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राजस्थान राज्य द्वारा प्रतिष्ठित
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
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सम्मान्य संचालक मुनि जिनविजयजी द्वारा संपादित राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला
राजस्थान सरकार द्वारा पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी के संचालन में परले जयपुर अवस्थित राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर को "राजस्थान ओरिएन्टल रीसर्च इंस्टीट्यूट" अर्थात, 'राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' के नूतन नाम से, एक पूर्ण शोध संस्थान के रूप में जनवरी, सन् १६५६ ३० से पुनः संगठित किया गया है और अब इसका भव्य भवन जोधपुर में बनाया जाकर उसकी प्रतिष्ठा वहां की गई है । राजस्थान बहुत प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का एक प्रधान केन्द्र रहा है, जिसके परिणाम खप यहाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी गुजराती और हिन्दी आदि भाषाओं में अपार साहित्य की रचना हु है । खेद है कि हमारी उपेक्षा के कारण बहुत गा साहित्य नए हो गया है। विदेशों में भी हमारा बहुत गाहित्य जाता रहा है और वहां के विद्वानों ने उसका विशेष अध्ययन और प्रकाशन भी किया है। कलकत्ता, पूना, चम्परे, वौदा, पाटण, अहमदाबाद, काशी आदि के प्रन्थ भण्डारों में भी राजस्थान का साहित्य प्रचुर मात्रा में सुरक्षित है और एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता मण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, भारतीय विद्या भवन, वन्न गायकवार ओरिएन्टल इन्स्टीट्यूट, बौदा, गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, आदि सुप्ररित शोध-संस्थाओं द्वारा राजस्थान के साहित्य को आंशिक रूप में प्रकाशित भी किया गया I
राजस्थान में आज भी अपरिमित मात्रा में साहित्य-सामग्री, लिखित और मौसिक दोनों रूपों में, प्राप्त होती है। इसके संग्रह, संरक्षण, सम्पादन और प्रकाशन का प्रबन्ध करना हमारा प्रधान कर्तव्य है । राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान में अब तक कोई १४-१५ हजार से ऊपर प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह किय जा चुका है। बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, अलार, जयपुर आदि के व्यक्तिगत प्रन्थ- गण्डारों में भी हजारों एम्नलिखित ग्रन्य प्राप्त शेत छ । एन भन्यों में से अधिकांश अप्रकाशित है। विद्वत् जगत में राजस्थान के महत्वपूर्ण प्रयों के प्रकाशन की बढ़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा की जा रही है ।
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा " राजस्थान पुरातन प्रन्थमाला" का प्रकाशन, राजस्थान में रामहीत, सुरक्षित एवं प्राप्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषा नित प्रन्य रत्नों को, साहित्य-खसार के सामने सुसम्पादित रप में, प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया जाता है । प्रस्तुत ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अब तक ४०-४५ ग्रन्थ प्रकाशित किये जा चुके है और अनेक ग्रन्थ विभिन्न प्रेसों में छप रहे हैं जिनका प्रकाशन यथा समय होता रहता है।
इस ग्रन्थमाला में इतः पूर्व प्रकाशित कुछ संस्कृत ग्रन्थ
१. प्रमाण मंजरी - तार्किक चूड़ामणि सर्वदेवाचार्य विरचित वैशेषिक दर्शन ग्रन्थ, अनेक व्याख्याओं से सगळंकृत; संपादन- श्री पट्टाभिराम शास्त्री, भ प प्रिंसिपल गहाराजा संस्कृत कालेज, जयपुर ।
२. यमराजरचना - महाराजा सवाई जयसिंहकारिता । वेधशालाओं में प्रयुक्त यन्त्रनिर्माण विषयक प्रामाणिक मन्य । संपादक-स्व० पंडित श्री केशरनाथजी, भृ पू अध्यक्ष वेधशाला, जयपुर ।
३. महर्षि कुलभवम् - विद्यावाचस्पति स्वर्गीय मधुसूदन ओझा, जयपुर द्वारा रचित । प्रतिवविज्ञान विषयक अनुपम अन्य संपादक - महामहोपाध्याय पं. श्रीगिरिधर शर्मा चतुर्वेदी,
निरूपणात्मक
जयपुर ।