Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh
View full book text
________________
तित्थोगाली पइन्नय]
[३३९
एवं एते वुत्ता, जिण चंदा य केवली । एत्तो परं तु वोच्छं, भरहेरवएसु चक्किणो ।११२९। (एवं एते उक्ताः, जिनचन्द्राश्च केवलिनः । इतः परं तु वक्ष्यामि, भरतैरवतेषु चक्रिणः ।)
इस प्रकार इन केवली तीर्थ करों के सम्बन्ध में कथन किया गया। अब मैं भरत तथा ऐरवत क्षेत्र के चक्रवतियों के सम्बन्ध में कथन करूंगा ।११२६।। भरहे य दीहदंते य, गूढदंते य सुद्धदंते य । सिरिचंदे सिरिभूमी, सिरिसोमे य सत्तम ।११२९। (भरतश्च दीर्घदन्तश्च, गूढ दन्तश्च शुद्धदन्तश्च । श्रीचन्द्रः श्रीभूतिः, श्री सोमश्च सप्तमः ।) . भरत, दीर्घ दन्त, गूढदन्त, श्रीचन्द्र, श्रीभूति, सातवें श्री सोम-।११२६। (ब) पउमे य महापउमे, विमले तह विमलवायणे चेव । वरिट्ट बारममेवुत्ते, भरहपती आगमेस्साए ।११३०। (पद्मश्च महापाः विमलस्तथा विमलवाहनश्चैव । वरिष्ठो द्वादशमः उक्तः, भारतपतिः आगमिष्यायाम् ।)
पद्म महापद्म विमल, विमलवाहन और बारहवें वरिष्ठ ये आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में (बारह ) चक्रवर्ती होंगे ।११३०। नवसुवि वासे सेवं, बारस बारसय चक्कवट्टीओ। एतेसिं तु निहीओ, वोच्छामि समासतो सुण सु ।११३१ ।
YB प्रस्तुत प्रतो अस्यापि गाथाया अने ११२८ संख्येव समुल्लिखितास्ति । • समवायांगे तु-'सिरिउत्त सिरिभूई'-इति पाठः । * "विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव"-इति समवायांग सूत्र।
Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408