Book Title: Titthogali Painnaya
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Shwetambar Jain Sangh

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Page 349
________________ ३२२ ] [ तित्थोगाली पइन्नय पण्णासमायामा, धरणणि वीसाय पणवीसायाया । छव्वीसइतुस्सेहा, सीता चंदप्पभा भणिया ।१०७४। (पञ्चाशदायामा, धपि विंशतिश्च पंचविशत्यायाता । षड्विंशत्युत्सेधा, सीता चन्द्रप्रभा भणिता ) ___ वह चन्द्रप्रभा नाम वाली पालकी ५० धनुष लम्बी, मध्य में २५ और शेष आगे पीछे के भागों में २० धनुष चौड़ी तथा छत्तीस धनुष ऊँची बताई गई हैं । १०७४।। सीयाए मज्झयारे, दिव्वं मणिरयणकणग बिंबइयं । सीहासणं महरिहं, सपाय पीढं जिणवरस्स ।१०७५। (सीतायाः मध्यद्वारे, दिव्यं मणिरत्नकनकविम्बितम् । सिंहासनं महाध्य , सपादपीठं जिनवरस्य ।) उस चन्द्रप्रभा शिबिका के बीचोबीच उन भगवान महापद्म तीर्थंकर के लिये पादपीठ सहित दिव्य मणियों, रत्नों एवं स्वर्ण से निर्मित एक महा मूल्यवान सिंहासन होगा ।१०७५॥ आलइय भाल मउडो, भासुर बोदी [१] पलंबवणमालो। सियवत्थ संनियत्थो, जस्ल य मोल्लं सयसहस्सं ।१०७६। (आललित भालमुकुटः, भासुर बोंदि प्रलम्बवनमालः । सितवस्त्र सन्न्यस्तः, यस्य च मूल्यं शतसहस्रम् ।) सुविशाल भाल पर अति ललित मुकुट धारण किये हुए, प्रकाशमान देह छबि वाले आजानु विशाल वनमालाओं से विभूषित एवं लाख स्वर्ण-मुद्राओं के मूल्य वाले श्वेत वस्त्र को धारण किये हुए-१०७३। छट्टणं भत्तणं, अज्झवसाणेण सोहणेण जिणो। लेसाहि विसुज्झतो, आरुमती उत्तमं सीयं ।१०७७ (षष्ठेन भक्त ने, अध्यवसायेन शोभनेन जिनः । लेश्याभिः विशुद्ध्यमानः, आरोहति उत्तमां सीताम् ।)

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