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वर्ण
|ल ter
सूक्ष्म
उच्चारण
मात्रा
उच्चारण स्थान
नाभिकंद दीर्घ
हृदय प्लुत
तालु
भूमध्य नाद अति सूक्ष्म
ललाट से शिर ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, सूक्ष्म और अति सूक्ष्म के विश्लेषण पर ध्यान केन्द्रित करने से विभिन्न प्रकार के परिणाम उत्पन्न होते हैं। ह्रस्व उच्चारण पर ध्यान केन्द्रित करने से वचन सिद्धि, दीर्घ उच्चारण पर ध्यान केन्द्रित करने से कार्य सिद्धि और प्लुत उच्चारण पर ध्यान केन्द्रित करने से दारिद्र्य का नाश होता है।16 ___ मंत्र शास्त्र में अ, ह ये बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।47 अहँ में अ, ह, म्, बिंदु और नाद - ये पांच अंश होते हैं।48 मंत्र के उच्चारण में अनुस्वार के प्लुत उच्चारण के पश्चात् उत्पन्न होने वाली ध्वनि को बिंदु कहा जाता है। ध्वनि के झंकार को नाद कहा जाता है।49
अहँ परमेष्ठी का वाचक है। इसमें सब मंत्रों का समावेश होता है। यह सुसूक्ष्म ध्वनि स्वरूप है। इसे अनाहत नाद कहा जा सकता है।1 अहँ जप का महत्त्व ___ मंत्र शास्त्र में मातृका के ध्यान की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया उपलब्ध होती है। नाभिपद्म के सोलह दलों के प्रत्येक दल पर भ्रमण करती हुई स्वरावलि (असे अः तक के सोलह स्वरों) का ध्यान किया जाता है। हृदय कमल के चौबीस दलों पर भ्रमण करते हुए चौबीस वर्णो (क से म तक) तथा उसकी कर्णिका पर 'म्' का ध्यान किया जाता है। मुखकमल के आठ दलों के प्रत्येक दल पर प्रदक्षिणा करते हुए आठ वर्णों (य, र, ल, व, श, ष, स, ह) का ध्यान किया जाता है। इस प्रकार मातृका का ध्यान करने वाला व्यक्ति श्रुत का पारगामी होता है। जिसका आदि अक्षर 'अकार' और अंतिम अक्षर 'हकार' है और मध्य में बिंदु सहित रकार है, वह अहँ परम तत्त्व है जो उसे जानता है, वह तत्त्वज्ञ होता है। अहँ के अकार और हकार में सब वर्गों का प्रत्याहार होता है, इसलिए वह अर्हत् की सर्ववर्णमयी मूर्ति है। इसका मेरूदण्ड में ध्यान करने वाला सब आगमों का प्रवक्ता होता है।54 मंत्र शास्त्र में आकार
अकार का दीर्घ उच्चारण आकार होता है। इसका वर्ण श्वेत और लिंग स्त्रीलिंग है। वाग्देवता के अंग अक्षरमय होते हैं। साधक अंगों की शक्ति जागरण के लिए मातृका-न्यासपद्धति का उपयोग करते हैं। उस पद्धति के अनुसार (अकार) का न्यास दक्षिण शंख (ललाटास्थि)
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 140
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