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__ जैसे आकाशकुसुम से किसी भी प्रकार की कार्यसिद्धि नहीं होने से वह असत् है वैसे ही परकीय ऐसी अतीतकालीन और भविष्यकालीन वस्तु से भी किसी प्रकार की कार्यसिद्धि नहीं होती अतः वह असत् है । टिप्पण
ऋजुसूत्र नय के मतानुसार मात्र वर्तमानकालीन स्वरूपात्मक वस्तु ही सत् है । जो काल व्यतीत हो चुका है या जो काल अभी नहीं आया है ऐसे काल में स्थित वस्तु का कोई मूल्य नहीं होता अतः वह असत् है ।
नामादिचतुर्वेषु भावमेव च मन्यते ।।
न नामस्थापनाद्रव्याण्येवमग्रेतना अपि ।।१३।। __ ऋजुसूत्र नय, नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों में से मात्र भाव निक्षेप को ही मानता है, क्योंकि नाम, स्थापना और द्रव्य निक्षेप भूतकाल एवं भविष्यकाल बताते हैं अतः ऋजुसूत्र नय के अनुसार निरर्थक हैं।
अर्थशन्दनयोऽनेकः पर्यायरेकमेव च ।
मन्यते कुम्भकलशघटाद्य कार्थवाचकाः ॥१४॥ शब्द नय के अनुसार अनेक पर्यायों से निर्देशित पदार्थ एक ही है। इनमें कोई भिन्नता नहीं होती। यथा कुम्भ, कलश, घट आदि शब्द एक ही पदार्थ के वाचक हैं, किन्तु इनमें कोई भिन्नता या भेद नहीं हैं । टिप्पण
शब्दनय वस्तु के वाचक शब्द के सम्बन्ध में निर्देश देता है। यह ऋजुसूत्र नय से अधिक सूक्ष्म है। वस्तु के वाचक शब्द के द्वारा अर्थ-पदार्थ का कथन होता है, किन्तु एक ही अर्थ को प्रदर्शित करने वाले भिन्न-भिन्न पर्यायवाची शब्दों में अभिन्नता है, ऐसा शब्द नय मानता है।।
ब्रूते समभिरूढोऽर्थ भिन्नपर्यायभेदत.।
भिन्नार्थाः कुम्भ कलशघटा घटपटादिवत् ॥१५॥ समभिरूढ नय अनुसार विभिन्न पर्यायवाची शब्दों के द्वारा विभिन्न अर्थोंपदार्थों का कथन होता है । (पर्याय के भेद से अर्थ में भेद उत्पन्न होता है।) यथा घट और पट ये दोनों पृथक्-पृथक् पदार्थों के वाधक हैं तथा पृथक्-पृथक् शब्द चाहे वे पर्यायवाची हों तो भी भिन्न पदार्थ के वाचक हैं। अतः घट और कलश, ये दोनों शब्द एक ही पदार्थ के वाचक नहीं हैं। यदि एक ही पदार्थ के वाचक होते तो पृथक् शब्दों का क्या प्रयोजन ? कोई हेतु नहीं है। इसलिए कलश पृथक् पदार्थ को बताता है और घट भी पृथक् पदार्थ का ही बोधक है। इस प्रकार समभिरूढ नय के अनुसार भिन्न पर्याय के द्वारा भिन्न पदार्थ का कथन होता है।
यदि पर्यायभेदेऽपि न भेदो वस्तुनो भवेत् ।
भिन्नपर्याययोर्न स्यात्स कुम्भपटयोरपि ॥१६।। यदि पर्याय भेद में पदार्थ भेद नहीं माना जाय तो भिन्न पर्यायवाची शब्दों का कथन क्यों किया जाय ? यथा कुम्भ और पट थे दोनों पदार्थ पृथक् हैं अतः इनके
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तुलसी प्रज्ञा
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