Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 400
________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ ३७३ उत्तानासन, खड़े हुए किसी पार्श्व पर लेटे, ऊपर बैठे और पद्मासन से बैठे आदि जिस जिस श्रासन से जो सिद्ध यमान जीव जन्म मरण का अन्त करता है वह उसी आसन से ईषत्प्राग्भारा नामक सिद्ध भूमि पर सिद्धावस्था में संस्थित रहता है । १२४० । तिन्निसा तेतीसा, धणु ति भागो य होइ बोधव्वो । एसा खलु सिद्धाणं, उक्को सोगाहणा भणिता । १२४१ । ( त्रीणि शतानि त्रयत्रिशधनुत्रिभागश्च भवति बोद्धव्यः । एषा खलु सिद्धानामुत्कृष्टाऽवगाहना भणिता ।) तीन सौ तेतीस धनुष और एक धनुष का तीसरा भाग - यह सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना बताई गई हैं । १२४१ । चचारि रयणीओ, स्यणि तिभागूणिया य बोधव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमोगहणा भणिया । १२४२ । ( चत्वारि रत्नयः, रत्नित्रिभागोनाश्च बोद्धव्या । एषा खलु सिद्धानां मध्यमाऽवगाहना भणिता ।) , एक तिहाई रत्नी कम चार रत्नी यह सिद्धों की मध्यम अवगाना बताई गई हैं । १२४२ । एगा य होइ रयणी, अट्ठ े व अंगुलाई साहीया । एसा खलु सिद्धाणं, जहम्न ओगाहणा भणिता । १२४३ । ( एका च भवति रत्निः, अष्टावेवांमुल्यः साधिकाः । एषा खलु सिद्धानां जघन्याऽवगाहना भणिता ।) एक रत्नी और आठ अंगुल -यह सिद्धों की जघन्य (कम सेकम) अवगाहना बताई गई है । १२४३ (अ) (ब) जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अनंता मंत्ररयविमुक्का । अन्नोन्नं समोगाढा, पुड्डा लोगंता लोगंते । १२४३ |

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