Book Title: Tulsi Prajna 2008 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 57
________________ 18. एकाक्षर नाममाला-विश्वशम्भु-5 19. अनेकार्थसंग्रहो नाम कोशः परिशिष्ट काण्ड, श्लोक-1/अ स्यादमावे स्वल्पार्थे। 20. समवायांग वृत्ति पत्र-111-अपश्चिमाः-पश्चात्कालभाविन्यः अकारस्त्वमंगलपरिहारार्थम्। 21. अमानोनः प्रतिषेधे-आवश्यक, मलयगिरि, द्वि-खंड। 22. उत्तराध्ययन 28/12 23. अकारादिः पौद्गलिको वर्ण-प्रमाण नयतत्त्व 4 24. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण) पृ. 90 अ. गजवाहन हेमवर्ण कुड कुमगन्धं लवण स्वाईं पुल्लिंग 25. परमेष्ठी विद्यायंत्रकल्प-श्लोक-44 (क) 'अ' वर्ण च सहस्रार्धं, नाभ्यब्जे कुंडलीतनुम्। ध्यायन्नात्मानमाप्नोति, चतुर्थतपसः फलम्। (ख) तत्त्वार्थसार दीपक-श्लोक 93 आदिमं चहितो नाम्नोऽकारं पंचशतप्रमम् । वरं जपेत् त्रिशुद्धया यः, स चतुर्थफलं श्रयेत् ।। 26. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य, पृ. 115 27. वही, पृ. 114, 115 28. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण) पृ. 90 29. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य, पृ. 110 30. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण) पृ. 282 31. भगवती सूत्र शतक 1/443 क. पुव्विं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमय-वितिक्कंतं च णं भासिया भासा अभासा। ख. पन्नवणा-सूत्र-पद-11/71 जीवेणं भंते! जाइं दव्वाई भासत्ताए गहियाइं णिसिरति ताई किं संतरं णिसिरति? णिरंतरं णिसिरति? गोयमा संतरं णिसिरति, णो णिरंतरं णिसिरति। संतरं णिसिरमाणे एमेणं समरगं गेण्हइ एगेणं समण्णं णिसिरति ! 32. सिद्ध हेमशब्दानुशासन-पृ.-24 33. सिद्धमात्रिकाभेद प्रकरण-श्लोक 114, 115 तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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