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होता है । इस प्रकार स्थाली पुलाक जैनदर्शन के और भी अनेक आयाम हैं
के साथ-साथ आज की शोध-परम्परा को समृद्ध करने में समर्थ हैं ।
सन्दर्भ :
१. ( i ) Jaina Sutras', Prof. Jacobi, Sacred Books of the East',
Vol. II, P 33.
(ii) “He (Prof. Jacobi) albo established that Jainism was not scholars had
an offshoot of Buddhism as earliar
न्याय से ही जैनदर्शन की आस्तिकता सिद्ध है । जो जैन दर्शन की आस्तिकता की सिद्धि करने
thought."
('German News', June 1892, Page 20)
२. मुख्य आस्तिक दर्शन छः माने गए हैं
(i) कपिल ऋषि द्वारा प्रवर्तित 'सांख्यदर्शन' (ii) महर्षि कणाद प्रवर्तित 'वैशेषिक दर्शन' (iii) गौतम द्वारा प्रवर्तित 'न्यायदर्शन' (iv) महर्षि पतञ्जलि द्वारा प्रणीत 'योगदर्शन' (v) महर्षि जैमिनी द्वारा प्रणीत 'पूर्वमीमांसा' (vi) महर्षि बादरायण ( वेदव्यास) द्वारा प्रवर्तित 'उत्तरमीमांसा' ( वेदान्त) | ३. माधवाचार्यं रचित 'सर्वदर्शनसंग्रह' पर व्याख्या लिखते हुए महामहोपाध्याय श्रीवासुदेवशास्त्री अभ्यंकर ने वेदोक्त लोक में आस्था न रखने वाले दर्शनों को 'नास्तिक' की संज्ञा दी है।
"नास्ति वेदोदितो लोकः इति येषां मतिः स्थिरा ।" ( द्रष्टव्य - - ' सर्व दर्शन संग्रह' पर श्री वासुदेव शास्त्री अभ्यंकर भाष्य, भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना, पृ० २ ) ।
प्रायः इसी आधार पर चार्वाक, जैन एवं बौद्ध दर्शन को नास्तिक कहा जाता है ।
४. 'अष्टाध्यायी' के रचयिता पाणिनि के अनुसार 'अस्ति नास्ति दिष्टंमति:' अर्थात् परलोक है, ऐसी जिसकी मति है, वह 'आस्तिक' है ।
(देखें - अष्टाध्यायी, ४६ )
५. 'मनुस्मृति' अध्याय २, श्लोक सं० ११ ।
1
६. "खाई पूया लाहं सक्काइ किमिच्छ से जोई । इच्छसि जइ परलोयं तेहि किं तुज्झ परलोयं ॥"
७. 'मोहेण गब्भं मरणाति एति । '
खंड २१, अंक २
( आचाराङ्ग सूत्र, ५/७ )
८. " णाणी सिव परमेट्ठी सव्वण्हू विण्हूं चउमुहो बुद्धो । अप्प विपरमप्पो कम्मविमुक्को य होइ फुड ॥ "
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( ' रयणसार', गाथा १२८ )
रचित संस्कृत१९७८, ( ई०),
('भावपाहुड', १५२)
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