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तित्थोगाली पइन्नय }
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दोणिसया वीसोत्तर, तित्थयराणं तु लोगनाहाणं । दससुवि वासेसु सेसे, मासिय भत्तेण सिद्धि गया ।५६१। (द्विशताः विंशोत्तराणि तीर्थंकराणां तु लोकनाथानाम् । दशष्वपि वर्षेषु शेषाः, मासिकभक्त न सिद्धि गताः ।)
दशों क्षेत्रों की १० चौबीसियों के २४० तीर्थंकरों में उपरिवणित २० तीर्थङ्करों को छोड़ कर शेष २२० शैलोक्यनाथ तीर्थङ्कर दशों क्षेत्रों में मासोपवास के तप से सिद्ध हुए ।५६१॥ अट्ठावयंमि उसभो, सिद्धिगओ भारहमि वासंमि । चंदाणण एरवए, सिद्धिगया मेहकूडं मि ।५६२। (अष्टापदे ऋषभः, सिद्धिंगतः भारते वर्षे । चन्द्रानन-ऐरवते, सिद्धिं गताः मेघकूटे ।) .. भरत क्षेत्र में भगवान् ऋषभदेव अष्टापद पर्वत पर सिद्ध हुए और ऐरवत क्षेत्र में चन्द्रानन (प्रथम तीर्थंकर) मेघेकूट पर्वत पर सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५६२। संमेयंमि जिणिंदा, वीसं परिनिव्वुया भरहवासे । एरवए सुपइट्ट, वीसं मुणिपुंगवा सिद्धा ।५६३। (सम्मेत जिनेन्द्राः, विंशतिः परिनिता भरतवर्षे । ऐरवते सुप्रतिष्ठे, विंशति मुनिपुंगवाः सिद्धाः ।)
भरत क्षेत्र में २० तीर्थङ्कर सम्मेत गिरि पर और ऐरवत क्षेत्र में सुप्रतिष्ठ पर्वत पर बीस तीर्थङ्कर सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।५६३। चंपांए वासुपुज्जो, सिद्धि गतो भारहमि वासंमि । एरवए सेज्जंसो, सिद्धि गतो नाग नगरीए ।५६४। (चंपायां वासुपूज्यः सिद्धिं गतः [वित्तकटे] भारते वर्षे । ऐरवते श्रेयांशः, सिद्धिं गतः नाग नगर्याम् ।)