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उपदेश पुष्पमाला/ 11
में कहीं-कहीं हमें तत्सम्बन्धी कथाओं के संक्षिप्त निर्देश मिल जाते हैं। इस प्रकार यह एक नयी विधा हमारे सामने आती है, जिससे उपदेश के साथ-साथ तत्सम्बन्धी कथा का निर्देश होता है। किन्तु नियुक्ति और भाष्य में ये कथा-निर्देश अत्यन्त संक्षिप्त रूप में ही मिलते है, किन्तु चूर्णियों में कथा भाग विस्तृत रूप में मिलता है।
आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त जैन परम्परा में उपदेशपरक स्वतंत्र ग्रन्थों का लेखन भी हुआ है। उपदेशकन्दली, उपदेशकर्णिका, उपदेशकल्पद्रुम, उपदेशपंचाशिका, उपदेशप्रकरण, उपदेशकथा, उपदेशभंजरी, उपदेशमणिमाला, उपदेशमाला, उपदेशरत्नकोश, उपदेशरत्नाकर, उपदेशरत्नमाला, उपदेशरसायन, उपदेशशतक, उपदेशसप्ततिका, उपदेशसार, उपदेशामृत, कुलक आदि अनेक स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना हुयी। इन ग्रन्थों में सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ धर्मदास गणिकृत उपदेशमाला को माना जाता है। उपदेशमाला के कर्ता के रूप में धर्मदासमणि का नाम उल्लेखित है और उनका काल लगभग विक्रम की 7 वीं शताब्दी माना जाता है। वसुदेवहिण्डी के कर्ता भी यही माने जाते है। किन्तु तथ्यों के अभाव में निर्णय रूप में कुछ कहना कठिन है। धर्मदासगणिकृत उपदेशमाला पर अनेक टीकायें लिखी गई है। इन टीका-ग्रन्थों में भी सबसे प्राचीन टीका-ग्रन्थ लगभग 10 वीं शताब्दी में लिखे गये इनमें जयसूरि की धर्मोदेशमालावृत्ति और सिद्दर्षिकृत उपदेशमाला-विवरण प्रमुख है, जो वर्तमान में भी उपलब्ध होते हैं। धर्मदासगणिकृत उपदेशमाला की कालान्तर में भी अनेक टीकायें और विवरण आदि लिखे गये है। धर्मदासगणि कृत उपदेशमाला के पश्चात् इस विधा के ग्रन्थों में आचार्य हरिभद्रकृत उपदेशपद का क्रम आता है। इस पर सर्व प्रथम टीका वर्धमानसूरि ने लिखी है। दूसरी
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