Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 367
________________ ३४०1 [ तित्थोगाली पइन्नय (नवस्वपि वर्षेष्वेवं, द्वादश द्वादश च चक्रवर्तिनः [चक्रवर्तयः] एतेषां तु निधीन्, वक्ष्यामि समासतः शृणुत ।) इस प्रकार ढाई द्वीप के पांच ऐरवत और शेष चार भरतइन क्षेत्रों में भी प्रत्येक में बारह-बारह चक्रवर्ती होंगे। अब मैं इन चक्रवतियों की निधियों का संक्ष पतः कथन करूंगा, उसे सुनिये ।११३१॥ नेसप्प पंड पिंगल, सव्वरयणवर तहा महापउमे । काले य महाकाले, माणवग महानिही संखे ।११३२। (नैसर्पः पाण्डुकः पिङ्गलः, सर्वरत्नवर तथा महापद्मः । कालश्च महाकालः, माणवकः महानिधिः शंखः ।) नैसर्प, पाण्डक, पिङ्गल, सर्वरत्नवर, महापद्म, काल, महाकाल. माणवक और शङ्ख-ये चक्रवर्तियों की निधियां होती हैं।११३२। नेसप्पंमि निवेसा, गामागरनगर पट्टणाई तु । दोणमुहमडंबाणं, खंधाराणं गिहाणं च ।११३३। . . (नैसर्प निवेशाः, ग्राम-आकर-नगर-पत्तनानि तु । द्रोणमुख-मडम्बानि, स्कन्धावाराणि गृहाणि च ) नैसर्प निधि द्वारा निवेशों, ग्रामों, आकरों. नगरों. पत्तनों, द्रोणमुखों, मडम्बों, स्कन्धावारों और गृहों का (तत्काल) निर्माण किया जाता है ।११३३। गणियस्स य उप्पत्ती, माणुम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाण य, उप्पत्ती पंडुए भणिया ।११३४। (गणितस्य च उत्पत्तिः, मान-उन्मानस्य यत् प्रमाणं च । धान्यस्य च बीजानां च, उत्पत्तिः पाण्डु के भणिता ।) पाण्डुक निधि में गणित, मान, उन्मान, परिमारण, धान्य एवं बीज आदि की उत्पत्ति बताई गई है ।११३४।

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