Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ Langers भगवान ऋषभ ने अपनी पुत्री को ब्राह्मी लिपि सिखलाई, इसलिए वह लिपि ब्राह्मी कहलाई।' ब्राह्मी लिपि के छयालीस अक्षर होते हैं। इनमें 12 स्वर हैं और शेष व्यंजन होते हैं । व्यंजन - क से म तक व्यंजन (5x5 ) अन्तस्थ - य र ल व श ष स ह उश्म क्ष - अः एक अनुशीलन 25 4 4 1 46 स्वर अपने आप में पूर्ण होते हैं और व्यंजन स्वर के योग से पूर्ण बनते हैं। धवला में अक्षरों की संख्या 64 मिलती हैं' - - आचार्य महाप्रज्ञ नौ स्वर (अ, इ, ऋ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ) हैं। हस्व, दीर्घ और प्लुत के भेद से ये 27 होते हैं। 25 वर्गाक्षर, 4 अंतस्थ - (य, र, ल, व), 4 उष्माक्षर - ( श, ष, स, ह) - ये 33 व्यंजन होते हैं। 4 अयोगवाह (अ, अः जिह्वामूलीय उपध्यावीय) होते हैं। इस प्रकार कुल 64 अक्षर होते हैं। श्री ओझा ने 46 अक्षरों में अपना मत इस प्रकार प्रदर्शित किया है।' प्रथम परम्परा में कुछ वर्ण और विस्तार अविवक्षित हैं। वह दूसरी परम्परा में विवक्षित है। विस्तार की विवक्षा करने पर संख्या बढ़ सकती है। वृहत्कल्प के भाष्यकार ने उस विस्तार की चर्चा की है। अकार के तीन पर्याय होते हैं - ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत। इन तीनों के तीन-तीन पर्याय होते हैं। इनमें से प्रत्येक के सानुनासिक और निरनुनासिक दो-दो भेद होते हैं। इस प्रकार आकार के 18 भेद हो जाते हैं - - Jain Education International इकार आदि स्वरों के भी अठारह अठारह प्रकार होते हैं। वर्णमाला का पहला अक्षर 'अ' है। समूची वर्णमाला इससे प्रारंभ होती है। इसलिए इसका बहुत महत्व है। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 For Private & Personal Use Only 43 www.jainelibrary.org

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