Book Title: Swapna Sara Samucchay Author(s): Durgaprasad Jain Publisher: Sutragam Prakashak Samiti View full book textPage 5
________________ साररत्न हमें प्रदान किया। यद्यपि मूलसे व्याज अधिक है, परन्तु छोटेसे बडके बीजसे महाबोधिवृक्ष बनता देखा गया है, इस उक्तिके अनुसार प्रस्तावना में अनेक पुराने इतिहासकी साख भरकर मूल ग्रन्थमें अमृत-संजीवनीका संचार किया है । मुनिश्री ने इसमें कई पुस्तकों और लेखकोंका सहयोग प्राप्त करके उनका आभार माना है। ___ अपने समितिके प्रमुख श्री दुर्गाप्रसाद जैन B. A. B. T. द्वारा हिन्दी-अंग्रेजी अनुवादसे स्वप्नसार समुच्चय को चार चाँद लग गए हैं । इसलिए हम आपके बडे उपकृत हैं। और पाशा करते हैं कि आगे भी अपनी नाना सेवाओं द्वारा समितिको शोभा बढायेंगे। _ 'समाजके प्रत्येक भाई बन्धुसे प्राशा रखते हैं, कि इस स्वप्नसार समुच्चय नामक पुस्तक रत्नको अपने गृहपुस्तकालयकेलिए मँगवाकर सपरिवार इसका स्वाध्याय करके अपनी योग्यता बढायेंगे। मंत्री--Page Navigation
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