Book Title: Tulsi Prajna 1995 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ तक पहुंचने की उम्मीद है । अतएव परमाणु कूटनीति आज पूरे विश्व पर हावी है तथा विश्व को निरन्तर संघर्षरत रखे हुए हैं। संघर्ष का विकास माइक्रो व मेक्रो दोनों ही स्तर पर होता है । सूक्ष्म स्तर पर संघर्ष का विकास तब होता है जब एक व्यक्ति स्वयं के व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में समूह के व्यवहार को देखता है। प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में व्यक्तियों के व्यवहार को समूह-संघर्षों का प्रमुख कारण माना गया। समकालीन संघर्षों में भी व्यक्तियों के व्यवहार की अहं भूमिका स्पष्ट है। समाजशास्त्री, मानवशास्त्री तथा राजनीतिज्ञों एवं संगठन तथा संचार सिद्धांतों ने संघर्ष की मेको दृष्टि को ग्रहण किया। इन्होंने संघर्ष को एक ऐसी स्थिति माना है जिसमें एक विशेष समूह दूसरे का सक्रिय प्रतिद्वन्द्वी बनता है। अर्थात् व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्तिगत व्यवहार तथा समूह के स्तर पर समूहों का परस्पर विरोध संघर्ष के विकास का प्रमुख कारण है। अभिवृत्ति परिवर्तन और संघर्ष निराकरण हाल ही के वर्षों में इस बात की और व्यापक रुचि रही है कि अपने देश की जनता की अभिवत्तियों तथा दूसरे देशों की जनता के प्रति अपनी अभिवृत्तियों में क्रियाशील होकर परिवर्तन लायें। विभिन्न सरकारें भी लोगों की अभिवत्तियों को बदलने के लिए प्रयत्नशील हैं। १९३० में अमेरिका में रूजनेल्ट ने आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए कर्मचारियों तथा किसानों के प्रति वहां के लोगों की अभिवृत्तियों में भारी परिवर्तन किये । भारत में गांधीजी ने उन लाखों लोगों की अभिवृत्तियों को बदलने का विशाल कार्य हाथ में लिया जो अंग्रेजी शासन के प्रति या तो उदासीन थे या उससे भयभीत । उन्होंने स्वराज तथा प्रजातंत्र के प्रति अनुकल अभिवत्ति व विदेशी के विरुद्ध अभिवृत्ति निर्माण के प्रयत्न किये तथा साथ ही अंग्रेजों की अभिवृति बदलने का भी प्रयत्न किया ताकि वे उपनिवेशवादी नीति का अन्त करने के अनुकूल हो सकें तथा अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष को टाला जा सके । जातीय संघर्षों को समाप्त करने की दृष्टि से उन्होंने हिन्दुओं व मुसलमानों की अभिवृत्ति परिवर्तन के प्रयास किये ताकि वे एक दूसरे के प्रति तथा हरिजनों के प्रति अनुकूल हो सकें । यह हमारी अभिवृत्तियों का व्यापक परिवर्तन ही है जिसके बल पर हमने एक राष्ट्र का निर्माण किया तथा स्वराज प्राप्ति के बाद की कठिनाइयों को झेल लिया। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों व असमानताओं पर आधारित संघषों के निदान हेतु हाल ही में यह अभिवृत्ति विकसित हुई है कि अल्प-विकसित राष्ट्रों का सहयोग करना हमारा कर्तव्य है । उद्योगपतियों व पूंजीपतियों की अभिवृत्ति को बदलने के प्रयास भी हुए हैं ताकि वे व्यक्तिगत हित की जगह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हित के लिए कार्य कर सकें । राजनैतिक अभिवत्तियों में भी परिवर्तन के फलस्वरूप आज प्रत्येक राष्ट्र की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता को महत्त्व मिला है तथा हर राष्ट्र के सरकार बनाने के अधिकार को स्वीकृति मिली है। संघर्ष निराकरण के पक्ष में अभिवत्ति परिवर्तन हेतु मुख्य रूप से निम्नलिखित तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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