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5. क्षेत्रगणित - ठोलियां उपाश्रय गृह, अहमदाबाद के बा. नं. 104 में पोथी नं. 31 पर नेमिचन्द कृत क्षेत्रगणित का उल्लेख है।
6. क्षेत्रसमास - जैनाचार्य (श्वे.) सोमतिलक सूरि20 कृत क्षेत्रसमास की एक प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में उपलब्ध है। इसी क्षेत्रसमास पर गुणरत्न सूरि ने अवचूर्णि या क्षेत्र समासावचूरि नामक टीका लिखी, जिसका उल्लेख भी सेन ने किया है।2
7. क्षेत्रसमास प्रकरण- काम्बे के श्री शान्तिनाथ जैन भंडार में 62 पन्नों की श्रीचन्दसूरी कृत उक्त शीर्षक कृति संग्रहीत है।23 ____8. वृहत्क्षेत्रसमास वृत्ति- जिन भद्रगणिकृत वृहत्क्षेत्र समास की टीका उपकेश पुरी सिद्धसूरि ने की थी, जिसकी एक प्रति जैसलमेर के जैन ग्रन्थ भंडार एवं दो प्रतियाँ पाटन के जैन ग्रन्थागार में सुरक्षित है। पाटन के भंडार की एक प्रति का लेखन काल 1217 ई. है।
9. लघु क्षेत्रसमास वृत्ति - 1128 ई. के हरिभद्र सूरि ने लघु क्षेत्रसमास पर टीका लिखी थी। जैसलमेर के जैन ग्रन्थ भंडारों में इसकी एक प्रति संग्रहीत है।26 ____ 10. क्षेत्रसमास - राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के भंडार के सूचीपत्र क्रमांक 2536 पर हेमतिलकसूरि के शिष्य रत्नशेखर सूरि (14वीं श. ई.) कृत क्षेत्रसमास का उल्लेख है।
11. क्षेत्रसमास - इसी भंडार के सूची पत्र में क्रमांक 3532 से 2636 तक सोमप्रभसूरि के शिष्य सिंहतिलक सूरि द्वारा लिखित क्षेत्रसमास की प्रतियों का उल्लेख है।
12. उत्तर छत्तीसी टीका - दिगम्बर जैन मन्दिर बलात्कारगण, कारंजा (अकोला) के ग्रन्थ भंडार में बस्ता क्रमांक 13 पर श्रीधर कृत उत्तर छतीसी टीका उपलब्ध है। अद्यावधि श्रीधर के नाम से इस ग्रन्थ का अन्यत्र कहीं उल्लेख देखने को नहीं मिला है।गणितसार संग्रह की अपूर्ण प्रतियों के रूप में उत्तर छतीसी एवं पूर्व छतीसी नाम के कई ग्रंथों के उल्लेख मिलते हैं किन्तु क्या वे वास्तव में गणितसार संग्रह की ही अपूर्ण प्रतियाँ हैं अथवा कोई गणित विषयक महावीराचार्य कृत इतर ग्रंथ हैं? यह निर्णय करना प्रतियों के सूक्ष्म अवलोकन के उपरांत ही संभव होगा। हमें ऐसा प्रतीत होता है कि यह गणितसार संग्रह के प्रारंभिक एवं उत्तरवर्ती अध्यायों को केन्द्र में रखकर कुछ सामग्री जोड़ते हुए अथवा उनकी व्याख्या करते हुए लिखे गये हैं।
13. गणित शास्त्र - Oriental Manuscripts Library of Fort St. George College, Madras श्री राजादित्य की कृति के रूप में गणित शास्त्र की पच्चीस पन्नों की कन्नड. लिपि में लिखित एक प्रति उपलब्ध है। सेन ने इसे ज्योतिर्विज्ञान की कृति माना है।
14. गणित शास्त्र टीका (गुणभद्र कृत) - दिगम्बर जैन मंदिर, बलात्कारगण, करंजा
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तुलसी प्रज्ञा अंक 140
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