Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ ३३० ] [ तित्थोगाली पइन्नय (एवं तीर्थोत्पत्तिः, दशस्वपि वर्षेषु भवपि ज्ञातव्या । एकादशोऽपि गणधराः, नवगणा अपि तस्य एवमेव !) ____ इस प्रकार दशों क्षोत्रों में तीर्थ की उत्पत्ति होगी-यह जानना चाहिए। इसी प्रकार (भ० महावीर के धर्मतीर्थ के समान) उन तीर्थकर महापद्म के भी ग्यारह गणधर और ६ गणधर होंगे ।११०२ सोहि, यसं, सब्भावो, ववहारो अगरुया खमा सच्चं । आउग उच्चचाई, दससु वि वासेसु वड्ढेति ।११०३। (शोधिः यशः सद्भावः व्यवहारश्च अगुरुता क्षमा सत्यम् । आयुः उच्चत्वादीनि दशस्वपि वर्षेषु वर्धन्ते ।) तदनन्तर उस काल में शोधि (सब प्रकार की शुद्धता), यशकोति सद्भाव अथवा आगमज्ञान, व्यवहार, अगुरुता (निरभिमानता), क्षमा, सत्य, आयु और देह की ऊँचाई-ये सब चीजें दशों क्षेत्रों में उत्तरोत्तर बढ़ती रहेंगी ।११०३। चन्दसमा आयरिया, खीरसमुद्दोवमा उवज्झाया । साहु साहुगुणाविय, समणीओ समिय पावाओ ।११०४। चन्द्रसमा आचार्याः क्षीरसमुद्रोपमा उपाध्यायाः।। साधवः साधुगुणा अपि च श्रमण्यस्तु शमित पापाः ।) उस समय आचार्य चन्द्रमा के समान सौम्य, शीतल, सुखद, उपाध्याय क्षीर सागर के समान अगाध ज्ञान-गुरण सम्पन्न, साधु सभी श्रेष्ठ गुणों के धारक, श्रमणियां निष्पाप-विशुद्ध--।११०४। ससिलेहव्व पवित्तिणि, अम्मापियरो य देवय समाणा । माइसमा विय सासू. सुसरावि य पितिसमा हु तया ।११०५। (शशिलेखेव प्रवर्तिनी, अम्बापितरौ च दैवतसमानौ । मातृसमापि च श्वश्र , श्वशुरा अपि च पितृसमाहुः तदा ।) __ प्रतिनियां चन्द्रलेखा के समान, माता-पिता देवदम्पती तुल्य, सास माता के समान ममतामयी और श्वसुर पिता तुल्य स्नेह मूर्ति होंगे ।११०५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408