अन्नंभट्ट विरचित न्यायशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ, पं क्षमाकल्याण रचित फक्किका से समन्वित। संपादक-डॉ. जितेन्द्र जैटली एम्. ए, पी-एच्. डी. प्राध्यापक, रामानन्द आर्ट्स कॉलेज, अहमदावाद । ५. कारक संबंधोद्योत - पं. रभसनन्दी रचित । संस्कृत व्याकरण का कारकविषयक अपूर्व सुबोध ग्रंथ । संपादक - डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री एम्. ए. पी-एच् डी. उपाध्यक्ष भो. जे. अध्ययन संशोधन विद्याभवन, गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद । ६. वृत्तिदीपिका - पं. मौलिकृष्ण भट्ट विरचित । व्याकरण, न्याय व साहित्य विषयक वृत्तिविचारका विशिष्ट ग्रन्थ । संपादक पं. श्री पुरुषोत्तम शर्मा चतुर्वेदी, साहित्याचार्य । ७. शब्दरत्नप्रदीप- अज्ञात कर्तृक । संस्कृत भाषा का संक्षिप्त शब्दकोश । संपादक डॉ० श्री हरिप्रसाद शास्त्री एम्. ए. पी-एच्. डी. ( वम्बई ) । उपाध्यक्ष - भो, जे. अध्ययन सशोधन विद्याभवन, गुजरात विद्या सभा, अहमदावाद | ८. कृष्णगीति — कवि सोमनाथ विरचित । गीतगोविंद के ढंग का एक सुन्दर संस्कृत गीतिकाव्य । संपादक डॉ. प्रियवाला शाह एम्. ए. पी-एच् डी. (बम्बई ) डी. लिट् ( पेरिस ); प्राध्यापिका रामानन्द आर्टस् कॉलेज, अहमदाबाद । ९. नृत्तसंग्रह - अज्ञातकर्तृक । नृत्यनाट्य विषयक कलाभ्यासियों के लिए अपूर्व रोचक ग्रंथ । संपादक - डॉ प्रियवाला शाह एम् ए, पी-एच् डी ( बम्बई ) डी. लिट् ( पेरिस ) । १०. चक्रपाणिविजय महाकाव्यम् - भट्ट लक्ष्मीधर विरचित । उपा और अनिरुद्ध विपयक प्रेमकथा सम्वन्धी अति मनोहर महाकाव्य । सपादक- पं केशवराम काशीराम शास्त्री, क्यूरेटर एवं गुजराती भाषा और साहित्य के प्राध्यापक, भो जे अध्ययन-सशोधन विद्या भवन, गुजरात विद्यासभा, अमदाबाद | ११. राजविनोदमहाकाव्यम् — महाकवि उदयराज विरचित । मध्यकालीन भारतीय इतिहास सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण काव्य । अहमदाबाद के सुलतान महमूद बेगडा के जीवनचरित्र का वर्णन | संपादक श्री गोपालनारायण बहुरा, एम् ए, प्रवर शोध सहायक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मदिर, जयपुर | १२. शृंगारहारावली - श्रीहर्ष कवि विरचित शृगाररस का अपूर्व गीतिकाव्य । सपादक - डॉ प्रियबाला शाह एम्. ए, पी-एच् डी ( बम्बई), डी लिट् ( पेरिस ) । १३. नृत्यरत्नकोश (प्रथम भाग ) - मेवाड के सुप्रसिद्ध महाराणा कुम्भकर्णदेव (कुंभा ) प्रणीत नृत्य-विषयक महत्वपूर्ण ग्रन्थ । सम्पादक- प्रो रसिकलाल छोटालाल परीख, अध्यक्ष - भो, जे उच्चाध्ययनसशोधन विद्या मन्दिर, गुजरात विद्यासभा, अहमदावाद तथा डॉ० प्रियवाला शाह, एम् ए, पी-एच् डी., डी. लिट्, प्राध्यापिका - रामानन्द आर्ट्स कॉलेज, अहमदावाद । १४. उक्तिरत्नाकर - साधुसुन्दर - गणी विरचित । उक्तिव्यक्तिविषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ । संस्कृत और देशीय भाषा शब्दों के तुलनात्मक अध्ययन में अत्युपयोगी । अज्ञात कर्तृक उक्तीयक और औतिकपदसग्रह समन्वित | सम्पादक- पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजय मुनि, सम्मान्य सचालक, जोधपुर | राजस्थान 'प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, f १५. दुर्गापुष्पाञ्जलि - 5 - ख० महामहोपाध्याय पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदीकृत | भक्ति-विषयक सुन्दर मुक्तक काव्य | सम्पादक- पं० गङ्गाधर द्विवेदी, साहित्याचार्य, व्याख्याता - महाराजा संस्कृत कॉलेज, जयपुर । १६. कर्णकुतूहल~~महाकवि भोलानाथ विरचित । सरस सुन्दर नाटक | सम्पादक - पं० श्री गोपालनारायण बहुरा, एम् ए, प्रवर शोध सहायक, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर । इसी ग्रंथकार की श्रीमद्भागवत में वर्णित भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं के आधार पर निर्मित पद्यमयी रचना 'श्रीकृष्णलीलामृत' सहित । १७. ईश्वरविलास महाकाव्य - कविकलानिधि देवर्षि श्रीकृष्ण भट्ट विरचित । जयपुर के महाराजा ईश्वरीसिंह की आज्ञा से निर्मित ऐतिहासिक महा-काव्य | सम्पादक-निर्मित 'विलासिनी' संस्कृत टीका सहित । सम्पादक – कविशिरोमणि देवर्षि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री, साहित्याचार्य, जयपुर । