Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 87
________________ 'द्रमक' का उल्लेख है। वहां बताया गया है कि उस द्रमक पुरुष के वस्त्र जीर्ण शीर्ण थे। हाथ में टूटा हुआ भिक्षा पात्र और फूटा हुआ घड़ा था। बाल बिखरे हुए थे। मधुमक्खियों का झुंड उसके पीछे लगा रहता था। यह सारा वर्णन उस युग के दारिद्रय पूर्ण जीवन की झलक प्रस्तुत करता है। समाज में अराजकता समाज में अराजक तत्वों का प्रभुत्व हर युग में रहा है। प्राचीन इतिहास का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि उस युग में भी हिंसा के कितने बीभत्स रूप प्रचलित थे। हिंसा, चौर्य, धुत, मद्य, परहत्या, आत्महत्या, अपहरण, लूटपाट आदि अनेक ऐसी विकृतियां थी जो समाज को जर्जर बनाने वाली थी। ज्ञातधर्मकथा में 'सिंहगुफा' नामक चोरपल्ली का उल्लेख है। पांच सौ चोरों का अधिपति और उस चोरपल्ली का स्वामी 'विजय' नामक सेनापति था। वह अपराधियों तथा लूटपाट करने वालों के लिए 'वेणुवन' के समान आश्रयभूत था। 2 प्रस्तुत आगम में अपहरण की भी अनेक घटनाएं निरूपित हैं। धन सार्थवाह का एकमात्र पुत्र देवदत्त का विजय तस्कर ने धन के लोभ में आकर अपहरण किया और उसे मार डाला। इसी तरह सुंसुमा के अपहरण व हत्या की घटना भी इस ग्रंथ का एक रोमांचकारी प्रसंग है। द्रौपदी के अपहरण का ऐतिहासिक प्रसंग इसी ग्रंथ में प्रज्ञप्त है। द्रौपदी का अपहरण क्यों हुआ, पांचों पांडव वासुदेव श्री कृष्ण के साथ अवरकंका नगरी कैसे पहुंचे और कैसे द्रौपदी को सकुशल पुनः प्राप्त किया? यह सारा वर्णन प्रस्तुत ग्रंथ में पूरे विस्तार से दिया गया है। प्रस्तुत आगम में अनेक ऐसे भी प्रसंग हैं जो भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय पृष्ठ बन चुके हैं। उदाहरण के लिए वासुदेव कृष्ण ने नरसिंह के रूप की विक्रिया कैसे की? वासुदेव कपिल और वासुदेव कृष्ण का मिलन कैसे हुआ? श्री कृष्ण ने पांडवों को देश निर्वासन का आदेश कैसे दिया? पांडवों ने पांडू मथुरा का निर्माण कैसे किया?54 ये सारे ऐसे प्रसंग हैं जो भारतीय इतिहास की तो धरोहर है ही, जैन साहित्य में भी इनका विस्तृत वर्णन मिलता है। जैन आगम साहित्य और आगमों पर लिखा गया विपुल व्याख्या साहित्य भारतीय वाड्.मय की एक अमूल्य विरासत है। व्याख्या साहित्य के अंतर्गत चूर्णि, भाष्य और टीकाओं में भारतीय इतिहास, सभ्यता और संस्कृति के अनेक अज्ञात स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं। आज अपेक्षा है भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में जैन साहित्य का गहनता से अध्ययन, मनन एवं अनुशीलन किया जाए। दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से निश्चित ही कुछ नए तथ्य प्रकाश में आ सकेंगे। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 । 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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