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और अहिंसा को श्रेष्ट यज्ञकर्ता की पत्नी के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके बिना यज्ञ निष्फल हो जाता है-स्मृतिदयाशान्तिऽहिंसापत्नी संयाजाः ।" उपनिषदों में अनेक स्थलों पर इसकी महनीयता उद्गीत है... यत्तपोदानमार्जवमहिंसा० (छान्दो० ३.१७.४), अहिंसा इष्टयः (प्राणाग्नि० ४), आरुणिकोपनिषद् में ब्रह्मचर्य के साथ अहिंसा व्रत की रक्षा पर विशेष बल दिया गया है
ब्रह्मचर्यमहिंसा चापरिग्रहं च सत्यं च यत्नेन । हे रक्षतो हे रक्षतो हे रक्षत इति ॥
सभी प्राणियों में सर्वदा तथा सर्वथा द्रोह की भावना न रखना ही अहिंसा है। सत्यादि सबके मूल में अहिंसा ही है- व्यास भाष्य (योगसूत्र २.२९ पर) द्रष्टव्य है
तत्रा हिंसा सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनभिद्रोह उत्तरे च यमनियमास्तन्मूला। दतात्रेय योगशास्त्र में भी सभी नियमों की अपेक्षा अहिंसा उत्कृष्ट मानी गयी है
अहिंसा नियमेष्वेका मुख्या भवति नापरे । इसी प्रकार प्रश्नव्याकरणकार ने अहिंसा को परममंगलकारिणी कहा है____ अहिंसा "तस-थावर सव्वभूयखेमकरी। महाभारतकार ने अहिंसा को परमधर्म तथा सम्पूर्णधर्म कहा है
अहिंसा परमो धर्मः । (महाभारत अनु० पर्व ११६.२८-२९) अहिंसा सकलो धर्मः । (तत्रैव ११६.३०)
अहिंसा की महत्ता को सबने स्वीकार किया है । आचारांगकार इसे शुद्ध, नित्य और शाश्वत धर्म मानते हैं
__एस धम्मे णिइए सासए । दशवकालिक चूणि में भी ऐसा ही कहा गया हैअहिंसाग्गहणे पंचमहव्वयाणि गहियाणि भवंति । अर्थात् अहिंसा के ग्रहण से सभी महाव्रतों का ग्रहण हो जाता है । इस प्रकार अहिंसा की श्रेष्ठता सबने स्वीकार की है। ६.२. सत्य--आचारांगकार सत्य की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं'सच्चसि धिति कुव्वह२४ अर्थात् सत्य में धृति करो। आचारांगभाष्य में सत्य शब्द के १४ अर्थ किए गए हैं-सत्, सद्भाव, तत्त्व, तथ्य, सार्वभौम नियम, भूतोद्भावन, संयम, काय, भाव और भाषा की ऋजुता, यथार्थ वचन, अगहित वचन, व्यवहाराश्रित वचन और प्रतिज्ञा ।२५ सत्य का अनुशीलन ही परम कर्तव्य है तथा सत्यानुशीलन से व्यक्ति मृत्यु को तर जाता है
पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि । सच्चस्स आणाए उवट्ठिए से मेहावी मारं तरति । अर्थात् हे पुरुष! तू सत्य का ही अनुशीलन कर। जो सत्य की आज्ञा (शरण) में उपस्थित होता है, वह मेधावी मृत्यु को तर जाता है। सत्य के निर्वाह में साधन के रूप में 'मध्यस्थभाव' ग्रहण करने के लिए निर्देश दिया गया है-उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए । अर्थात् मध्यस्थ भाव रखने वाला मध्यस्थ भाव न रखने वाले से कहे-तुम सत्य के लिए मध्यस्थ भाव का अवलम्बन करो ।
उपनिषद्-साहित्य में इसी तरह सत्य की महिमा टंकित है। सत्य विजयी होता है यह भारत का सूत्रवाक्य है-सत्यमेव जयते । आत्मप्राप्ति के साधनों में सत्य का
तुलसी प्रचा
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