Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 93
________________ तत्वार्थसूत्रकार इनसे कुछ भिन्न पांच अतिचार मानते हैं। उनके असार पर विवाहकरण, इत्वरिकपरिग्रहीतागमन, अपरिगृहीतागमन, अनंगक्रीड़ा और तीव्रकामाभिनिवेश- ये पांच अतिचार हैं।27 जबकि रत्नकरण्डश्रावकाचार में अन्यविवाहकरण, अनंगक्रीड़ा, विरत्व, विपुलतृष्णा और व्यभिचारिणी स्त्रियों के यहां गमन करना- इन पांच अतिचारों की गणना की गई हैं।28 5. अपरिग्रहाणुव्रत या इच्छापरिमाणव्रत (परिग्रहपरिमाणव्रत) . ___ गृहस्थ परिग्रह का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता, क्योंकि उसे अपने आपके और परिवार के भरण-पोषण तथा उनके शिक्षा संस्कार विवाहादि कार्यों के लिए एवं घर-गृहस्थी चलाने के लिए आवश्यक धन-साधन आदि की जरूरत रहती है। किन्तु इस व्रत को ग्रहण करके श्रावक अपनी मर्यादा एवं परिस्थिति के अनुसार इच्छाओं को सीमित करने का संकल्प करता है अर्थात् श्रावक के लिए पांचवां इच्छापरिमाण या परिग्रहपरिमाणव्रत आवश्यक बताया गया है। इस व्रत को धारण करने वाला श्रावक खेत, वस्तु, सोना, धन-धान्य, चाँदी, द्विपद, चतुष्पद, गृहसामग्री आदि की सीमा निर्धारित कर उनका समुचित उपभोग करता है। तत्वार्थसूत्र में मूर्छा परिग्रह ऐसा कहकर बाह्य वस्तुओं व आंतरिक वस्तुओं जो राग भाव अर्थात् आसक्ति है, उसे परिग्रह कहा है। गृहस्थ धर्म में आचार्य जवाहरलाल जी ने जो परिग्रह की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है - परिग्रहाणां परिग्रह 2 अर्थात् जो ममत्व भाव से ग्रहण किया जाए, वही परिग्रह है। स्थानांगसूत्र में परिग्रह के कर्मपरिग्रह, शरीरपरिग्रह और वस्तु परिग्रह, यह तीन प्रकार के परिग्रह माने हैं जबकि श्रावक परिग्रह में परिग्रह के नौ प्रकार बताए हैं। 4 परिग्रह परिमाण के अतिचार ___अन्य व्रतों की तरह इच्छाविधि परिमाणव्रत के भी पांच अतिचार बतलाए गए हैं, वे हैं - क्षेत्र वस्तु प्रमाणातिक्रम और कुप्य-प्रमाणातिक्रम। तत्वार्थसूत्र में द्विपद, चतुष्पद प्रमाण अतिक्रम के स्थान पर दासी-दासप्रमाण अतिक्रम को अतिचार माना गया है, यथा - क्षेत्रवास्तुहिरण्य सुवर्णधनधान्य दासी-दासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः36 अर्थात् खेती बाड़ी रहने के मकान, चांदी, स्वर्ण, गाय, भैंस, दासी, दास, नौकर-चाकर, आदि कर्मचारियों, बर्तनों और वस्त्रों के प्रमाण का अतिक्रमण करना। किन्तु आचार्य समन्तभद्र ने अतिवाहन, अतिसंग्रह, विस्मय, लोभ व अतिभार वाहन को इस व्रत के पांच अतिचार माने हैं। जबकि सागारधर्मामृत में वास्तु-क्षेत्र, धन-धान्य बंधन, रुप्यदान, कुप्यभाव और गवादौ गर्भतातिचार - इन पांच को इच्छापरिमाण के अतिचार व्रत बतलाया गया है।38 तीन गुणव्रत - अणुव्रतों को ग्रहण करने के पश्चात् श्रावक तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - - 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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