Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 9
________________ ( viii ) चम्पानगरी के बाहर पूर्णभद्र चेत्य में पधारे। वार्ता निवेदक से संवाद प्राप्त कर सम्राट कूणिक ने अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव किया । स्वजन, परिजन, नगरवासियों एवं समस्त राजकीय उपकरणों, छत्र, चामर, ध्वजा, हाथी, घोड़े, रथ, पालकी व विविध वादित्रों के जयघोष के साथ एवं आडम्बरपूर्वक कूणिक राजा ने समवसरण में प्रभु के समक्ष उपस्थित होकर श्रद्धा, विनय, भक्ति और बहुमानपूर्वक प्रभु की वन्दना की एवं पार्षदों के साथ परिषदा में प्रभु की उपासना करने लगे । उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने अपनी अमृतस्राविणी वाणी में उपस्थित पार्षदों को अगार ( गृहस्थ ) और अनगार ( साधु ) धर्म का उपदेश दिया । धर्मोपदेश की राजा, रानी आदि सभी ने मक्तकण्ठ से सराहना की । उक्त इस वर्ण्य विषय में चम्पानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, उद्यान, सम्राट कूणिक, भगवान् महावीर के चम्पानगरी के निकट पधारने के संवाद से कूणिक की हर्षाभिव्यक्ति, भगवान के अंगोपांगों का विशद् वर्णन, प्रभु के शिष्यसम्पदा की साधना से प्राप्त अन्तरंग एवं बाह्य सिद्धियां, तप, दर्शनार्थ शोभायात्रा एवं श्रद्धापूर्वक दर्शन आदि का समासबहुल शैली में आलंकारिक, सरस, सजीव एवं अनूठा चित्रण प्राप्त है, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है । यही कारण है कि इस प्रकार के वर्णक जिस आगंम में भी आएं हैं वहां यही उल्लेख प्राप्त होता है- " सेसं वण्णओ जहा उववाइए" अर्थात् इस प्रकार का शेष वर्णक औपपातिक सूत्र के समान समझें । द्वितीयतः उपपात विभाग का वर्ण्य विषय है- भगवान् महावीर की धर्मदेशना के पश्चात् घोर तपस्वी गणधर गौतम ने जीव और कर्म - बन्धन विषयक प्रश्न किये। प्रभु ने मनुष्यों के भव-सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर देते हुए अनेक विषयों का प्रतिपादन किया; जिनमें दण्ड के प्रकार, मृत्यु के प्रकार, विधवा स्त्रियों, व्रती और साधु, गंगातटवासी वानप्रस्थी तापसों के प्रकार, प्रव्रजित श्रमणों, ब्राह्मण परिव्राजकों, क्षत्रिय परिव्राजकों, raani एवं अन्य श्रमणों के प्रकारों / भेदों तथा उनकी चर्या का विस्तार से प्रतिपादन के साथ सात निन्हवों का वर्णन है । अन्त में केवली समुद्घात, सिद्धि क्षेत्र एवं सिद्धों का वर्णन उपलब्ध है । इसी बीच अम्बड़ परिव्राजक और उनके सात सौ शिष्यों का तथा उनकी जीवन-चर्या का विस्तृत विवरण उपलब्ध है । अम्बड़ परिव्राजक होते हुए भी महावीर प्रभु का अनन्य उपासक

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