Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 79
________________ परम्परा थीं। ज्ञातधर्मकथा में नामकरण के आधार के संदर्भ में वैविध्य दृष्टिगोचर होता है। उदाहरण के लिए कुमार मेघ व राजकुमारी मल्लि का नामकरण माताओं के दोहद के आधार पर किया गया। माता-पिता के नाम के आधार पर भी सन्तान का नाम रखा जाता था, जैसे द्रौपदी का नाम उसके पिता राजा द्रुपद के नाम के आधार पर दिया गया तो ‘थावच्चापुत्र' का नाम उसकी मां 'थावच्चा' नाम के आधार पर दिया गया था।' नगर अथवा ग्राम के आधार पर दिए जाने वाले नाम का उदाहरण है - तेतलीपुत्रा' गुणों के अनुरूप भी नाम दिए जाते थे जैसे जितशत्रु, सुबुद्धि आदि।' परिवारों में बच्चों के पालन-पोषण व संस्कार निर्माण की दृष्टि से भी विशेष प्रयत्न किया जाता था। संपन्न कुलों में बच्चों के संरक्षण के लिए धायमाताएं व अन्य अनेक परिचारिकाएं होती थी। प्रस्तुत आगम में 1. क्षीर धात्री 2. मज्जन धात्री, 3. क्रीड़न धात्री, 4. मंडन धात्री और 5. अंक धात्री- इन पांच धायमाताओं का उल्लेख है। बच्चों को खिलाने के लिए दासपुत्र अथवा दासपुत्रियां भी होती थी। बच्चा जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हो जाता तो उसे मां बाप कलाचार्य के पास ले जाते। वहां उसे सब प्रकार की कलाओं ओर विद्याओं में पारंगत बनाया जाता। ज्ञातधर्मकथा में बहत्तर प्रकार की कलाओं का उल्लेख किया गया है। उस समय विधा केवल शाब्दिक नहीं होती थी। उसका प्रयोगिक अभ्यास कराया जाता था। जब कुमार मेघ कलाचार्य के पास विद्याध्ययन करके घर लौटा तो उसका व्यक्तित्व किस रूप में निखार को प्राप्त हो चुका था, इसका प्रस्तुत ग्रंथ में सुन्दर वर्णन किया गया है। वहां बताया गया है- “तए णं से मेहे कुमारेबावत्तरि कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस विहिप्पगार देसीभासा-विसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगणसमत्थे साहसिए।' वियालचारी जाए यावि होत्था। कुमार मेघ बहत्तर कलाओं से पण्डित बन गया। उसके नौ सुप्त अंग जागृत हो गए। वह अट्ठारह प्रकार की देशी भाषाओं में विशारद, संगीत में रुचि लेने वाला तथा गान्धर्व विद्या और नाट्य विद्या में कुशल बन गया। वह हययोधी, गजयोधी, रथयोधी, बाहुयोधी, भुजाओं से शत्रु का मर्दन करने वाला, पूर्ण भोग समर्थ, साहसिक और विकाल बेला में विचरण की क्षमता वाला बन गया।12 उपर्युक्त सारा वर्णन हमें उस युग की शिक्षा व्यवस्था की सर्वांगीणता का दिग्दर्शन कराता है। यही वहज थी कि उस समय समाज में कलाचार्य अर्थात् विद्याध्ययन कराने वाले का सम्मानपूर्ण स्थान था। कुमार मेघ जब अध्ययन कर लौटा तो उसके माता-पिता ने विपुल वस्त्र, गन्धचूर्ण, मालाओं और अलंकारों से कलाचार्य को सत्कृत सम्मानित किया। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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