Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 406
________________ तित्थोगाली पइन्नय ] . [३७९ (यदुद्धतं श्रु तात्, अथवा मत्या च स्तोक दोषेण । तच्च विरुद्धं ज्ञात्वा, शोधितव्यं श्रुतधरैः ।) मैंने जो कुछ श्रुत से उद्ध त किया है अथवा अपनी बुद्धि से कहा है, उसमें मेरी मति के दोष समूहों के कारण रहे हुए शास्त्र विरुद्ध कथन का भान होते ही श्र तधर उसे शुद्ध कर ले।१२५६। तेतीसं गाहाउ दोन्नि सता उौं सहस्स मेगं च । तित्थोगालीए संखा, एसा भणिया उ अकेणं ।।। त्रयत्रिंशद् गाथास्तु, द्विशते तु सहस्रमेकं च । तीर्थोद्गालिके संख्या एषा भणिता तु अकेन ।। . ____ तीर्थ-प्रोगाली (तीर्थ के प्रवाह) में १२३३ गाथाएँ है। यह संख्या अंकों में बताई गई है । ॥ गाथा १२५९' ग्रंथान श्लोक १६६५ छ ।। इति श्री तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक नामा ग्रन्थो समाप्त ।। __॥ जैन जयतु शासनं, ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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