Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ तित्थोगाली पइन्नय [३२६ सुरेन्द्रों एवं नरेन्द्रों द्वारा पूजित प्रभु महापद्म मध्यम पावा नगरी में हुए दूसरे समवसरण में (चतुर्विध तीर्थ का प्रवर्तन कर) धर्मचकवर्ती प्रवर के पद से विभूषित होंगे ।१०६८। एक्कारस वि गणहरा, सव्वे उन्नय विसाल कुलवंसा । पावाए मज्झिमाए, समोसढा जण्णवाडम्मि ।१०९९। (एकादशाऽपि गणधराः, सर्वे उन्नत-विशाल कुलवंशाः । पावायां मध्यमायां, समवसृता यज्ञवाटे ।) उन्नत कूल एवं विशाल वंश के उनके सभी ग्यारह गणधर मध्यम पावा में अनुष्ठित होने वाले यज्ञ की यज्ञशाला में एकत्र होंगे ।१०६६। पढमेत्थ कुम्भसेणो, नामेणं गणहरो महासत्तो । वज्जरिसभसंघयणो, चउद्दस पुब्बी महावीरो ।११००। (प्रथमोन कुम्भसेनः नाम्ना, गणधरः महासत्त्वः । वज्रर्षभ संहननः चतुर्दशपूर्वी महावीरः ।) महापद्म तीर्थंकर के उन ग्यारह गणधरों में प्रमुख एवं प्रथम गणधर काम कुम्भसेन होगा, जो महासत्त्वशाली, वज्रऋषभ संहनन के धनी चतुर्दश पूर्वधरं और महान् धीर वीर होंगे ।११००। चइसाहसुद्ध एक्कारसीए, तह पढम पोरिसीए उ। हत्थुत्तर पय कमलेः गणिपिडगस्स भाणिहि अत्थं ।११०१। (वैशाखशुद्ध कादश्यां, तथा प्रथम पौरुष्याम् तु । हस्तोत्तर पदकमले, गणिपिटकस्य भणिष्यति अर्थम् ।) __ वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन प्रथम प्रहर में, हस्तोत्तरा नक्षत्र के योग में भगवान् महापद्म गणिपिटक (द्वादशांगी) के अर्थ का उपदेश करेंगे ।११०१। एवं तित्थुप्पत्ती. दससुवि वासे सु होइ नायव्वा । एक्कारस वि गणहरा, नव गणावि तस्स एमेव ।११०२।

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408