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इस पद्य में उपमेय मात्मा के लिए सविता (सूर्य) को उपमान बताया गया है। सविता दिन में आवरणहीन होने के कारण प्रकाश देता है तथा रात्रि में अंधकार में आवरण से प्रकाश नहीं देता उसी प्रकार आत्मा भी होता है । ४. उल्लेख अलंकार
उल्लेख का अर्थ है लिखना या वर्णन करना। एक पदार्थ का अनेक प्रकार से वर्णन करने के कारण इसे उल्लेख कहा जाता है।
प्राणिनामुह्यमानानां, जरामरणवेगतः ।
धर्मो द्वीपं प्रतिष्ठा च, गतिः शरणमुत्तमम् ।। जरा और मरण के प्रवाह में बहने वाले जीवों के लिए धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है। इस प्रकार इसमें धर्म का अनेकधा उल्लेख (वर्णन) होने से उल्लेख अलंकार है। ५. रूपक अलंकार
रूपक अलंकार उपमा के समान सादृश्यमूलक अलंकारों में एक है। इस अलंकार में सादृश्य के आधार पर उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप होता है।" इस अभेद आरोप के कारण काव्य में उपमा अलंकार की अपेक्षा रूपक में कुछ अधिक चारुत्व की अनुभूति होती है । इसीलिए सम्बोधिकम् ने इस अलंकार का बहुतायत से सहज प्रयोग किया है। उदाहरण स्वरूप
. कषाया अग्नयः प्रोक्ताः, श्रुत-शील-तपोजलम् ।
एतद्धारा हता यस्य, स जनो नैव नश्यति ॥" यहां अभेद के द्वारा कषायों को 'अग्नि' श्रुत, शील और तप को 'जल' तथा 'जलधारा' और 'कषायाग्नि' में अपेद की कल्पना की गयी है। इसलिए रूपक अलंकार है। ६. उदात्त अलंकार
__उदात्त अलंकार वह है जहां किसी वस्तु की असंभावित समृद्धि का वर्णन होता है और महापुरुषों के चरित का वर्णन किया जाता है ।
संयमे जीवनं श्रेयः, संयमे मृत्युरुत्तमः ।।
जीवन मरणं मुक्त्य, नैव स्यातामसंयमे ॥" संयममय जीवन और संयममय मृत्यु श्रेय है। यहां संयमरूपी समृद्धि का वर्णन होने से उदात्त अलंकार है । ७. अर्थान्तरन्यास अलंकार
सामान्य का विशेष के साथ अथवा विशेष का सामान्य के साथ समर्थन करना अर्थातरन्यास अलंकार है।" इसका प्रयोग 'सम्बोधि' में कई स्थलों पर हुआ
ब्रह्मचर्यस्यरक्षाय, प्राणानामतिपातनम् । प्रशस्तं मरणं प्राहु, रागद्वेषाप्रवर्तनात् ॥५
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तुलसी प्रज्ञा
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