Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh
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३३४ }
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( नवरं प्रतिलोमानि तीर्थोद्गालिकेवीर भणितानि । तीर्थंकरान् आगमिष्यतः नाम नामभि: कीर्तयिष्यामि ।)
[ तित्योगाली पइत्रय
इस अवसर्पिणी काल के २४० तीर्थ करों के अन्तराल. आयु उत्सेध आदि का जो अनुक्रमशः वर्णन किया गया है, जिनेश्वर महावीर ने व्यतिक्रम अर्थात् प्रतिलोमात्मक अनुक्रम से वही अन्तर प्रायु उत्सेध आदि आगामी उत्सर्पिणी काल की दश चौकीसियों के तीर्थंकरों का भी तीर्थ - प्रोगाली ( प्रवाहों ) में बताया है । अब मैं आगामी उत्सर्पिणी काल के तीर्थङ्करों का नामस्मरण - पूर्वक कीर्तन
करूंगा ।१११५।
महा पउमे हिय सुरदेवे सुपासे य सयंपर्भे ।
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सव्वाशुभूति अरहा देवगुतो य होहिहि । १११६ । (महापद्मः हि च सुरदेवः सुपार्श्वश्च स्वयं प्रभः । सर्वानुभूति अर्हत् देवगुप्तश्च भविष्यति ।)
महापद्म ( १ ) सुरदेव (२), सुपाश्वं (३), स्वयंप्रभ ( ४ ),
सर्वानुभूति जिन (५) देवगुप्त (६) और -- ।१११६ | उदग पेढाल पुय पोट्टिले सत्त गीत्तिय । मुनिसुव्वतेय अरहा सत्वभाव विउजिये । १११७ |
(उदक: पेढालपुत्रश्च प्रोट्टिलः शतकीर्तिश्च ।
1
मुनि सुव्रतश्च अर्हत् सर्वभाव विदो जनाः । )
उदक् (७), पेढाल पुत्र (८) पोट्टिल ( 8 ), शतकीर्ति (१०), मुनि सुव्रत प्रत ( ११ ) - ये त्रिकालवर्ती भावों को देखने जानने वाल जिनेश्वर -- 1१११७
अममे णिक्कसाए य, निप्पूलाए य निम्ममे ।
चित्तगुतं समाही य, आगमिस्साए ते होहिति । १११८ ।
( अममः निष्कषायश्च निष्पुलाकश्च निर्ममः । चित्रगुप्तः समाधिश्च, आगमिष्यायां भविष्यन्ति ।)
मम (१२), निष्कषाय (१३), निष्पुलाक (१४), निर्मम ( १५ ) चित्रगुप्त (१६), समाधि ( १७ ) – ये आगामी चौबीसी के तीर्थंकर
तथा -- 1१११८।
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