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तित्योगाली पइन्नय ।
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(एते चत्वारिशत् , दशष्वपि वर्षेषु क्षीणसंसाराः । सर्वे ते केवलिनः, सिद्धिं गता अपररात्रौ ।)
पांच भरत और पांच ऐरवत इन दशों क्षेत्रों के इस अवसपिरणो काल के उपरि नामोल्लिखित चालीसों जन्म-मरण मुक्त केवलीतीर्थंकर पश्चिम रात्रि की वेला में मोक्ष पधारे । ५५३। उसभो य भरहवासे, बाल चंदाणणो य एरवए । दसवि निसिज्जोवगया, दससुवि खेत्तेसु सिद्धि गया १५५४| (ऋषभश्च भरतवर्षे, बालचन्द्राननश्च ऐरवते । दशाऽपि निषिद्योपगता, दशस्वपि क्षेत्रोषु सिद्धिं गताः ।)
___ भरत क्षेत्र में ऋषभदव और ऐरवत क्षेत्र में बालचन्द्रानन ये दशों क्षेत्रों के दशों ही तीर्थंकर निषिद्या में विराजमान अर्थात् पर्यंकासन से सिद्ध हुए ।५५४। भरहे अरिडुनेमि, एरवए अग्गिसेण जिणचन्दो । दसवि निसिज्जोवगया, दससुवि खेत्तेसु सिद्धिगया ।५५५। (भरते अरिष्टनेमि, ऐरवते अग्निसेन-जिनचन्द्रः । दशाऽपि निषियोपगताः, दशस्वपि क्षेत्रेषु सिद्धि गताः ।)
भरत क्षेत्र में अरिष्टनेमि और ऐरवत क्षेत्र में तीर्थंकर अग्निसेन---ये दशों क्षेत्रों के दशों तीर्थंकर निषिद्या में विराजमान अर्थात् पर्णकासन से मोक्ष गये ।५५५। भरहे य वद्धमाणो, एरवए वारिसेण जिणचन्दो।। दसवि निसिज्जोवगया, दससुवि खेत्तेसु सिद्धि गया ।५५६। (भरते च वर्द्धमान, ऐरवते वारिषेणजिनचन्द्रः । दशापि निषियोपगताः, दशस्वपि क्षेत्रेषु सिद्धि गताः ।)
भरत क्षेत्र में वर्द्धमान और ऐरवत क्षेत्र में वारिषेण--- दशों क्षेत्रों के ये दशों तीर्थ कर निषिद्या में विराजमान-पर्यंकासन से मोक्ष पधारे ।५५६।