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कंठ टवर्ग पर थका कण्ठः सवर्ण णकार । कंथा तवर्ग पर थकां कन्धा सवर्ण नकार ।।
-व्यंजन संधि दोहा ५६ अनुस्वार से परे जिस वर्ग का वर्ण होता है उसी वर्ग का नम (पांचवा वर्ण) हो जाता है । कंठ शब्द में क से आगे अनुस्वार है उससे आगे 'ठ' टवर्ग का है, इसलिए अनुस्वार को ट वर्ग का पांचवा वर्ण ण् हो गया है। पद में ण को अ स्वर सहित णकार रूप में व्यक्त किया गया है। इसी प्रकार कंथा शब्द में अनुस्वार को न हुआ है। उसे नकार रूप में कहा गया है।
सारस्वत व्याकरण के सूत्र तथा उससे होने वाले दो वर्ण के आदेश को उदाहरण सहित यथावस्थित रूप में उद्धत किया है।
ओ अव् द्विपद सूत्र ए, ओकार नो अव होय । स्वर पर थकां सुजाण जो, भो अति भवति सोय ।।
-स्वर संधि दोहा ११ ओ अव यह सूत्र है । इसके दो पद हैं । यह सूत्र ओ से आगे स्वर होने पर ओ को अव करता है । साथ में उदाहरण भी है। भो+अति यहां भ के ओ से आगे अति शब्द का अ है । दोनों को संधि करने से ओ का अव् हो गया। अव का अभ् में मिल कर भ बन गया । व् आगे का स्वर अति के अ में मिल गया। इस प्रकार भवति रूप बन गया।
सारस्वत व्याकरण में सूत्र की वृत्ति के भावों को स्पष्ट करने के लिए बीच-बीच में श्लोक दिए गए हैं पंच संधि की जोड में उनको भी स्थान दिया गया है। "सवणे दीर्घः सह"
__ स्वर से आगे सवर्ण स्वर हो तो दोनों मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। इस सूत्र के भाव को स्पष्ट करने के लिए एक श्लोक है
अदी? दीर्घतां याति, नास्ति दीर्घस्य दीर्घता । पूर्व दीर्घ स्वरं दृष्ट्वा, पर लोपो विधीयते ।।
-श्लोक १५ इस श्लोक के भावों के लिए दोहा है
अदीर्घ दीर्घ पणो भजे, दीर्घ दीर्घ नहि होय । पूर्व दीर्घ स्वर देख ने, पर स्वर लोप सुजोय ॥
-स्वर संधि दोहा २७ पूर्व पद में अदीर्घ (ह्रस्व) स्वर हो और आगे सवर्ण स्वर हो तो पूर्व का अदीर्घ स्वर सवर्ण स्वर के साथ मिलकर दीर्घ हो जाता है। पूर्व का स्वर दीर्घ हो और आगे का सवर्ण स्वर भी दीर्घ हो तो पूर्व के दीर्घ स्वर को देखकर आगे वाला दीर्घ स्वर का लोप हो जाता है।
दीघं को दीर्घ करना व्यर्थ है इसके समर्थन में तीन उदाहरण हैं-(१) समुद्र में वर्षा व्यर्थ है (२) भोजन के ऊपर भोजन करना व्यर्थ है (३) धनी को दान देना व्यर्थ
तुलसी प्रज्ञा
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