Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 80
________________ प्राचीन समय में पुत्र की भांति पुत्री का भी घर में सम्मानपूर्ण स्थान था। राजा कुंभ के राज्य को जब जितशत्रु आदि राजाओं ने घेर लिया, जब राजा को अपने बचाव का कोई उपाय नजर नहीं आया तो उस समय उसकी पुत्री राजकुमारी मल्लि ने जो उपाय सुझाया, वह कारगर साबित हुआ। राजा तात्कालीन समस्या से उबर गया।'' द्रौपदी के लिए स्वयंवर की समायोजना राजा द्रुपद के विशेष पुत्री स्नेह का सूचक था।'' इसी तरह धन सार्थवाह के अपनी पुत्री सुंसुमा सर्वाधिक प्रिय थी। उसे धन चले जाने की उतनी चिंता नहीं थी जितनी पुत्री सुसुमा की। उसने नगर आरक्षकों से भी यही कहा- “सारा धन तुम लोगों का और बालिका सुंसुमा मेरी।"16 इसी प्रकार जब सुकुमालिका अपने पूर्व कृत कर्मों के कारण सर्वत्र उपेक्षा का अनुभव करने लगी, पिता सागरदत्त ने उसे आश्वासन दिया और उसके लिए दानशाला की उचित व्यवस्था की।" पाणिग्रहण संस्कार ___ जीवन से जुड़े विभिन्न संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है - पाणिग्रहण संस्कार। प्राचीन भारतीय समाज में विवाह संस्कार के विषय में भी विविधता थी। विवाह योग्य होने पर कन्या पक्ष की ओर से ही प्रस्ताव आए - ऐसा एकान्तिक नियम नहीं था। वरपक्ष की ओर से भी कन्या की मांग रखी जाती थी। सुकुमालिका की योग्यता ने जिनदत्त को आकृष्ट किया तो उसने स्वयं सागरदत्त से उसकी पुत्री की याचना की। इसी तरह अमात्य तेतलीपुन ने पोटिला के लिए अपने अन्तरंग व्यक्तियों को विवाह का प्रस्ताव लेकर भेजा। इतना ही नहीं, उसने कन्या के लिए शुल्क देने की बात भी कही। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में कन्या के लिए शुल्क देने की प्रथा थी। द्रौपदी के विवाह से पूर्व स्वयंवर का आयोजन भारतीय इतिहास का एक सुप्रसिद्ध प्रसंग है। द्रौपदी के स्वयंवर में अनेक राजा प्रत्याशी बन कर किस प्रकार दल-बल के साथ कांपिल्यपुर पहुंचे? द्रौपदी ने कैसे एक साथ पांच पांडवों का वरण किया? ज्ञातधर्मकथा में इस सारे प्रसंग का विस्तार से व सुरुचिपूर्ण ढंग से वर्णन किया गया है। बहुपत्नी प्रथा प्राचीन समय में आम बात थी। विवाह के अवसर पर दहेज भी दिया जाता था। थावच्चापुत्र का बत्तीस कन्याओं के साथ पाणिग्रहण हआ और उसे बत्तीस वस्तुश्रेणियों का दहेज दिया गया। इस प्रकार प्रस्तुत आगम में अनेक परम्पराओं के स्रोत प्राप्त किए जा सकते हैं।21 खान-पान, वेशभूषा और अलंकार 'आहार' जीवन की पहली आवश्यकता है। प्राचीन काल में आहार के दोनों प्रकार प्रचलित थे। सामान्यतया लोग शाकाहारी होते थे। विशेष परिस्थिति में मांसाहार भी प्रचलित था। ज्ञातधर्मकथा 74 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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