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[ तित्योगाली पइन्नय
के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, जम्बू द्वीप के एरवत क्षेत्र के सातवें तीर्थंकर श्यामचन्द -- १३४९ ।
भरहे य सीयल जिणो, एरवए सुब्बई जिणवरिंदो ।
भर सेज्जं जिणो, एरवए जुक्तिसेणो वि | ३५० (भरते च शीतलजिनः एरवते सुब्रती जिनवरेन्द्रः । भरते श्र यांसजिनः, ऐरवते युक्तिषेणोऽपि )
इसी भरत क्षेत्र के दशवें तीर्थंकर शीतलनाथ, जम्बूद्वीपीय ऐरवत क्षेत्र के दशवें तीर्थंकर सुव्रती, इसी भरत के ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ, जम्बूद्वीपीय ऐरवत क्षेत्र के उनके समवयस्क ग्यारहवें तीर्थकर युक्तिसेन । ३५० ।
विमलो य भरहवासे, एरवए सीहसेण जिणचंदो ।
भर अनंतई जिणो, अजल जिणो य एखए । ३५१ । ( विमलश्च भरतवर्णे, ऐरवते सिंहषेण - जिनचन्द्रः । भरते अनन्त हि जिनः, असंजल (आश्वञ्जल) जिनश्च ऐरवते ।)
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के १३ वें तीथ कर विमलनाथ और ऐरवत क्षेत्र के तेरहवें तीर्थंकर सिंहसेन, इसा भरत क्षेत्र के १४ वें तीर्थ कर अनन्तनाथ, एरवत क्षेत्र के चौदहवें तीर्थ कर असंल । ३५१ |
धम्मो य भरहवासे, उवसंत जिणोय एरवयवासे । संती य भरहवासे, एरवए दीहसेण - जिणो । ३५२ | ( धर्मश्च भरतवर्षे, उपशान्त जिनश्चैरवतवर्णे | शान्तिश्च भारतवर्णे, ऐरवते दीर्घर्षण - जिनः ।)
जम्बूद्वीपस्थ भरत क्षेत्र के पन्द्रहवें तीर्थ कर धर्मनाथ, जम्बू द्वीप के ही एरवत क्ष ेत्र के पन्द्रहवें तीर्थंकर उपशान्त, इसी भरत क्षेत्र के १६ वें तीर्थ कर शान्तिनाथ, जम्बू द्वीपीय एरवत क्षेत्र के सोलहवें तीर्थ कर दीर्घसेन । ३५२ ।