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८. रसदीर्घिका कवि विद्याराम प्रणीत । रस अलंकार आदि विवेचनपरक सुबोध रचना। सम्पादक-गोपाल नारायण वहुरा, प्रवर शोध सहायक, राजस्थान प्रा. वि. प्रतिष्ठान, जोधपुर । । २. राजस्थानी साहित्य १९. कान्हड़दे प्रबन्ध-महाकवि पद्मनाभ रचित । खधर्म और स्वदेश रक्षा निमित्त जालोर के चौहाण-कुलशिरोमणि महावीर कान्हदेव ( कान्हड़दे) के बलिदान की गौरव-गाथा । राजस्थान के प्राचीन इतिहास सम्बन्धी साहित्य की महत्वपूर्ण प्रवन्ध रचना । सम्पादक-प्रो के. वी. व्यास, एम्. ए., प्राध्यापकएल्फिन्स्टन कॉलेज, बम्बई ।। २०. क्यामखाँ रासा-फतहपुर ( शेखावाटी) के नवाव अलफखाँ ( कविवर जान) रचित ऐतिहासिक काव्य । सम्पादक-डॉ दशरथ शर्मा और श्री अगरचन्द नाहटा।। २१. लावारासा अपर नाम कूर्मवंशयशप्रकास चारण कविया गोपालदास विरचित ऐतिहासिक राजस्थानी काव्य । सम्पादक-राजस्थानी के सुपरिचित विद्वान् श्री महतावचन्द्र खारैड़। २२. बाँकीदासरी ख्यात–जोधपुर के कविवर वॉकीदास रचित राजस्थानी साहित्य की सुप्रसिद्ध रचना । सम्पादक-श्री नरोत्तमदास खामी, एम्. ए., वाइस प्रिंसिपल एवं प्राध्यापक-महाराणा भूपाल कॉलेज, उदयपुर। २३. राजस्थानी साहित्यसंग्रह-खींची गगेव नींवावतरो दो-पहरो' 'रामदास वेरावतरी आखडी री वात' तथा 'राजान राउतरो वात-वणाव' नामक तीन राजस्थानी वार्ताओं का संग्रह । सम्पादक-श्री नरोत्तमदास स्वामी, एम् ए., प्राध्यापक, महाराणा भूपाल कॉलेज, उदयपुर । २४. कवीन्द्रकल्पलता-मुगल सम्राटू शाहजहाँ के समकालीक काशी के सुप्रसिद्ध विद्वान् कवीन्द्राचार्य सरस्वती विरचित मनोहर काव्य ग्रन्थ । सम्पादिका-श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूडावत, जयपुर। २५. जुगलविलास--कुशलगढ़ (राजस्थान) के भक्त महाराजा पृथ्वीसिंह अपरनाम कवि पीथल विनिर्मित ब्रजभाषा में भगवान कृष्ण और राधा की ललित-लीला-वर्णन-परक सुन्दर रचना । सम्पादिकाश्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत, जयपुर। प्रेसों में छप रहे संस्कृत ग्रंथ १. शकुनप्रदीप-लावण्य शर्मा रचित शकुनशास्त्र का अत्युपयोगी महत्वपूर्ण ग्रंथ । २. लघुस्तव-लघ्वाचार्य प्रणीत, सोमतिलक सूरि कृत टीका सहित । ३. करुणामृतप्रपा–ठक्कुर सोमेश्वर- विनिर्मित, सस्कृत सुभाषितों का सुन्दर संग्रह । ४. वालशिक्षाव्याकरण-ठकुर संग्रामसिंह विरचित, सस्कृत व्याकरण का बालोपयोगी सुबोध ग्रन्थ। ५. पदार्थरत्नमंजूषा-पं. कृष्ण मिश्र रचित, न्याय शास्त्र का महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ । ६. काव्यप्रकाशसंकेत-अलङ्कार शास्त्र का सुप्रसिद्ध मूर्धन्य ग्रन्थ, सोमेश्वर भट्ट कृत-'सकेत' सहित। ७. वसन्तविलास फागु-अज्ञान कर्तृक-फागु काव्य रूप में सरस सुन्दर रचना। ८. नन्दोपाख्यान-अज्ञात कर्तृक-उपाख्यान रूप में सरल सस्कृत रचना। ९. चांद्रव्याकरण-आचार्य चन्द्रगोमि विरचित-संस्कृतका प्राचीन व्याकरण ग्रन्थ । १०. वृत्तजाति समुच्चय-कवि विरहाङ्क विनिर्मित छन्द.शास्त्र का महत्वपूर्ण प्रन्य । ११. कवि दर्पण-अज्ञातकर्तृक-छन्दोरचना विवेचनपरक प्राचीन ग्रंथ। १२. स्वयम्भूच्छन्द कवि स्वयम्भू विनिर्मित अपभ्रंश छन्द.शास्त्र का प्राचीन ग्रंथ । १३. प्राकृतानन्द-रघुनाथ कवि रचित, प्राकृत भाषा का अत्युपयोगी व्याकरण ग्रंथ । १४. कविकौस्तुभ-पं० रघुनाथ विरचित, काव्य शास्त्र विवेचनपरक ग्रंथ । १५. दशकण्ठवधम्-महामहोपाध्याय ख. पं. दुर्गाप्रसाद द्विवेदी रचित रामचरित्र विषयक चम्पू काव्य। १६. पद्यमुक्तावली-कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट विरचित ललित मुक्कक काव्य । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- _