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ईसवी के उत्तरार्द्ध तक मारवाड़ का सर्वाधिक विख्यात नगर था। प्रो. कीलहान ने संकेत किया है कि यह नगर उस समय मालवप्रदेश की राजधानी था।' वि० सं० १०५४ का ताम्रपत्र
वि० सं० १०५४ का एक अधुरा ताम्रपत्र मिला है जिसमें भीनमाल के शासक का नाम सिंहराज है । डा. बी. सी. छावड़ा उसे चौहान राजा मानते हैं पर डा० दशरथ शर्मा उससे सहमत नहीं हैं। रामवल्लभ सोमानी ने भी सिन्धुराज और सिंहराज को एक मानने की बात कही है किन्तु यह सब ऊहापोह है । सं० १०५३ के बाद सिंधुराज परमार की कल्पना ठीक नहीं है । विशेषतः जब कि चौहानों में शोभित से पहले सिंहराज राजा हुआ है।
___ ननाणा दानपत्र में नाडोल अधिपति लक्ष्मण के बाद शोभित का नाम है और फिर एक पंक्ति के अक्षर मिट गए हैं। पुन: नड्डूले बलिराज भूपति -- शब्द पढ़े जाते हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि नष्ट पंक्ति में शोभित के भीनमाल से संबद्ध होने का उल्लेख रहा है इसलिये उसके उत्तराधिकारी को नड्डुल का शासक लिखा गया। संभवतः भीनमाल उनके हाथों से निकल गया।'
वस्तुत: भीनमाल के लिये परमारों और चौहानों में पीढ़ी दर पीढ़ी संघर्ष हुआ। वि० सं० १०५५ को बाद वहां सं० १०५९,१११६,११२३ और ११९८ में सत्ता परिवर्तन हुए । अचलेश्वर प्रशस्ति सं० १३७७ में शोभित का भीनमाल राज्य क्रमशः महेन्द्रराज, सिंधुराज, प्रताप, आसराज और मन्हेद्रराज को विरासत में मिला-ऐसा लिखा है।
गाव-चितलवाना (सांचोर) १. ओझा, डा० गो० ही; जोधपुर राज्य का इतिहास, भा १, वैदिक यंत्रालय अजमेर
(१९३८ ई०) पृ० ५२ २. पटनी, डा० सोहनलाल; अर्बुद मण्डल का सांस्कृतिक वैभव; हिन्दुस्तान प्रिण्टर्स ___ जोधपुर (१९८४ ई०) पृ० १२८ ३. जोधपुर राज्य का इतिहास, भा १ पृ० ७४ ४. सिंह, डा० आर० बी०, हिस्ट्री ऑफ दी चाहान्स; नन्दनियोर मन्म. चौक
वाराणसी (१९६४ ई०) पृ० २३९ ५. गांगुली, डा० डी० सी०; परमार राजवंश का इतिहास (अनु. लक्ष्मीकान्त मालवीय)
प्रकाशन केन्द्र, अमीनाबाद, लखनऊ पृ० ३७ ६. शोध पत्रिका वर्ष २२ अंक १ पृ० ६५-६९ ७. सिरोही के नडुआ की पुस्तक के संदर्भ से 'चौहान कुल कल्पद्रम' में लिखा है
शोभित ने भीनमाल के राजा मान परमार को मार कर वि० सं० १०४९ में भी भीनमाल में अपना अमल जमाया और ३२ वर्ष राज किया।-कल्पद्रुम पृ० ५४
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तुलसी प्रशा
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