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ताओ उपनिषद भाग ६
व्यक्ति मर जाता है, हजारों उसकी कब्र की पूजा पर संलग्न हो जाते हैं; मंदिर-मस्जिदें खड़ी होती हैं, गुरुद्वारे बनते हैं। और जब ज्ञानी जीवित होता है तब सिर्फ लोग पत्थर ही फेंकते हैं, तब सिर्फ लोग निंदा ही करते हैं।
गणित साफ है। जब ज्ञानी जीवित होता है तब तुमसे उसका कोई तालमेल नहीं बैठता। तुम अंधेरे के निवासी हो; वह रोशनी की खबर लाया। यह शब्द तुमने कभी सुना नहीं। शब्द भी सुना हो तो इस शब्द के रहस्य को तुमने कभी अनुभव नहीं किया। वह किसी अनजान देश से आया है; वह कुछ अजनबी बातें कह रहा है। और उन बातों पर भरोसा करना खतरनाक है। खतरनाक इसलिए है कि अगर तुम उन बातों पर भरोसा करोगे तो तुम्हारी जो सुव्यवस्थित गुलामी है वह खंड-खंड हो जाएगी; जो तुम्हारा सुव्यवस्थित अंधकार है...। अंधकार में तुमने अपना घर बना लिया है। अंधकार को तुमने खूब साज-संवार लिया है। तुमने अंधकार को खूब सजावट और श्रृंगार से भर लिया है। तुम भूल ही गए हो कि यह अंधकार है। तुमने अपनी जंजीरों पर भी हीरे-माणिक लगा लिए हैं, और तुमने उनको आभूषण मान लिया है। तुमने अपनी मृत्यु को भी जीवन समझ रखा है।
__अगर तुम ज्ञानी की बात सुनोगे तो खतरा है। खतरा यही है कि वह तुम्हें अस्तव्यस्त कर देगा। वह तुम्हारी सारी व्यवस्था को तोड़ देगा। तुम्हारी सारी सुरक्षा की नींवें हिल जाएंगी। और तुमने जो भवन बड़ी मेहनत से बनाया है जन्मों-जन्मों में, अगर तुमने ज्ञानी का एक शब्द भी सुन लिया तो तुम पाओगे कि वह रेत का भवन है-अब गिरा, तब गिरा। तुमने ताश के पत्तों का घर बना लिया है। तुम उसके भीतर बड़े प्रसन्न हो। पता चल जाए कि ताश का घर है, तुम फिर कैसे प्रसन्न रह पाओगे? फिर दूसरे और असली घर की खोज पर निकलना होगा। और यात्रा दुर्गम है। और कभी कोई पहुंचता है; हजारों चलते हैं, एकाध पहुंचता है।
इसलिए सरल यही है तुम्हारे अज्ञान में कि तुम कह दो इस ज्ञानी को कि यह मूढ़ है, पागल है। यह तुम्हारे बचने का उपाय है। यह तुम्हारी सुरक्षा है। जब तुम ज्ञानी को कह देते हो कि मूढ़ है, तब तुम अपनी मूढ़ता को बचा लेते हो। जब तुम ज्ञानी को कह देते हो पागल है, तब तुम अपने पागलपन को बचा लेते हो। क्योंकि तुम दो में से कोई एक ही सही हो सकता है, दोनों नहीं। अगर बुद्ध सही हैं, अगर क्राइस्ट सही हैं, अगर मैं सही हूं, तो तुम गलत हो। और समझौता यहां न चलेगा। या तो मैं सही हूं, या तुम सही हो। ज्ञानी का कोई समझौता अज्ञानी से नहीं हो सकता। क्या समझौता करोगे? कैसे मिलाओगे अंधेरे और रोशनी को? कभी कोशिश की है?
लोग कहते हैं, पानी में तेल नहीं मिलाया जा सकता। लेकिन यह भी हो सकता है कि पानी में तेल किसी तरकीब से मिला लिया जाए, लेकिन अंधेरे में रोशनी कैसे मिलाओगे? अंधेरा अभाव है प्रकाश का। तो अभाव को भाव से कैसे मिलाओगे? प्रकाश होता है तो अंधेरा हो नहीं सकता; अंधेरा होता है तो प्रकाश हो नहीं सकता। दोनों अलग-अलग ही हो सकते हैं। उनके बीच कोई समझौता नहीं है।
एक ही उपाय है: अगर तुम ज्ञानी को सुनने को राजी हो जाओ; एक क्षण भी मौका दो, जरा सा झरोखा खोलो अपने हृदय का। तो तुम मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तुम्हारे बनाए हुए सब घर झूठे हो जाएंगे, तुम्हारे बनाए हुए सारे इंतजाम व्यर्थ हो जाएंगे। तुमने जो सजावट की है वह सारी सजावट तुमने कागज के घर में कर रखी है। वह घर गिरेगा। वह घर गिर ही रहा है। उस घर में आग लगने वाली है। उस घर में आग लगी ही है। अगर तुम ज्ञानी की सुनोगे तो तुम्हें अपने इन घरघूलों को छोड़ कर बाहर आना होगा। वह तुम्हें खुले आकाश का निमंत्रण देता है। वह तुम्हें स्वतंत्रता के लिए पुकारता है। परम मोक्ष की तरफ उसका इशारा है। डर लगता है। अज्ञात में जाने में भय पकड़ता है। जिन रास्तों पर हम चले नहीं, उन पर वह बुलाता है। जिन मार्गों को हमने कभी छुआ नहीं, उन पर निमंत्रण देता है। और कोई नक्शा नहीं है उन मार्गों का कि तुम्हें आश्वस्त किया जा सके। उन मार्गों को कोई भी पूरा जान नहीं पाया है कि नक्शे बनाए जा सकें।