Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 7
________________ १.४२-] उत्तराध्ययनसूत्रम् धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं गरहं नाभिगच्छई ॥४२॥ मणोगयं वक्तगयं जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए॥४३॥ वित्ते अचोइए निच्च खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइटुं सुकयं किच्चाई कुवई सया॥१४॥ नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा ॥४५॥ पुज्जा जस्स पसीयन्ति संबुद्धा पुवसंथुया। पसन्ना लाभइस्सन्ति विउलं अट्टियं सुयं ॥४६॥ स पुज्जसत्ये सुविणीयसंसए मणोरई चिटुइ कम्मसंपया। तवोसमायारिसमाहिसंवुडे महज्जुई पंच वयाई पालिया ॥४७॥ स देवगन्धव्वमणुस्सपूइए चहत्तु देहं मलपंकपुस्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिडिए ॥४ात्तिवेमि॥ विणयसुयं समत्तं ॥१॥ ॥ परीसहज्झयणं द्वितीयं अध्ययनम् ॥ सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा । कयरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुढो नो निण्हवेज्जा । इमे ते खलु बावीसं परीसहा समजेणं

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